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सूबे सिंह सुजान's Blog – September 2012 Archive (4)

ग़ज़ल--हंसी और भी तुमको मौसम मिलेंगे।

हंसी और भी तुमको मौसम मिलेंगे।

मगर दोस्त तुमको कहां हम मिलेंगे।।

मेरा दिल दुखाकर अगर तुम हंसोगे।

तुम्हें जिंदगी में बहुत ग़म मिलेंगे।।

अगर जिंदगी में खुशी चाहते हो।

तो इस राह कांटे भी लाज़िम मिलेंगे।।

कभी भी किसी ने ये सोचा न होगा।

कि इनसान के पेट में बम मिलेंगे।।

खुशी सबको मिलती नहीं मांगने से।

बहुत लोग दुनिया में गुमसुम मिलेंगे।।

तुम्हारी खुशी को जुदा हो गया हूँ।

अगर जिंदगी है तो फिर हम…

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Added by सूबे सिंह सुजान on September 27, 2012 at 10:20pm — 4 Comments

कवि का काम है

कवि का काम है।
जो नहीं कहा गया हो,
अब तक जमाने में,
वो कहा जाये।
पिछला कहा हुआ
सच रहे,बचा रहे।
उससे आगे कुछ कहा जाये।।
आदमी बोलता रहे
आदमी चुप न होने पाये।
पानी से पत्थर को काटा जाये।
खुद को बार-बार डाँटा जाये।।
दूसरों से प्यार किया जाये
आदमी को आदमी ही रहने दिया जाये।
आदमी बहुत बेहतर है।
मशीन भी बनाई जाये।
लेकिन ज्यादा न चलाई जाये।
अपनी आँखों में ही,
सबकी आँखों को लाया जाये।


।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on September 25, 2012 at 11:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल-भावनाओं से खाली हृदय हो गये।

भावनाओं से खाली हृदय हो गये।
लोग हारे हैं पत्थर विजय हो गये।।

आँखें रह जाती हैं बस खुली की खुली
आज ऐसे भयानक दृश्य हो गये।

आदमी के लिये सिर्फ पृथ्वी नहीं
दूसरे भी ग्रहों के विषय हो गये।

न्याय की आस में बैठा है आमजन
अन्त आरोप उस पर ही तय हो गये।

प्रेम में पहले जैसी न गर्मी रही
रिश्ते खामोशियों में विलय हो गये।

प्रेम सम्बन्ध उनसे बनाओ “सुजान”
प्रेम से जिनके कोमल हृदय हो गये।।

  • सूबे सिंह “सुजान”

Added by सूबे सिंह सुजान on September 20, 2012 at 10:00pm — 7 Comments

शिक्षक दिवस पर एक गीत-

रोशनी को, जिन्हें हम जलाते हैं

आज हम उनका दिन मनाते हैं.....।

जिनकी मेहनत से हमने सीखा है

जिनके बिन दुनिया एक धोखा है

ज्ञान का दीप जो जलाते हैं......

आज हम उनका दिन मनाते हैं............।

वो हवाओं को मोड देते हैं

और पत्थर को तोड देते हैं

पौधों को पेड जो बनाते हैं....

आज हम उनका दिन मनाते हैं............।

                              सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on September 5, 2012 at 11:35pm — 6 Comments

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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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