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Samar kabeer's Blog (106)

तरही ग़ज़ल नंबर-3

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

(मक़्ते में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ को नज़र अंदाज़ कर दें)



रफ़्ता रफ़्ता सारी अफ़वाहें कहानी हो गईं

तल्ख़ियाँ इतनी बढ़ीं रेशा दवानी हो गईं



हिज्र की रातों में इतनी बार उनके ख़त पढ़े

याद मुझको सारी तहरीरें ज़बानी हो गईं



हाल वो देखा ग़ज़ल का आज यारो,शर्म से

'मीर'-ओ-'ग़ालिब' की भी रूहें पानी पानी हो गईं



क़ह्र को बाँधें क़हर वो और टोको तो कहें

शे'र कहने की ये तरकीबें पुरानी हो गईं



जानते हो ख़ूब यारो ओबीओ के मंच… Continue

Added by Samar kabeer on April 9, 2017 at 12:13am — 37 Comments

तरही ग़ज़ल नंबर-2

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन



आज तारीफ़ें मिरी उनकी ज़बानी हो गईं

हासिदों की देख शकलें ज़ाफ़रानी हो गईं



उनके रुख़सारों की गर्मी अलअमाँ सद अलअमाँ

सब चटानें बर्फ़ की यकलख़्त पानी हो गईं



आज हैं मासूम सीता की तरह ये रावणों

क्या करोगे लड़कियाँ गर ये भवानी हो गईं



देखते थे कल हिक़ारत से हमें वो देख लें

किस क़दर नस्लें हमारी आज ज्ञानी हो गईं



मैं तो हूँ ख़ामोश लेकिन लोग कहते हैं "समर"

तेरी ग़ज़लें एह्ल-ए-दिल की तर्जुमानी हो… Continue

Added by Samar kabeer on April 6, 2017 at 12:29am — 31 Comments

ओबीओ की सातवीं सालगिरह का तोहफ़ा

फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन

(एक शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ नज़र अंदाज़ कर दें)





जो कहूँ जो लिखूँ ओबीओ के लिये

यूँ समर्पित रहूँ ओबीओ के लिये



माँगता हूँ यही आजकल मैं दुआ

जब तलक भी जियूँ ओबीओ के लिये…



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Added by Samar kabeer on April 1, 2017 at 2:30pm — 43 Comments

तरही ग़ज़ल

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा



दौर-ए-जवानी के हमको रंगीन ज़माने याद आये

महफ़िल में यारों से वो साग़र टकराने याद आये



तन्हाई में भूले बिसरे सब अफ़साने याद आये

जिनमें ग़म की रातें गुज़रीं, वो मैख़ाने याद आये



दिल मुट्ठी में लेकर कोई भींच रहा यूँ लगता था

ग़म की काली रातों में जब ख़्वाब सुहाने याद आये



इक मुद्दत के बाद ख़ुशी ने दरवाज़े पर दस्तक दी

दिल घबराया और मुझे कुछ यार पुराने याद आये



सब कुछ खोकर बर्बादी के सहरा में जब… Continue

Added by Samar kabeer on December 25, 2016 at 11:00pm — 36 Comments

वागीश्वरी सवैये

वागीश्वरी सवैये सूत्र : यगण X 7 + ल गा



अभी तो अकेले चले हैं मियाँ जी ,न कोई वहां है न कोई यहां ।

यहां कौन है जो बताये जहां को,कि बाबू चले हैं अकेले कहां ।



जहाँ जा रहे हैं रहेंगे अकेले,मिलेगा न साथी उन्हें तो वहाँ ।

पता है हमें ख़ूब यारों यक़ीं है, करेगा उन्हें याद सारा जहाँ ।।

_________



निगाहें उठाके ज़रा देख तो लो ,बताओ यहाँ क्यूँ अकेले खड़े ।

हमें ये बता दो बिना बात के ही,भला जान देने यहाँ क्यूँ अड़े।



जहाँ में न कोई हमें तो मिला…

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Added by Samar kabeer on December 12, 2016 at 11:30pm — 18 Comments

सवैये - प्रथम प्रयास

वागीश्वरी सवैया सूत्र : यगण X 7 + ल गा



(1)

