For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

September 2019 Blog Posts (70)

फिर से जी लूँ ... अतुकांत कविता

ज़िम्मेदारियों में उलझी ज़िंदगी,

सरक-सरक कर गुज़रने लगी।

हादसों का सिलसिला ऐसा चला,

उम्र का अहसास गहराता गया।

उड़ने की ख़्वाहिश और सारे ख़्वाब,

कहीं घुप अंधेरे में आंखें मूंदे बैठ गए।

अचानक तेज़ हवा के झोंके ने,

यूँ छू दिया कि नये अरमान उमड़ पड़े।

इस लम्बी रात का सुंदर सवेरा हुआ,

बादल छँट गए, इंद्रधनुष ने रंग बिखेरे।

फिर से जी लूँ, दिल ने तमन्ना की,

ऐ हवा के हसीं झोंके, रूख़ ना बदल लेना…

Continue

Added by Usha on September 23, 2019 at 3:22pm — 3 Comments


मुख्य प्रबंधक
ग़ज़ल

घोघा रानी, कितना पानी ।

बदला मौसम, बरसा पानी ।।

डूब गई गली और सड़कें ।

नगर निगम का उतरा पानी ।।

सब कुछ अच्छा करते दावा ।

नही बचा आँखों का पानी ।।

गंगा कोशी पुनपुन गंडक ।

सब नदियों में उफना पानी ।।

मैं तो हूँ गंगा का बेटा ।

पितरों को भी देता पानी ।।

नगर हुआ मेरा स्मार्ट सिटी ।

उठा गरीब का दाना पानी ।।

जल दूषित से उनको क्या है ?

वो पीते बोतल का पानी…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2019 at 12:30pm — 7 Comments

क्या सोचते हैं हम — डॉo विजय शंकर

सोचता हूँ ,

अब तो यह भी सोचना पड़ेगा

कि कैसे सोचते हैं हम ?

कितनी सीमाओं में सोचते हैं हम ?

या किस सीमा तक सोचते हैं हम ?

कुछ सोचते भी हैं हम ?

अगर नहीं तो क्यों नहीं सोचते हैं हम ?

सच तो यह है कि ' बिना विचारे जो करे ' .....

भी नहीं सोचते हैं हम।

खुद में गज़ब का विश्वास रखते है हम ?

बस सोचने में क्रियाशील रहते हैं हम ,

जितनी तेजी से आगे जाते हैं

उतनी हे तेजी से लौट आते हैं।

नतीज़तन वहीं के वहीं रह जाते हैं हम।…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 23, 2019 at 10:01am — 6 Comments

देखा इतना दर्द दिलों का इस बेदर्द ज़माने में(६४)

देखा इतना दर्द दिलों का इस बेदर्द ज़माने में

बस थोड़ा सा वक़्त बचा है सैलाबों को आने में

**

अपनापन का जज़्बा खोया और मरासिम भी टूटे

कंजूसी करते हैं सारे थोड़ा प्यार दिखाने में

**

उनकी फ़ितरत कैसी होगी ये अंदाज़ा मुश्किल है

जिनको खूब मज़ा आता है गहरी चोट लगाने में

**

वादा पूरा करना अपना इस सावन में आने का

वरना दिलबर क्या रक्खा है सावन आने जाने में

**

बात…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 23, 2019 at 7:30am — 6 Comments

फिर से जी लूँ ... अतुकांत कविता

ज़िम्मेदारियों में उलझी ज़िंदगी,

सरक-सरक कर गुज़रने लगी।



हादसों का सिलसिला ऐसा चला,

उम्र का अहसास गहराता गया।



उड़ने की ख़्वाहिश औ सारे ख़्वाब,

कहीं घुप अंधेरे में आंखें मूंदे बैठ गए।



अचानक तेज़ हवा के झोंके ने,

यूँ छू दिया कि नये अरमान उमड़ पड़े।



इस लम्बी रात का सुंदर सवेरा हुआ,

बादल छँट गए, इंद्रधनुष ने रंग बिखेरे।



फिर से जी लूँ, दिल ने तमन्ना की,

ऐ हवा के हसीं झोंके, रूख़ ना बदल लेना ।

मौलिक…

Continue

Added by Usha on September 22, 2019 at 2:14pm — 2 Comments

उदास बैठे हैं - सलीम रज़ा रीवा

1212 1122 1212 22

जो मेरी छत पे कबूतर उदास बैठे हैं

वो तेरी याद में दिलबर उदास बैठे हैं



तुम्हारी याद के लश्कर उदास बैठे हैं

हसीन ख़्वाब के मंज़र उदास बैठे हैं



तमाम गालियाँ हैं ख़ामोश तेरे जाने से

तमाम राह के पत्थर उदास बैठे हैं



बिना पिए तो सुना है उदास रिंदों को

मियाँ जी आप तो पी कर उदास बैठे हैं 



ज़रा सी बात पे वो छोड़ कर गया मुझको…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on September 20, 2019 at 11:00pm — 4 Comments

