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खड़े होकर सभी के सामने अक्सर दुतल्ले से।
जो बातें सच थीं ज्यों की त्यों कहीं हमने धड़ल्ले से।

.

सुना है राह के काँटे भी उसका कुछ न कर पाये,
मग़र पैरों मे छाले पड़ गये जूते के तल्ले से।

.

अकेला ही मैं दुश्मन के मुकाबिल में रहा अक्सर ,
मदद करने नही निकला कोर्इ बन्दा मुहल्ले से।

.

वो इन्टरनेषनल क्रिकेट की करते समीक्षा हैं,
नही निकले कभी भी चार रन तक जिनके बल्ले से।

.

तुम्हारे गाँव के बारे में ये मेरा तजुर्बा है,
बजाया बीन जब भी नाग ही निकले मुहल्ले से।

.

वो रेगिस्तान में भी देखते हैं ख्वाब पानी का ,
उन्हें उम्मीद है अब भी उसी बादल निठल्ले से।

.

मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 8, 2013 at 12:27pm

आदरणीय श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी दो पैर वाले जीव तो शहर व गाँव कहीं भी पये जा सकते हैं मुजफ्फर नगर के गाँव से लेकर महानगर तक में। 

Comment by Sarita Bhatia on October 8, 2013 at 9:27am

उम्दा शेर लिए खुबसूरत गजल 

बागी जी की बात का ध्यान करें 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 7, 2013 at 9:00pm

गज़ब गज़ब गज़ब, काफिया देख मन खुश हो गया, सभी शेर बहुत ही उम्दा कहन लियें हैं, दूसरा शेर एक बार देख लें,तकाबूले रदीफ़ ऐब है, बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें प्रेषित है । 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 7, 2013 at 7:10pm

तुम्हारे गाँव के बारे में ये मेरा तजुर्बा है//  तुम्हारे शहर  के बारे में ये मेरा तजुर्बा है,( दो पैर वाले नाग शहर में पाये जाते हैं.... सादर ।

सुदर गज़ल की  बधाई ।

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 7, 2013 at 5:43pm

रचना में दम है ! हार्दिक बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 7, 2013 at 5:23pm

आदरणीय राम भाई , बहुत सुदर गज़ल कही , बधाई !!!

Comment by Abhinav Arun on October 7, 2013 at 3:46pm

हर शेर उम्दा बेहतरीन , लेकिन इस वाले का जावा नहीं श्री राम अवध जी -

 

तुम्हारे गाँव के बारे में ये मेरा तजुर्बा है,
बजाया बीन जब भी नाग ही निकले मुहल्ले से।

 

 वाह बहुत बधाई आपको ...क्रिकेट वाले के शेर में जान है  पर समीक्षा पर गौर फरमाएं ..! सादर .

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