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Naveen Mani Tripathi's Blog – September 2018 Archive (3)

ग़ज़ल



2122 2122 2122 212

भूख से मरता रहा सारा ज़माना इक तरफ़ ।

और वह गिनता रहा अपना ख़ज़ाना इक तरफ़ ।।

बस्तियों को आग से जब भी बचाने मैं चला ।

जल गया मेरा मुकम्मल आशियाना इक तरफ ।।

कुछ नज़ाक़त कुछ मुहब्बत और कुछ रुस्वाइयाँ ।

वह बनाता ही रहा दिल में ठिकाना इक तरफ ।।

ग्रन्थ फीके पड़ गए फीका लगा सारा सुखन ।

हो गया मशहूर जब तेरा फ़साना इक तरफ ।।…

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Added by Naveen Mani Tripathi on September 28, 2018 at 12:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल

2122 1212 22



सोचिये  मत   यहाँ  ख़ता  क्या  है ।

है  इशारा   तो   पूछना   क्या  है ।।

अब मुक़द्दर पे छोड़ दे  सब  कुछ ।

सामने    और   रास्ता   क्या   है ।।

वो   किसी  और  का  हो  जाएगा ।

बारहा   उसको  देखता  क्या   है ।।

गर है जाने की ज़िद तो जा तू  भी ।

अब  तेरा  हमसे  वास्ता  क्या  है ।।

इतना  …

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Added by Naveen Mani Tripathi on September 25, 2018 at 3:16am — 12 Comments

जो गिरफ़्तार है जुल्फों में वो फरार कहाँ



2122 1122 1212 22



इक ज़माने से गुलिस्ताँ में है बहार कहाँ ।

जान करता है गुलों पर कोई निसार कहाँ ।।

बारहा पूछ न मुझसे मेरी कहानी तू ।

अब  तुझे  मेरी  सदाक़त पे ऐतबार कहाँ ।।

एक मुद्दत से कज़ा का हूँ मुन्तजिर साहब ।

मौत पर मेरा अभी तक है इख़्तियार कहाँ ।।

आपकी थी ये बड़ी भूल मान जाते हम ।

दिख रहे आप…

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Added by Naveen Mani Tripathi on September 7, 2018 at 12:20am — 7 Comments

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