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Kalipad Prasad Mandal's Blog (54)

गज़ल -अक्सीर दवा भी अभी’ नाकाम बहुत है

काफिया आम, रदीफ़ : बहुत है

बह्र : २२१  १२२१  १२२१  १२२ (१)

अकसीर  दवा भी अभी’ नाकाम बहुत है

बेहोश मुझे करने’ मय-ए-जाम बहुत है |

वादा किया’ देंगे सभी’ को घर, नहीं’ आशा

टूटी है’ कुटी पर मुझे’ आराम बहुत है |

प्रासाद विशाल और सुभीता सभी’ भरपूर   

इंसान हैं’ दागी सभी’, बदनाम बहुत हैं |

है राजनयिक दंड से’ ऊपर, यही’ अभिमान

शासन करे स्वीकार, कि इलज़ाम बहुत है |

साकी की’ इनायत क्या’ कहे,दिल का…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on November 2, 2017 at 8:24am — 2 Comments

ग़ज़ल-कभी दुख कभी सुख, दुआ चाहता हूँ (संशोधित )

तरही ग़ज़ल  अल्लामा इकबाल जी का  मिसरा 

“ तेरे इश्क की इम्तिहाँ चाहता हूँ “

काफिया : आ ; रदीफ़ :चाहता हूँ

बहर : १२२  १२२  १२२  १२२

*****************************

कभी दुख कभी सुख, दुआ चाहता हूँ

इनायत तेरी आजमा चाहता हूँ |

'वफ़ाओं के बदले वफ़ा चाहता हूँ

तेरे इश्क की इम्तिहा चाहता हूँ |

जो’ भी कोशिशे की हुई सब विफल अब

हूँ’ बेघर मैं’ अब आसरा चाहता हूँ |

ज़माना हमेशा छकाया मुझे है

अभी…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on October 31, 2017 at 11:00am — 5 Comments

ग़ज़ल -वज़ीरों में हुआ आज़म, बना वह अब सिकंदर है

काफिया : अर ;रदीफ़ : है

बह्र ; १२२२  १२२२  १२२२  १२२२

वज़ीरों में हुआ आज़म, बना वह अब सिकंदर है

विपक्षी मौन, जनता में खमोशी, सिर्फ डरकर है |

समय बदला, जमाने संग सब इंसान भी बदले

दया माया सभी गायब, कहाँ मानव? ये’ पत्थर हैं |

लिया चन्दा जो’ नेता अब वही तो है अरब धनपति 

जमाकर जल नदी नाले, बना इक गूढ़ सागर है |

ज़माना बदला’ शासन बदला’ बदली रात दिन अविराम

गरीबो के सभी युग काल में अपमान मुकद्दर है…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on October 25, 2017 at 11:00am — 8 Comments

ग़ज़ल

काफिया –आँ , रदीफ़ –पर

बहर : १२२२  १२२२  १२२२  १२२२

कुटिल जैसे बिना कारण, किया आघात नादाँ पर

भरोषा दुश्मनों पर है, नहीं है फ़क्त यकजाँ  पर |



अयाचित आपदा का फल, कहे क्या? अब पडा जाँ पर

गुनाहों की सज़ा मिलती है’, फिर क्यों प्रश्न जिन्दां पर ?

चुनावों में शरारत कर, सभी सीटों को’ जीता है

सिकंदर है वही जो जीता,’ क्यों आरोप गल्तां  पर ?

वो’ मूसलधार बारिश, कड़कती धूप सूरज की

सभी मिलकर उजाड़े बाग़ को,…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on October 22, 2017 at 2:50pm — 2 Comments

ग़ज़ल -कहीं वही तो’ नहीं वो बशर दिल-ओ-दिलदार

काफिया :अर ; रदीफ़ :दिल –ओ- दिलदार

बहर : १२१२  ११२२  १२१२  २२(१ )

