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Kanta roy's Blog – December 2015 Archive (4)

परख / लघुकथा

" आइये ,अपनी कुर्सी पर विराज लीजिए   ।" इतना तंज ! ऐसे कह गये वे जैसे उसके सिर पर ही बैठने वाली हो ।



"जी , अब काम समझा दिजीए कि मेरा काम क्या होगा यहाँ ?" उनके लहजे से अपमानित सा महसूस कर रही थी । क्या इनके साथ ही काम करना होगा उसे ? कैसे झेलेगी ? हृदय रूआँसा हो रहा था ।



" अरे ,आप क्या काम करेंगी ? आप तो बस पगार उठा कर ऐश करेंगी , काम तो हमें करना होगा ।" वह चिढ़ कर बोला ।



"मतलब ?" सुनकर अनमना उठी । सतीश आप कैसे झेलते रहे होंगे ऐसे लोगों को , पति की याद में…

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Added by kanta roy on December 22, 2015 at 11:30am — 4 Comments

भारत स्वच्छ बनाना है / एक कोशिश

स्वच्छता की शपथ लेकर,घर- घर अलख जगाना है

भारत स्वच्छ बनाना है, आदर्श देश बनाना है-----------

नागरिक की भागीदारी, जन-सेवा की अब तैयारी

स्वच्छता की जिम्मेदारी , जन-जन की हो भागीदारी

जन-आँदोलन स्वच्छता के , नाम पर चलाना है

भारत स्वच्छ बनाना है ,आदर्श देश बनाना है ------------------

स्वच्छता ही सम्पदा है ,बात यह तुम जान लो

सड़कों ,गलियों की सफाई ,अभियान यह ठान लो

सुव्यवस्थित शौचालय ,कचरा ठिकाने लगाना है

भारत स्वच्छ बनाना है ,आदर्श देश…

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Added by kanta roy on December 16, 2015 at 1:45pm — 1 Comment

अधजली (लघुकथा)

क्या कसूर था उसका ? मन बेबस हो ,बार - बार डायरी के पन्ने पर लिखे उसके नाम पर जाकर ठहर जाती थी। एकटक देखती जाती ,मानो नाम में उसके अक्स दिखते हों , इबारत कर रही थी वह ....! अंगुलियों को फिराते हुए सहला रही थी उन जख्मों को भी , जो वह दे गया था ।

"उमाsss ! कहाँ भावमग्न हो रही है तु ?"

"कहीं नहीं रे ? "- उसने चौंक कर डायरी बंद कर ली , शायद फिर से चोरी पकड़ी गई थी । जिगरी थी और बरसों से रूम पार्टनर भी।

"तुमने सीधी माँग काढ़ ली ? फिर से…

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Added by kanta roy on December 15, 2015 at 1:00pm — 7 Comments

कागज़ का गाँव ( लघुकथा )

 जीप में बैठते ही मन प्रसन्नता से भर रहा था। देश में वर्षों बाद वापसी , बार -बार हाथों में पकडे पेपर को पढ़ रही थी , पढ़ क्या रही थी , बार -बार निहार रही थी। सरकार ने पिछले दस साल से इस प्रोजेक्ट पर काम करके रामपुरा जैसी बंज़र भूमि को हरा -भरा बना दिया है।गाँव की फोटो कितनी सुन्दर है , मन आल्हादित हो रहा था। उसका गाँव मॉडल गाँव के तौर पर विदेशों में कौतुहल का विषय जो है ! बस अब कुछ देर में गाँव पहुँचने ही वाली थी। दशकों पहले सुखा और अकाल ने उसके पिता समेत गाँव वालो को विवश कर दिया था गावं…

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Added by kanta roy on December 4, 2015 at 3:00pm — 17 Comments

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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