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Rajkumar sahu's Blog – November 2011 Archive (5)

व्यंग्य - जूते और थप्पड़ का कमाल

जूता, जितना भी महंगा हो, हम सब की नजर में मामूली ही होता है और उसकी कीमत कुछ नहीं होती। जूता चाहे विदेश से भी खरीदकर लाया गया हो, फिर भी उसे सिर पर न तो पहना जाता है और न ही रखा जाता है। जूते तो बस, पैर के लिए ही बने हैं। जैसे, ओहदेदार लोगों के लिए कुछ लोग जूते के समान होते हैं,। वैसे भी जूते का वजन, कहां कोई तौलता है। अभी देश में खास किस्म के जूते कभी-कभी नजर आ जाते हैं, जिनकी अहमियत के साथ पूछपरख भी होती है। यह जूते भी उतना ही मामूली होते हैं, जितना बाजार में मिलने वाले जूते। ऐसे कुछ जूतों की… Continue

Added by rajkumar sahu on November 29, 2011 at 10:29pm — 1 Comment

व्यंग्य - सरकारी नौकरी की सोच

अभी हाल ही में मेरा एक मित्र मिल गया। उनसे काफी अरसे से भेंट नहीं हो पाई थी। जब उनका हालचाल पूछा तो बेरोजगारी का दर्द उनके चेहरे पर आ गया और उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी की चाहत, ऐसे बताया कि मेरा भी दिल पसीज गया, क्योंकि मैं भी बेरोजगारी की मार झेल रहा हूं। ये अलग बात है कि लिख्खास बनकर बेरोजगारी का दर्द जरूर मेरा कम हो गया है, लेकिन मेरे मित्र के हालात कुछ और ही थे।

खुद के बारे में बताने के बाद और बताया कि उन्होंने रोजी-रोटी के लिए एक छोटा व्यवसाय शुरू किया है, किन्तु वह भी उधारी की मार से… Continue

Added by rajkumar sahu on November 24, 2011 at 11:39pm — No Comments

कहां है 40 छत्तीसगढ़िया ?

छत्तीसगढ़ के 11 बरस होने पर राज्य सरकार जहां प्रदेश के सभी जिलों में राज्योत्सव जैसे आयोजन कर खुशियां मनाने में जुटी हैं, वहीं एक तबका ऐसा भी है, जो अपने सीने में अपनों की मौत का दर्द लिए बैठा है। समय गुजरने के बाद भी उनकी टीस कम होने का नाम नहीं ले रही है। राज्य सरकार की बेरूखी ने उनकी तकलीफों को और बढ़ा दी है।

साल भर पहले 5 अगस्त 2010 को जम्मू के ‘लेह’ में बादल फटने से जिले के दर्जनों गांवों से रोजी-रोटी की तलाश में गए मजदूरों की बड़ी संख्या में मौत हो गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए, जिसका…

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Added by rajkumar sahu on November 5, 2011 at 12:02pm — No Comments

व्यंग्य - महंगाई की चिता

हम अधिकतर कहते-सुनते रहते हैं कि चिंता व चिता में महज एक बिंदु का फर्क है। देश की करोड़ों गरीब जनता, महंगाई की आग में जल रही है और उन्हें चिंता खाई जा रही है। वे इसी चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं। महंगाई के कारण ही कुपोषण ने भी उन्हें घेर लिया है। जैसे वे गरीबी से जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे हैं, वैसे ही महंगाई के कारण गरीब, हालात से लड़ रहे हैं। महंगाई की चिंता अब उनकी ‘चिता’ बनने लगी है। वैसे मरने के बाद ही हर किसी को चिता में लेटना पड़ता है और जीवन से रूखसत होना पड़ता है। महंगाई ने इस बात को धता…

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Added by rajkumar sahu on November 4, 2011 at 11:12pm — No Comments

व्यंग्य - किसे कराएं पीएचडी

मुझे पता है कि देश में संभवतः कोई विषय ऐसा नहीं होगा, जिस पर अब तक पीएचडी ( डॉक्टर ऑफ फिलास्फी ) नहीं हुई होगी। कई विषय तो ऐसे हैं, जिसे रगडे पर रगड़े जा रहे हैं। कुछ समाज के काम आ रहे हैं तो कुछ कचरे की टोकरी की शोभा बढ़ा रहे हैं। ये अलग बात है कि कुछ विषय ही इतने भाग्यशाली हैं कि उसे जो भी अपनाता है, वह बुलंदी छू लेता है। पीएचडी के लिए मुझे लगता है कि आपमें विषय चयन की काबिलियत होनी चाहिए, उसके बाद फिक्र करने की जरूरत नहीं होती। विषय तय होने के बाद सामग्रियां जहां-तहां से मिल ही जाती हैं,…

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Added by rajkumar sahu on November 2, 2011 at 11:00am — 1 Comment

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