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अरुन 'अनन्त''s Blog (103)

ग़ज़ल : हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है

बह्र : हज़ज मुसम्मन सालिम
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,

हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है,

मुहब्बत में न जाने क्यों अजब सी झुन्झुलाहट है,



निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,

सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है,



दिखा कर ख्वाब आँखों को रुलाया खून के आंसू,

जुबां पे बद्दुआ बस और भीतर चिडचिड़ाहट है,



चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,

दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on October 24, 2013 at 4:30pm — 25 Comments

दोहे : अरुन शर्मा 'अनन्त'

कोमल काया फूल सी, अति मनमोहक रूप ।

तेरे आगे चाँद भी, लगता मुझे कुरूप ।।



भोलापन अरु सादगी, नैना निश्छल झील ।

जो तेरा दीदार हो, धड़कन हो गतिशील ।।…



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Added by अरुन 'अनन्त' on October 23, 2013 at 6:00pm — 25 Comments

ग़ज़ल: भेषभूषा मान मर्यादा ख़तम

बह्र : रमल मुसद्दस महजूफ

वज्न : 2122, 2122, 212

........................................

सभ्यता सम्मान अपनापन गया,

आदमी शैतान जबसे बन गया,

भेषभूषा मान मर्यादा ख़तम,

ज्ञान गुण आदर कि अनुशासन…

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Added by अरुन 'अनन्त' on October 14, 2013 at 12:00pm — 17 Comments

ग़ज़ल : बँधी भैंसें तबेले में

ग़ज़ल
बह्र : हज़ज़ मुरब्बा सालिम
1222 , 1222 ,

बँधी भैंसें तबेले में,
करें बातें अकेले में,

अजब इन्सान है देखो,

फँसा रहता झमेले में,

मिले जो इनमें कड़वाहट,
नहीं मिलती करेले में,

हुनर जो लेरुओं में है,
नहीं इंसा गदेले में,

भले हम जानवर होकर,
यहाँ आदम के मेले में,

गुरु तो हैं गुरु लेकिन,
भरा है ज्ञान चेले में..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by अरुन 'अनन्त' on October 9, 2013 at 4:30pm — 36 Comments

ग़ज़ल : तुम्हारा प्रेम ही - अरुन शर्मा 'अनन्त'

(बह्र: हज़ज़ मुसम्मन सालिम )

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन

तुम्हारा प्रेम ही अक्सर मुझे मगरूर करता है

तुम्हारा प्रेम ही अक्सर मुझे मजबूर करता है



तुम्हारा प्रेम ही खुशियों का इक साधन मेरी खातिर

तुम्हारा प्रेम ही खुशियों से कोसो दूर करता है,



तुम्हारा प्रेम ही हिम्मत मुझे मुश्किल घड़ी में दे,

तुम्हारा प्रेम ही तो हौंसला भी चूर करता है



तुम्हारा प्रेम ही मरहम बने जख्मों…

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Added by अरुन 'अनन्त' on September 29, 2013 at 3:18pm — 28 Comments

ग़ज़ल : जब प्रतीक्षा में पड़ा था मौत के

बह्र -- रमल मुसद्दस महजूफ

२१२२, २१२२, २१२

मैं पपीहा प्यास में मरता रहा,

स्वाति मुझको जानकर छलता रहा,

सर्द गर्मी धूप हो या छाँव हो,

कारवां चलता चला चलता रहा,

श्राप ही ऐसा मिला था सूर्य को,

देवता होकर सदा जलता रहा,

धूल लेकर चल रहीं थी आंधियां,

आँख मैं मलता चला मलता रहा,

बात मन की मन ही मन में रह गई,

दर्द भीतर रोग बन पलता रहा,

जब प्रतीक्षा में पड़ा था मौत के,

वक़्त मुझको…

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Added by अरुन 'अनन्त' on September 18, 2013 at 10:30am — 27 Comments

ग़ज़ल : मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ

वज्न : २१२२, २१२२, २१२

दूरियों का ही समय निश्चित हुआ,

कब भला शक से दिलों का हित हुआ,



भोज छप्पन हैं किसी के वास्ते,

और…

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Added by अरुन 'अनन्त' on September 15, 2013 at 11:27am — 56 Comments

ग़ज़ल: मिलन अपना नहीं संभव जुदाई में समस्या है

बहर: हज़ज़ मुसम्मन सालिम

१२२२, १२२२, १२२२, १२२२

मिलन अपना नहीं संभव जुदाई में समस्या है,

अधूरी प्रेम की पूजा कठिन दिल की तपस्या है,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on August 25, 2013 at 10:30pm — 23 Comments