नहीं अच्छा है यूँ मजबूर होना- ग़ज़ल

1222 1222 122
नहीं अच्छा है यूँ मजबूर होना
दिखो नजदीक लेकिन दूर होना।

कली का कुछ समय को ठीक है, पर
नहीं अच्छा चमन, मगरूर होना।

अँधेरों में उजालों को दे रस्ता
चिरागों का न थकना चूर होना

कोई कहता इसे वरदान है ये
खले लेकिन किसी को हूर होना।

अभी सूखा नहीं रख ले तसल्ली
दिखेगा ज़ख्म का नासूर होना।

कदम तो चूम लेगी जीत तेरे
है बाकी बस तुझे मंजूर होना।

मौलिक अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 20, 2019 at 2:00pm — 2 Comments

"जब तुम्हारें शह्र में आना हुआ"

2122 2122 212

इस कदर था इश्क़ में डूबा हुआ।

चढ़ गया सूली पे वो हँसता हुआ।।

अब कहूँ क्या इश्क़ में क्या क्या हुआ।

हर कदम पर इक नया धोखा हुआ।।

जब किसी को इश्क़ में धोखा हुआ।

फिर उसे देखा नहीं हँसता हुआ।।

क्या बताऊँ मैं तुझे क्या क्या हुआ।

है मेरा जीवन बहुत उलझा हुआ।।

और कुछ तेरे सिवा दिखता नहीं।

इस कदर मैं तेरा दीवाना हुआ।।

मानता कब है किसी की बात वो।

वक़्त जिसका हो बुरा आया…

Continue

Added by surender insan on September 20, 2019 at 1:00pm — 2 Comments

नज़रिया - लघुकथा ---

नज़रिया - लघुकथा ---

अमर अपने सहपाठी के साथ घर से लगे लॉन में क्रिकेट खेल रहा था। उसके मित्र को प्यास लगी तो अमर अंदर पानी लेने चला गया। इसी बीच अमर की विधवा बुआजी तुलसी के पत्ते  लेने बाहर आईं।

"ए लड़के कौन हो तुम? यहाँ क्या कर रहे हो?"

"मैं अमर के साथ पढ़ता हूँ। उसने ही बुलाया था।"

"अमर के सभी दोस्तों को जानती हूँ।तुम्हें तो कभी नहीं देखा।"

"हाँ आँटी, मैं पहली बार आपके यहाँ आया हूँ।"

"क्या नाम हैं तुम्हारा?"

"असगर अली।"

"तुम मुसलमान…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on September 19, 2019 at 8:32pm — 2 Comments

ग़ज़ल-लालफीताशाही-बृजेश कुमार 'ब्रज'

मंच को प्रणाम करते हुए ग़ज़ल की कोशिश

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन

लालफीताशाही कितनी मिन्नतों को खा गई

ये व्यवस्था  ढेर  सारे  मरहलों  को खा गई

ये  कहा था  साहिबों  ने घर नये  देंगे  बना

साब की दरियादिली भी झोपड़ों को खा गई

अब तरक़्क़ी की बयारें इस क़दर काबिज़ हुईं

पेड़ तो काटे  जड़ों से कोपलों  को खा गई

कुछ गवाही दे रही है मयक़दे की रहगुज़र

मयकशी हँसते हुये कितने घरों को खा गई

भूख  से बेहाल…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 19, 2019 at 2:29pm — 9 Comments

दु:स्वप्न (लघुकथा )

‘सीते ---- ?’

‘कौन --- स्वामी ?’

‘नही मैं अभाग्य हूँ I’

‘ तो मुझसे क्या चाहती हो ?’

‘मैं कुछ चाहती नहीं , मैं तो तुम्हे सावधान करने आयी हूँ I ‘

‘किस बात के लिए ?’