कहीं वही तो’ नहीं वो बशर दिल-ओ-दिलदार

जिसे तलाशती’ मेरी नज़र दिल-ओ-दिलदार |

हवा के’ झोंके’ ज्यों’ आते सदा सनम मेरे  

नसीम शोख व महका मुखर दिल-ओ-दिलदार |

सूना उसे कई’ गोष्टी में’, फिर भी’ प्यासा मन

अज़ीज़ है वही आवाज़ हर दिल-ओ-दिलदार |

कभी हुई न समागम, कभी नहीं कुछ बात

हिजाब में सदा रहती मगर दिल-ओ–दिलदार |

गए विदेश को’ महबूब…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on October 14, 2017 at 10:00am — 8 Comments

ग़ज़ल -ये’ बातचीत में’ खरसान बैर बू क्या है?(संशोधित)

१२१२  ११२२  १२१२  २२

सटीक बात की’, आक्षेप बाँधनू क्या है

ये’ बातचीत में’ खरसान बैर बू क्या है?

नया ज़माना’ नया है तमाम पैराहन

अगर पहन लिया’ वो वस्त्र, फ़ालतू क्या है |

हसीन मानता’ हूँ मैं उसे, नहीं शोले

नजाकतें जहाँ’ है इश्क, तुन्दखू क्या है |

किया करार बहुत आम से चुनावों में

वजीर बनके’ कही रहबरी, कि तू क्या है ?

हो’ वुध्दिमान मिला राज, अब करो कुछ भी  

उलट पलट करो’ खुद आप, गुफ्तगू क्या…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on October 9, 2017 at 8:30am — 8 Comments

ग़ज़ल -रिश्तों’ का रंग बदलता ही’ गया तेरे बाद

२१२२  ११२२  ११२२  २२(१)/ ११२(१)  ११२२

 

रिश्तों’ का रंग बदलता ही’ गया तेरे बाद

रौशनी हीन अलग चाँद दिखा तेरे बाद |

जीस्त  में कुछ नया’ बदलाव हुआ तेरे बाद

मैं नहीं जानता’ क्यों दुनिया’ खफा तेरे बाद |

हरिक त्यौहार में’ आनन्द मिला तेरे साथ

जिंदगी से हुए’ सब मोह जुदा तेरे बाद |

रात छोटी हो’ गयी और बहुत लम्बा दिन

अब तो’ जीना हो’ गई एक सज़ा तेरे बाद |

साथ आई थीं’ वो’ आपत्तियाँ’, तुझको ले’…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on October 5, 2017 at 8:30am — 4 Comments

ग़ज़ल -दुश्मनों को मिटा’ देना यही’ काल अच्छा है

काफिया : आल ; रदीफ़ अच्छा है

बहर : २१२२  ११२२  ११२२  २२(११२)

      ११२२

दुश्मनों को मिटा’ देना यही’ काल अच्छा है

खुद करो भूल, अदू को सज़ा’ ख्याल अच्छा है |

नाम है रहनुमा’ क्या राह दिखाई  किसी’ को

झूठ पर झूठ, तुम्हारा ये’ कमाल अच्छा है |

आज कोई नहीं’ सुनते किसी’ की  दुनिया में

उत्तरी कोरिया’ का बम्ब धमाल अच्छा है |

चाँद में दाग है’, मालूम है’ दुनिया को भी

प्रियतमा मेरी' तो' बेदाग़ जमाल अच्छा है…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on October 1, 2017 at 11:00am — 9 Comments

ग़ज़ल --पाक आतंकी कभी बाज़ आएँ क्या

काफिया : आएँ , रदीफ़: क्या 

२१२२  २१२२  २१२

पाक आतंकी कभी बाज़ आएँ क्या

बारहा दुश्मन से’ धोखा खाएँ क्या ?

गोलियाँ खाते ज़माने  हो गये 

राइफल बन्दुक से’ हम घबराएँ क्या ?

जान न्योछावर शहीदों ने की’ जब

सरहदों को हम मिटाते जाएँ क्या ?

सर्जिकल तो फिल्म की झलकी ही’ थी

फिल्म पूरा अब मियाँ दिखलाएँ क्या ?

आपका विश्वास अब मुझ पर नहीं

अनकही बातें जो’ हैं बतलाएँ क्या ?

