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दम नहीं रहा मेरे यार मे.....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

212. 12. 212. 12.

दम नहीं रहा मेरे यार में
क्या रखा फिर जीत हार में (1)

कह रहा है वो मन को क़ैद कर
जो नहीं मिरे इख़्तियार में (2)

वस्ल की घड़ी ख़्वाब बन गई
उम्र कट गई इंतिज़ार में (3)

सुब्ह आएगा वो यक़ीन है
शब कटी इसी एतिबार में (4)

सामने मिरे भीख बट रही
रह गया खड़ा मैं क़तार में (5)

क्या ख़िज़ाँ ने ही दी है बद्दुआ
फूल मर गए इस बहार में (6)

धूप में सदा पूछते रहे
प्यास क्यों लगी रेगज़ार में (7)

सिर्फ नफ़रतों के सिवा बता
क्या मिला मुझे तेरे प्यार में (8)

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 4, 2021 at 11:34am

वाह बहुतख़ूब आदरणीय...इस मापनी पे पहली ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..सादर

Comment by सालिक गणवीर on June 21, 2021 at 6:54pm

आदरणीय Samar kabeer साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए तह-ए -दिल से शुक्रगुज़ार हूँ.

Comment by Samar kabeer on June 21, 2021 at 6:34pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by सालिक गणवीर on June 21, 2021 at 9:35am

प्रिय भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए आपको धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 21, 2021 at 8:57am

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by सालिक गणवीर on June 21, 2021 at 8:14am

*मतले का सानी मिसरा यूँ पढ़ा जाए..

क्या रखा है फिर जीत-हार में

सातवाँ शैर..

धूप में मुझे पूछने लगे

प्यास क्यों लगी रेग-ज़ार में

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