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जितेन्द्र पस्टारिया's Blog – April 2015 Archive (6)

जज्बा....(लघुकथा)

उस घर के आँगन में लोगों का जमावड़ा लगा हुआ और माहौल एकदम शांत था. अचानक जैसे ही तिरंगे में लिपटे हुए शव को सेना के वाहन से लाया गया तो सबसे पहले अपना होश खोकर वो घर के अन्दर से पागलों की तरह चीख मारती हुयी अपने दस वर्षीय बेटे के साथ,  बाहर आकर सीमा पर शहीद हुए अपने पति के शव से लिपट-लिपट कर रोने लगी. शहीद सीमा सुरक्षा बल का जवान था. उसने दुश्मनों की सीमा में घुसकर उनके दल-बल को तहस-नहस कर डाला. बाद में दुश्मनों ने धोखे से उसे बंदी बनाकर रखा, फिर  उसकी आँखें फोड़ दी गईं और शरीर को गोलियों से…

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Added by जितेन्द्र पस्टारिया on April 27, 2015 at 12:18pm — 23 Comments

पवित्रता....(लघुकथा)

“ बेटा!! आ गया तू.. कहाँ-कहाँ हो आया भारत भ्रमण में..?

“ माँ!! चारो दिशाओं में गया था. देखो! गंगाजी का जल भी लाया हूँ.  आप कहो तो, पिताजी लाये थे वो कलश आधा खाली है उसमे ही डाल दूँ..”

“ नहीं!!  बेटा.. रोज समाचारों में सुनती हूँ कि गंगा में स्वच्छता अभियान चल रहा है, वर्षों पहले तेरे पिता जो लाये वो तू बचा के रखना. कम से कम आगे आने वाली पीढ़ी,  पवित्र गंगाजल तो देख लेगी..”

  

    जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on April 21, 2015 at 7:07pm — 26 Comments

अवसर....(लघुकथा)

“ कुछ कीजिये..सर!! आप ने तो भाषण दे दिया कि प्राकृतिक आपदा के कारण, गुणबत्ता रहित अनाज भी समर्थन मूल्य पर खरीद लेंगे. इससे हम लोगों को नुक्सान हो जायगा.  चुनावी फंड, रिफंड करने का अच्छा अवसर है..”

“ अरे!! आप लोग व्यापारी हो, इतना भी नही समझते. किसानो को पैसों  की बहुत जरुरत है. अभी भाषण ही दिया है , लिखित आदेश की गति बहुत धीमी होती है.."

   जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on April 18, 2015 at 9:40am — 20 Comments

शोषण....(लघुकथा)

जवानी की दहलीज़ पार कर चुकी  विनीता ने फिर से लड़के वालों के आने की खबर सुनते ही अपने घर जाने के अरमानों को संजों लिया. अपनी माँ के खटिया पकड़ने के बाद, उसे अपने पिता समान बड़े भाई और माँ के दर्जे वाली भाभी से ही आशायें बंधी हुई है. आज फिर एक कुलीन परिवार का लड़का, अपनी सहमती जताकर लौट गया. मेहमानों के लौटते ही भाभी ने विनीता से कहा..

“बिन्नो!! मैं ऑफिस के लिए बहुत लेट हो गई हूँ. तुम बच्चों को तैयार कर स्कूल भिजवा देना, माँ जी का कमरा और कपडे देख लेना और सुनो.. मैं तुम्हारे लिए आज…

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Added by जितेन्द्र पस्टारिया on April 15, 2015 at 10:30am — 20 Comments

जरूरतें....(लघुकथा)

कल उपार्जन केंद्र पर रामदीन को अपने नमीरहित शुष्क चमकदार गेहूं को बेचने जाना है. अचानक बे-मौसम घिर आये बादलों को देख, रामदीन अपने आँगन में पड़े अनाज को अपनी पत्नी और छोटे-छोटे बच्चों की मदद से घर में भरने को जुट गया..

उधर उपार्जन केंद्र पर किसानों से ही खरीदा हजारों क्विंटल गेहूं खुले में पड़ा हुआ है. जिला प्रशासनिक अधिकारी ने चिंता जताते हुए समिति अध्यक्ष को फोन पर जानकारी लेते हुए पूछा..

“ उपज पर बारिश न हो, इसकी कैसी क्या व्यवस्था है..? अगर बारिश होती है तो अधिक से…

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Added by जितेन्द्र पस्टारिया on April 12, 2015 at 10:38am — 16 Comments

वफ़ादारी....(लघुकथा)

“ बेटा!! अभी दो महीने पहले ही तेरी इकलौती जवान बहन का तलाक हुआ है. जैसे तैसे आस-पड़ोस वालो का मुंह बंद हुआ और तू गैर समाज की लड़की से चोरी छुपे शादी कर घर ले आया. तुझे अपने माता-पिता के मान-सम्मान का जरा भी ख्याल नहीं रहा..”

“ माँ! मैं पिछले चार-पांच साल से इस लड़की को प्यार करता हूँ, अब यह मेरे बच्चे की माँ बनने वाली है. अगर शादी नहीं करता तो बेवफ़ा कहलाता..”

      जितेन्द्र पस्टारिया

  (मौलिक व् अप्रकाशित)

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on April 2, 2015 at 10:23am — 14 Comments

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