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Pradeep Bahuguna Darpan's Blog – February 2012 Archive (3)

दो मुक्तक

(1)
पीर का सागर हृदय में, मन में भारी वेदना.
अश्रु भी छलके नयन से,शून्य हो गई चेतना.
टूटता है जब हृदय, यह दशा होती सभी की.
जाने कैसे सीखते हैं, लोग दिल से खेलना. ...

(2)
वक़्त की बेवफ़ाई पर तू, आज क्यों पछता रहा.
तू भी सदा वक़्त के संग खिलवाड ही करता रहा.
वक़्त ने तो चाहा हमेशा संग लेकर तुझको चलना,
आलसी बन तू ही बैठा, वक़्त तो चलता रहा. .

.

- प्रदीप बहुगुणा दर्पण

Added by Pradeep Bahuguna Darpan on February 28, 2012 at 10:30am — 3 Comments

आंखें

इन आंखों की गहराई में,

डूबा दिल दीवाना है.

मस्ती को छलकाती आंखें,

मय से भरा पैमाना हैं.



ये आंखें केवल आंख नहीं हैं ,

ये तो मन का दर्पण हैं .

दिल में उमड़ी भावनाओं का,

करती हर पल वर्णन हैं.



ये आंखे जगमग दीपशिखा सी ,

जीवन में ज्योति भरती हैं.

भटके मन को राह दिखाती,

पथ आलोकित करती हैं.



इन आंखों में डूब के प्यारे,

कौन भला निकलना चाहे.

ये आंखे तो वो आंखे हैं ,

जिनमें हर कोई बसना चाहे.

.…

Continue

Added by Pradeep Bahuguna Darpan on February 15, 2012 at 5:00pm — 8 Comments

वैलेंटाईन दिवस पर कुछ दोहे......

प्रेम तो है परमात्मा, पावन अमर विचार.
इसको तुम समझो नहीं , महज देह व्यापार.

प्रेम गली कंटक भरी, रखो संभलकर पांव.
जीवन भर भरते नहीं, मिलते ऐसे घाव.

'दर्पण' हमसे लीजिए, बड़े काम की सीख.
दे दो, पर मांगो नहीं, कभी प्यार की भीख.

मन से मन का हो मिलन, तो ही सच्चा प्यार.
मन के बिना जो तन मिले, बड़ा अधम व्यवहार . ... दर्पण

Added by Pradeep Bahuguna Darpan on February 13, 2012 at 5:08pm — 8 Comments

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