कहीं भी कभी भी यहाँ भी वहाँ भी, किसी को किसी का भरोसा नहीं |

यही है ज़माना बताऊँ तुझे क्या, ज़रा भी सलीक़ा नहीं है कहीं |

इसी के लिये तो हमारी वफ़ा ने, जहां में कई यातनाएं सहीं |

बड़ों ने बताया जिसे ढूंढते हो, भरोसा यहीं है मिलेगा यहीं ||



(2)

भलाई हमें तो दिखी है इसी में, कभी भी दुखों में न आहें भरें |

हमारे लिये तो यही है ज़रूरी, यहाँ कर्म अच्छे हमेशा करें |

हमें ये सिखाया गया है कि भाई, हदों को न… Continue

Added by Samar kabeer on November 2, 2016 at 10:56pm — 16 Comments

तरही ग़ज़ल

फ़इलातु फ़ाइलातुन फ़इलातु फ़ाइलातुन



है यही मिशन हमारा कि हराम तक न पहुँचे

कोई मैकदे न जाए कोई जाम तक न पहुँचे



थे ख़ुदा परस्त जितने,वो ख़ुदा से दूर भागे

जो थे राम के पुजारी,कभी राम तक न पहुँचे



ज़रा सीखिये सलीक़ा,नहीं खेल क़ाफ़िए का

वो ग़ज़ल भी क्या ग़ज़ल है जो कलाम तक न पहुँचे



लिखो तज़किरा वफ़ा का तो उन्हें भी याद रखना

वो सितम ज़दा मुसाफ़िर जो मक़ाम तक न पहुँचे



लिया नाम तक न उसका,ए "समर" यही सबब था

मिरी आशिक़ी के क़िस्से रह-ए-आम तक न… Continue

Added by Samar kabeer on August 28, 2016 at 12:19am — 26 Comments

"देश प्रेम" लघुकथा

कमांडर ऑफ़ चीफ़ - "शाबाश राकेश ! तुम्हारा शौर्य पराक्रम अन्य सैनिकों से अलग है । तुम्हारे शौर्य और पराक्रम में जोश है,दीवानगी है,आक्रोश है । वेल डन ।"

राकेश राणा - "यस सर । देश प्रेम मेरा परम धर्म है । देखना एक दिन मैं इस धर्म को निभाकर दिखाऊँगा । माँ को यही वचन देकर आया हूँ ।"

सीमा पर से गोली बारी शुरू हुई और देखते ही देखते युद्ध छिड़ गया । राकेश राणा अंत समय तक लड़ते लड़ते वीर गति को प्राप्त हो गया ।

तिरंगे में लिपटा ताबूत जैसे ही गाँव पहुँचा ,जन सैलाब उमड़ पड़ा । राकेश राणा की माँ…

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Added by Samar kabeer on July 10, 2016 at 12:00pm — 26 Comments

तज़मीन बर तज़मीन

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन



तज़मीन बर तज़मीन हज़रत "क़मर" उज्जैनी बर ग़ज़ल हज़रत-ए-'मख़मूर दहलवी'





दिल-ए-बर्बाद ये हसरत ,ये अरमाँ कौन देखेगा

हमारे दिल में जो है दर्द पिन्हाँ कौन देखेगा

बताओ तो ज़रा ये ग़म का तूफ़ाँ कौन देखेगा

'ख़ुशी देखी है बर्बादी का समाँ कौन देखेगा'

'चमन से रुख़्सत-ए-दौर-बहाराँ कौन देखेगा'

'जलाकर दिल मिसाल-ए-शम्अ-ए-सौज़ाँ कौन देखेगा'

"मुहब्बत में शब-ए-तारीक-ए-हिजराँ कौन देखेगा

हमीं देखेंगे ये ख़्वाब-ए-परीशाँ कौन… Continue

Added by Samar kabeer on June 3, 2016 at 12:00am — 20 Comments

तज़मीन

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन



"तज़मीन बर ग़ज़ल हज़रत सय्यद रफ़ीक़ अहमद "क़मर" उज्जैनी साहिब"



ख़ज़ाँ देखी कभी मौसम सुहाना हमने देखा है

अँधेरा हमने देखा है,उजाला हमने देखा है

फ़सुर्दा गुल कली का मुस्कुराना हमने देखा है

"ग़मों की रात ख़ुशियों का सवेरा हमने देखा है

हमें देखो कि हर रंग-ए-ज़माना हमने देखा है"



