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नाथ सोनांचली's Blog (117)

देशभक्ति पर वीर रस की कविता

बुझी राख मत हमे समझना, अंगारो के गोले हैं |

देश आन पर मिटने वाले, हम बारूदी शोले हैं ||



हम सब ख़ौफ़ नही खाते हैं, विध्वंसक हथियारों से |

सीख लिया है लड़ना हमने, तुझ जैसे मक्कारो से ||



पहला वार नही हम करते, पहले हम समझाते हैं |

फिर भी कोई आँख दिखाये, महाकाल बन जाते हैं ||



शेरो के हम वंशज सारे, सुन इक बात बताते हैं |

एक झपट्टे में ही पूरा, खाल खींच हम लाते हैं ||



आन बान की रक्षा में हम, हँस कर शीश चढ़ाते हैं |

जिस देश धरा पर… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 18, 2017 at 4:21am — 12 Comments

सब क़ुबूल अब तो बेवफा के सिवा (तरही गजल)

बह्र 2122 1212 22



ज़िन्दगी क्या है इक खता के सिवा

कुछ करो यार कल्पना के सिवा ||



सोचता हूँ ग़ज़ल कहूँ कैसे

जानकारी न काफ़िया के सिवा||



जो भी चाहो कहो मुझे यारो

सब क़ुबूल अब तो बेवफा के सिवा ||



अब समझना मुझे नही आसाँ

कोई समझे न दिलरुबा के सिवा ||



तुम कभी रूठ जाते हो मुझसे

बात बनती न इल्तिज़ा के सिवा||



आज भी मुल्क में गरीबी है

क्या मिला हमको योजना के सिवा||



दर सभी आजमा लिए हमने

*कोई… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 16, 2017 at 8:38am — 10 Comments

प्रभात बेला

अरुणोदय के अभिनन्दन में

खगकुल गाते गीत सुहाने |

शैल शिखर हो रहे सुशोभित

चुनरी ओढ़ी लाल, धरा ने ||



हुआ तेज जब अरुणोदय का

निशा सशंकित लगी भागने

हँसता पूरब देख चंद्र को

पल्लव सभी लगे मुस्काने ||



पंकज आतुर खिलने को अब

देख कुमुदिनी तब मुरझाई |

अलिदल दौड़ पड़े फूलो पर

कीट पंख में हलचल आई ||



मलय समीर की मन्द बयार

मदहोश कर रही अधरों को |

रवि की नव किरणों को पाकर,

शीतलता मिलती नजरो को ||



स्वागत करती… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 14, 2017 at 7:42am — 21 Comments

जूते की जुबानी (हास्य व्यंग्य)

मैं बेबस लाचार पड़ा, अपनी बात बताता हूँ |

मैं जूता सुन यार तुझे, किस्से आज सुनाता हूँ ||



शोभा नही हमारे बिन, राजा या रँक फकीर की |

हम चरणों के दास हुए, माया यहीं तकदीर की।



हमें पहन इंसान यहाँ, काँटों पर भी चलते हैं |

राह भले हो पथरीली, कदम नहीं ये रुकते हैं ||



इंसाँ तुच्छ समझता है, गिनता हमको रद्दी भर |

भूल गया इतिहास सभी, हम बैठे थे गद्दी पर ||



चौदह वर्षों तक हम भी, अवध देश की शान रहे |

शीश झुकाते श्रद्धा से, देते सब सम्मान… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 11, 2017 at 2:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल - सबको ख़्वाबो से प्यार हो जाये

बह्र  2122  1212    22



सबको ख़्वाबों से प्यार हो जाये

तो ख़ज़ां भी बहार हो जाये ||



ये सियासत की आरजू है क्यूँ

देश यू पी बिहार हो जाये ||



गर लगे घर में बाहरी दीमक

टूटकर कुनबा ख़्वार हो जाये ||



यूँ न हो राजनीति में फ़ँस कर

अपने घर में दरार हो जाये ||



तेरे किरदार से न तेरी माँ

ऐके दिन शर्मसार हो जाये ||



जख्म को मत कुरेदो अब यारो

राख फिर से अँगार हो जाये ||



ज़ीस्त मतलब बदल न दे अपना

गर… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 7, 2017 at 9:00pm — 13 Comments

मुस्कुरा दे वो अगर समझो सवाल अच्छा है (तरही गजल)

बह्र 2122 1122 1122 22



सोने चाँदी का जहाँ में न ख़याल अच्छा है

वक़्त पर काम जो आये वही माल अच्छा हैं।



हम जवाब़ो से परखते है रजामंदी को

मुस्कुरा दे वो अगर समझो सवाल अच्छा हैं।



शोर चलने नहीं देता है ये संसद यारो

फिर भी कैसे मै कहूँ ये कि बवाल अच्छा है।



एक सीमा में है अल्फाज़ पे सख़्ती लाज़िम

हद में रह कर जो करेंगे वो धमाल अच्छा है।।



मर रहे भूख से बच्चे तो कही बेबस माँ

वो समझते है कि इस देश का हाल अच्छा… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 4, 2017 at 2:00pm — 16 Comments

