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फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
बह्र - 212 212 212 212

गीत बुलबुल सुनाती रही रात भर
दिलरुबा को रिझाती रही रात भर

भाव ही नींद खाती रही रात भर
उसको मैं बस मनाती रही रात भर

ज़िंदगी से सुना गीत जो सारा दिन
उसको मैं गुनगुनाती रही रात भर

उनकी दिलकश अदा और दीवानगी
सोच मैं मुस्कुराती रही रात भर

तेरी पहली छुअन याद करके सनम
मन ही मन मैं लजाती रही रात भर

चाँद तकने दिया भूख ने कब किसे
रोटियाँ ही दिखाती रही रात भर

ख़्वाब में ख़ुशनुमा ज़िंदगी को दिखा
नींद पागल बनाती रही रात भर

बिन पज़ीराई जब जिस्म भोगा गया
अपना तकिया भिगोती रही रात भर

उनकी बाहों में जन्नत सा पाकर सुकूँ
ज़िंदगी मुस्कुराती रही रात भर

हारने जब लगा हौसला ज़ीस्त से
आस लोरी सुनाती रही रात भर

ज़ीस्त से जो हैं "राखी" ने पाए सबक़
उनको लिखती मिटाती रही रात भर
अप्रकाशित (मौलिक)




अप्रकाशित (मौलिक)

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 13, 2022 at 6:17pm

आदरणीया राखी जी जैसा कि समर साहब ने कहा है कि प्रयास अच्छा है...दूसरे शे'र का ऊला "भाव ही नींद खाती रही रात भर" मुझे लगता है भाव शब्द पुल्लिंग है...इसमें सुधार चाहिए... बाकी शुभ शुभ

Comment by Rakhee jain on November 29, 2022 at 8:55pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी हार्दिक आभार आपका

जी आदरणीय की कही हर एक बात को ध्यान में रखकर सुधार का प्रयास करती रहूंगी 

Comment by Rakhee jain on November 29, 2022 at 7:42pm

आदरणीय समर कबीर जी हृदय से आभार मार्गदर्शन के लिए

आपके समस्त निर्देशों को ध्यान में रखूंगी ग़ज़ल में तुरंत सुधार कर लेती हूं

हार्दिक आभार आपका

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 29, 2022 at 4:51pm

आ. राखी जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है। हार्दिक बधाई। 

आ. भाई समर जी की बातों का संज्ञान लें।

Comment by Samar kabeer on November 29, 2022 at 2:40pm

मुहतरमा राखी जैन साहिब: आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

आपकी पिछली ग़ज़ल पर जो मैंने टिप्पणी दी थी उसका जवाब आपने अभी तक नहीं दिया? ख़ैर !

'जिस्म बाज़ार जब कर दिया हार के
दाम ख़ुद के लगाती रही रात भर'

कौन? भाव स्पष्ट नहीं हुआ, ग़ौर करें ।

'अपना तकिया भिगाती रही रात भर'

इस मिसरे में 'भिगाती' शब्द ठीक नहीं, सहीह शब्द है "भिगोती", देखें ।

'हाँफने जब लगा हौंसला जीस्त से'

इस मिसरे में 'हाँफने' शब्द उचित नहीं इसकी जगह "हारने" शब्द उचित होगा, ग़ौर करें और 'हौंसला' को "हौसला" लिखें ।

कुछ टंकण त्रुटियाँ :-

चांद--'चाँद'

रोटियां--'रोटियाँ'

सुकूं--'सुकूँ'

जीस्त--'ज़ीस्त'

सबक--'सबक़'

कृपया ध्यान दे...

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"जी, सादर आभार।"
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Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय."
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"सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
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"बात तो उचित है. आप संशोधित रचना यहीं, इसी आयोजन में पोस्ट कर दें, आदरणीय."
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"अवश्य, आदरणीय."
Sunday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"लक्ष्मण भाई पिछले आयोजन में यही भूल मुझसे हुई थी। तो इस संबंध में थोड़ी जानकारी जुटाई थी। वो भी OBO…"
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"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। छंदों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
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अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"रचना पर उपस्थिति तथा मूल्यवान सुझावों के लिए आपका अति आभार है सौरभ जी। आपका मार्गदर्शन तथा प्रशंसा…"
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pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी रचना पर उपस्तिथि और सराहना के लिये हार्दिक आभार। "
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