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नाथ सोनांचली's Blog – January 2017 Archive (7)

जाड़ा

कुहरे की इक चादर ओढ़े, देखो जाड़ा आया है |

लगातार गिरते पारे ने, फिर कुहराम मचाया है||



इसके आगे आज सभी ने, अपना शीश नवाया है |

सूरज का तेज हुआ मद्धिम, चाँद खूब मुस्काया है ||



हर कोई यहाँ दिख रहा है, मख़मली दुशाला ओढ़े |

कपड़े सबके ऊनी फिर भी, साथ न यह जाड़ा छोड़े ||



कही ठिठुरते दादा दादी, कही काँपती नानी है |

कही रात भर गिरता पाला, कही बर्फ सा पानी है ||



सन-सन चलती हवा रात दिन, थर-थर हाड़ कपाती है |

जलता अलाव मिले जहाँ भी,… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 23, 2017 at 9:13am — 10 Comments

देशभक्ति पर वीर रस की कविता

बुझी राख मत हमे समझना, अंगारो के गोले हैं |

देश आन पर मिटने वाले, हम बारूदी शोले हैं ||



हम सब ख़ौफ़ नही खाते हैं, विध्वंसक हथियारों से |

सीख लिया है लड़ना हमने, तुझ जैसे मक्कारो से ||



पहला वार नही हम करते, पहले हम समझाते हैं |

फिर भी कोई आँख दिखाये, महाकाल बन जाते हैं ||



शेरो के हम वंशज सारे, सुन इक बात बताते हैं |

एक झपट्टे में ही पूरा, खाल खींच हम लाते हैं ||



आन बान की रक्षा में हम, हँस कर शीश चढ़ाते हैं |

जिस देश धरा पर… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 18, 2017 at 4:21am — 12 Comments

सब क़ुबूल अब तो बेवफा के सिवा (तरही गजल)

बह्र 2122 1212 22



ज़िन्दगी क्या है इक खता के सिवा

कुछ करो यार कल्पना के सिवा ||



सोचता हूँ ग़ज़ल कहूँ कैसे

जानकारी न काफ़िया के सिवा||



जो भी चाहो कहो मुझे यारो

सब क़ुबूल अब तो बेवफा के सिवा ||



अब समझना मुझे नही आसाँ

कोई समझे न दिलरुबा के सिवा ||



तुम कभी रूठ जाते हो मुझसे

बात बनती न इल्तिज़ा के सिवा||



आज भी मुल्क में गरीबी है

क्या मिला हमको योजना के सिवा||



दर सभी आजमा लिए हमने

*कोई… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 16, 2017 at 8:38am — 10 Comments

प्रभात बेला

अरुणोदय के अभिनन्दन में

खगकुल गाते गीत सुहाने |

शैल शिखर हो रहे सुशोभित

चुनरी ओढ़ी लाल, धरा ने ||



हुआ तेज जब अरुणोदय का

निशा सशंकित लगी भागने

हँसता पूरब देख चंद्र को

पल्लव सभी लगे मुस्काने ||



पंकज आतुर खिलने को अब

देख कुमुदिनी तब मुरझाई |

अलिदल दौड़ पड़े फूलो पर

कीट पंख में हलचल आई ||



मलय समीर की मन्द बयार

मदहोश कर रही अधरों को |

रवि की नव किरणों को पाकर,

शीतलता मिलती नजरो को ||



स्वागत करती… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 14, 2017 at 7:42am — 21 Comments

जूते की जुबानी (हास्य व्यंग्य)

मैं बेबस लाचार पड़ा, अपनी बात बताता हूँ |

मैं जूता सुन यार तुझे, किस्से आज सुनाता हूँ ||



शोभा नही हमारे बिन, राजा या रँक फकीर की |

हम चरणों के दास हुए, माया यहीं तकदीर की।



हमें पहन इंसान यहाँ, काँटों पर भी चलते हैं |

राह भले हो पथरीली, कदम नहीं ये रुकते हैं ||



इंसाँ तुच्छ समझता है, गिनता हमको रद्दी भर |

भूल गया इतिहास सभी, हम बैठे थे गद्दी पर ||



चौदह वर्षों तक हम भी, अवध देश की शान रहे |

शीश झुकाते श्रद्धा से, देते सब सम्मान… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 11, 2017 at 2:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल - सबको ख़्वाबो से प्यार हो जाये

बह्र  2122  1212    22



सबको ख़्वाबों से प्यार हो जाये

तो ख़ज़ां भी बहार हो जाये ||



ये सियासत की आरजू है क्यूँ

देश यू पी बिहार हो जाये ||



गर लगे घर में बाहरी दीमक

टूटकर कुनबा ख़्वार हो जाये ||



यूँ न हो राजनीति में फ़ँस कर

अपने घर में दरार हो जाये ||



तेरे किरदार से न तेरी माँ

ऐके दिन शर्मसार हो जाये ||



जख्म को मत कुरेदो अब यारो

राख फिर से अँगार हो जाये ||



ज़ीस्त मतलब बदल न दे अपना

गर… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 7, 2017 at 9:00pm — 13 Comments

मुस्कुरा दे वो अगर समझो सवाल अच्छा है (तरही गजल)

बह्र 2122 1122 1122 22



सोने चाँदी का जहाँ में न ख़याल अच्छा है

वक़्त पर काम जो आये वही माल अच्छा हैं।



हम जवाब़ो से परखते है रजामंदी को

मुस्कुरा दे वो अगर समझो सवाल अच्छा हैं।



शोर चलने नहीं देता है ये संसद यारो

फिर भी कैसे मै कहूँ ये कि बवाल अच्छा है।



एक सीमा में है अल्फाज़ पे सख़्ती लाज़िम

हद में रह कर जो करेंगे वो धमाल अच्छा है।।



मर रहे भूख से बच्चे तो कही बेबस माँ

वो समझते है कि इस देश का हाल अच्छा… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 4, 2017 at 2:00pm — 16 Comments

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