खो दिया…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on September 23, 2017 at 9:53am — 7 Comments

ग़ज़ल

काफिया : आये ; रदीफ़ :न बने

बहर : ११२२-| ११२२  ११२२  २२/११२

      २१२२}

तंज़ सुनना तो’ विवशता है’, सुनाये न बने

दर्द दिल का न दिखे और दिखाए न बने | 

पाक से हम करे’ क्या बात बिना कुछ मतलब  

क्यों करे श्रम जहाँ’ की बात बनाए न बने |

क्या कहूँ उनके’ हुनर की, है’ अनोखा अनजान

यही’ तारीफ़ कि हमको न सताए न बने |

कर्म इंसान का’ हो ठीक सितारा जैसा

कर्म काला किया’ तो चेहरा’ दिखाए न बने…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on September 20, 2017 at 8:10am — 13 Comments

तरही ग़ज़ल

दीप रिश्तों का' बुझाया जो', जला भी न सकूँ 

प्रेम की आग की’ ये ज्योत बुझा भी न सकूँ  |

हो गया जग को’ पता, तेरे’ मे’रे नेह खबर 

राज़ को और ये’ पर्दे में’ छिपा भी न सकूँ |

गीत गाना तो’ मैं’ अब छोड़ दिया ऐ’ सनम 

गुनगुनाकर भी’ ये’ आवाज़, सुना भी न सकूँ |

वक्त ने ही किया’ चोट और हुआ जख्मी मे’रे’ दिल 

जख्म ऐसे किसी’ को भी मैं’ दिखा भी न सकूँ |

बेरहम है मे’रे’ तक़दीर, प्रिया को लिया’…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on September 17, 2017 at 8:57pm — 11 Comments

ग़ज़ल ;उस फ़रिश्ते की प्रतीक्षा है अभी

बह्र : २१२२ २१२२ २१२

प्यार की धुन को बजाता जायगा

राज़  जीवन का सुनाता जायगा |

पल दो पल की जिंदगी होगी यहाँ  

दोस्ती सबसे निभाता जायगा |

बाँटता जाएगा मोहब्बत सदा

दोस्त दुश्मन को बनाता जायगा |

पेट खुद का चाहे हो खाली मगर

खाना भूखों को खिलाता जायगा |

ले धनी का साथ अपनी राह में

मुफलिसों को भी मिलाता जायगा |

छोड़ नफरत द्वेष हिंसा औ घृणा

प्रेम मोहब्बत सिखाता जायगा…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on December 25, 2016 at 8:00pm — 14 Comments

गज़ल --है गलतियाँ रहस्य, बहानों ने ले लिया

काफिया :ओं ; रदीफ़: ने ले लिया

बह्र:  २२१ २१२१ १२२१ २१२

बन्दे का काम घेर, उसूलों ने ले लिया

है गलतियाँ रहस्य, बहानों ने ले लिया |१

वो बात जो थी कैद तेरे दिल के जेल में

आज़ाद करना काम अदाओं ने ले लिया |२

चुपके से निकले घर से, सनम ने बताया था

वो जिंदगी का राज़ निशानों ने ले लिया |३

धरती को चाँदनी ने बनायीं मनोरमा

विश्वास नेकनाम सितारों ने ले लिया |४

मिलता है सुब्ह शाम समय रिक्त अब…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on December 17, 2016 at 8:00pm — 4 Comments

एक ग़ज़ल

काफिया: अल ;रदीफ़ :गया

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२

नव यौवन चंचल चितवन फिसल गया

यौवन की धूप खिली मन पिघल गया |

तेरे नैनों ने  किया इशारा कुछ

निश्छल मृदु दिल तो मेरा मचल गया |

मखमल सी आवाज़ की तारीफ करूँ

कर्ण प्रवेश से पत्थर दिल पिघल गया |

हम कैसे कह दे के तू  बेवफ़ा है 

तेरा गफलत ही प्यार को कुचल गया |

आक्रोश भरा रूप कभी न दिखाओ

देख रौद्र रूप मेरा दिल दहल गया |

है…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on December 10, 2016 at 10:30pm — 8 Comments

दिवाली

अँधेरे को चीर कर ज्वाला

चमक रही है दीप-माला

नज़र उठाके दखो झोपडी, महल के पीछे वाली

कहो, झोपडी में कैसे मने दिवाली |…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on November 13, 2016 at 3:30pm — 1 Comment

