For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog (459)

मजदूर के दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर



करे सुबह से शाम तक, काम भले भरपूर।

निर्धन का निर्धन रहा, लेकिन हर मजदूर।१।



कहने को सरकार ने, बदले बहुत विधान।

शोषण से मजदूर का, मुक्त कहाँ जहान।२।



हरदम उसकी कामना, मालिक को आराम।

सुनकर  अच्छे  बोल दो, करता  दूना काम।३।



वंचित अब भी खूब है, शिक्षा से मजदूर।

तभी झेलता रोज ही, शोषण हो मजबूर।४।



आँधी  वर्षा या  रहे, सिर  पर  तपती धूप।

प्यास बुझाने के लिए, खोदे हर दिन कूप।५।



पी लेता दो घूँट मय, तन जब थककर…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2018 at 7:39pm — 13 Comments

मूर्ख दिवस के दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर

सूँघा हमने फूल को, महज समझ कर फूल

था कागज का तो मना, अपना 'अप्रैल फूल'।१।



हम में  दस  ही  मूर्ख हैं, नब्बे  हैं  हुशियार

लेकिन ये दस कर रहे, हर दुख का उपचार।२।



मूरख कब देता भला, मूर्ख दिवस को मान

 इस पर कृपा कर रहा, सहज भाव विद्वान।३।



भोले भाले का उड़ा, खूब कुटिल उपहास

मूर्ख दिवस पर सोचते, वो हैं खासमखास।४।



दसकों से सर पर रहा, बेअक्लों  का…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2018 at 7:28am — 20 Comments

कविता दिवस के दोहे

कविता कोरी कल्पना, कविता मन का रूप

कविता को कवि ले गया, जहाँ न पहुँचे धूप।१।



किसी फूल की पंखुड़ी, किसी कली का गाल

कविता  रंगत  प्यार की, नहीं शब्द  का जाल।२।



आँचल में रचती रही, सुख दुख कविता रोज

पड़ी जरूरत जब कभी, भरती सब में ओज।२।



भूखों की ले भूख जब, दुखियों की ले पीर

कविता सबकी तब भरे, आँखों में बस नीर।४।



युगयुग से भाये नहीं, कविता को अनुबंध

हवा  सरीखी  ये बहे, लिए  अनौखी  गंध।५।



कविता सुख की थाल तो, है…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2018 at 3:30pm — 12 Comments

नारी दिवस के दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

माता भगिनी  संगिनी, सुता  रूप  में नार

विपदा दुख पीड़ा सहे, बाँटे लेकिन प्यार।१।



रही जन्म से नार तो, सदा शक्ति का रूप

समझे कैसे खुद रहा, मर्द हवस का कूप।२।



जो नारी का नित करें, पगपग पर सम्मान

संतो सा उनका रहा, सचमुच चरित महान।३।



नारी को जो  कह गये, यहाँ  नरक का द्वार

सब जन उनको जानिए, इस भू पर थे भार।४।



मुझ मूरख का है नहीं, गीता का यह ज्ञान

देवों से बढ़  नार का, कर  मानव सम्मान।५।



बन जायेगा सच कहूँ,…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2018 at 11:30am — 15 Comments

होली के दोह - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

होली के दोह

मन करता है साल में, फागुन हों दो चार

देख उदासी नित डरे, होली  का त्योहार।१।

चाहे जितना भी  करो, होली  में हुड़दंग

प्रेम प्यार सौहार्द्र को, मत करना बदरंग।२।

तज कृपणता खूब तुम, डालो रंग गुलाल

रंगहीन अब ना रहे, कहीं किसी का गाल।३।

फागुन  में  गाते  फिरें, सब  रंगीले फाग

उस पर होली में लगे, भीगे तन भी आग।४।

घोट-घोट के पी  रहे, शिव बूटी कह भाँग

होली में जायज नहीं, छेड़छाड़ का…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2018 at 7:43pm — 23 Comments

इक दिन की बात हो तो इसे भूल जाएँ हम - तरही गजल- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"



