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रामबली गुप्ता's Blog (70)

दोहे-गुरु पूर्णिमा विशेष-रामबली गुप्ता

जग में बिन गुरु ज्ञान के, नर-पशु एक समान।

गुरु के शुचि सानिध्य में, बनता मूढ़ सुजान।।1।।



ज्ञान जगत का मूल है, संस्कृति का आधार।

किन्तु बिना गुरु ज्ञान कब, पाये यह संसार?2।।



निज गुरु पद में बैठ नित, खुद को लो यदि जान।

कलुष-भेद हिय-तम मिटे, हो शुचि तन-मन-प्रान।।3।।



ज्ञान ज्योति गुरु दीप सम, और तिमिर-अज्ञान।

अर्पित कर श्रम-स्नेह-घृत, बनते शिष्य सुजान।।4।।



नित गुरु-पद वंदन करें, इसमें चारो धाम।

गुरु को श्री-हरि-पार्थ भी, नत हो करें… Continue

Added by रामबली गुप्ता on July 9, 2017 at 10:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल-रामबली गुप्ता

ग़ज़ल

1222 1222 1222 1222



जो लड़कर आँधियों से जीत का इनआम लेता है

ज़माना फ़ख्र से उसका युगों तक नाम लेता है



सहारा जो यहाँ हर डूबते इन्सां का बन जाये

खुदा भी हाथ उसका मुश्किलों में थाम लेता है



दुआओं की कमी होती नहीं उसको कभी यारों

बज़ुर्गों का यहाँ जो हाल सुबहो-शाम लेता है



पता सबको है मुश्किल की घड़ी होती बहुत छोटी

कहाँ हर आदमी हिम्मत से लेकिन काम लेता है



खुदा को भी शिकायत होगी शायद अपने बन्दे से

कि वो है खुदग़रज़ दुख… Continue

Added by रामबली गुप्ता on July 4, 2017 at 11:30am — 21 Comments

गीत-हे हरि हर लो हिय के दुख सब-रामबली गुप्ता

हे हरि हर लो हिय के दुख सब।



सकल चराचर जग के स्वामी! कृपा करो कर शीश रखो अब।

हे हरि हर लो......



चतुर्वेद-वेदांग-पुराणों से भी ऊपर ज्ञान तुम्हारा।

वन-वन गिरि-गिरि भटका नर पर तुमको जान न पाया हारा।

भेद मिटाकर सभी प्यार का जिसने दिल में दीप जलाया।

नही किसी मंदिर-मस्जिद में उसने तुमको खुद में पाया।



सत्य न यह स्वीकारे जग में ऐसा कौन मनुज या मज़हब?

हे हरि हर लो.......



सूर्य-चंद्र की ज्योति तुम्हीं गति ग्रह-उपग्रह ने तुमसे पाई।

जग… Continue

Added by रामबली गुप्ता on June 11, 2017 at 7:45pm — 8 Comments

दीपक सा उजियार करोगे-रामबली गुप्ता

ग़ज़ल

22 22 22 22



जब जलना स्वीकार करोगे

दीपक-सा उजियार करोगे



स्नेह-समर्पण शस्त्र अगर हों

हर दिल पर अधिकार करोगे



दुर्ग दिलों के जीत सके तो

जय सारा संसार करोगे



दिल में दर्प बढ़ा दानव-सा

उसका कब संहार करोगे



राष्ट्र-हितों पर मिट न सके तो

जीवन यह बेकार करोगे



दिल पर रखकर हाथ बता दो

"हमसे कितना प्यार करोगे"



दृष्टि रखोगे अर्जुन-सी तो

लक्ष्य पे ही हर वार करोगे



उर-अँधियार मिटा पाये… Continue

Added by रामबली गुप्ता on February 26, 2017 at 7:00am — 18 Comments

दोहे-रामबली गुप्ता

कृपा करो जगदीश हे! करो जगत कल्याण।

प्रेम दया सद्भाव दो, हो शुभ तन-मन-प्राण।।1।।



हो कण-कण में व्याप्त तुम, हे! जग पालनहार।

पद-पावन में तीर्थ सब, है सुरसरि की धार।।2।।



सदा तुम्हारी भक्ति में, रहूँ समर्पित नाथ!

