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Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"'s Blog – September 2015 Archive (11)

मैं आज अपने दिल के ज़ज़्बात भर कहूँगा

फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन

2212 122 2212 122



मैं आज अपने दिल के ज़ज़्बात भर कहूँगा।

तुम पास आज बैठो मैं बात भर कहूँगा।



तुम मुस्कुराके सुनना, मुझे गुनगुनानें देना।

ग़ज़लों में इस हृदय के हालात भर कहूँगा।



ज़ुल्फ़ों के बादलों से ये चाँद झाँकने दो।

तुम चाँदनी बिखेरो मैं रात भर कहूँगा।।



छलका रही हो मदिरा,मयकदे नज़र से।

मधु रस की सिर्फ इसको बरसात भर कहूँगा।।



बेसुध हुआ हूँ ऐसे जैसे कोई शराबी।

मदिरा ए हुश्न की मैं सौगात भर… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 29, 2015 at 11:30pm — 14 Comments

तभी हुई है ग़ज़ल ( इस्लाह के लिये)

म'फ़ा'इ'लुन फ़'इ'लातुन म'फ़ा'इ'लुन फ़ा'लुन

1212 1122 1212 112



सजल नयन से नदी उतरी तो हुई है ग़ज़ल।

जो पीर वाली फसल निखरी तो हुई है ग़ज़ल।।



न पूछो मिलती किधर हमको जी प्रेरणा ये कहाँ ।

हंसी प्रियम के अधर बिखरी तो हुई है ग़ज़ल।।



कभी कहीं जो सुवासित हवायें बहनें लगी।

जो रूपसी कहीं सव्री तो हुई है ग़ज़ल।।



कोई पथिक जो चला जीवन की इस कठिन सी डगर।।

किसी के सिर पे पड़ी गठरी तो हुई है ग़ज़ल।।



कहीं पे रिश्ता जो नाता है भंग होता कभी।

जो… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 26, 2015 at 12:00am — 14 Comments

आप से इस हृदय का अनुबंध तोड़ा ना गया

2122 2122 2122 212

प्रीत या अनुराग का अनुबंध कब तोड़ा गया।

इस हृदय का आप से सम्बन्ध कब तोड़ा गया।।



तोड़ देता किस तरह से साँस अपनी ही स्वयं।

धड़कनों पर आपका प्रतिबन्ध कब तोड़ा गया।।



तोड़ देता किस तरह से साँस अपनी ही स्वयं।

धड़कनों पर आपका प्रतिबन्ध कब तोडा गया।।



गीत मैं सुर हो तुम्हीं हाँ शब्द मैं सरगम तुम्हीं।।

इस पुरुष का तुझ प्रकृति से बन्ध कब तोड़ा गया।।



राजपथ पर ख़्वाब के हो हमसफ़र बस एक तुम।

तुझसे अरमानों का सब गठबन्ध कब तोड़ा… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 23, 2015 at 8:00pm — 12 Comments

इखलास का ईनाम गरल कर के चल दिए

221 2121 1222 212
इखलास के ख़याल गरल कर के चल दिए।
अरमाने दिल तमाम तरल कर के चल दिए।।

शमशीरे ज़फ़ा ऐसे चली दिल के शहर पे
चुन चुन के सारे ख़ाब मसल कर के चल दिए।।

मेरी वफ़ा ए इश्क़ की कीमत तो देखिये।
चैन ओ सुकून में ही ख़लल कर के चल दिए।।

मेरे खुदा ए इश्क़ की रहमत तो देखिये।
सज़दे सलाम सारे विफल कर के चल दिए।।

अपनी भी आदतों को कहाँ हम बदल सके।
उनके करम कलम से ग़ज़ल कर के चल दिए।।

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 15, 2015 at 3:30pm — 15 Comments

मैं ग़ज़ल लिखूँ चाहे जो बह्र है काफ़िया बस एक तू।।

2121 22 2212 2212 2212

जो निगाहे हाला का है असर वो साक़िया बस एक तू।

मैं ग़ज़ल लिखूँ चाहे जो बह्र है काफ़िया बस एक तू।।



तेरे हुश्न साग़र में ये मेरा मन उतर कर तैरता।

इस मेरे इश्कां की नाव का है नाहिया बस एक तू।।



मेरा मन किसी भी दूजी बगिया में न अब जाता कभी।

मेरी इन निग़ाहों के ख़ाब की है बादिया बस एक तू।।





मेरी सांस हो मेरी आस मेरी धड़कनों की प्यास में।

मेरी ज़िन्दगी का हसीनतम है सानिया बस एक तू।।



तेरे नाम से होती सुबह तेरे नाम से… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 15, 2015 at 3:00pm — 5 Comments

