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Dr.Prachi Singh's Blog – October 2015 Archive (2)

चाँद वरदान दे.... करवाचौथ पर ख़ास ( डॉ० प्राची सिंह)

ओढ़नी ओढ़ कर मैं पिया प्रेम की

प्रार्थना कर रही, चाँद वरदान दे

 

मन महकता रहे प्रीत की गंध से

दो हृदय एक हों प्रेम के बंध से

प्रीत अक्षय सदा भाग्य अनुपम मिले

जिस्म दो हैं मगर एक ही जान दे...

ओढ़नी ओढ़ कर...

 

मैं पिया के हृदय में सदा ही रहूँ

वो ही सागर मेरे, मैं नदी सी बहूँ

चाँद, हर इक नज़र से बचाना उन्हें

दीर्घ आयु सदा मान-सम्मान दे

ओढ़नी ओढ़ कर...

 

मेंहदी हाथ में रच महकती रहे

और लाली…

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Added by Dr.Prachi Singh on October 30, 2015 at 2:30pm — 18 Comments

मूक अंतर्वेदना............... (डॉ० प्राची सिंह)

मूक अंतर्वेदना स्वर को तरसती रह गयी

आँख सागर आँसुओं का सोख पीड़ा सह गयी

 

मानकर जीवन तपस्या अनवरत की साधना

यज्ञ की वेदी समझ आहूत की हर चाहना

मन हिमालय सा अडिग दावा निरा ये झूठ था 

उफ़! प्रलय में ज़िंदगी तिनके सरीखी बह गयी

मूक अंतर्वेदना....

 

खोज कस्तूरी निकाली रेडियम की गंध में

स्वप्न का आकाश भी ढूँढा कँटीले बंध में

दिख रही थी ठोस अपने पाँव के नीचे ज़मीं

राख की ढेरी मगर थी भरभरा कर ढह गयी

मूक…

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Added by Dr.Prachi Singh on October 26, 2015 at 9:30am — 11 Comments

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