बाज आ बस्तियाँ जलाने से

बह्र 2122 1212 22



लाख कोशिश करो ज़माने से

राज छिपता नही छिपाने से।।



सिर्फ कहने से कुछ नही होता

रिश्ता होता है बस निभाने से।।



हारते हम लड़ाइयाँ अक्सर

पीठ मैदान में दिखाने से।।



हाथ माँ का अगर तेरे सर हो

तू मिटेगा नहीं मिटाने से।।



मै बिखरता हूँ कितने टुकडो में

हौसला यार टूट जाने से।।



जिनकी आँखों पे हो बँधी पट्टी

क्या मिले आइना दिखाने से।।



तेरा घर भी इन्ही में है आबाद

बाज आ बस्तियां जलाने… Continue

Added by नाथ सोनांचली on December 28, 2016 at 9:08am — 9 Comments

दोस्ती भी सँभल के करता हूँ

बह्र 2122 1212 22



मै अनायास आह भरता हूँ

जब गली से तेरी गुजरता हूँ।



डोर नाजुक बहुत है रिश्तों की

दोस्ती भी सँभल के करता हूँ।



साथ माँ की दुआयें है जिनसे

दिन ब दिन ज़ीस्त में निखरता हूँ।।



कोई मजहब नहीं मेरा यारों

मै तो इंसानियत पे मरता हूँ।।



हौसलों में उड़ान है मेरे

आँधियों के भी पर कतरता हूँ।



मैं भी नेता बनूँ मगर कैसे

मैं कहाँ बात से मुकरता हूँ।।



तेरी यादों के तेज झोंको से

रोज़ मैं टूट… Continue

Added by नाथ सोनांचली on December 20, 2016 at 12:30pm — 7 Comments

अल्फाज से मगर ये छिपाया नही गया

*बह्र 221 2121 1221 212*



था नाम दिल पे दर्ज मिटाया नहीं गया

आँखों से मेरा प्यार छुपाया नहीं गया।।



कल को सँवारने में गई बीत ज़िन्दगी

जो सामने था लुत्फ़ उठाया नही गया।।



कोशिश बहुत की, राज़े मुहब्बत अयाँ न हो।

अल्फाज से मगर ये छिपाया नहीं गया।।



बीवी बहन न कोई मिलेगी बहू तुम्हे

बेटी को कोख में जो बचाया नहीं गया।।



मंदिर में जाके भोज कराने से फायदे?

माँ बाप को तो तुमसे खिलाया नहीं गया।।



पलको से रोकने की हुई… Continue

Added by नाथ सोनांचली on December 12, 2016 at 7:28am — 10 Comments

गर्द में सारा नगर डूबा हुवा है।

बह्र: 2122 2122 2122



रात हो या दोपहर डूबा हुआ है।

गर्द में सारा नगर डूबा हुआ है।।



मौत आनी है यकीनन इस जहाँ में

खौफ में फिर भी बशर डूबा हुआ है।।



लक्ष्य कोई भी तुझे कैसे मिलेगा

तू निराशा में अगर डूबा हुआ है।।



ख़त्म करता जा रहा है दश्त इंसाँ

फ़िक्र में अब हर शजर डूबा हुआ है।।



साथ में कुछ भी नही जाता यहाँ से

मोह में इंसाँ मगर डूबा हुआ है।।



वो दिलासा क्‍या हमें देगा जो खुद ही

'आँसुओं में तर ब तर डूबा हुआ… Continue

Added by नाथ सोनांचली on December 6, 2016 at 4:13am — 8 Comments

गर्दिश में पैमाना है

*22 22 22 22 22 22 22 2*



आज बहुत सुनसान पड़ा क्यूँ, दिल का ये मैखाना है

साकी रूठ गया है मुझसे, गर्दिश में पैमाना है।



जश्न मनाते लोग यहाँ अब, बंद कपाटो के पीछे

होटल में ले जाते उनको, जब भी पड़े खिलाना है।।



देते खबर पडोसी की अब, हमको भी अखबार यहाँ।

कैद हुए है घर में सारे, सीमित हुआ ठिकाना है।।



भरी पड़ी है फ्रेंड लिस्ट भी फेसबुकी दिलदारों से

कांधा लोग नहीं देंगे पर, खुद ही बोझ उठाना है।।



नुक्कड़ पर अब लोग नही है, मिलती है… Continue

Added by नाथ सोनांचली on November 21, 2016 at 5:30am — 7 Comments

अमन का चिराग

भड़की ज्वाला देश में, काप रहे हैं हाथ।

कैसे दीपक अब जले, बिना अमन के नाथ।।



कोई भूखा सो रहा, तन भी पड़ा उघार।

माता जिस्म पिला रही, कोशो दूर बहार।।



धर्म जाति में नर फसा, रचता रोज कुकर्म।

रक्त पिपासा बढ़ रही, बची नही है शर्म।।



फूलों में अब हे सखे!, फीकी पड़ी सुगन्ध।

जनमानस में घुल रही, नित बारूदी गंध।।



गूंज रही हर पल यहाँ, माताओं की चीख।

बिंदिया रोकर कह रही, कब लेंगे हम सीख?