ग़ज़ल (शबे विशाल की दुल्हन को इंतज़ार रही)

1212      1122     1212     112

अवाम में सभी जन हैं इताब पहने हुए

सहिष्णुता सभी की इजतिराब पहने हुए |

गरीब था अभी तक वह बुरा भला क्या कहें

घमंडी हो गया ताकत के  ख्याब पहने हुए |

मसलना नव कली को जिनकी थी नियत, देखो (२२-११२)

वे नेता निकले हैं माला गुलाब पहने हुए |

अवैध नीति को वैधिक बनाना है धंधा (२२-११२)

वे करते केसरिया कीमखाब पहने हुए |   

शब-ए -विशाल की दुल्हन को इंतज़ार रहा

शबे…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on October 31, 2016 at 10:30am — 10 Comments

शत्रु ना छू पाय सीमा दोस्तों (ग़ज़ल)

२१२२ २१२२ २१२

शत्रु ना छू पाय सीमा दोस्तों
सावधानी का ज़माना दोस्तों |
वीर हो बलवान हो तुम पासबाँ
हो बुलंदी पर तिरंगा दोस्तों |
शूरवीरों पर ही आश्रित भारती
शिर न झुकने पाय इसका दोस्तों |
माज़रा सरहद पे उलझा है बहुत
साथ मिलकर ठान लेना दोस्तों |
प्राण से प्यारा हमें कश्मीर है
हाथ से जाने न देना दोस्तों |

मौलिक /अप्रकाशित

Added by Kalipad Prasad Mandal on October 18, 2016 at 10:30am — 8 Comments

ग़ज़ल

बहर :१२२*४

सभा में गरीबों की चर्चा नहीं है

किसी को  कभी उनकी चिन्ता नहीं है |

वज़ह होगी तो ही कहे दिल का अपना 

सकल सच तो कोई बताता नहीं है |

सभी ओर धोखा है सच्चा न कोई

सही कोई रिश्ता निभाता नहीं है |

हमारा तुम्हारा जो नाता पुराना

यहाँ ऐसा अब इक भी रिश्ता नहीं है |

सगे सब कुटुम्बी दिखावे के हैं अब

कमी है समझ की समझता नहीं है |

प्रणय गीत गाना सनम प्यार से अब

बिना प्यार जीवित ही रहना नहीं है…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on October 5, 2016 at 5:00pm — 10 Comments

कुकुभ -छन्द -६ नवरात्रि और दुर्गा पूजा के अवसर पर

 कुकुभ छंद

घोड़े चढ़कर दुर्गनाशिनी, माँ भवानी आ रही है

घोड़े के वाहन पर दुर्गा, लौटकर भी जा रही है |

घोडा उथल पुथल का प्रतीक, युद्ध की संभावना है

ज्योतिष विद्या मानते इसको, देशो की तना तनी है |

२.

ज्योतिष गणना में है पाते, आपद विपद कष्ट सारा

पूजो माता दुर्गा को अब , माता ही एक सहारा |

भक्त वत्सला, शक्ति स्वरूपा, भक्तों के घर आएँगी

कार्तिक गणेश महेश को भी, साथ साथ ही लाएँगी |

३.

नवरात्रि में आद्य शक्ति स्रोत,…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on October 2, 2016 at 10:30am — 8 Comments

ग़ज़ल-आरसी भी तरस जाता, तब मुहँ दिखाती हो |

बहर : २१२  २१२  २१२  २१२  २२

ना करो ऐसे↓ कुछ, रस्म जैसे निभाती हो

आरसी भी तरस जाता↓, तब  मुहँ दिखाती हो |

छोड़कर  तब गयी अब हमें,  क्यों रुला/ती हो   

याद के झरने↓ में आब जू, तुम बहाती हो |  

रात दिन जब लगी आँख, बन ख़्वाब आती हो

अलविदा कह दिया फिर, अभी क्यों सताती हो ? 

  

जिंदगी जीये हैं इस जहाँ मौज मस्ती से

गलतियाँ  भी किये याद क्यों अब दिलाती हो |

प्रज्ञ हो  जानती हो कहाँ  दुःखती  रग…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on September 29, 2016 at 10:30pm — 10 Comments

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