ऐसा दो वरदान अब, रखो शीश पर हाथ।।3।।



प्रभो! सकल ब्रह्माण्ड के, एक तुम्ही हो नाथ।

सदा कामना है यही, रहे कृपा-कर माथ।।4।।



सूर्य-चंद्र-तारक सभी, जीव-जन्तु इत्यादि।

सबका तुम से अंत हरि! है तुमसे ही… Continue

Added by रामबली गुप्ता on February 5, 2017 at 6:00pm — 23 Comments

सवैये-दीपावली विशेष-रामबली गुप्ता

मत्तगयंद सवैया (सूत्र=211×7+22; भगण×7+गागा)



ज्योति जले घर-द्वार सजे सब, हैं उतरे वसुधा पर तारे।

आज बनी रजनी वधु सुंदर ज्यों पहने मणि के पट प्यारे।।

थाल लिए जुगनू सम दीपक, नाच रहे खुश हो जन सारे।

आश-दिये हरते उर से तम, भाग रहे डर के अँधियारे।।1।।



किरीट सवैया (सूत्र=211×8; भगण×8)



कोटिक दीप जले वसुधा पर, है कितना यह दृश्य सुहावन।

झूम रहे नव आश भरे उर, पूज रहे मिल आज सभी जन।।

ज्योति जलाकर स्वागत में तव राह निहार रहे सबके मन।

हे! कमला…

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Added by रामबली गुप्ता on October 29, 2016 at 5:30pm — 9 Comments

सवैये-रामबली गुप्ता

वागीश्वरी सवैया  [सूत्र- 122×7+12 ; यगण x7+लगा]



करो नित्य ही कृत्य अच्छे जहां में सखे! बोल मीठे सभी से कहो।।

दिलों से दिलों का करो मेल ऐसा, न हो भेद कोई न दुर्भाव हो।।

बनो जिंदगी में उजाला सभी की, सभी सौख्य पाएं उदासी न हो।।

रखो मान-सम्मान माँ भारती का, सदा राष्ट्र की भावना में बहो।।





मत्तगयन्द सवैया [सूत्र-211×7+22 ; भगणx7+गागा]



यौवन ज्यों मकरन्द भरा घट, और सुवासित कंचन काया।

भौंह कमान कटार बने दृग, केश घने सम…

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Added by रामबली गुप्ता on October 24, 2016 at 3:30pm — 25 Comments

ग़ज़ल-लिए दर्द दिल में पुराने चला हूँ-रामबली गुप्ता

वह्र-122 122 122 122



लिए दर्द दिल में पुराने चला हूँ

गमे इश्क के गीत गाने चला हूँ



जहाँ पल खुशी के बिताये थे तुम सँग

वहीं आज आँसू बहाने चला हूँ



बयाँ हाले' दिल भी करूँ क्या किसी से

मैं' सब खुद से' ही अब छिपाने चला हूँ



थी ये जिंदगी आप ही की ऐ' साहिब

उसे आप ही पे लुटाने चला हूँ



मुबारक तुम्हें चाँद सूरज सितारे

अँधेरों को' मैं आजमाने चला हूँ



खुली आँख का ख्वाब था प्यार तेरा

यकीं आज दिल को दिलाने चला… Continue

Added by रामबली गुप्ता on October 20, 2016 at 11:00am — 15 Comments

ग़ज़ल-बन के' सूरज सा' जमाने में' निकलते रहिये-रामबली गुप्ता

वह्र-2122 1122 1122 22



बन के' सूरज सा' जमाने में' निकलते रहिये,

हर अँधेरे को' उजाले मे' बदलते रहिये।



जिंदगी एक सफर खुशियों' भरा हो साहिब!

हर कदम आप मेरे साथ जो' चलते रहिये।।



दिल के' मन्दिर में उजाले की' वज़ह आप सनम,

अब तो इस दिल मे' सदा ज्योति सा' जलते रहिये।



दिल की बगिया में बहारों के सुमन मुस्काएं,

इसमें गर रोज सनम आप टहलते रहिये।



मैं जो' हूँ साथ जमाने से' भला डर कैसा?

