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Naveen Mani Tripathi's Blog – October 2017 Archive (7)

याद आ जाती है फिर उलझी कहानी आपकी

2122 2122 2122 212

जब कभी भी देखता हूँ वो निशानी आपकी ।

याद आ जाती है फिर उलझी कहानी आपकी ।।



आज मुद्दत बाद ढूढा जब किताबों में बहुत ।

मिल गयी तस्वीर मुझको वह पुरानी आपकी।।



बेसबब इनकार कर देना मुहब्बत को मेरे ।

कर गई घायल मुझे वो सच बयानी आपकी ।।



याद है वह शेर मुझको जो लिखा था इश्क़ में ।।

फिर ग़ज़ल होती गई पूरी जवानी आपकी ।।



इक शरारत हो गई थी जब मेरे जज़्बात से ।

हो गईं आँखें हया से पानी पानी आपकी ।।



कुछ अना से कुछ… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 24, 2017 at 12:16am — 16 Comments

ग़ज़ल पास रह गया मेरे है , आपका कलाम भी

*212 1212 1212 1212*



आपकी ही रहमतों से मिल गई वो शाम भी ।

कुछ अदा छलक उठी है कुछ नज़र से जाम भी ।।

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ढूढ़िये न आप अब मेरे उसूल का चमन ।

दिल कभी जला यहां तो जल गया मुकाम भी ।।

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नज्र कर दिया गुलाब तो हुई नई ख़ता ।

हुस्न आपका बना गया उसे गुलाम भी ।

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जब चिराग… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 14, 2017 at 11:01pm — 7 Comments

उसी का तसव्वुर पढ़ा जा रहा है

एक लंबी ग़ज़ल 30 शेर के साथ



122 122 122 122

अगर आप में कुछ सलीका बचा है ।

तो फिर आप से भी मेरी इल्तिजा है ।।



रकीबों की महफ़िल में क्या क्या हुआ है ।

सुना आपका ही तो जलवा रहा है ।।



यूँ रुख़ को पलट कर चले जाने वाले ।

बता दीजिए क्या मुहब्बत ख़ता है ।।



हया को खुदा की अमानत जो समझे ।

उन्हें ही सुनाई गई क्यों सजा है ।।



अगर दिल में आये तो रहना भी सीखो ।

मेरी तिश्नगी का यही मशबरा है ।।



मुख़ालिफ़ हुई ये हवाएं चमन… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 14, 2017 at 10:30pm — 17 Comments

ग़ज़ल

2122 1212 22

उस से मिलकर तुझे हुआ क्या है ।

पूछते लोग माजरा क्या है ।।



सच बताने पे आप क्यूँ रोये ।

आइने से हुई ख़ता क्या है ।।



है तबस्सुम का राज क्या उनके ।

आंख में गौर से पढा क्या है ।।



अश्क़ हैं बेहिसाब हिस्से में ।

ज़श्न के वास्ते बचा क्या है ।।



इस तरह रोकिये नहीं मुझको ।

पूछिये मत मेरा पता क्या है ।।



आप मतलब की बात करते हैं ।

आपके साथ फायदा क्या है ।।



छोड़िये बात आप भी उसकी ।

उसकी बातों में… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 11, 2017 at 9:00am — 13 Comments

वफ़ा के साथ यकीनन है वास्ता मेरा

1212 1122 1212 22

अलग है बात रखा नाम बेवफा मेरा ।।

वफ़ा के साथ यकीनन है वास्ता मेरा ।।



मेरे गुनाह का चर्चा है शह्र में काफी ।

तमाम लोग सुनाते हैं वाक्या मेरा ।।



नज़र नज़र से मिली और होश खो बैठा ।

उसे भी याद है उल्फत का हादसा मेरा ।।



वो आसुओं से भिगोते ही जा रहे दामन ।

पढा जो खत है अभी ,था वही लिखा मेरा ।



फ़िजा के पास रकीबों का हो गया पहरा ।

बढ़ा रही हैं हवाएं भी फ़ासला मेरा ।।



गरीब हूँ मैं शिकायत भी क्या करूँ उनकी… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 5, 2017 at 9:23am — 4 Comments

ग़ज़ल - मिलते कहाँ हैं लोग भी होशो हवास में

221 2121 1221 212



ठहरी मिली है ज़िंदगी उनके गिलास में ।

मिलते कहाँ हैं लोग भी होशो हवास में ।।



देकर तमाम टैक्स नदारद है नौकरी ।

अमला लगा रखा है उन्होंने विकास में ।।



सरकार सियासत में निकम्मी कही गई ।

रहते गरीब लोग बहुत भूँख प्यास में ।।



बेकारियों के दौर गुजरा हूँ इस कदर ।

घोड़ा ही ढूढता रहा ताउम्र घास में ।।



यूँ ही तमाम कर लगे हैं जिंदगी पे आज ।

रहना हुआ मुहाल है अपने निवास में ।।



कितने नकाब डाल के मिलने… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 4, 2017 at 5:06pm — 13 Comments

ग़ज़ल

221 2121 1221 212



ठहरी मिली है ज़िंदगी उनके गिलास में ।

मिलते कहाँ हैं लोग भी होशो हवास में ।।



देकर तमाम टैक्स नदारद है नौकरी ।

अमला लगा रखा है उन्होंने विकास में ।।



सरकार सियासत में निकम्मी कही गई ।

रहते गरीब लोग बहुत भूँख प्यास में ।।



बेकारियों के दौर गुजरा हूँ इस कदर ।

घोड़ा ही ढूढता रहा ताउम्र घास में ।।



यूँ ही तमाम कर लगे हैं जिंदगी पे आज ।

रहना हुआ मुहाल है अपने निवास में ।।



कितने नकाब डाल के मिलने… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 4, 2017 at 3:38pm — 3 Comments

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