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Dr. Vijai Shanker's Blog – August 2016 Archive (6)

फर्क़ - डॉo विजय शंकर

अमीर उम्र भर रोता रहा
हाय ये भी मिल जाता ,
हाय वो भी मिल जाता ,
ये ये मिलने से रह गया ,
वो चाहा बहुत मिला नहीं।
बस एक गरीब ही है ,
जिसे यही पता नहीं ,
उसने क्या खोया ,
उसे क्या मिला नहीं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on August 28, 2016 at 10:54am — 2 Comments

संतुलन - डॉo विजय शंकर

जोड़-तोड़ खूब कर लेते हो।
जहां तोड़ लेना चाहिए ,
वहीं जोड़ लेते हो ,
समस्या को निपटा नहीं पाते ,
लिपटा लेते हो , गले लगा लेते हो।
उसी का राग अलापते हो ,
गीत गाते हो , छोड़ते नहीं ,
अलबत मौक़ा मिलते ही भुना लेते हो।
जिनको जोड़ लेना चाहिए ,
उन्हें भूले रहते हो।
संतुलन बनाये रखते हो।
कहते हो , राजनीति है ,
कर लेते हो।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on August 22, 2016 at 10:24am — 20 Comments

रक्षा का बंधन ( लेख ) - डॉo विजय शंकर

रक्षा बंधन बहन-भाई के पारस्परिक स्नेह , प्रेम , एक दूसरे के प्रति जीवन-पर्यन्त चलने वाले दायित्व बोध का एक अत्यंत खुशनुमा पर्व। शायद इसी का एक रूप विकसित हुआ है ," फ्रेंडशिप बैंड " . राखियों का विशाल बाजार , हीरे और अन्य रत्नों से जड़ी लाख लाख रुपये की राखियां, दिल्ली जैसे महानगर में रक्षा बंधन के दिन ट्रैफिक का भर-पूर रश , डी टी सी द्वारा प्रायः बहनों के लिए रक्षा - बंधन को फ्री-सर्विस। कितना सुन्दर लगता है , सब कुछ। एक दिन भाई के लिए , बहन के लिए , वैसे ही जैसे सारी दुनियाँ में एक साथ " मदर्स… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 17, 2016 at 8:31pm — 2 Comments

आख़िरी आदमी (लघु-कथा) - डॉo विजय शंकर

भाषण अपने चरम पर था। विशाल जन - समूह पूरे मनोयोग से सुन रहा था।
उन्होंने कहा:

"भाइयों! पार्टी में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और उच्च पद रिक्त है, मैंने निर्णय लिया है कि यह पद हमारे साथियों में सबसे पीछे खड़े आख़िरी आदमी को दिया जाएगा " .
उनका वाक्य पूरा भी नहीं हुआ कि सब लोग पीछे की ओर भागने लगे। पूरा मैदान खाली हो गया, मंच खाली हो गया, वे मंच पर अकेले रह गए।
खबर आयी है , लोग एक और भागे जा रहे हैं , बस भागे जा रहे हैं।
.
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on August 10, 2016 at 10:00am — 26 Comments

पहले आप - डॉo विजय शंकर

पहले आप

पहले आप

एक तहजीब थी ,

अंग्रेजी में ,

ऑफ्टर यू ,

एक ही बात ,

आपके बाद।

आपका दौलत खाना ,

ख़ाकसार का गरीबखाना ,

आपके करम ,

बन्दे की खिदमत।

हम कुछ भी हों ,

आपके आगे कुछ नहीं।

वक़्त बदल गया।

पर सब कुछ वैसा ही है ,

तहज़ीब के पैमाने वही।

आपके आगे हम

आज भी कुछ नहीं ,

कुछ नहीं करने में

आप हमसे आगे ,

आपके घोटाले बड़े ,

इतने कि धरती धकेल दें ,

आप आगे , हम बहुत पीछे।

कामचोरी में आप… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 7, 2016 at 10:57am — 2 Comments

पिंजड़ा -- डॉo विजय शंकर

पिंजड़ा भी ,

एक अजीब बंधन है ,

दाना भी , पानी भी , बस ,

बंद पंछी उड़ नहीं सकता।

हौसलों से कहते हैं कि

क्या कुछ हो नहीं सकता ,

हो सकता है , बस पंछी ,

पिंजड़ा लेकर उड़ नहीं सकता।

कितने आज़ाद हैं हम ,

फिर भी उड़ नहीं पाते ,

मुक्त हो नहीं पाते ,

उन्मुक्त होकर जी नहीं पाते ,

बाहर से आज़ाद हैं , बस ,

कुछ पिंजड़े हैं हमारे अंदर ,

बाँधे हैं , कुछ ढीले , कुछ कस कर।

रूढ़ियाँ कब बन जाती हैं बेड़ियाँ ,

बंधे रह जाते हैं हम , पता… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 2, 2016 at 9:30am — 17 Comments

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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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