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Sushil Sarna's Blog – October 2015 Archive (4)

प्रणय को आकार दिया ....

दृग

शृंगार करते रहे

आंसुओं से

तृषित मन

आस की मरीचिका में

भटकता रहा

व्यथा

दूर तक फ़ैली नदी में

वायु वेग को सहती

बिन पाल की नाव सी

किसी किनारे की तलाश में

व्यथित रही

दृष्टि स्पर्श

प्रणय अस्तित्व को

नागपाश सा

स्वयंम में लपेटे रहा

अंतर्कथा के मौन पृष्ठों में

जीवन के इक मोड़ की त्रासदी

स्मृति सीप में

कराहती रही

कदम

धूप की तपन को

मन के अंतर्नाद में डूबे 

एक क्षितिज की तलाश में…

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Added by Sushil Sarna on October 21, 2015 at 5:43pm — 12 Comments

अंजामे मुहब्बत .....

अंजामे मुहब्बत .......

कितनी अज़ीब हैं ज़िंदगी की राहें

हर मोड़

एक उलझी पहेली

हर राह पर फिसलन

हर नफ़स एक चुभन

गर्द में दफ़्न

वफ़ा और ज़फ़ा के अनसुने अनकहे

वो अफ़साने

जिन्हें सुनना चाहे

ये दिल बार बार

हर बार

कोई लफ्ज़ लबे दहलीज़ पे

इज़हार से शरम खाता है

और अश्के रवां रुखसार पे रुक जाता है

कह देती है सांस

साँसों में तपते अहसासों को

दे देती है खामोश धड़कनों को

अपनी धड़कनों की आवाज़

वो बात मुहब्बत की…

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Added by Sushil Sarna on October 14, 2015 at 2:16pm — 10 Comments

तुम न समझ पाओगे .....

तुम न समझ पाओगे .....

तुम न समझ पाओगे

मुहब्बत की ज़मीन पर

कतरा कतरा बिखरते

रूमानी अहसासों के सायों का दर्द

तुम तो बुत हो

सिर्फ बुत

जिसपर कोई रुत असर नहीं करती

तुम से टकराकर

हर अहसास संग -रेज़ों में तक़सीम जाता है

और साथ चलते साये का वज़ूद

सिफर में तब्दील हो जाता है

रह जाते हैं बस शानों पर

स्याह शब में गुजरे चंद लम्हे

जो आज मुझे किसी माहताब में

लगे दाग़ की तरह लगते हैं

तुम्हारी याद का हर अब्र

मेरी चश्म…

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Added by Sushil Sarna on October 6, 2015 at 9:42pm — 10 Comments

ख़ौफ़ खाता हूँ …

ख़ौफ़ खाता हूँ …

ख़ौफ़ खाता हूँ 

तन्हाईयों के फर्श पर रक्स करती हुई

यादों की बेआवाज़ पायल से

ख़ौफ़ खाता हूँ

मेरे जज़्बों को अपाहिज़ कर

अश्कों की बैसाखी पर

ज़िंदा रहने को मज़बूर करती

बेवफा साँसों से

ख़ौफ़ खाता हूँ

हयात को अज़ल के पैराहन से ढकने वाली

उस अज़ीम मुहब्बत से

जो आज भी इक साया बन

मेरे जिस्म से लिपट

मेरे बेजान जिस्म में जान ढूंढती है

और ढूंढती है

ज़मीं से अर्श तक

साथ निभाने की कसमों के…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 3, 2015 at 8:30pm — 12 Comments

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"वाह बहुत सुन्दर, चित्र जीवंत हो गया..हार्दिक बधाई आदरणीय अशोक जी"
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"आदरणीय अशोक जी उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिये हार्दिक आभार "
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Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, सत्य कहा है आपने जागते का स्वप्न सफलता की ओर अग्रसर करता…"
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pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रयास पर आपके मार्गदर्शन के लिये हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी"
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"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रस्तुत घनाक्षरी छंद आपको सुन्दर लगा मेरा रचना कर्म सफल…"
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Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत घनाक्षरी छंद पर उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार.…"
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Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
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Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 165 in the group चित्र से काव्य तक
"मुन्नू अभी पाठशाला जाइए .. बहुत खूब सुझाव शाब्दिक हुआ है.  लेकिन, मुश्किलों को दिखा धता,…"
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