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Nilesh Shevgaonkar's Blog (182)

ग़ज़ल नूर की -कुछ थे अधूरे काम सो आना पड़ा हमें.

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कुछ थे अधूरे काम सो आना पड़ा हमें.

फ़ानी बदन में ख़ुद को समाना पड़ा हमें

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जश्न-ए-जहान था ही नहीं अपने वास्ते

आ ही गए तो जश्न मनाना पड़ा हमें.

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फिर जब पहेली मौत…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on January 11, 2024 at 11:53am — 6 Comments

ग़ज़ल नूर की - दफ़्तर में तू पहला दिख

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दफ़्तर में तू पहला दिख

काम न कर पर करता दिख.

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ये बाज़ार का मंतर है

सस्ता बिक पर महँगा दिख.

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कर व्यवहार परायों सा…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on July 31, 2023 at 11:05am — 8 Comments

ग़ज़ल नूर की - नशे में लाख रहूँ पर बहक नहीं सकता

१२१२ ११२२ १२१२ २२ (११२)

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नशे में लाख रहूँ पर बहक नहीं सकता

लबों से तल्ख़ियाँ दिल की मैं बक नहीं सकता.

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मुझे ये डर है बयाबान में न खो जाऊं

मैं अपने आप में ज़्यादा भटक नहीं सकता.

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कभी लगे है…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on July 19, 2023 at 3:22pm — 4 Comments

ग़ज़ल नूर की- चाहें किसी को और निबाहें किसी से हम

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221 2121 1221 212 



चाहें किसी को और निबाहें किसी से हम

ख़ुश होईये कि हो ही गए आदमी से हम.

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वो आते इस से क़ब्ल दवा काम कर गई

उकता गए हकीम की चारागरी से हम.

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दीवार पर लगी हुई तस्वीर है अना

पीछे से झाँकती हुई इक छिपकली से हम.  

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बन्दों में और ख़ुदा में अजब घालमेल है

हम से ही वो बना है, बने हैं उसी से हम.

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सूरज नहीं हैं हम जो किसी रात से डरें

लड़ते रहेंगे सुब्ह तलक तीरगी से हम.

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दुनिया की दौड़…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 28, 2023 at 5:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल नूर की - अँधेरे पल में ख़ुद के ‘नूर’ का दीदार हो जाना

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अँधेरे पल में ख़ुद के ‘नूर’ का दीदार हो जाना

ये ऐसा है कि दुनियावी बदन के पार हो जाना.

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कई सदियों से बस किरदार बन कर थक चुका हूँ मैं

मेरी है मुख़्तसर ख़्वाहिश कहानी-कार हो जाना.

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दुआ है, जान है जब तक मेरा ये जिस्म चल जाए

बहुत रंजीदा करता है यूँ ही बेकार हो जाना.  

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जिन्हें मैं जोड़ने में रोज़ थोड़ा टूट जाता था

उन्हें भी रास आया है मेरा मिस्मार हो जाना.     (तक़ाबुले रदीफ़ स्वीकर करते हुए)

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मेरी बातें वही…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 19, 2023 at 5:15pm — 6 Comments

ग़ज़ल नूर की - बनें जब तक बना कर हम रखेंगे इस ज़माने से

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बनें जब तक बना कर हम रखेंगे इस ज़माने से

फिर इक दिन लौट जाएँगे चले थे जिस ठिकाने से.  

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अँधेरे की हुकूमत यूँ तो चारों सिम्त फैली है

मगर वो काँप जाता है दीये के टिमटिमाने से.

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तो फिर दरिया तो क्या मैं इक समुन्दर भी बहा देता

अगर बिछड़ा कोई मिलता हो अश्कों के बहाने से.

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कई बरसों से मैं बस उन की ही महफ़िल में जाता हूँ

जिन्हें कुछ फ़र्क़ पड़ता हो मेरे आने न आने से.