221   2121     1221      212



सुनता खुदा  न यार  सदाएँ  तो क्या करें

करती असर न आज दुआएँ तो क्या करें ।१।



इक दिन की बात हो तो इसे भूल जाएँ हम 

हरदिन का खौफ अब न बताएँ तो क्या करें।२।



इक वक्त था कि लोग बुलाते थे शान  से

देता न  कोई  आज  सदाएँ  तो क्या करें।३।



शाखों लचकना सीख लो पूछे बगैर तुम 

तूफान बन  के  टूटें  हवाएँ तो  क्या करें।४।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2018 at 6:30pm — 6 Comments

दबे  पाप  ऊपर  जो  आने  लगे  हैं- गजल



१२२ १२२ १२२ १२२

दबे  पाप  ऊपर  जो  आने  लगे  हैं

सियासत में सब तिलमिलाने लगे हैं।१।



घोटाले वो सबके गिनाने लगे हैं

मगर दोष अपना छिपाने लगे हैं।२।



वतन डूबता है तो अब डूब जाये

सभी खाल अपनी बचाने लगे हैं।३।



रहे कोयले की दलाली में खुद जो

गजब  वो भी उँगलीउठाने लगे हैं।४।



दिया था भरोसा कि लुटने न देंगे

वही बेबसी  अब …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2018 at 4:00pm — 20 Comments

दाग कितने नित लगाओगे वतन के भाल पर -- (गजल)-- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२ २१२२ २१२२ २१२



खूब नजरें  जो  गढ़ाये  हैं  पराये  माल पर

है भरोसा खूब उनको दोस्तो घड़ियाल पर।१।



भूख बेगारी औ'  नफरत है पसारे पाँव बस

अब भगत आजाद रोते हैं वतन के हाल पर ।२।



आज सम्मोहन  कला  हर नेता को आने लगी

है फिदा जनता यहाँ की हर सियासी चाल पर।३।



खुद  पहन  खादी  चमकते पूछता हूँ आप से

दाग कितने नित लगाओगे वतन के भाल पर।४।



ऐसा होता तो सुधर  जाते  सभी हाकिम यहाँ

वक्त जड़ता पर कहाँ है अब तमाचा गाल…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 11, 2018 at 10:25pm — 8 Comments

फितरत नहीं छिपती है - (गजल)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१ १२२२ २२१ १२२२



नफरत के बबूलों को आँगन में उगाओ मत

पाँवों में स्वयं के अब यूँ शूल चुभाओ मत।१।



ऐसा न हो यारों फिर बन जायें विभीषण वो

यूँ दम्भ में इतना भी अपनों काे सताओ मत।२।



फितरत नहीं छिपती है कैसे भी मुखौटे हों

समझो तो मुखौटे अब चेहरों पे लगाओ मत।३।



माना कि तमस देता तकलीफ बहुत लेकिन

घर को ही जला डाले वो दीप जलाओ मत।४।



ढकने को कमी अपनी आजाद बयानों पर

फतवों के मेरे  हाकिम  पैबंद  लगाओ…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 1, 2018 at 6:00am — 15 Comments

शीत के दोहे - लक्ष्मण धामी ' मुसाफिर'

शीत के दोहे



बालापन सा हो गया, चहुँदिश तपन अतीत

यौवन सा ठिठुरन लिए, लो आ पहुँची शीत।१।



मौसम बैरी  हो  गया, धुंध ढके हर रूप

कैसै देखे अब भला, नित्य धरा को धूप।२।



शीत लहर के तीर नित, जाड़ा छोड़े खूब

नभ  के  उर  में  पीर  है, आँसू  रोती दूब।३।



हाड़  कँपाती  ठंड  से , सबका  ऐसा हाल

तनमन मागे हर समय, कम्बल स्वेटर शॉल।४।



शीत लहर फैला रही, जाने क्या क्या बात

दिन घूँघट  में  फिर रहा, थरथर काँपे रात।५।



लगी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2018 at 7:27am — 8 Comments

नए साल के दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

विपदा  से  हारो  नहीं,  झेलो  उसे  सहर्ष

नित्य खुशी औ' प्यार से, बीते यह नववर्ष।१।



नभ मौसम सागर सभी, कृपा  करें  अपार

जनजीवन पर ना पड़े, विपदाओं की मार।२।



इंद्रधनुष के  रंग सब, बिखरे हों हर बाग

नये वर्ष में मिट सके, भेद भाव का दाग।३।



खुशियों का मकरंद हो, हर आँगन हर द्वार

हो  सब  में  सदभावना, जीने  का  आधार।४।



विदा  है  बीते  साल को, अभिनंदन नव वर्ष

ऋद्धि सिद्धि सुख…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2018 at 8:00am — 12 Comments

