Comments - बस यही सोच के फेंका था जाल आंखों में... - Open Books Online2024-03-28T10:22:15Zhttps://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1005335&xn_auth=noआद0 अतुल कुशवाह जी सादर अभिवा…tag:openbooks.ning.com,2020-05-02:5170231:Comment:10057182020-05-02T13:04:15.881Zनाथ सोनांचलीhttps://openbooks.ning.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 अतुल कुशवाह जी सादर अभिवादन। इस रचना का शिल्प क्या है क्योंकि यह किसी निश्चित बह्र में नहीं लगी। मंच पर शिल्प लिखने की परंपरा रही है जिससे रचना को देखा और उससे कुछ सीखा जा सके। बहरहाल बधाई स्वीकारें। सादर</p>
<p>आद0 अतुल कुशवाह जी सादर अभिवादन। इस रचना का शिल्प क्या है क्योंकि यह किसी निश्चित बह्र में नहीं लगी। मंच पर शिल्प लिखने की परंपरा रही है जिससे रचना को देखा और उससे कुछ सीखा जा सके। बहरहाल बधाई स्वीकारें। सादर</p>