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SANDEEP KUMAR PATEL's Blog – April 2013 Archive (12)

सभी के दिल मे बसना चाहता है

लो पत्थर इश्क़ करना चाहता है
मेरी मानिंद जलना चाहता है

लगा के हौसलों के पर युवा अब
बड़ी परवाज़ भरना चाहता है

फलक में जा भुला बैठा जो सबको
ज़मीं पर क्यूँ उतरना चाहता है

सहारे की ज़रूरत है उसे क्या
जो गिर के अब सँभलना चाहता है

बना हमदाद दुनिया में वही जो
सभी के दिल मे बसना चाहता है

संदीप पटेल "दीप"

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 18, 2013 at 2:57pm — 7 Comments

कहने से डरते हैं आशिक चाह छुपाए होते हैं

कहने से डरते हैं आशिक चाह छुपाए होते हैं

दिल के इक कोने मे अक्सर आह छुपाए होते हैं

दिखते हैं आज़ाद परिंदे पर लौटें दिन ढलते ही

घर औ बच्चों की वो भी परवाह छुपाए होते हैं

हमको है मालूम जमाना छेड़ेगा इन ज़ख़्मों को

प्यारी सी मुस्कान में उनकी थाह छुपाए होते हैं

मजबूरी में जो तुमसे डंडे खाते हैं मूक बने

भूल नहीं वो तूफ़ानी उत्साह छुपाए होते हैं

दर दर भटके खूब युवा थक हार गये चलते चलते

भ्रष्टाचारी मंज़िल की हर राह…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 17, 2013 at 2:59pm — 8 Comments

दो घनाक्षरियां / संदीप कुमार पटेल

(1)

सुनो मृगनयनी है चाँद जैसा मुख इसे,

ओढनी ओढ़ा के आज, थोडा शरमाइए

घूरते क्यूँ हमें ऐसे, मैं हूँ जानवर जैसे

लोग सब देख रहे, नज़रें हटाइए

ऐसे ही खड़ी हो काहे, गघरी झुलात कहो

प्रेम है यदि तो फिर, उसे न छुपाइए

और यदि है नहीं तो, काम एक कीजिए जी

मुझे घूरने से अच्छा, नीर भर लाइए । 

(2)

मिले कल नेता जी तो , पूछ लिया हमने ये

कद्दू जैसी तोंद का ये, राज तो बताइए

दुबले थे आप कुर्सी मिलने से पहले तो

हुआ ये कमाल कैसे,…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 16, 2013 at 12:30pm — 14 Comments

मोरे अँगना मे फूल खिलो आज

मोरे अँगना मे फूल खिलो आज 

री गोरी मोरे ...............आज

मुख लागे है चंद चकोरा

कोमल कोमल तन है गोरा

लोचन लागे हैं अभिरामा

सोचूँ का दैइ हों मैं नामा

नाचे मनवा हमारो छेड़ साज़

मोरे अँगना मे फूल खिलो आज

खिल खिल हँसता देखे हमको

चितवन खूब लुभावे सबको

देखत कौन अघाय छवि को

दिन में धूल चटाय रवि को

करे बगिया खुदी पे आज नाज़

मोरे अँगना मे फूल खिलो आज

सोचूँ जियरा भींच भींच…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 15, 2013 at 1:32pm — 12 Comments

हमने हर मौसम को आते जाते देखा है

हमने हर मौसम को आते जाते देखा है

हमको लेकिन सबने बस मुस्काते देखा है



झूठी बातें झूठे किस्से बतलाते हैं लोग

पत्थर को कब दर्पण से शरमाते देखा है



पर्दा रखना ठीक लगा हमको दुनिया में अब

फूलों पर जब भँवरों को मंडराते देखा है



कछुआ और खरगोश पुरानी बातें हैं यारो

अब गदहों को हमने मंजिल पाते देखा है



मंदिर मंदिर मिन्नत करके जिसको पाया था

उसको ही कल हमने आँख दिखाते देखा है



गाली देते फिरता था जो गुंडा राहों में

उसको ही अब… Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 14, 2013 at 12:37pm — 25 Comments

तुमको पाया मानो मैंने नया जन्म पाया

शादी की प्रथम सालगिरह की पूर्व संध्या में अपनी जीवन संगिनी को समर्पित एक रचना



शाम सुहानी रात दीवानी दिवस एक लाया

तुमको पाया मानो मैंने नया जन्म पाया



मन में अंतर्द्वंद बहुत था कैसा होगा वो

सपने देखे जैसे मैंने वैसा होगा वो

या नाज़ुक सुंदर फूलों के जैसा होगा वो

छुईमुई सा शरमाएगा क्या ऐसा होगा वो



तभी सामने इक सुंदर सा चाँद निकल आया

तुमको पाया मानो मैंने नया जन्म पाया



हाथ में सुन्दर वरमाला औ तुम थी सकुचाई

धीरे धीरे पग रख रख… Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 6:50pm — 29 Comments