जहाँ को अमिय से भिगोने चला हूँ

मयक़श हूँ मैं आज, जीने चला हूँ।

ग़म भर के अपने, सीने चला हूँ।

मैं अंगूरी मदिरा का, आशिक नहीं हूँ।

गरल इस ज़माने के, पीने चला हूँ।।



मन वेदना से, पिघलने लगा है।

नैनों से दरिया, निकलनें लगा है।

कहीं पर भी दिल को, राहत नहीं है।

किसी नाज़नीं की, ये चाहत नहीं है।



जमानें को देने, नगीने चला हूँ।

गरल इस जमानें के, पीने चला हूँ।।



कहीं भूख से, छटपटाता कोई तन।

कभी टीन-छत से, टपकता जो सावन।

किसी आँख में जब, झलकती विवशता।

कोई बाप… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 12, 2015 at 2:12pm — 5 Comments

मैं नदिया के पार क्षितिज के पास मिलूँगा

मैं नदिया के पार क्षितिज के पास मिलूंगा।

यादों की फुलवारी में बन सांस मिलूंगा।।



पास नहीं हम दोनों लेकिन सपने तो हैं।

जब सोचोगी मैं बनकर एहसास मिलूंगा।।



काजल की रेखाएं बनकर मैं आँखों में।

घुंघरू की आवाज़ें बनकर मैं पावों में।

प्रथम किरण के संग तेरी अरदास करूंगा।

यादों की फुलवारी में बन सांस मिलूंगा।।



तेज धूप से तुझे बचाता बादल बनकर।

रिमझिम रिमझिम झरता हुआ सा सावन बनकर।

प्रिय तुझसे मैं तो बनकर बरसात मिलूंगा।

यादों की फुलवारी… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 12, 2015 at 1:04pm — 2 Comments

है दूर मन्ज़िल घना तिमिर है

121 22 12122 12122 12122



है दूर मन्ज़िल घना तिमिर है कलम की राहें अग़र कठिन हैं।

नहीं थकेंगे कदम हमारे हमारा व्रत भी मगर कठिन है।।



चलो उठाओ तमाम बातें जवाब सारा कलम से होगा।

चले भले ही कदम अभी कम पता है हमको सफ़र कठिन है।।



मना ले जश्नां मज़े उड़ा ले ज़माने फिर भी सलाम तुझको।

सलाम वापस इधर ही होंगे हालाँकि तुमसे समर कठिन है।।



दुआएं उनको जो साथ में हैं दुआ उन्हें भी जो घात पर हैं।

मगर बता दूँ हताश ना कर प्रयास का हर असर कठिन… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 11, 2015 at 11:44pm — No Comments

बंजारा

एक मुसाफ़िर नगर नगर में देखो घूमता, है बंजारा।

हर बस्ती की सरहद को बस छूके लौटता, है बंजारा।।  

रमें कहाँ पर बसे कहाँ पर स्थिर खुद को करे कहाँ पर।

डेरा अपना कहाँ जमाये ठौर ढूँढता, है बंजारा।।  

प्यासा प्यासा बादल बरखा को दर दर बस ढूँढ़ रहा है।

पानी पानी अपने जीवन का रस खोजता, है बंजारा।।  

सोच रहा है अपना नसीबा अपने करम से कहाँ बिगाड़ा।

रफ़ के पन्नों जैसी पुस्तक खुद ही बाँचता, है बंजारा।।

 

किस पर क्रोध करेगा…

Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 10, 2015 at 5:15am — 7 Comments

तू ग़ज़ल लिखे चाहे जो बह्र, अशआर में वो ज़ुरूर है।।(ग़ज़ल इस्लाह के लिये)

कोई हर्फ़ लब पे न हो भले, इज़हार में वो ज़ुरूर है।

तू ग़ज़ल लिखे चाहे जो बह्र, अशआर में वो ज़ुरूर है।।



ये भी खूब है हाँ खूब है, मुरझा रहे हो तुम यहाँ।

जिस हुश्ने उपवन की तलब, हाँ बहार में वो ज़ुरूर है।।



जो कभी गले से मिला नहीं, सर वो ही शानों पे ढूँढता।

तू गज़ब सितम खुद पर करे, तेरी हार में वो ज़ुरूर है।।



यहाँ रात का पल जल रहा, वहाँ ख़्वाब नैनों में पल रहा।

जो पिघल रहा तेरी आँखों से, मिला प्यार में वो ज़ुरूर है।।



ये खुली पलक दहलीज़ पर, यूँ ही… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 8, 2015 at 6:30pm — 16 Comments

जब तक लोभ नहीं त्यागोगे भारत नहीं सुधरने वाला

2 2 22 12122 2212 12222

कुछ भी नारा भले लगा लो, कुछ भी नहीं बदलनें वाला।

जब तक हम खुद ना सुधरेंगे, भारत नहीं सुधरनें वाला।।



मन तो स्वार्थ राग में डूबा, तन को बस आराम सुहाये।

जन जन जब तक नहीं जगेगा, भारत नहीं उबरनें वाला।।



हिन्दू मुस्लिम चिल्लाओ सब, राम रहीम भले गाओ सब।

जब तक लोभ नहीं त्यागोगे, भारत नहीं निखरनें वाला।।



जब तक हिंसा नफरत का, कारोबार प्रगति पर है।

तब तक किसी हाल में अपना, भारत नहीं सम्भलनें वाला।।



सरकारें सब ठीक… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 1, 2015 at 4:30pm — 10 Comments

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