_____



वो मंज़र जब कि माँओं से जुदा होने लगे बच्चे

वो दिन भी याद है जब फूल से मुर्झा गये चहरे

लहू से सुर्ख़ थे दरिया,गली,बाज़ार और… Continue

Added by Samar kabeer on May 29, 2016 at 3:00pm — 24 Comments

एक ग़ज़ल ओबीओ के नाम

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन/फ़ेलान



ज पर तुझको देखना है मुझे

त्र में उसने ये लिखा है मुझे



स्ल-ए-नव से मदद का तालिब हूँ

बुर्ज नफ़रत का तोड़ना है मुझे



क्या कहूँ ,कब मिलेगा मीठा…

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Added by Samar kabeer on May 2, 2016 at 6:30pm — 43 Comments

ग़ज़ल :- हज़रत-ए-'मीर' की ज़मीन में

फाइलातुन मफाइलुन फेलुन / फइलुन / फेलान



चैन इस दिल को कब नहीं आता

बाम पर चाँद जब नहीं आता



ख़ुश मिज़ाजी हमारा शैवा है

हमको गैज़-ओ-ग़ज़ब नहीं आता



सब हैं सैराब आपके दर से

एक भी तिश्ना लब नहीं आता



नामा उनका लिये हुए क़ासिद

पहले आता था अब नहीं आता



तल्ख़ लहजा मिरा मुआफ़ करें

बे अदब हूँ अदब नहीं आता



'मीर' साहिब,ग़ज़ल कही लेकिन

शैर कहने का ढब नहीं आता



ज़िक्र तेरा "समर" करेंगें वो

नाम भी ज़ेर-ए-लब नहीं… Continue

Added by Samar kabeer on February 8, 2016 at 3:00pm — 30 Comments

"निजात" लघुकथा

"निजात" लघुकथा :-

"मग़रिब की नमाज़ पढ़कर मैं जब मस्जिद से निकला तो मुझे हामिद मिल गया,वो मुझे बहुत परेशान दिखाई दिया,उसके चहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं ।

मैं उसका दिल बहलाने की ग़रज़ से उसे साथ लेकर बाज़ार आ गया, थोड़ी देर टहलने के बाद हम एक होटल में आ गए , वहाँ हमने नाश्ता किया और चाय पी , आज भी हामिद ने अपनी परेशानियों का ज़िक्र मुझसे किया , मैंने उसे समझाया कि , तुम्हे हिम्मत से काम लेना चाहिये ,और कोशिश नहीं छोड़नी चाहिये , उसने कहा , नौकरी तो जब मिलेगी तब मिलेगी , मुझ पर इतना क़र्ज़ हो गया है… Continue

Added by Samar kabeer on January 19, 2016 at 1:49pm — 18 Comments

ग़ज़ल :- कहाँ ये दिल बहले

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन



कहाँ ये वक़्त गुज़ारूँ , कहाँ ये दिल बहले

वहाँ पे लेके चलो तुम, जहाँ ये दिल बहले



है ग़म गुसारि भी देखो बड़े सवाब का काम

सुनाओ ऐसी कोई दास्ताँ ये दिल बहले



इसी सबब से तो करते है इस पे मश्क़-ए-सितम

वो चाहते ही नहीं हैं मियाँ ये दिल बहले



ग़म-ए-हयात की तल्ख़ी सही नहीं जाती

करो कुछ ऐसा जतन मह्रबाँ ये दिल बहले



मिरे मिज़ाज ने मुझ को जकड़ रखा है 'समर'

वहाँ में जाता नहीं हूँ , जहाँ ये दिल… Continue

Added by Samar kabeer on January 17, 2016 at 2:21pm — 14 Comments

"कायापलट" लघुकथा

मसरूर पठान का नाम दूर दूर तक इज़्ज़त से लिया जाता था,ख़ानदानी आदमी थे,हज़ारों एकण ज़मीन के मालिक थे,शहाना मिज़ाज रखते थे ,सरकारी अमले में भी उनके नाम का दब दबा था,बहुत अच्छे इंसान थे,लेकिन उनकी एक बुरी आदत भी थी,उन्हें शिकार का बहुत शौक़ था,और खाने में उन्हें रोज़ शिकार किये हुए जानवर का गोश्त सब से ज़्यादा पसंद था ,वो ख़ुद जानवरों का शिकार किया करते थे,नोकर चाकर उनके साथ होते थे,एक शिकारी गाइड जो ड्राईवर भी था और जो उन्हें शिकार की जगह ले जाता था !

