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प्रतिबंधित मुलाकात हुई है-ग़ज़ल

22 22 22 22

उनसे मेरी बात हुई है
प्रतिबंधित मुलाक़ात हुई है

सारे स्वप्न तरल हैं मेरे
देखो तो बरसात हुई है

स्याही बन कर भस्म्है बिखरी
यूँ न अधेरी रात हुई है

मन खुद में ही खोज खुदी से
शांति कहाँ, आयात हुई है

दिल वो जीते दर्द मग़र हम
मत समझो बस मात हुई है

मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 9, 2018 at 4:27pm

आदरणीय अफरोज जी आपका सुझाव उचित है लेकिन मुझे लगता है कि मैंने शब्दों को उनके लिंग के अनुरूप ही स्थान दिया है

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 9, 2018 at 4:26pm

आदरणीय सुरेंद्र सर आपके सुझाव पर विचार अवश्य होगा

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 9, 2018 at 4:26pm

आदरणीय आरिफ सर बहुत-बहुत आभार

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 9, 2018 at 4:25pm

आदरणीय मनोज भाई, शुक्रिया; अंतिम शेर में मैंने कहना चाहा है कि

जिसको दिल की हिफाजत सौंपा गया है वह अपने आप में खुद ही एक आघात है

बाकी, हो सकता है कहन कमज़ोर हो।

Comment by Afroz 'sahr' on January 9, 2018 at 4:02pm
आदरणीय पंकज मिश्रा जी इस रचना पर बधाई स्वीकार करें। मतले के सानी मिसरे की तक़्तीअ को लेकर असमंजस
है। कृपा कर स्पष्ट करें।5वें शेर में लफ़्ज़ "हिफ़ज़त" स्त्रीलिंग है।इसी शेर में लफ़्ज़ "आघात" पुल्लिंग है,,,,
Comment by नाथ सोनांचली on January 9, 2018 at 11:27am

आद0 पंकज जी सादर अभिवादन। बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने। एक बात कहना चाहूंगा,वैसे ग़ज़ल में मात्रा पतन का लाभ लिया जाता है, पर अगर इस बह्र में न लिया जाए तो लय और बढ़िया रहती है। सादर

आपको शैर दर शैर मुबारकबाद पेश करता हूँ।

Comment by Mohammed Arif on January 9, 2018 at 7:46am

आदरणीय पंकज मिश्रा जी आदाब,

                                    बहुत ही बेहतरीन हिंदी ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजनों का इंतज़ार करें ।

Comment by मनोज अहसास on January 8, 2018 at 10:48pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई जी

अंतिम शेर को देख ले

सादर

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