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बड़प्पन ये कि औरों से लकीर अपनी बड़ी रक्खें

नहीं बढ़ता किसी…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 14, 2023 at 1:00pm — 2 Comments

ग़ज़ल नूर की



बारहा साहिल की जानिब लह’र क्यूँ आती रही


सर पटकती पाँव पड़ती रोती चिल्लाती रही.

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ओस में भीगे हुए इक गुल को नज़ला हो गया

देर तक तितली लिपटकर उस को गर्माती रही.

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इक नदी की चाह में रोया समुन्दर ज़ार…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 22, 2023 at 1:08pm — 4 Comments

ग़ज़ल 'नूर' की - कोई हुस्न-परस्त जो अपने रब की बातें करता है

कोई हुस्न-परस्त जो अपने रब की बातें करता है

तिल की बातें करता है या लब की बातें करता है.

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दिल तो फिर भी धड़कन धड़कन सब की बातें करता है

ज़ह’न है साहूकार फ़क़त मतलब की बातें करता है.

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लड़ते लड़ते दुश्मन से भी हो जाता है इश्क़ अजब

जुगनू भी अक्सर दीये से शब् की बातें करता है.

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इक मुद्दत से यार! चलन से बाहर है ये लफ़्ज़-ए-वफ़ा  

दिल नादान मुअर्रिख़ जैसा; कब की बातें करता है.                         मुअर्रिख़- इतिहास-कार…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on April 13, 2023 at 4:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल नूर की- नहीं जो था होना वो सब हो रहा है

नहीं जो था होना वो सब हो रहा है

निज़ाम-ए-ख़ुदा में ग़ज़ब हो रहा है.

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इबादत में कैसा शग़ब हो रहा है                  शग़ब- कोलाहल 

धड़क-कर ये दिल बे-अदब हो रहा है.

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ज़रूरी नहीं कोई मक़सद हो अपना…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 2, 2023 at 5:44pm — 12 Comments

ग़ज़ल नूर की- दर्द है तो कभी दवा है ये



दर्द है तो कभी दवा है ये,

इश्क़ है या कि मोजज़ा है ये.

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जो बिख़रने का सिलसिला है ये

ख़ुशबू होने ही की सज़ा है ये.

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हम जो रोते हैं कुफ़्र होता है

मज़हब-ए-इश्क़ में मना है ये.

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अपनी ताक़त को वो समझता है  

हुस्न के साथ मसअला है ये.

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ख़त भला तेरा मैं जलाऊँगा?

आँसुओं से भभक गया  है ये.

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हम तो फिरऔन इसको कहते हैं

ये समझता रहे ख़ुदा है ये. 

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ग़म यहीं है यहीं कहीं होगा

तेरे देखे से छुप…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on September 29, 2022 at 11:30am — 17 Comments

ग़ज़ल नूर की- ज़ुल्फ़ों को ज़ंजीर बना कर बैठ गए

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ज़ुल्फ़ों को ज़ंजीर बना कर बैठ गए

किस किस को हम पीर बना कर बैठ गए.

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यादें हम से छीन के कोई दिखलाओ

लो हम तो  जागीर बना कर बैठ गए.  

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दुनिया की तस्वीर बनानी थी हम को

हम तेरी तस्वीर बना कर बैठ गए.  

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मौक़ा रख कर भेजा था नाकामी में

आप जिसे तक़दीर बना कर बैठ गए.

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मैंने कॉपी में इक चिड़िया क्या मांडी

दुनिया वाले तीर बना कर बैठ गए.

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चलती फिरती मूरत देख के हम नादाँ

मंदिर की तामीर बना कर बैठ गए.

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हँसते…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on January 23, 2022 at 9:02am — 2 Comments

ग़ज़ल नूर की- कहीं ये उन के मुख़ालिफ़ की कोई चाल न हो

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कहीं ये उन के मुख़ालिफ़ की कोई चाल न हो

सो चाहते हैं कि उन से कोई सवाल न हो.

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कोई फ़िराक़ न हो और कोई विसाल न हो

उठे वो मौज कि अपना हमें ख़याल न हो.   