हो के मायूस न यूं शाम से ढलते… Continue

Added by रामबली गुप्ता on October 9, 2016 at 12:56pm — 10 Comments

गीत-सखि! री! मन न धरे अब धीर -रामबली गुप्ता

सखि! री! मन न धरे अब धीर।

विरही मन ले वन-वन डोलूँ, सही न जाये पीर।

सखि! री! मन न धरे अब धीर।



ना चिट्ठी ना पाती आयो, ना कोई संदेश।

जाय बसे कौने सौतन घर, प्रियतम कौने देश।।

राह तकत बीते दिन-रैना छिन-छिन घटत शरीर।

सखि! री! मन न धरे अब धीर।



बीते कितने साल-महीने, बीत गए मधुमास।

कितने सावन-भादो बीते, पर ना छूटी आस।।

अँखियाँ पिय दर्शन की प्यासी, झर-झर बरसत नीर।

सखि! री! मन न धरे अब धीर।



सेज-सिँगार भयो सब सूना, कजरा बहि-बहि… Continue

Added by रामबली गुप्ता on September 23, 2016 at 5:30am — 10 Comments

प्रकृति-दोहा छंद, शृंगारिक मत्त सवैया-रामबली गुप्ता

प्रकृति : दोहा छंद



सिंधु-शैल-सरि-नभ-धरा, तारक-रवि-सारंग।

पेड़-पुष्प-नर-जन्तु-खग, सभी प्रकृति के अंग।।



महकाते खिल के सुमन, प्रकृति-युवति के अंग।

स्वच्छ गगन तन-वसन को, देता स्यामल रंग।।



मृदा-वायु-जल-वृक्ष-वन, प्रकृति-दत्त सौगात।

युक्ति-युक्त दोहन करें, सुखी रहें दिन-रात।।



सखे! प्रकृति ने है दिया, संसाधन अनमोल।

सौम्य-सरल दोहन करें, सुख के पट लें खोल।।



मृदा मृदुल-जल वायु को, सखे! सहेजें नित्य।

धरा प्रदूषण मुक्त हो, करिये… Continue

Added by रामबली गुप्ता on September 20, 2016 at 4:09pm — 18 Comments

ग़ज़ल-जन-जन में' मैं सद्भाव का संचार करूंगा।-रामबली गुप्ता

वह्र-2212 2212 221 122



जन-जन में' मैं सद्भाव का संचार करूँगा।

सबके दिलों पे प्यार से अधिकार करूँगा।।



नित द्वेष औ' दुर्भाव को कर दूर हृदय से।

मैं प्यार से झंकृत दिलों के तार करूँगा।।



जातीयता औ' धर्म के हर भेद मिटा मैं।

सबसे सदा समभाव का व्यवहार करूँगा।।



निज राष्ट्र के रक्षार्थ रण में शीश खुशी से।

बलिदान क्या इक बार मैं सौ बार करूँगा।।



प्रति पग अहिंसा-प्रेम औ' सन्मार्ग पे चल कर।

मैं विश्व में सुख-शांति का विस्तार… Continue

Added by रामबली गुप्ता on September 13, 2016 at 3:00pm — 10 Comments

ग़ज़ल-तुम्हारा प्यार चंदन-रामबली गुप्ता

वह्र=1222 1222 122



तुम्हारा प्यार चंदन हो गया है।

सुवासित आज तन-मन हो गया है।।



जो' सूना बाग दिल का था सदा से।

तेरे आने से' मधुबन हो गया है।।



ये' मन-मन्दिर तू' मूरत ईश जैसी।

ये' मेरा प्यार पूजन हो गया है।।



जलाया प्यार का जो दीप तुमने।

अँधेरा दिल ये' रौशन हो गया है।।



न टूटेगा जो' मर कर भी जहां में।

मेरा तुझसे वो' बन्धन हो गया है।।



धनुष-भौहें ये' चंचल नैन तेरे।

छुरी ये हाय! अंजन हो गया… Continue

Added by रामबली गुप्ता on September 5, 2016 at 8:00am — 4 Comments

स्वर्गीय माँ की स्मृति में(ताटंक छंद)-रामबली गुप्ता

जीवनदात्री माता जब भी, याद तुम्हारी आती है।

हरि-सम निर्मल छवि माँ! तेरी मानस-पट पर छाती है।।

याद सदा आती हैं मइया! प्यार भरी तेरी बातें।

गाकर लोरी मुझे सुलाया, जागी तू कितनी रातें।।1।।



दूध-भात के कौर मधुर वो, मुझे न विस्मृत हो पाते।

जब आँचल में सो कर तेरे, हम सपनों में खो जाते।।

धूल-धूसरित तन ले जब आ बैठ गोद में जाता था।

हर भय से हर संशय से माँ! सहज-सुरक्षा पाता था।।2।।



बनी प्रथम गुरु-गुरुकुल तुम ही, नित नव बात बताती थी।

छोटों को दूं… Continue

Added by रामबली गुप्ता on September 1, 2016 at 5:30pm — 7 Comments

बाढ़-रामबली गुप्ता

कुण्डलिया छंद



नर-नारी-पशु-खग-विटप, हुए सभी बेहाल।

यू पी और बिहार में, हुई बाढ़ विकराल।।

हुई बाढ़ विकराल, काल सम बढती नदियाँ।

डूबे हर घर-बाग-खेत सब डूबी गलियाँ।।

प्रलय रूप धर आज, प्रकृति ज्यों उतरी भू पर।

ये उसका प्रतिशोध, विचारोगे कब हे! नर?