आज मनुजता है दुखी, दानवता मद-चूर।

नित्य… Continue

Added by नाथ सोनांचली on October 31, 2016 at 8:58am — 7 Comments

जिन्दगी है जो सफर राह पे चलते रहिये

तरही गजल

बह्र* - 2122 1122 1122 22



जिन्दगी है जो सफर राह पे चलते रहिये,

वक्त के साथ भी अंदाज बदलते रहिये।



माँ पिता और हैं उस्ताद धरा पर जिनकी

नेह और ज्ञान की छाया में ही पलते रहिये।।



रिश्ते होते है सदा चाक की मिट्टी जैसे

आप चाहेंगे उसी रूप में ढलते रहिये।।



शह्र है एक अमन का, वो बनारस मेरा

प्यार सुख चैन जिधर चाहे निकलते रहिये।।



परवरिश में तो है अत्फ़ाल पे सख़्ती लाज़िम,

आँख में देख के आंसू न पिघलते… Continue

Added by नाथ सोनांचली on October 18, 2016 at 4:46am — 2 Comments

विजय पर्व का मूल

काम क्रोध तन में भरा, बढ़ा खूब व्यभिचार।

रावण अन्तस में लिए, घूम रहा संसार।।



काँटे ही ज्यादा यहाँ, और बहुत कम फूल।

सत्य अहिंसा प्रेम को, मनुज गया है भूल।।



राजनीति गंदी हुई, गुंडा करते राज

रामराज सपना हुआ, देख रहे हैं आज।।



साये में आतंक के, झूल रहा संसार।

नरता रही कराह है, गूँजे चीख पुकार।।



आज तिरस्कृत हो रही, नारी हर घर द्वार।

उरियानी के दौर में, फैला विषम विकार।।



सब्ज-बाग में फाँसकर, संसद पँहुचे चोर।

जाति धर्म… Continue

Added by नाथ सोनांचली on October 17, 2016 at 11:47am — 5 Comments

गजल- जो नेक दिल हो जमाना उसे सताता है

बह्र 1212 1122 1212 112/22



जो नेक दिल हो ज़माना उसे सताता है

मुसीबतों से मगर वो न बौखलाता है।



जवान हार से भी जीत खींच लाता है

जो हार मान ले मातम वही मनाता है।।



तुम्हारे साथ में गुज़रा हरेक पल जानम

हयात में वही रस्ता मुझे दिखाता है।।



वफा के नाम पे करता दगा अगर कोई

जहाँ में खुद का ही वह कब्र खोद जाता है।।



करम खुदा का हमें क्यों समझ नहीं आता

कभी हमे वो रुलाता कभी हँसाता है।।



फरेब दिल में हमेशा भरा हुआ… Continue

Added by नाथ सोनांचली on October 16, 2016 at 4:49pm — 5 Comments

गजल - अनमोल पल थे हाथ से सारे फिसल गये

221 2121 1221 212*



अनमोल पल थे हाथ से सारे फिसल गये

अपनों ने मुंह को फेर लिया दिन बदल गये।।



कुछ ख्वाब छूटे कुछ हुए पूरे, हुआ सफर

यादो के साथ साल महीने निकल गये।।



शरमा के मुस्कुरा के जो उनकी नजर झुकी

मदहोश हुस्न ने किया बस दिल मचल गये।।



बचपन के मस्त दिन भी हुआ करते थे कभी

बस्तो के बोझ आज वो बचपन कुचल गये।।



ओढे लिबास सादगी का भ्रष्ट तंत्र में

नेता गरीब के भी निवाले निगल गये।।



करते है बेजुबान को वो क़त्ल…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on October 10, 2016 at 5:30am — 22 Comments

तेरे आने से मेरा घर जगमगाया

तेरे आने से मेरा घर जगमगाया

पूर्णिमा का चंद्र जैसे मुस्कुराया



स्वांग रचकर रचयिता सबको नचाये

इस जगत को मंच इक अद्भुत बनाया



लाज कपड़ो में छुपाती थी कभी वो

आज उरियानी का कैसा दौर आया



आपदा जिसने न झेली जिन्दगी में

हौसलों की भी परख वो कर न पाया



पूछता दिल कटघरे में खुद को पाकर

इश्क ही क्यों हर कदम पे लड़खड़ाया



ज़िन्दगी भी पूछती है क्या बताऊँ

क्या मिला है और क्या मैं छोड़ आया



खोजती है हर नजर बस एक…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on October 8, 2016 at 2:00pm — 6 Comments

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