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तेरी तलब में हमें वो मक़ाम पाना है

कि लुट भी जाएँ तो लुट जाने का मलाल न हो.

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हमें सफ़र जो ये बख़्शा है क्या बने इसका

न हो उरूज अगर इस में या ज़वाल न हो.

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बशर न हो तो ख़ुदा भी न हो जहाँ में कोई 

न हो जहाँ में ख़ुदा तो कोई वबाल न हो.

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मैं चाहता हूँ ये दुनिया वहाँ…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on January 12, 2022 at 9:00am — 4 Comments

ग़ज़ल नूर की - उस के नाम पे धोखे खाते रहते हो

,

उस के नाम पे धोके खाते रहते हो

फिर भी उस के ही गुण गाते रहते हो.

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उस के आगे बोल नहीं पाते हो तुम

मैं बोलूँ तो हाथ दबाते रहते हो.

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कोई नया इस दुनिआ में कब आता है

तुम ही जा कर वापस आते रहते हो.

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तुम को वापस अपने घर भी जाना है

क्यूँ दुनिआ से लाग  लगाते रहते हो.

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अक्सर मिलता है वो इन्साँ पूजता है 

वो जिस को तुम ख़ुदा बताते रहते हो.

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वाइज़ जी क्या तुम ने वो सब सीख लिया 

हम को जो कुछ तुम समझाते रहते…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 27, 2021 at 8:30am — 8 Comments

ग़ज़ल नूर की- कहीं से उड़ के परिन्दे कहीं पे उतरे हैं

कहीं से उड़ के परिन्दे कहीं पे उतरे हैं  

ख़ुदा से हो के ख़फ़ा हम ज़मीं पे उतरे हैं.

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तुम्हारे ढब से मिली बारहा जो रुसवाई  

हर एक बात पे हाँ से नहीं पे उतरे हैं.

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हमारी आँखों की झीलें भी इक ठिकाना है     

तुम्हारी यादों के सारस यहीं पे उतरे हैं.

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हमारी फ़िक्र से नीचे फ़लक मुहल्ला है  

ये शम्स चाँद सितारे वहीं पे उतरे हैं.  

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हज़ारों बार ज़मीं ने ये माथा चूमा है

उजाले सजदों के मेरे जबीं पे उतरे हैं.  

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निलेश "नूर"…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 22, 2021 at 10:30pm — 10 Comments

ग़ज़ल नूर की --- ग़म-ए-फ़िराक़ से गर हम दहक रहे होते

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ग़म-ए-फ़िराक़ से गर हम दहक रहे होते

तो आफ़ताब से बढ़कर चमक रहे होते.

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बदन की सिगड़ी के शोलों पे पक रहे होते

वो मेरे साथ अगर सुब्ह तक रहे होते.

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तेरी शुआओं को पीकर बहक रहे होते

मेरी हवस को मेरे होंट बक रहे होते.

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सुकून मिलता हमें काश जो ये हो जाता

कि हम भी यार के दिल की कसक रहे होते.   

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तेरी नज़र से उतरना भी एक नेमत है

वगर्न: आँखों में सब की खटक रहे होते.

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लबों का रस हमें मिलता तो शह’द होते हम

अगर जो…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 10, 2021 at 6:31pm — 20 Comments

ग़ज़ल नूर की - मेरी ज़ीस्त की कड़ी धूप ने मुझे रख दिया है निचोड़ कर

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मेरी ज़ीस्त की कड़ी धूप ने मुझे रख दिया है निचोड़ कर,

अभी शाम ढलने ही वाली थी कोई चल दिया मुझे छोड़ कर.

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मैं था मुब्तिला किसी ख़ाब में किसी मोड़ पर ज़रा छाँव थी

उसे ये भी रास न आ सका सो जगा गया वो झंझोड़ कर.

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मेरे दिल में अक्स उन्हीं का था उन्हें ऐतबार मगर न था 

कभी देखते रहे तोड़ कर कभी दिल की किरचों को जोड़ कर.   

