For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शकील समर's Blog – October 2013 Archive (8)

गजल: ये किस मोड़ पर आ गई रफ्ता-रफ्ता, मेरी जान देखो कहानी तुम्हारी/शकील जमशेदपुरी

बह्र: 122/122/122/122/122/122/122/122

_______________________________________________________________



ये किस मोड़ पर आ गई रफ्ता-रफ्ता, मेरी जान देखो कहानी तुम्हारी

कि हर लफ्ज से आ रही तेरी खुशबू, रवां है गजल में जवानी तुम्हारी



चमन में मेरे एक बुलबुल है जो बात, करती है जानम तुम्हारी तरह से

लगी चोट दिल पर…

Continue

Added by शकील समर on October 23, 2013 at 1:36pm — 19 Comments

गजल: प्यार में कैसी ये त्रासदी हो गई/शकील जमशेदपुरी

बह्र: 212 212 212 212

__________________________

प्यार में कैसी ये त्रासदी हो गई

देख कर पीर पलकें दुखी हो गई



तेरी यादों ने दिल पे यूं दस्तक दिया

आंख बहने लगी औ नदी हो गई



संग तेरे तो बरसों भी पल भर लगा

एक पल की जुदाई सदी हो गई



प्रेम के मानकों पर जो परखा नहीं

भूल बस एक हम से यही हो गई



शेअर ऐसे नहीं हैं जो दिल पर लगे

आज फिर दर्दे दिल में कमी हो गई



कश्मकश में अभी तक पड़ा है ‘शकील’

कैसे इक…

Continue

Added by शकील समर on October 20, 2013 at 5:30pm — 15 Comments

गजल: चांदनी आज तेरे छत पे अकेली होगी/शकील जमशेदपुरी

 बह्र: 2122 1122 1122 22

________________________________



जिंदगी और न अब कोई पहेली होगी

फिर से हाथों में मेरे तेरी हथेली होगी



प्यार में ताने सुनाने लगी दुनिया अब तो

क्या पता था मुझे नाम उसके हवेली होगी



कान किसने भरे उसके वो खफा है…

Continue

Added by शकील समर on October 19, 2013 at 1:10pm — 13 Comments

​गजल: रक्खा है तेरे नाम के पन्ने को मोड़ कर//शकील जमशेदपुरी//

बह्र: 221 2121 1221 212

___________________________________



बिखरे हुए गुलाब की पत्ती को जोड़ कर

रक्खा है तेरे नाम के पन्ने को मोड़ कर

शबनम लगा दी फूल ने भवरे की गाल पे

भवरे ने रख दी गुल की कलाई मरोड़ कर

मुड़-मुड़ के जाते वक्त मुझे देख क्यों रही

जब प्यार ही नहीं तो चली जाओ छोड़ कर

उसने कही ये बात तो गम और बढ़ गया

खुश मैं भी अब नहीं हूं तेरे दिल को तोड़ कर

नफरत को इसलिए तू अखरने लगा ‘शकील’…

Continue

Added by शकील समर on October 18, 2013 at 9:00am — 20 Comments

गजल: दर पे कभी किसी के भी सज्दा नहीं किया//शकील जमशेदपुरी//

बह्र: 221/2121/1221/212

_____________________________

दर पे कभी किसी के भी सज्दा नहीं किया

हमने कभी जमीर को रुसवा नहीं किया

हमराह मेरे सब ही बलंदी पे हैं खड़े

पर मैंने झूठ का कभी धंधा नहीं किया

जाने न कितनी रात मेरी आंख में कटी…

Continue

Added by शकील समर on October 14, 2013 at 9:00pm — 16 Comments

गजल: याद आता है वो धड़कन का सुनाई देना//शकील जमशेदपुरी//

बह्र— 2122/2122/2122/22

थाम के कांधे को हाथों में कलाई देना

याद आता है वो धड़कन का सुनाई देना



प्यार ने जिसके बना डाला है काफिर मुझको

ऐ खुदा उनको जमाने की खुदाई देना



तरबियत आंसू की कुछ ऐसे किया है हमने

अब तो मुश्किल है मेरे गम का दिखाई देना



याद आती है जुदाई की घड़ी जब हमको

तो शुरू होता है चीखों का सुनाई देना

बिन तेरे खुश रहने का इल्जाम था सिर मेरे

काम आया मेरे अश्कों का सफाई देना



जब भी रूठा हूं…

Continue

Added by शकील समर on October 12, 2013 at 3:30pm — 24 Comments

गजल: जहन में कैद है जो याद इक पिछली नहीं जाती

बह्र: 1222/1222/1222/1222

मुकर जाने की आदत आज भी उनकी नहीं जाती

तभी तो उनके घर पर अब तवायफ भी नहीं जाती



सियासत किस तरह से घुल गई फिरकापरस्ती में

चमन में लीडरों के अब कोई तितली नहीं जाती

ये सुनकर उम्र भर रुसवा रहा अपनी मुहब्बत से

कभी भी उठ के स्टेशन से इक पगली नहीं जाती

पढ़ेंगे लोग तो कहने लगेंगे बेवफा तुझको

कई बातें गजल में आज भी लिक्खी नहीं जाती

सितम से ऊब कर तेरा शहर मैं छोड़ दूं कैसे

सितम से…

Continue

Added by शकील समर on October 8, 2013 at 1:00pm — 21 Comments

गजल: मेरे तन को ना छुओ तुम तेरा हाथ जल न जाए...

गजल— 1121/2122/1121/2122



तेरे रूप का ये जादू कहीं मुझपे चल न जाए

यूं बिखेरो ना ये जुल्फें कहीं दिल मचल न जाए



मेरे दिल की इस जमीं पे कोई फूल खिल रहा है

तेरे प्यार का ये मौसम कहीं फिर बदल न जाए



तूने खोल दी है जुल्फें लगे दिन चढ़ा है फिर से

'न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए'



तेरी याद का है जंगल यहां आग सी लगी है

मेरे तन को ना छुओ तुम तेरा हाथ जल न जाए



इसी सोच में हूं डूबा कि…

Continue

Added by शकील समर on October 6, 2013 at 11:12am — 19 Comments

Monthly Archives

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service