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Shyam Narain Verma's Blog – December 2015 Archive (2)

कटे नहीं जीवन का तार ।

फूल बिना भौंरे का जीवन ,  जग में   है  कितना लाचार ।
जब  बाग वन कहीं खिले कली , आ जाये बिकल बेकरार ।
रंग रूप ना  दूरी देखे ,     नैनों    से    करता    इजहार ।
खार वार कुछ भी ना देखे ,    जोश     में  आये बार…
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Added by Shyam Narain Verma on December 30, 2015 at 12:30pm — 1 Comment

सोच सोच जो रह जाती |

लावनी छंद |

नारी की असीम ताक़त है , मिट्टी को करती सोना |

जंगल में मंगल कर देती , सारे रश्मों को ढोना |

बनती बेटी ससुराल बहू , माँ को छोड पड़े रोना |

अजनवी घर अपना बनाती , हर सुख दुःख पड़े ढोना |

नारी जीवन की धारा है , साथ साथ साथ निभाती |

खुशी खुशी बच्चों को पाले , सबके संग घर चलाती |

घरनी बिन घर सूना लागे , जब छोड़ मायके जाती |

आये जब घर आँगन खिलता , जीवन में खुशियाँ लाती |

पति जाये जब गलत राह पर , विनय कर उसे समझाती |

पर अपने को अबला समझे…

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Added by Shyam Narain Verma on December 12, 2015 at 6:00pm — 2 Comments

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