Comments - तू यार हवा गर है तो मानन्द-ए-सबा रह(९३ ) - Open Books Online2024-03-29T11:16:43Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1005520&xn_auth=noआदरणीय Samar kabeer साहेब ,…tag:openbooks.ning.com,2020-05-03:5170231:Comment:10058182020-05-03T07:33:56.269Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'https://openbooks.ning.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url">Samar kabeer</a><span> साहेब , आदाब , आपकी पारखी नज़र की दाद देता हूँ और हौसला आफ़जाई के लिए दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ | 'तू है दुआ तो एक क़ुबूली-सी दुआ रह' में मुझे भी कुछ ग़लत लग रहा था ,लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था | कर के वाली आपकी बात भी सही है , सदा लगातार वाला मिसरा भी मुझे कमजोर लग रहा था | इस्लाह के हार्दिक आभार | </span></p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url">Samar kabeer</a><span> साहेब , आदाब , आपकी पारखी नज़र की दाद देता हूँ और हौसला आफ़जाई के लिए दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ | 'तू है दुआ तो एक क़ुबूली-सी दुआ रह' में मुझे भी कुछ ग़लत लग रहा था ,लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था | कर के वाली आपकी बात भी सही है , सदा लगातार वाला मिसरा भी मुझे कमजोर लग रहा था | इस्लाह के हार्दिक आभार | </span></p> जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरं…tag:openbooks.ning.com,2020-05-03:5170231:Comment:10056422020-05-03T07:08:58.923ZSamar kabeerhttps://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p><span>'तू है दुआ तो एक क़ुबूली-सी दुआ रह'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'क़ुबूली-सी दुआ' वाक्य विन्यास ठीक </span></p>
<p><span>नहीं है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'तू एक दुआ है तो असर वाली दुआ रह'</span></p>
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<p><span>'तू शम'अ है तो ताक में रह कर के जला कर'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'ताक' को "ताक़" कर लें,और यहाँ 'कर' के साथ 'के' का प्रयोग उचित नहीं,मिसरा…</span></p>
<p>जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p><span>'तू है दुआ तो एक क़ुबूली-सी दुआ रह'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'क़ुबूली-सी दुआ' वाक्य विन्यास ठीक </span></p>
<p><span>नहीं है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'तू एक दुआ है तो असर वाली दुआ रह'</span></p>
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<p><span>'तू शम'अ है तो ताक में रह कर के जला कर'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'ताक' को "ताक़" कर लें,और यहाँ 'कर' के साथ 'के' का प्रयोग उचित नहीं,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-</span></p>
<p><span>"तू शम'अ है तो ताक़ में रह कर ही जला कर'</span></p>
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<p><span>'पैरों पे सदा अपने लगातार खड़ा रह'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'सदा' और 'लगातार' शब्द खटक रहे हैं,'सदा' की जगह "यहाँ" शब्द उचित होगा ।</span></p> सुन्दर एवं प्रेरक शब्दों के ल…tag:openbooks.ning.com,2020-05-02:5170231:Comment:10058122020-05-02T13:33:05.687Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'https://openbooks.ning.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p><span>सुन्दर एवं प्रेरक शब्दों के लिये दिल से आभार ,आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh" class="fn url">सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'</a> जी | सेवानिवृत आदमी के लिए कुछ काम धाम तो करना होता है नहीं , बस पढ़ना और किसी न किसी बह्र में रोज़ लिखना यही काम है आजकल | जो तुक्कामारी होती है उसे मित्रों के सामने प्रस्तुत कर देता हूँ बस | </span></p>
<p><span>सुन्दर एवं प्रेरक शब्दों के लिये दिल से आभार ,आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh" class="fn url">सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'</a> जी | सेवानिवृत आदमी के लिए कुछ काम धाम तो करना होता है नहीं , बस पढ़ना और किसी न किसी बह्र में रोज़ लिखना यही काम है आजकल | जो तुक्कामारी होती है उसे मित्रों के सामने प्रस्तुत कर देता हूँ बस | </span></p> आद0 गिरधर सिंह गहलोत जी सादर…tag:openbooks.ning.com,2020-05-02:5170231:Comment:10058082020-05-02T13:20:46.969Zनाथ सोनांचलीhttps://openbooks.ning.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 गिरधर सिंह गहलोत जी सादर अभिवादन। मैं तो आश्चर्य चकित हो जाता हूँ कि आप किस तरह इतनी ग़ज़ल कह पाते हैं वह भी प्रतिदिन। आपके शेर भी गजब के होते हैं। बधाई स्वीकार कीजिए।</p>
<p>आद0 गिरधर सिंह गहलोत जी सादर अभिवादन। मैं तो आश्चर्य चकित हो जाता हूँ कि आप किस तरह इतनी ग़ज़ल कह पाते हैं वह भी प्रतिदिन। आपके शेर भी गजब के होते हैं। बधाई स्वीकार कीजिए।</p> आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'…tag:openbooks.ning.com,2020-05-02:5170231:Comment:10057082020-05-02T06:07:20.597Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'https://openbooks.ning.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</a><span> जी ,</span></p>
<p><em>आपकी पसंद प्रतिक्रिया उत्साहवर्धन के लिए अंतस से आभार संग नमन</em> |</p>
<p><em> </em></p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</a><span> जी ,</span></p>
<p><em>आपकी पसंद प्रतिक्रिया उत्साहवर्धन के लिए अंतस से आभार संग नमन</em> |</p>
<p><em> </em></p> आ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर…tag:openbooks.ning.com,2020-05-02:5170231:Comment:10054872020-05-02T06:01:23.418Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'https://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>