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Dr. Vijai Shanker's Blog – September 2014 Archive (5)

बड़ी क्षणिकायें -1--एक प्रयोग - डा० विजय शंकर

इतना तो

सब जानते हैं कि

एक रेखा को बिना काटे

छोटा करने का आसान तरीका यह है

कि उसके पास उससे बड़ी एक रेखा खींच दें ॥

आप बैठे बैठे बड़े बने रहे इसका आसान

तरीका यह है कि आप अपने पास

हमेशा अपने से छोटे लोग रखें ,

गलती से भी किसी बड़े

के सामने न आयें ॥

* * * * * * * * * * *

जीवन तो चलता है ,

करुणा , प्रेम ,दया से ,

पर हमनें उन्हें बनाया है ,

पासंगे बट्खरे जीवन के ,

सब नाप-तौल के चलाना है,

कहाँ कितनी दया दिखानी… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 26, 2014 at 1:00pm — 19 Comments

क्षणिकाएँ --3 --- डा० विजय शंकर

वो सब जो

वन्दनीय है,

पूज्य है ,स्तुत्य है ,

...........त्याज्य है |

वो , जो

निंदनीय है ,

अधर्म है , अपकार है ,

...स्वीकार है , अंगीकार है ||



* * * * * * * * * * * * * * * * *



बेईमान व्यवस्था में

प्रश्न यह नहीं होता

कि कौन ईमानदार है ?

प्रश्न केवल यह होता है

कि किसको बेईमानी का

कितना अधिकार है ॥



* * * * * * * * * * * * * * * * *



संबंधों में

नमक की अहमियत

बनाये रखिये ,

सम्बन्ध… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 21, 2014 at 2:00pm — 21 Comments

सपनों का सच--डा० विजय शंकर

यूँ तो सपनों का सच से

कोई वास्ता नहीं होता है |

सच सामने से

ज्यों ज्यों गुजरने लगता है ,

सपनों से डर लगने लगता है ॥

सपने जब टूटने लगते हैं ,

सच से डर लगने लगता है ॥

फिर भी कोई सपने देखना

छोड़ नहीं पाता है ।

रोज सपनों के सच होने के

सपने सजाता है ॥

सपने एक आशा हैं ,

एक उम्मीद हैं ,

कुछ पाने की , कुछ होने की

किसी चिर प्रतीक्षित

अभिलाषा के पूरी होने की |

क्योंकि यही तो जीवन है ,

यही तो जीवन का सच है… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 18, 2014 at 10:21am — 10 Comments

स्मृतियाँ और आंसू--डा० विजय शंकर

आँख में आया हरेक आंसू

तेरी वजह से हो ,जरुरी

नहीं होता है .

आँख में पड़ जाये कोई

छोटी सी किरकिरी

तो भी होता है .



दो बून्द आंसू की

एक अधखिला गुलाब,

यही स्मृतियाँ हैं तुम्हारी ,

कोई पर्वत नहीं ,

कोई सागर भी नहीं .

कि संभाल न सकूँ , छिपा न सकूँ ,

कि जिंदगी भर संजों न सकूँ .



हाँ , तुमको अपनी आँखों में जरूर

बसाया था ,और छिपाया भी था,

आंसू की तरह .

एक किरकिरी पड़ी आँख में ,

और तुम जरा भी सह न सके

और… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 10, 2014 at 4:13pm — 12 Comments

क्षणिकाएँ -2 ---डा० विजय शंकर

गधा ,

वास्तव में उतना गधा

नहीं होता है , जितना

गधे उसे गधा समझते हैं ||



* * * * * * * * * * * * * * * * * *

भैंस के लिए हर रास्ता,हर द्वार ,

हर मंच खुला रहना चाहिए |

बंद करो अकल को बाड़े में ,

वहां पर सख्त पहरा रहना चाहिए ॥



* * * * * * * * * * * * * * * * * *

उल्लू बनाइँग , उल्लू बनाइँग ,

काहे को उल्लू बनाइँग ,

कृपया कउनों के उल्लू न बनाइँग

आप जेहि के उल्लू बनाइँग

वही लक्ष्मी के लइके

लॉन्गड्राइव पे निकल जाईं… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 3, 2014 at 8:50pm — 8 Comments

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