"ग़ज़ल" तू क्या तेरी हस्ती है क्या ये ध्यान में ला

ग़ज़ल कहने का प्रयास किया है

तू क्या तेरी हस्ती है क्या ये ध्यान में ला

अब उठ खड़ा हो खुद को फिर मैदान मे ला

मज़हब की बातें औ नहीं ईमान की कर

पहले ज़रा इंसानियत इंसान में ला

जब तक जिया उसको बुरा सबने कहा है

क्यूँ रोते हो अब तुम उसे शमशान में ला

नेता है उसको क्या पता क्या है ग़रीबी

उसको कभी इस कोयले की ख़ान मे ला

क्यूँ दीप जलता खुद पे ही इतरा रहा है

दम आजमा तू खुद को इस तूफान में…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 11, 2013 at 3:45pm — 20 Comments

समस्त ओ बी ओ परिवार को हिंदी नववर्ष और नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनाएं

समस्त ओ बी ओ परिवार को हिंदी नववर्ष और नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनाएं

 

अर्गला स्तोत्र को हिंदी में छंदबद्ध करने का प्रयास किया है

 

अथ अर्गला स्तोत्र

 

 

शिवा जयंती माता काली, भद्रकाली है नाम

क्षमा स्वधा कपालिनी स्वाहा, बारम्बार प्रणाम

दुर्गा धात्री माँ जगदम्बे,  जपता आठों याम

मात मंगला हे चामुंडे, हरो क्रोध अरु काम

सबकी पीड़ा हरने वाली, तुमको नमन हजार 

व्याप्त चराचर में तुम माता, तेरी जय जयकार

जय दो यश…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 11:00pm — 17 Comments

वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है "ग़ज़ल"

इक ताज़ा ग़ज़ल पेशेखिदमत है आपके जानिब

 

वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है

ग़मों में मुस्कुराने का बहाना ढूँढ लेता है

 

फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या  

बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है

 

मुसलसल चोट खाता है मगर आशिक है क्या कीजे

मुहब्बत करने को मौसम सुहाना ढूँढ लेता है

 

बुरी आदत है उसकी एक का दो चार करने की

पडोसी पर नज़र रख के फ़साना ढूँढ लेता है

 

अहम् झूठा नहीं करता गिला…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 5, 2013 at 11:08pm — 28 Comments

अतुकान्त

गद्य के खंड रचे

प्रवाह भर भर के

इतना प्रवाह के

कविता टिक न सकी

पल भर को

उड़ गयी कहीं दूर

बहुत दूर

कवियों की खोज मे



और लेखक इतराता है

अतुकान्त का बोध कराता

स्वयं को

गुपचुप मुस्काता

सोचता है

कौन जानता है

कविता का आंतरिक सौंदर्य

बाहरी परिवेश

इंफ्रास्ट्रकचर ठीक

मतलब सब ठीक

अंदर जा के

किसको क्या मिला है

लय छन्द ताल

व्यर्थ हैं भाव के बिना

फिर एक मुस्कान भरता है

देखा हो गया न…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 4, 2013 at 2:09pm — 10 Comments

हास्य घनाक्षरी

हास्य घनाक्षरी

 

आप तो पहाड़ हम माटी भुरभुरी वाली

धूल न हो जाएँ कहीं , गले न लगाइए

आपका शरीर है ये तन से अमीर बड़ा

दुबले गरीब हम रहम तो खाइए

माटी वाला घर मेरा और द्वार छोटा बना

टूट नहीं जाए ज़रा धीरे धीरे आइए

फूल थी जो आप कद्दू हो गयी हो आजकल 
ऐसा क्या है खाया ज़रा हमें भी बताइए

 

संदीप पटेल “दीप”

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 3, 2013 at 11:30pm — 16 Comments

तुम बिन

प्यास है

लरजते होंठों में

आज भी वही

जब कहा था तुमसे

मैं प्यार करता हूँ

और देखा था

खुद को

तुम्हारी आँखों से

पागल सा

दीवाना सा

कुछ पल बाद

वो झुकीं

और इक मीठी सी सदा

हट पागल

जाता हूँ

आइने के सामने

देखने वही

अक्स

लेकिन धुंधला

हो जाता है

मुझे याद है अब भी

जब तुमने

झांका था

मेरी आँखों में

थामा था

सिरहन भरा

मेरा…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 3, 2013 at 9:00pm — 22 Comments

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