छप्पय छंद



कहीं बाढ़ विकराल, कहीं नर जल को तरसें।

कहीं सूखते खेत, कहीं घन अतिशय बरसें।।

कैसा है यह रूप, प्रकृति का कहा न जाए।

दोषी नर ही स्वयं, तभी तो दुख अति पाए।

नर नित्य प्रकृति का… Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 28, 2016 at 11:00pm — 7 Comments

कविता-बन के शुचि स्नेह-सरोज.... रामबली गुप्ता

मत्त सवैया छंद

बन के शुचि स्नेह-सरोज सदा,
सबके उर-सर में विकसित हो।

मद-लोभ व द्वेष न हो मन में,
सर्वोपरि मानव का हित हो।।

कुछ कर्म करो इस भाँति सखे!
निज राष्ट्र-धर्म सम्मानित हो।

नर होने पर हो गर्व सदा,
नरता न कभी अपमानित हो।।

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by रामबली गुप्ता on August 19, 2016 at 10:00pm — 9 Comments

स्वाभिमानी पत्थर-रामबली गुप्ता

मानव उवाच(कुकुभ छंद)



सुनो कथा पत्थर की भैया,

पत्थर क्या-क्या सहते हैं?

कथा व्यथा है इनकी सच मे,

डरे-डरे-से रहते हैं।।

जिसका भी जी चाहे इनको,

दीवारों में चुनवा दे ।

और हथौड़े की चोटों से,

टुकड़ों मे भी तुड़वा दे।।



पत्थर उवाच(ताटंक छंद)



चोटों की परवाह नही है,

चोटों पर दिल वारा है।

मानवता के काम आ सकें,

ये सौभाग्य हमारा है।।

महल-अटारी-मंदिर-मस्जिद,

नगर-डगर गुरुद्वारा है।

जग में गिरि से लघु कंकड़… Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 18, 2016 at 6:34am — 4 Comments

प्रार्थना(ग़ज़ल) -रामबली गुप्ता

वह्र= 221 1221 1221 122



हे! ईश! हे' जगदीश! दया मान व बल दो।

हो शीश पे' आशीष हमें ज्ञान-विमल दो।



कर दूर सभी द्वेष मलिन-भाव हृदय से।

प्रभु! काट तमस-बंध हृदय-ज्योति धवल दो।।



सुर-साज नया ताल नया राग नया रव।

प्रभु! छंद-नया गान-मृदुल कंठ-नवल दो।।



प्रभु! ध्यान रहो नित्य व अधरों पे' हमारे।

निज भक्ति-भरे भाव के' नव गीत-ग़ज़ल दो।।



हिय-बाग में' नित पुष्प खिलें रंग-बिरंगे।

प्रभु! उर के' सरोवर में' नया नेह-कमल… Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 11, 2016 at 9:30am — 13 Comments

आखिर क्यों?(अतुकांत)-रामबली गुप्ता

वो समुद्रतट की

चांदनी रातें

सुहानी बातें

रजनी का रजनीकर के

स्नेहिल ज्योत्स्ना में

नहाना

भीगना।

प्रेम-सिक्त

पुलकित

यामिनी के

निःशब्दता में

चुम्बन

आलिंगन

रति-परिणय, आहा!

हृदय में

उमड़ते

लहराते

गहरे प्रेमधि का

विश्वास

और

गंभीर जलधि की

उपेक्षा

पर आज

वो दृश्य नही

प्रेमधि नही

सिर्फ अश्रुधि

वही रजनी

रजनीकर

निःशब्दता

किन्तु

सर्प की भाँति डंसता… Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 4, 2016 at 12:37pm — 8 Comments

सवैये : रामबली गुप्ता

वागीश्वरी सवैया



वशीभूत जो सत्य औ स्नेह के हो, जहाँ में उसे ढूंढना क्या कहीं?

न ढूंढो उसे मन्दिरों-मस्जिदों में,शिवाले-शिलाखण्ड में भी नहीं!

जला प्रेम का दीप देखो दिलों में, मिलेगा तुम्हें वो सदा ही यहीं।

जहाँ नेह-निष्काम निष्ठा भरा हो, सखे! ईश का भी ठिकाना वहीं।।



दुर्मिल सवैया



दुख जीवन में अति देख कभी, मन को नर हे! न निराश करो।

रहता न सदा दुख जीवन में, तुम साहस से मन धीर धरो।।

रजनी उपरांत विहान नया, अँधियार घना मत देख डरो।

लघु-दीप जला…

Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 1, 2016 at 8:30pm — 10 Comments

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