‘तुम्हारा राम से बिछोह होगा I…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 19, 2019 at 2:00pm — 6 Comments

वे ही सन्त होते हैं

करो कितना विवेचन

शैलियों , पांडित्य का, लेकिन

भावों के धरातल पर ही

गौतम बुद्ध बनते हैं

हुए तर्कों , वितर्कों से परे

वे शुद्ध हो गए

प्रकृति के सब प्रपंचों से 

निरुद्ध , प्रबुद्ध हो गए

जो खेलें दूसरों की गरिमा से

उन्मत्त होते हैं

सदा जो प्रेम से भरपूर

वे ही सन्त होते हैं

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on September 18, 2019 at 10:30pm — 1 Comment

दीप बुझा करते है जिसके चलने पर - गजल( लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर')

२२२२/२२२२/२२२


अश्क पलक से भीतर रखना सीख लिया
गम थे बेढब फिर  भी हँसना सीख लिया।१।


जख्म दिए  हैं  जब से  हँसकर  फूलों ने
काँटों को भी फूल हैं कहना सीख लिया।२।


कदम- कदम  पर  खंजर  रक्खे  अपनों  ने
हम भी शातिर जिन पर चलना सीख लिया।३।


दीप बुझा  करते  है  जिसके चलने पर
उस आँधी से हमने जलना सीख लिया।४।


उनकी कोशिश  थी  पत्थर से अटल रहें
नदिया बनकर हम ने बहना सीख लिया।५।


मौलिक/अप्रकाशित

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 18, 2019 at 7:29pm — 4 Comments

व्यस्तता- लघुकथा

"अब गांव चलें बहुत दिन बिता लिए यहाँ", शोभाराम ने जब पत्नी ललिता से कहा तो जैसे उनके मुंह की बात ही छीन ली.

लेकिन बेटे और बहू से क्या कहेंगे, गांव पर तो कोई रहता नहीं था,पट्टीदारों के अलावा. वैसे वहां पर अपने हिसाब से जीने की आज़ादी थी लेकिन यहाँ भी तो है ही, कोई बंधन नहीं है. उनके दिमाग में कई दिनों से यह सब घूम रहा था.

"अच्छा यह बताओ, आखिर क्या कह कर गांव जाओगे. बेटा तो यही कहकर शहर लाया था कि गांव में अकेले रहते हैं, कौन है जो आपका अकेलापन बाँटने के लिए", ललिता के सवाल पर लाजवाब हो…

Continue

Added by विनय कुमार on September 17, 2019 at 7:36pm — 6 Comments

क्षणिकाएं —डॉo विजय शंकर

एक नेता ने दूसरे को धोया ,
बदले में उसने उसे धो दिया।
छवि दोनों की साफ़ हो गई।।.......1.

मातृ-भाषा हिंदी दिवस ,
एक उत्सव हम ऐसा मनाते हैं ,
जिसमें हम हिंदी बोलने वालों से
उनकीं माँ का परिचय कराते हैं।। .......2 .

अपनों से हट के कभी
दूर के लोगों से भी मिला करो ,
वो कुछ देगा नहीं ... ,
हाँ ,धोखा भी नहीं देगा।l ....... 3 .

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on September 17, 2019 at 10:30am — 8 Comments

हिंदी...... कुछ क्षणिकाएं :

हिंदी...... कुछ क्षणिकाएं :

फल फूल रही है

हिंदी के लिबास में

आज भी

अंग्रेज़ी

वर्णमाला का

ज्ञान नहीं

शब्दों की

पहचान नहीं

क्या

ये हिंदी का

अपमान नहीं

शोर है

ऐ बी सी का

आज भी

क ख ग के

मोहल्ले में

शेक्सपियर

बहुत मिल जायेंगे

मगर

हिंदी को संवारने वाले

प्रेमचंद हम

कहाँ पाएँगे

हम आज़ाद

फिर हिंदी क्यूँ

हिंग्लिश की…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 16, 2019 at 4:07pm — 10 Comments

