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August 2015 Blog Posts (185)

देशद्रोह (लघुकथा)

खुद को देशभक्त समझने वाले राम ने रहीम से कहा, “तुमने देशद्रोह किया है।”

रहीम ने पूछा, “देशद्रोह का मतलब?”

राम ने शब्दकोश खोला, देशद्रोह का अर्थ देखा और बोला, “देश या देशवासियों को क्षति पहुँचाने वाला कोई भी कार्य।”

बोलने के साथ ही राम के चेहरे का आक्रोश गायब हो गया और उसके चेहरे पर ऐसे भाव आए जैसे किसी ने उसे बहुत बड़ा धोखा दिया हो। न चाहते हुए भी उसके मुँह से निकल गया, “हे भगवान! इसके अनुसार तो हम सब....।”

रहीम के होंठों पर मुस्कान तैर…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 1, 2015 at 12:30pm — 35 Comments

कुछ प्रश्न कचोटते हैं

पूरा घर सम्हालती बेटियाँ क्यों ससुराल आते ही

ऐसी लापरवाह हो जाती हैं कि चूनर आग पकड़ लेती है

खिलखिलाती बेटियाँ क्यों इतनी अवसन्न हो जाती हैं

कि ज़हर खा लेती हैं या पंखे से झूल जाती हैं

जिनके लिये आँसू बस रूठने का सबब हुआ करते थे

अब वे बेटियाँ हँसते हुए भी क्यों रो देती हैं

धर्म कर्म  रीति नीति की बातें बहुत होती हैं

हर मंदिर में सुबह सवेरे देवी पूजित होती है

फिर क्यों उन्हीं बंद द्वारों के पीछे

लालच की वेदी पर निर्दोष हवि होती…

Continue

Added by Tanuja Upreti on August 1, 2015 at 11:30am — 9 Comments

गजल

गजल
2212 2212
हर बार मजहब मत उठा,
नाचीज अब भौं मत चढा।
जो हो न कुछ, तो मत बजा,
आका, कभी कुछ मत बना।
रोटी पकी, अब चुप रहो,
जनता जली,जन मत जला।
झंडे उठा तू था गया,
दे कर उसे, तूने छला।
मजहब भला करता कि वह
हरदम रहा मरता चला?
ढोते रहे बस भार-से,
ईमान तो उनकी बला।
बोले कि मानेंगे सभी
मजहब,कभी बातें भला?
उसने कहा आगे न जा,
तेरी धता,फिर भी चला।
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

Added by Manan Kumar singh on August 1, 2015 at 9:38am — 2 Comments

गजल

यक्षोवाच-

गजल

2122 2122 212

मेघ खबरें अब न ले जाते वहाँ?

बरसते भी अब न,वे आते वहाँ?

भाव मेरे नाम तेरे ले गये,

क्या पता क्या गीत वे गाते वहाँ।

झाँक लेना तू कभी जब मेघ हो,

बाँच लेना तू फुहारें हे वहाँ।

कामिनी तू, काम मैं,ले कामना

मचलता हूँ,बात पहुँचाते वहाँ?

पवन को दी है उसाँसें,उड़ चला,

देख लेना,श्वास उर भाते वहाँ?

दिल धड़का जब,खबर होगी वहाँ,

देख अब ये कब पहुँचाते वहाँ।

सूखकर काँटा हुईं अब पुतलियाँ,

बरस जातीं जो सजल… Continue

Added by Manan Kumar singh on August 1, 2015 at 8:30am — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
बिगड़ता है किसी का क्या?---(मिथिलेश वामनकर)

1222--1222—1222--1222

 

लगे बोली सियासत में, भला आम-आदमी का क्या?

निजाम-ए-मुल्क जो कह दे मगर इस अबतरी का क्या?                                 

 

अगर दो वक़्त की…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on August 1, 2015 at 5:00am — 26 Comments

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