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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – May 2014 Archive (6)

बेमजा यार सफर रोज नई राहों का

2122     112 2     1122    22

**

खार  हूँ  एक  ये  सोचा   है  सभी  ने मुझको

फूल के साथ  जो  देखा  है  सभी  ने  मुझको

**

बंद सदियों  से  पड़ा  था  मैं  किसी  कोने में

खत तेरा जान के  खोला  है सभी ने मुझको

**

भोर सा रास  तुझे  आज   मगर  आया क्यूँ

तम भरी  रात जो बोला  है  सभी ने मुझको

**

दाद  वैसे  तो   मिली  बात  बुरी भी  कह दी

बस तेरी  बात  पे  कोसा  है सभी ने मुझको

**

रूह  की  बात  किसे   यार  लगी  सौदों …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 28, 2014 at 10:30am — 25 Comments

सूरतों के साथ सीरत भी बदलनी चाहिए - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

बाद  इसके  भी  बहस  कुछ  और  चलनी चाहिए

सूरतों   के  साथ  सीरत  भी   बदलनी    चाहिए

**

चल  पड़े  माना  सफर  में  बात  इससे कब बनी

लौटने  को   घर   हमेशा   साँझ   ढलनी  चाहिए

**

आ  ही  जायेगा  भगीरथ  फिर  यहाँ  बदलाव को

आस की  गंगा  तुम्हीं  से फिर निकलनी चाहिए

**

है   जरूरी   देश   को   विश्वास   की   संजीवनी

मन हिमालय  में सभी के वो भी फलनी चाहिए

**

ब्याह की बातें  कहो या  फिर कहो तुम देश की

हाथ से  जादा …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 22, 2014 at 10:30am — 19 Comments

दर्द भूख का यारो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

मौत   बेटियों   को  बस,  दाइयाँ  समझती  हैं

पीर  के  सबब  को  सब  माइयाँ  समझती  हैं

**

सोच  आज  तक  भी जब,  है  गुलाम जैसी ही

मुल्क  की  अजादी  क्या, बेडि़याँ  समझती हैं

**

दो  बयाँ  भले  ही  तुम  देश  की  तरक्की के

हर खबर है सच कितनी सुर्खियाँ समझती हैं

**

आप   के  बयानों  में    खूब   है  सफाई  पर

बेवफा  कहाँ  तक  हो,   पत्नियाँ  समझती हैं

**

दोष  तुम  निगाहों   को  बेरूखी  की  देते  हो

कान …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 16, 2014 at 12:30pm — 11 Comments

माँ के सिवा - ग़ज़ल - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

** मेरे लिए आज मातृ दिवस और माँ की पुण्य तिथि का अद्भुत संयोग है l यह रचना माँ को समर्पित है l

जिंदगीभर  कौन देता  है खुशी माँ के सिवा

ले अॅधेरा  कौन  देता  रौशनी  माँ के सिवा

**

वह लहू  को कर  सुधा हमको हमेशा पोषती

कौन खुद को यूँ गला दे जिंदगी माँ के सिवा

**

बस रहे खुशहाल जग ये सोचकर भगवान भी

क्या बनाता और अच्छा इक नबी माँ के सिवा

**

दे के रिमझिम जिंदगी भर वो तपन हरती रहे

कौन अपनाता बता दे  तिश्नगी  माँ के…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 11, 2014 at 10:00am — 16 Comments

बात करते गाँव की - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

रोज    की   है   बादलों   से   छेड़खानी   आपने

और  गढ़  ली  प्यास  की  कोई  कहानी  आपने

***

चाह  रखते  हो  भगीरथ  सब  कहें  इतिहास में

पर न  खुद से  एक  दरिया  भी  बहानी  आपने

***

बात  करते  गाँव  की  पर कब  उसे  तरजीह दी

गाँव  को  तम  दे   सजाई   राजधानी    आपने

***

आपको दरिया मिली हर प्यास को सच है मगर

खोद  कूआँ  कब   निकाला  यार  पानी  आपने

***

लाख  दुख  मैं  मानता  हूँ  आपने  झेले  मगर

झोपड़ी  का  दुख  न   झेला  …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2014 at 12:00pm — 14 Comments

आचरण सबको यहाँ अब है नकाबों की तरह - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122    2122    2122    212

***

हर खुशी  हमको  हुई  है अब सवालों  की तरह

और दुख आकर मिले हैं नित जवाबों की तरह

***

चाँद  निकला  तो  नदी में  देख छाया  खुश रहे

रोटियाँ  अब हम गरीबों को  खुआबों  की तरह

***

यूं कभी  जिसमें कहाये  यार हम  महताब थे

उस गली में आज क्यों खाना खराबों की तरह

***

एक भी आदत नहीं ऐसी कि तुझको  गुल कहूँ

पास काँटें क्यों रखो फिर तुम गुलाबों की तरह

***

है हमें तो जिन्दगी में साँस-धड़कन यार ज्यों

आप…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2014 at 9:30am — 13 Comments

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय."
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