ग़ज़ल : कहीं तो टूटके सीने से दिल बिखरा हुआ होगा

बहर : हज़ज़ मुसम्मन सलीम

१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,

तुझे भूला हुआ होगा तुझे बिसरा हुआ होगा,

कहीं तो टूटके सीने से दिल बिखरा हुआ होगा,

बदलता है नहीं मेरी निगाहों का कभी मौसम,

असर छोटी सी कोई बात का गहरा हुआ होगा ,

तनिक हरकत नहीं करता सिसकती आह सुन मेरी,

अगर गूंगा नहीं तो दिल तेरा बहरा हुआ होगा,

जिसे अब ढूंढती है आज के रौशन जहाँ में तू,

तमस की गोद में बिस्तर बिछा पसरा हुआ होगा,

चली आई मुझे…

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Added by अरुन 'अनन्त' on August 18, 2013 at 10:30pm — 15 Comments

तुम प्रेम प्रतिज्ञा भूल गई

तुम प्रेम प्रतिज्ञा भूल गई,

मैं भूल गया दुनिया दारी,

पहले दिल का बलिदान दिया,

हौले - हौले धड़कन हारी.

खुशियाँ घर आँगन छोड़ चली,

तुम मुझसे जो मुँह मोड़ चली,

मैं अपनी मंजिल भटक गया,

इन दो लम्हों में अटक गया,

मुरझाई खिलके फुलवारी,

हौले - हौले धड़कन हारी.

मन व्याकुल है बेचैनी है,

यादों की छूरी पैनी है,

नैना सागर भर लेते हैं,

हम अश्कों से तर लेते हैं,

हर रोज चले दिल पे…

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Added by अरुन 'अनन्त' on August 6, 2013 at 9:30am — 7 Comments

ग़ज़ल : कहानी तुम अमर कर दो

बहर : हज़ज मुरब्बा सालिम
१२२२, १२२२

दिवाना दिल जिगर कर दो,
इधर भी तो नज़र कर दो,

फलक से चाँद लाऊं मैं,
इशारा तुम अगर कर दो,

अकेले रास्ता मुश्किल,
सुहाना तुम सफ़र कर दो,

हजारों मैं ग़ज़ल कह दूँ,
सरल थोड़ी बहर कर दो,

पिला दो हाँथ से अपने,
सुधा बेशक जहर कर दो,

मुहब्बत मैं अजय कर दूँ,
कहानी तुम अमर कर दो...

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by अरुन 'अनन्त' on August 3, 2013 at 10:30am — 16 Comments

ग़ज़ल : अरुन शर्मा 'अनन्त'

उमर भर साथ तू शामिल रही परछाइयों में,

सहा जाता नहीं है दर्द-ए-दिल तन्हाइयों में,

जरा सी बात पे रिश्ता दिलों का तोड़ते हैं,

उतर पाते नहीं जो प्यार की गहराइयों में,

भला इन्सान कोई दूर तक दिखता नहीं है,

बुराई घुल रही तेजी से है अच्छाइयों में,

जमीं ही रोज जीवनदान देती है सभी को,

जमीं ही रार बोती है सगे दो भाइयों में,

निगाहों को दिखाकर ख्वाब ऊँचें आसमां का,

गिराते लोग हैं धोखे से गहरी खाइयों…

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Added by अरुन 'अनन्त' on July 30, 2013 at 8:30pm — 22 Comments

ग़ज़ल : हुई है सभ्यता गायब

बहर : हज़ज़ मुरब्बा सालिम

......... १२२२, १२२२ .........

अलग बेशक हुए मजहब,

सभी का एक लेकिन रब,

नज़र में एक से उसके,

भिखारी हो भले साहब,

जिसे जितनी जरुरत है,

दिया उसको उसे वो सब,

सभी को एक सी शिक्षा,

खुदा का बाँटता मकतब,

(मकतब : विद्यालय)

मुसीबत में पुकारे जो,

चले आयें बने नायब,

(नायब : सहायक)

अजब ये दौर आया की,

हुई है सभ्यता…

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Added by अरुन 'अनन्त' on July 25, 2013 at 9:23pm — 13 Comments

