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धर्मेन्द्र कुमार सिंह's Blog – May 2011 Archive (3)

ग़ज़ल : सूरज उगता है तो सब यादें सो जाती हैं

चंदा तारे बन रजनी में नभ को जाती हैं।
सूरज उगता है तो सब यादें सो जाती हैं।

आँखों में जब तक बूँदें तब तक इनका हिस्सा
निकलें तो खारा पानी बनकर खो जाती हैं।

खुशबूदार हवाएँ कितनी भी हो जाएँ पर
मरती हैं मीनें जल से बाहर जो जाती हैं।

सागर में बारिश का कारण तट पर घन लिखते
लहरें आकर पल भर में सबकुछ धो जाती हैं।

भिन्न उजाले में लगती हैं यूँ तो सब शक्लें
किंतु अँधेरे में जाकर इक सी हो जाती हैं।

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 23, 2011 at 10:50pm — 3 Comments

कविता : हम-तुम

हम-तुम
जैसे सरिया और कंक्रीट
दिन भर मैं दफ़्तर का तनाव झेलता हूँ
और तुम घर चलाने का दबाव

इस तरह हम झेलते हैं
जीवन का बोझ
साझा करके

किसी का बोझ कम नहीं है
न मेरा न तुम्हारा

झेल लेंगें हम
आँधी, बारिश, धूप, भूकंप, तूफ़ान
अगर यूँ ही बने रहेंगे
इक दूजे का सहारा

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 17, 2011 at 11:44pm — 1 Comment

प्यार की वैज्ञानिक व्याख्या

क्या?

प्यार की वैज्ञानिक व्याख्या चाहिए

तो सुनो

ब्रह्मांड का हर कण

तरंग जैसा भी व्यवहार करता है

और उसकी तरंग का कुछ अंश

भले ही वह नगण्य हो

ब्रह्मांड के कोने कोने तक फैला होता है



आकर्षण और कुछ नहीं

इन्हीं तरंगों का व्यतिकरण है

और जब कभी इन तरंगों की आवृत्तियाँ

एक जैसी हो जाती हैं

तो तन और मन के कम्पनों का आयाम

इतना बढ़ जाता है

कि आत्मा तक झंकृत हो उठती है

इस क्रिया को विज्ञान अनुनाद कहता हैं

और आम इंसान

प्यार



इसलिए… Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 11, 2011 at 1:04pm — 5 Comments

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