एक रात की बात है,मसरूर पठान अपनी शिकारी जीप में… Continue

Added by Samar kabeer on January 11, 2016 at 7:52am — 28 Comments

लघुकथा "आग"

"आज की रात वह बहुत ख़ुश था,कारण कि सुबह उसे नोकरी मिलने वाली थी,दो साल तक ठोकरें खाने के बाद एक दिन उसने समाचार पत्र में 'माइकल इंटरप्राइसेस' का विज्ञापन देखा,अर्ज़ी दी,इंटरव्यू कॉल आया और उसे इंटरव्यू में सिलेक्ट कर लिया गया,फ़र्म के मालिक मिस्टर माइकल उसकी क़ाबिलियत से बहुत मुतास्सिर हुए,उन्होंने कहा कल अपॉइंटमेंट लैटर मिल जाएगा ।

वह एक छोटे से शह्र का रहने वाला था और उसे बड़े शह्र में नोकरी की तलाश थी,गुज़र बसर के लिये बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था,किराए का एक कमरा उसे रहने के लिये मिल…

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Added by Samar kabeer on January 1, 2016 at 11:00pm — 10 Comments

कुछ छन्नपकैया सारछन्द

छन्न पकैया छन्न पकैया, खाकर रोटी चटनी

अब तो हम छन्दों में यारो,कहते विपदा अपनी



छन्न पकैया छन्न पकैया,सोवत काहे भैया

तेरी इस निंदिया के कारण डूब न जाये नैया



छन्न पकैया छन्न पकैया ,जीवन बीता रोते

क्यूँकि अपने साथ साथ औरों का दुःख भी ढोते



छन्न पकैया छन्न पकैया ,मुझ पर छींटा कँसती

जब भी मैं सच कहता हूँ ये ज़ालिम दुनिया हँसती



छन्न पकैया छन्न पकैया,भटके दर दर जोगी

कि भिक्षा देता वही उसे जो होता मन का रोगी



छन्न पकैया छन्न… Continue

Added by Samar kabeer on December 28, 2015 at 11:02pm — 8 Comments

कुछ छन्नपकैया सारछन्द (एक प्रयास)

छन्न पकैया छन्न पकैया,ओ.बी.ओ है बहतर

सारी बातें हो जाती हैं,यहाँ अदब में रहकर



छन्न पकैया छन्न पकैया, प्रभू की है माया

आज हुवा जाता है देखो,अपना ख़ून पराया



छन्न पकैया छन्न पकैया ,मंहगी बहुत दवाई

बिन इलाज के मर गए देखो,अपने बाबू भाई



छन्न पकैया छन्न पकैया,बढ़ा लो सब नाख़ून

इस दुनिया में लागू होगा,जंगलों का क़ानून



छन्न पकैया छन्न पकैया,वाणी अच्छी बोली

जब भी अपने लब खोलो तो बोलो सच्ची बोली



छन्न पकैया छन्न पकैया ,ग़ज़लें कहते… Continue

Added by Samar kabeer on December 21, 2015 at 10:00pm — 16 Comments

नस्री नज़्म :- आओ सबका ग़म बाँटें

आओ सबका ग़म बाँटें,

गीतों से,कविताओं से,

ग़ज़लों से,नज़्मों से,

हल्का होगा मन का बोझ

अपने ऐसा करने से,

शायद कुछ परिवर्तन आए,

दिल की कली फिर मुस्काए,

गंगा जमुना का संगम हो,

कुछ तो रब्त-ए-बाहम हो,

सुनते हैं,ताक़त से क़लम की,

इन्क़िलाब आ जाता है

क्यूँ न फिर इस इन्क़िलाब की,

तैयारी में जुट जाऐं,

ये सब मिल जुल कर ही होगा,

आओ इस मक़सद को लेकर,

कोई ऐसा गीत रचें,

ऐसी नज़्म जो दिल को छू ले,

ऐसी कविता,जो रस घोले,

सब को अपनी… Continue

Added by Samar kabeer on December 15, 2015 at 10:24pm — 7 Comments

नस्री नज़्म :- "आख़री सिगरेट"

ज़िन्दगी को,
अपनी सानवी हैसियत
का अहसास,
शिद्दत से हो रहा है,
लाओ,
ये बची हुई ,
आख़री सिगरेट भी जला लूँ,
ताकि क़िस्सा ख़त्म हो ।

समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

Added by Samar kabeer on December 7, 2015 at 10:48pm — 8 Comments

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