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Nilesh Shevgaonkar's Blog – December 2013 Archive (5)

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'-जब कि हर इक फ़ैसला मंज़ूर है

२१२२/२१२२/२१२ 

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जब कि हर इक फ़ैसला मंज़ूर है,

फिर भी वो कहता हमें मगरूर है.

.

दोष है फ़ितरत का, ज़ख्मों का नहीं,

ज़ख्म जो प्यारा है वो नासूर है.   

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ख़ासियत कुछ भी नहीं उसमे, फ़क़त,

वो मेरा क़ातिल है सो मशहूर है.

.

नब्ज़ मेरी थम गयी तो क्या हुआ,

जान मुझ में आज भी भरपूर है.

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जिस्म है बाक़ी हमारे दरमियाँ,

पास है, लेकिन अभी हम दूर है.

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बात अब उनसे मुहब्बत की न कर,

लोग समझेंगे, नशे में चूर है.…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 20, 2013 at 5:00pm — 27 Comments

कटाक्ष -हे ईश्वर ...

हे ईश्वर

.

जूते का फीता बांधकर जैसे ही उठा, सामने किसी अपरचित को खड़ा देख मै चौक गया. लगा की मै सालों से उसे जानता हूँ पर पहचान नहीं पा रहा हूँ. बड़े संकोच से मैंने पूछा-" आप--", मै अपना प्रश्न पूरा करता इस-से पहले ही उन्होंने बड़ी गंभीर आवाज़ में कहा -" मै ईश्वर हूँ".

उन की गंभीर वाणी में कुछ ऐसा जादू था की मुझे तुरंत विश्वास हो गया की मै इस पूरी कायनात के मालिक से रूबरू हूँ. मैंने खुद को संभाला और अपे स्वभाव के अनुरूप उन पर प्रश्नों की झड़ी लगा दी.…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 17, 2013 at 8:30am — 9 Comments

ग़ज़ल-निलेश'नूर'-न समझो लड़ाई वो हारा हुआ है

१२२/१२२/१२२/१२२ 



न समझो लड़ाई वो हारा हुआ है,

उसे हारने का इशारा हुआ है.

***

उसे चाँद तारों की संगत मिली थी,

वो आवारगी में हमारा हुआ है.

***

मरूँगा, बचूंगा, नहीं है पता ये,

मगर वार दिल पे, करारा हुआ है.

***

बचा है वो ऐसे, जिसे डूबना था,      

कि फिर कोई तिनका सहारा हुआ है.  

***

सिकुड़ने लगा है मेरा आसमां अब,

नज़र से नज़र तक, नज़ारा हुआ है. 

***

वो आतिशफिशा था, मगर अब ये…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 12, 2013 at 9:17am — 44 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'-ऐब खुद में ....

ऐब खुद के ढूंढकर उनसे किनारा कर लिया,

उस जहाँ के वास्ते थोडा सहारा कर लिया.

...

एक पल पर्दा हटा, आँखें खुली बस एक पल,  

क्या ही था वो एक पल, क्या क्या नज़ारा कर लिया.

...

दर्द हद से बढ़ गया, लेनें लगा फिर जान जब,

दर्द हम जीने लगे उसको ही चारा कर लिया.

...

इक तरफ़ तो मौत थी औ इक तरफ़ बेइज्ज़ती,

और हम करतें भी क्या, मरना गवारा कर लिया.

...

वो हमारे दिल को तोड़ें, था हमें मंज़ूर कब,

हमने ही खुद दिल को अपने पारा पारा कर…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 5, 2013 at 7:00am — 17 Comments

ग़ज़ल -निलेश 'नूर' -लोग फिर

ग़ज़ल 

लोग फिर बातें बनाने आ गए,

यार मेरे, दिल दुखाने आ गए. 

...

जिंदगी का ज़िक्र उनसे क्या करूँ,

मौत को जो घर दिखाने आ गए.

...

रूठनें का लुत्फ़ आया ही नहीं,

आप पहले ही मनाने आ गए. 

...

दो घडी बैठो, ज़रा बातें करो,

ये भी क्या बस मुँह दिखाने आ गए.

...

जेब अपनी जब कभी भारी हुई,      

लोग भी रिश्ते निभाने आ गए.

...

राह से गुज़रा पुरानी जब कभी,

याद कुछ चेहरे पुराने आ गये. …

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 2, 2013 at 8:00am — 19 Comments

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