.

जो  किताब ए ज़ीस्त में  शक्ल थी वो जो नाम था मुझे याद है  

वो जो पेज फिर न मैं पढ़ सका जो रखा था मैने ही मोड़ कर.  …

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Added by Nilesh Shevgaonkar on November 18, 2021 at 5:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल नूर की - क्या ही तुझ में ऐब निकालूँ क्या ही तुझ पर वार करूँ

क्या ही तुझ में ऐब निकालूँ क्या ही तुझ पर वार करूँ

ये तो न होगा फेर में तेरे अपनी ज़ुबाँ को ख़ार करूँ.

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हर्फ़ों से क्या नेज़े बनाऊँ क्या ही कलम तलवार करूँ

बेहतर है मैं ख़ुद को अपनी ग़ज़लों से सरशार करूँ.

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ग़ालिब ही के जैसे सब को इश्क़ निकम्मा करता है

लेकिन मैं भी बाज़ न आऊँ जब भी करूँ दो चार करूँ.

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चन्दन हूँ तो अक्सर मुझ से काले नाग लिपटते हैं

मैं भी शिव सा भोला भाला सब को गले का हार करूँ.

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सब से उलझना तेरी फ़ितरत और मैं इक आज़ाद मनक…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on November 9, 2021 at 3:30pm — 10 Comments

ग़ज़ल नूर की - ज़ुल्म सहना छोड़ कर इन्कार करना सीख ले

ज़ुल्म सहना छोड़ कर इन्कार करना सीख ले

है अगर ज़िन्दा पलटकर वार करना सीख ले.   

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एक नुस्ख़ा जो घटा देता है हर दुःख की मियाद

सच है जैसा वैसा ही स्वीकार करना सीख ले.

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मज़हबों के खेल में होगी ये दुनिया और ख़राब 

अपने रब का दिल ही में दीदार करना सीख से.

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तन है इक शापित अहिल्या चेतना के मार्ग पर

राम सी ठोकर लगा.. उद्धार करना सीख ले.

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नफ़रतों की बलि न चढ़ जाए तेरी मासूमियत

मान इन्सानों को इन्सां प्यार करना सीख ले.

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लग न…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on November 7, 2021 at 7:30pm — 15 Comments

ग़ज़ल नूर की - हाँ में हाँ मिलाइये

हाँ में हाँ मिलाइये
वर्ना चोट खाइए.
.
हम नया अगर करें
तुहमतें लगाइए.
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छन्द है ये कौन सा
अपना सर खुजाइये
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मीर जी ख़ुदा नहीं
आप मान जाइए.
.
कुछ नये मुहावरे
सिन्फ़ में मिलाइये.
.
कोई तो दलील दें
यूँ सितम न ढाइए.
.
हम नये नयों को अब
यूँ न बर्गलाइये.
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नूर है वो नूर है
उस से जगमगाइए.    .
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Added by Nilesh Shevgaonkar on November 5, 2021 at 8:32pm — 9 Comments

ग़ज़ल नूर की - ग़ज़लों का आनन्द समझ में आ जाए

ग़ज़लों का आनन्द समझ में आ जाए

काश तुन्हें यह छन्द समझ में आ जाए.

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संस्कृत से फ़ारस का नाता जान सको

लफ्ज़ अगर गुलकन्द समझ में आ जाए.

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रस की ला-महदूदी को पहचानों गर

फूलों का मकरन्द समझ में आ जाए.

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दिल में जन्नत की हसरत जो जाग उठे

हों कितना पाबन्द समझ में आ जाए.

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भीषण द्वंद्व मैं बाहर का भी जीत ही लूँ

पहले अन्तर-द्वन्द समझ में आ जाए.

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मन्द बुद्धि का मन्द समझ में आता है

अक्ल-मन्द का मन्द समझ में आ जाए.…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on November 1, 2021 at 6:00pm — 8 Comments

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