हमारी सोच को लाचार कर देगा - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२



रवैया  हाकिमों  का  देश  को  बीमार  कर देगा

यहाँ मिलजुल के रहना और भी दुश्वार कर देगा।१।



फँसाया जा रहा है यूँ  अविश्वासों में हमको अब

न जाने कब सखा ही झट पलटके वार कर देगा।२।



सियासत तेल छिड़केगी हमारी बस्तियों में फिर

जलाने का बचा जो काम वो अखबार कर देगा।3।



परोसे झूठ सच जैसा बनाकर मीडिया जो नित

किसी दिन ये हमारी सोच को लाचार कर देगा ।४।



अबोला  शक  बढ़ाता है  रखो  सम्वाद  भाई से…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2018 at 8:30pm — 18 Comments

हार का अहसास उसको खा गया- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122   2122    212


जीतने की जिस किसी ने ठान ली
मंजिलों की राह खुद पहचान ली ।1।


हार का अहसास उसको खा गया
पूछ मत अब ये कि क्यों कर जान ली।2।


है वचन शीशा न कोई टूटेगा
पत्थरों की बात चाहे मान ली ।3।


कोयलों ने होंठ अपने सी लिये
झुंड में आ मेंढकों ने तान ली ।4।


भ्रष्ट जब सारी सियासत है यहाँ
क्या है कैसे कितनी राशी दान ली।5। 

मौलिक अप्रकाशित

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2017 at 1:54pm — 23 Comments

वही वंशज है सूरज का - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

1222 1222 1222 1222



न जीवन राख कर लेना किसी की डाह में यारो

हमेशा सुख सभी का हो तुम्हारी चाह में यारो।1।



विचारों की गहनता हो न हो व्यवहार उथला ये

सुना मोती ही मिलते हैं समुद की थाह में यारो ।2।



वही वंशज है सूरज का बुजुर्गों ने कहा है सच

जलाए दीप जिसने भी तिमिर की राह में यारो ।3।



किसी को देके पीड़ा तुम न उसकी आह ले लेना

न जाने कैसी ज्वाला हो किसी की आह में यारो।4।



गगन के स्वप्न तो देखो धरा लेकिन न त्यागो तुम

हवा में… Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2017 at 4:02pm — 22 Comments

अब की बारिश में - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" (गजल)

1222 1222 1222 1222



बहा कर ले गई नदिया खजाना अब की बारिश में

न बच पाया मुहब्बत का ठिकाना अब की बारिश में।1।



डुबो कर घर गए मेरा किसी की आँखों के आँसू

है आई बाढ़ समझे ये जमाना अब की बारिश में।2।



जहाँ मिलते थे तन्हा नित खुदा से आरजू कर हम

न जाने क्यों खुदा भूला बचाना अब की बारिश में।3।



हैं बाहर बदलियाँ रिमझिम कि भीतर आँखों से जलथल

बहुत मुश्किल है सीले खत सुखाना अब की बारिश में।4।



पहुँच हम तक भी जाएगी तुम्हारे तन की हर… Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2017 at 11:13am — 11 Comments

कभी गम के दौर में भी हुई आखें नम नहीं पर- लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

गजल

2121    1221    1212    122



मेरे  रहनुमा  ही   मुझसे  मिले  सूरतें  बदल  के

भला क्या समझता तब मैं छिपे पैंतरे वो छल के।1।

न सितारे बोले  उससे  मेरा  हाल क्या है या रब

न ही चाँद आया मुझ तक कभी एकबार चल के।2।



खता क्या थी अपनी ऐसी अभीतक न समझा हूँ मैं

जो था राज मेरे दिल का खुला आँसुओं में ढल के।3।

कहूँ लाल कह के  उसने न  गले  लगाया क्यों मैं

न लिपट सका था मैं ही कभी उससे यूँ मचल के।4।



बड़ा ख्वाब  था  खिलाऊँ  उसे मोल की भी रोटी

न खरीद…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 26, 2017 at 1:10pm — 18 Comments

