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नाथ सोनांचली's Blog – December 2016 Archive (4)

बाज आ बस्तियाँ जलाने से

बह्र 2122 1212 22



लाख कोशिश करो ज़माने से

राज छिपता नही छिपाने से।।



सिर्फ कहने से कुछ नही होता

रिश्ता होता है बस निभाने से।।



हारते हम लड़ाइयाँ अक्सर

पीठ मैदान में दिखाने से।।



हाथ माँ का अगर तेरे सर हो

तू मिटेगा नहीं मिटाने से।।



मै बिखरता हूँ कितने टुकडो में

हौसला यार टूट जाने से।।



जिनकी आँखों पे हो बँधी पट्टी

क्या मिले आइना दिखाने से।।



तेरा घर भी इन्ही में है आबाद

बाज आ बस्तियां जलाने… Continue

Added by नाथ सोनांचली on December 28, 2016 at 9:08am — 9 Comments

दोस्ती भी सँभल के करता हूँ

बह्र 2122 1212 22



मै अनायास आह भरता हूँ

जब गली से तेरी गुजरता हूँ।



डोर नाजुक बहुत है रिश्तों की

दोस्ती भी सँभल के करता हूँ।



साथ माँ की दुआयें है जिनसे

दिन ब दिन ज़ीस्त में निखरता हूँ।।



कोई मजहब नहीं मेरा यारों

मै तो इंसानियत पे मरता हूँ।।



हौसलों में उड़ान है मेरे

आँधियों के भी पर कतरता हूँ।



मैं भी नेता बनूँ मगर कैसे

मैं कहाँ बात से मुकरता हूँ।।



तेरी यादों के तेज झोंको से

रोज़ मैं टूट… Continue

Added by नाथ सोनांचली on December 20, 2016 at 12:30pm — 7 Comments

अल्फाज से मगर ये छिपाया नही गया

*बह्र 221 2121 1221 212*



था नाम दिल पे दर्ज मिटाया नहीं गया

आँखों से मेरा प्यार छुपाया नहीं गया।।



कल को सँवारने में गई बीत ज़िन्दगी

जो सामने था लुत्फ़ उठाया नही गया।।



कोशिश बहुत की, राज़े मुहब्बत अयाँ न हो।

अल्फाज से मगर ये छिपाया नहीं गया।।



बीवी बहन न कोई मिलेगी बहू तुम्हे

बेटी को कोख में जो बचाया नहीं गया।।



मंदिर में जाके भोज कराने से फायदे?

माँ बाप को तो तुमसे खिलाया नहीं गया।।



पलको से रोकने की हुई… Continue

Added by नाथ सोनांचली on December 12, 2016 at 7:28am — 10 Comments

गर्द में सारा नगर डूबा हुवा है।

बह्र: 2122 2122 2122



रात हो या दोपहर डूबा हुआ है।

गर्द में सारा नगर डूबा हुआ है।।



मौत आनी है यकीनन इस जहाँ में

खौफ में फिर भी बशर डूबा हुआ है।।



लक्ष्य कोई भी तुझे कैसे मिलेगा

तू निराशा में अगर डूबा हुआ है।।



ख़त्म करता जा रहा है दश्त इंसाँ

फ़िक्र में अब हर शजर डूबा हुआ है।।



साथ में कुछ भी नही जाता यहाँ से

मोह में इंसाँ मगर डूबा हुआ है।।



वो दिलासा क्‍या हमें देगा जो खुद ही

'आँसुओं में तर ब तर डूबा हुआ… Continue

Added by नाथ सोनांचली on December 6, 2016 at 4:13am — 8 Comments

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