अन्तस्तल

भीतर तुम्हारे

है एक बहुत बड़ा कमरा

मानो वहीं है संसार तुम्हारा

वेदना, अतृप्ति, विरह और विषमता

काले-काले मेघ और दुखद ठहराव

इन सब से भरा यह कमरा बुलाता है तुमको

जानती हूँ यह भी कि इस कमरे से तुम्हारा

रहा है बहुत पुराना गहरा गोपनीय रिश्ता  

इस आभासी दुनिया के मिथ्यात्व से दूर होने को

तुम कभी भी किसी भी पल धीरे हलके-हलके

अपराध-भाव-ग्रस्त मानों फांसी के फंदे पर झूलते

बिना कुछ बोले उस कमरे में जब भी…

Continue

Added by vijay nikore on September 16, 2019 at 9:39am — 6 Comments

गजल

जुबां से फूल झड़ते हैं मगर पत्थर उछालें वे

गजब दिलदार हैं, महबूब हैं बस खार पालें वे।1

लगाते आग पानी में, हमेशा ही लगे रहते

बुझे क्यूँ रार की बाती, नई तीली निकालें वे।2

दिलों की आग जब उठकर दिलों को यूँ बुलाती है

करेंगे और क्या बस शीत जल हर बार डालें वे।3

समझना हो गया मुश्किल चलन अब के रफ़ीकों का

सियाही लिख नहीं सकती है' कितना रोज सालें वे।4

हकीकत फासलों में कैद होकर छटपटाती है

सुनेंगे तो नहीं कुछ गाल जितना भी बजालें वे।5

"मौलिक व…

Continue

Added by Manan Kumar singh on September 16, 2019 at 8:10am — 6 Comments

ये ज़ीस्त रोज़ सूरत-ए-गुलरेज़ हो जनाब(६३)

ये ज़ीस्त रोज़ सूरत-ए-गुलरेज़ हो जनाब

राह-ए-गुनाह से सदा परहेज़ हो जनाब

**

मंज़िल कहाँ से आपके चूमें क़दम कभी

कोशिश ही जब तलक न जुनूँ-ख़ेज़ हो जनाब

**

क्या लुत्फ़ ज़िंदगी का लिया आपने अगर

मक़सद ही ज़िंदगी का न तबरेज़ हो जनाब

**

मुमकिन कहाँ कि ज़िंदगी की पीठ पर कभी

लगती किसी के ग़म की न महमेज़ हो जनाब

**

उस जा पे फ़स्ल बोने की ज़हमत न कीजिये

जिस जा अगर ज़मीं ही न ज़रखेज़ हो…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 15, 2019 at 4:00pm — 2 Comments

मातृभाषा हिन्दी

हिन्दी में हम पढ़े लिखेंगे, हिन्दी ही हम बोलेंगे।
हिन्दी को घर-घर पँहुचाकर, हिन्द द्वार हम खोलेंगे।
सकल हिन्द के हित में हिन्दी,सबको यह बतलायेंगे
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, हिन्दी को फैलायेंगे।।
शर्मसार अपनी हिन्दी को, कभी नहीं होने देंगे।
हिन्दी है सम्भार हिन्द की, इसे नहीं खोने देंगे।
भ्रांत मनुज के गहन तिमिर को,दूर भगाएगी हिन्दी।
कटु विषाद मन जनित व्याधि को,सदा मिटाएगी हिन्दी।।
हिन्दी बिना हिन्द की…
Continue

Added by डॉ छोटेलाल सिंह on September 14, 2019 at 8:15pm — 4 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Sanjay Shukla जी, बहुत आभार आपका। ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया।"
17 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Euphonic Amit जी, बहुत आभार आपका। ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया।"
18 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Dinesh Kumar जी, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई है। "
19 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Richa यादव जी, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई। इस्लाह से बेहतर हो जाएगी ग़ज़ल। "
24 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' ji, अच्छा प्रयास हुआ ग़ज़ल का। बधाई आपको। "
28 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Chetan Prakash ji, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। सुझावों से निखार जाएगी ग़ज़ल। बधाई। "
32 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, ख़ूब ग़ज़ल रही, बधाई आपको। "
36 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय जी। सादर अभिवादन स्वीकार करें। ग़ज़ल तक आने व प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार"
55 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Sanjay जी, अच्छा प्रयास रहा, बधाई आपको।"
57 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Aazi ji, अच्छी ग़ज़ल रही, बधाई।  सुझाव भी ख़ूब। ग़ज़ल में निखार आएगा। "
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकारें बाक़ी गुणीजनों की इस्लाह से और निखर जायेगी"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Mahendra Kumar ji, अच्छी ग़ज़ल रही। बधाई आपको।"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service