ललक दिल को रिझाने की -लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ (ग़ज़ल)

ग़ज़ल



1222 1222 1222 1222

ललक दिल को रिझाने की जो खूनी हो गई होगी

किसी का सुख किसी की पीर दूनी हो गई होगी।1।

सभी के हाथ में गुल हैं यहाँ जुल्फें सजाने को

न जाने किस चमन की शाख सूनी हो गई होगी।2।

हवा बंदिश की सुनते हैं बहुत शोलों को भड़काए

मुहब्बत यार कमसिन की जुनूनी हो गई होगी।3।

हमें तो सुख रजाई का मिला है शीत में यारो

किसी जंगल में फिर से तेज धूनी हो गई होगी।4।

नहीं उसको…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 7, 2017 at 1:19pm — 12 Comments

बचा है खोट से जब तक - (ग़ज़ल) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

1222    1222    1222    1222



जुबाँ पर वो  नहीं चढ़ता मनन उसका नहीं होता

जो बाँटा खौफ करता हो भजन उसका नहीं होता।1।



जो करता बात जयचंदी  वतन उसका नहीं होता

जिसे हो प्यार पतझड़ से चमन उसका नहीं होता।2।



जिसे लालच हो कुर्सी का जो करता दोगली बातें

वतन हित में कभी लोगों कथन उसका नहीं होता।3।



गगन उसका हुआ करता जो दे परवाज का साहस

जो काटे पंख  औरों  के  गगन उसका नहीं होता।4।



समर्पण  माँगता है प्यार  निश्छल  भाव वाला बस

नजर हो सिर्फ दौलत…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2017 at 11:21am — 6 Comments

परख सकती नहीं हर आँख गहना रूप का यारो - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’(ग़ज़ल)

1222    1222    1222    1222



जफा कर यूँ  मुहब्बत में  कभी ऊपर  नहीं होते

वफा के  खेत दुनियाँ  में कभी  बंजर नहीं होते।1।



खुशी मंजिल को पाने की वहाँ उतनी नहीं होती

जहाँ  राहों में मंजिल की  पड़े पत्थर नहीं होते।2।



परख सकती नहीं हर आँख गहना रूप का यारो

किसी की सादगी से बढ़  कोई जेवर नहीं होते।3।



नहीं चाहे बुलाता  हो उसे फिर तीज पर नैहर

न छोड़े गर नदी  नैहर  कहीं सागर नहीं होते।4।



यहाँ कुछ द्वार सुविधा के खुले होते जो उनको भी

पहाड़ी …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 29, 2016 at 11:25am — 11 Comments

दुख की धूप हमें दे रक्खो सुख की सारी छाँव घनी - ( गजल) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2222    2222    2222    222

*********************************

यौवन  भर  देखी  है  हमने  कैसी  कैसी  छाँव घनी

कहने से भी मन डरता अब मिलती थोड़ी छाँव घनी।1



धूप अगर  होती  राहों  में तो  साया  भी मिल जाता

लेकिन अपने पथ में यारो मंजिल तक थी छाँव घनी।2



हमको तो  आदत  सहने की  सर्दी गर्मी बरखा सब

दुख की धूप हमें दे रक्खो सुख की सारी छाँव घनी।3



छाया अच्छी तो है  लेकिन बढ़ने से जीवन जो रोके

कड़ी  धूप से  भी बदतर  है यारो  ऐसी छाँव घनी।4



फसलों…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 14, 2016 at 10:51am — 6 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, आपकी इस इज़्ज़त अफ़ज़ाई के लिए आपका शुक्रगुज़ार रहूँगा। "
34 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ भाई आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार करें।"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी ठीक है *इल्तिजा मस'अले को सुलझाना प्यार से ---जो चाहे हो रास्ता निकलने में देर कितनी लगती…"
1 hour ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी सादर प्रणाम । ग़ज़ल तक आने व हौसला बढ़ाने हेतु शुक्रियः । "गिर के फिर सँभलने…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ठीक है खुल के जीने का दिल में हौसला अगर हो तो  मौत   को   दहलने में …"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत अच्छी इस्लाह की है आपने आदरणीय। //लब-कुशाई का लब्बो-लुबाब यह है कि कम से कम ओ बी ओ पर कोई भी…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
9 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service