छोटी बहर की ग़ज़ल : अजब ये रोग है दिल का

बहर : हज़ज मुरब्बा सालिम

       1222, 1222

परेशानी बढ़ाता है,

सदा पागल बनाता है,

अजब ये रोग है दिल का,

हँसाता है रुलाता है,

दुआओं से दवाओं से,

नहीं आराम आता है,

कभी छलनी जिगर कर दे,

कभी मलहम लगाता है,

हजारों मुश्किलें देकर,

दिलों को आजमाता है,

गुजरती रात है तन्हा,

सवेरे तक जगाता है,

नसीबा ही जुदा करता,

नसीबा ही मिलाता…

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Added by अरुन 'अनन्त' on July 18, 2013 at 10:30am — 20 Comments

ग़ज़ल : वही खिलते हुए फूलों सा तेरा मुस्कुराना हो

बहर: हज़ज मुसम्मन सालिम

वही दिलकश नज़ारा हो वही मौसम सुहाना हो,

वही खिलते हुए फूलों सा तेरा मुस्कुराना हो,

जुबां से कह नहीं पाया नज़र से तुम नहीं समझी,

बताना हो बड़ा मुश्किल कठिन उससे छुपाना हो,

पलटकर देखना तेरा ग़लतफ़हमी सही मेरी,

इसी धोखे के चलते बेवजह हँसना हँसाना हो,

अदा इक तो सनम कातिल खुदा से तुमने है पाई,

गिरे बिजली मेरे दिल पे जो तेरा भीग जाना हो,

चुराने आँखों से काजल फलक से आ गए…

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Added by अरुन 'अनन्त' on July 17, 2013 at 12:00pm — 41 Comments

ग़ज़ल : अब बगावत जिंदगी से मौत है करने लगी

बहरे रमल मुसमन महजूफ

2122, 2122, 2122, 212

पापियों के पाप से देखो धरा भरने लगी

अब बगावत जिंदगी से मौत है करने लगी,

ढोंगियों की भीड़ है अपराधियों का राज है,

सत्यता इंसानियत इंसान में मरने लगी,

रंग बदला रूप बदला और…

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Added by अरुन 'अनन्त' on June 26, 2013 at 2:43pm — 20 Comments

आल्हा छंद - प्रथम प्रयास

गड़ गड़ करता बादल गर्जा, कड़की बिजली टूटी गाज

सन सन करती चली हवाएं, कुदरत हो बैठी नाराज

पलक झपकते प्रलय हो गई, उजड़े लाखों घर परिवार

पल में साँसे रुकी हजारों, सह ना पाया कोई वार

डगमग डगमग डोली धरती, अम्बर से आई बरसात

घना अँधेरा छाया क्षण में, दिन…

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Added by अरुन 'अनन्त' on June 24, 2013 at 3:00pm — 22 Comments

मत्तगयन्द सवैया - अरुन शर्मा 'अनन्त'

आदि अनादि अनन्त त्रिलोचन ओम नमः शिव शंकर बोलें
सर्प गले तन भस्म मले शशि शीश धरे करुणा रस घोलें,
भांग धतूर पियें रजके अरु भूत पिशाच नचावत डोलें
रूद्र उमापति दीन दयाल डरें सबहीं नयना जब खोलें

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by अरुन 'अनन्त' on June 24, 2013 at 10:59am — 23 Comments

ग़ज़ल : अरुन शर्मा 'अनन्त'

फाईलु / फाइलातुन / फाईलु / फाइलुन

वज्न : २२१, २१२२, २२१, २१२

नैनो के जानलेवा औजार से बचें,

करुणा दया ख़तम दिल में प्यार से बचें,



पत्थर से दोस्त वाकिफ बेशक से हों न हों,

है आइना फितरती दीदार से बचें,

आदत सियासती है धोखे से वार की,

तलवार से डरे ना सरकार से बचें,

गिरगिट की भांति बदले जो रंग दोस्तों,

जीवन में खास ऐसे किरदार से बचें,

नफरत नहीं गरीबों के वास्ते सही,

यारों सदा दिमागी बीमार से…

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Added by अरुन 'अनन्त' on June 8, 2013 at 1:00pm — 14 Comments

ग़ज़ल: हिंदी को भूल इंग्लिश में वाव हो रहा है...

भीषण विनाशकारी बदलाव हो रहा है,

मासूमियत पे जमकर पथराव हो रहा है,

आदत बदल रही है फितरत बदल रही है,

रिश्तों में प्यार का भी अभाव हो रहा है,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on May 22, 2013 at 10:00pm — 8 Comments

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