For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सदा - क्यों नहीं देते

221--1221--1221--122

1

आँखों में भरे अश्क गिरा क्यों नहीं देते

है दर्द अगर सबको बता क्यों नहीं देते

2

है जुर्म मुहब्बत तो सज़ा क्यों नहीं देते

गर रोग है तो इसकी दवा क्यों नहीं देते

3

तुम चाँद सितारों के तले उनको बुला कर

दिल में बसे चेहरे को दिखा क्यों नहीं देते

4

तूफ़ान से लड़ने का तुम्हें शौक़ है इतना

तो चप्पू समंदर में गिरा क्यों नहीं देते 

अक्सर जो तुम्हें ठगते है छल और कपट से

इक बार उन्हें तुम भी दग़ा क्यों नहीं देते

6

सच्चाई अगर मुल्क में ज़िंदा है अज़ीज़ो

इन्साफ़ को फिर लोग सदा क्यों नहीं देते

7

क़ुदरत की तुम्हें फ़िक्र अगर इतनी है 'निर्मल

तो धरती को ख़ुश रंग बना क्यों नहीं देते


मौलिक व अप्रकाशित

रचना निर्मल

दिल्ली 

Views: 214

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rachna Bhatia on January 17, 2023 at 9:03pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर भाई नमस्कार। हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 17, 2023 at 10:15am

आ. रचना बहन सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Rachna Bhatia on January 16, 2023 at 6:34pm

आदरणीय तपन दुबे जी हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by Tapan Dubey on January 16, 2023 at 4:26pm

बहुत खूब रचना जी, बड़ी अच्छी गजल हुई है। बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय अजय गुप्ता 'अजेय' जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार…"
3 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"ग़ज़ल 2122 1122 1122 22/112 उसकी आमद से जब आबाद शबिस्ताँ होगाबा'द   मुद्दत के …"
22 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय Zaif जी आदाब तरही मिसरे पर ग़ज़ल के उम्दा प्रयास पर बधाई स्वीकार करें । हर सफ़र ज़िंदगी का…"
38 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय Mahendra Kumar जी आदाब ग़ज़ल अभी और वक़्त और मश्क़ चाहती है। मिसरों को और परिपक्वता के साथ…"
1 hour ago
मनोरमा जैन पाखी is now a member of Open Books Online
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आ. भाई अमित जी, आपकी टिप्पणी ठीक सेपढ़ चुका हूँ । आपका सुझाव बेहतरीन है। पर मैं अपने स्तर पर भी इसे…"
6 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आ. राजेश कुमारी जी, ख़ूब ग़ज़ल हुई। "एक गमले की हिफाज़त भी नहीं कर पाए आपके शहर में क्या खाक़…"
7 hours ago
Anil Kumar Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय जैफ साहब बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने .गिरह ख़ूब है "
7 hours ago
Anil Kumar Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय जैफ साहब बेहद शुक्रिया "
7 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"ये हक़ीक़त कि सफ़र जिस्म का मुश्किल ही रहा उस पे दावा कि सफ़र रूह का आसाँ होगा.....  जी, ख़ूब! आ.…"
7 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आ. ऋचा जी, अच्छी ग़ज़ल कही आपने। गुणीजन के सुझाव भी ख़ूब। बधाई।"
8 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आ. लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल हुई।  बधाई स्वीकारें।"
8 hours ago

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service