हसीं गालों पे जो चमके, नगीना उसको कहते हैं.
घनीं जुल्फों से जो टपके, तो मीना उसको कहते हैं.
यूँ कहने को तो मयखाने में, लाखों रोज़ पीते हैं.
जो छलके गहरी आँखों से, तो पीना उसको कहते हैं.
मचल जाता फिजा का दिल, हसीं जुल्फें बिखरने से.
जो पत्थर को भी पिघला दे, हसीना उसको कहते हैं.
ख़ुशी में हंसना- खुश होना, जहां में सबको आता है.
मगर जो हँस के गम सह ले, तो सीना उसको कहते हैं.
महलों के गलीचों पे पसीना, आता है पुरी.
मगर खेतों में जो बहता, पसीना उसको कहतें…
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Added by satish mapatpuri on August 20, 2010 at 4:02pm —
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समझ ना सका मैं तेरे दर पर लगी कतारों से,
रोशनी की उम्मीद कर बैठा गर्दिशमय सितारों से।
हमसफर ही तंग दिल मिला था मुझको,
किस कदर फरीयाद करता मैं इन बहारों से।
कौन रूकेगा इस सरनंगू शजर के नीचे,
जो खुद टिका हो बेजान इन सहारों से।
आंखों के आब को अजान देते रहते हैं जो,
लम्हा-लम्हा मांगता रहा समर इन रेगजारों से।
नामो-निशां भी मिटा चुका हूं तेरा इस दिल से,
तो किस कदर गुजरू तेरे दर के रहगुजारों से।
मेरी चाहत तो खला में खो…
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Added by Harsh Vardhan Harsh on August 20, 2010 at 2:06am —
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चल रहा है पग पर राही
अकेला है ,अलबेला है
मंद कर तू पग रे राही
अकेला है ,अलबेला है |
कहने को तू मौजी है अल्हड ,बेपरवाह
क्या जल्दी है बोल रे राही
अकेला है ,अलबेला है |
जरा कर पीछे लोचन रे राही
अकेला है ,अलबेला है |
अपने तेरे छुट गए है
क्यों दोस्त क्या तेरे कोई नहीं है
जीवन रस में पग रे राही
क्यों अकेला है ,क्यों अलबेला है ?
......रीतेश सिंह
Added by ritesh singh on August 19, 2010 at 11:30pm —
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हाँ --कहा--- प्यार का इजहार किया था तुमसे --
हाँ ---कहो --- तुमने भी प्यार किया था हमसे
कसम खुदा की ईमान भी दे देते हम '
कसम खुदा की ये जान भी दे देते हम
उम्र भर अपनी पलकों पे बिठाये रखते '
सारी दुनियां की निगाहों से छुपाये रखते|
मगर अफ़सोस हमारा इरादा टूट गया'
उम्र भर साथ निभाने का वादा टूट गया
अय मेरे दोस्त नया घर तुझे मुबारक हो
नई दुनिया नया शहर तुझे मुबारक हो |
हमारा क्या है दिल पे एक जख्म और सही'
प्यार की…
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Added by jagdishtapish on August 19, 2010 at 10:33pm —
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डॉन फ्रेजर तू उसी आस्ट्रेलिया की हैं ,
जो भारतीयों पर आतंकियों सा हमला करते हैं ,
तुम्हारे देश वाले शर्म से क्यों नहीं मरते हैं ,
शर्म हो तो फिर आवाज मत उठाना ,
तू बहिस्कार की बात करती हैं ,
मैं कहता हु तुम जैसे कायरो की जरुरत नहीं हैं ,
हिंदुस्तान अतिथियो को भगवान मानता हैं ,
तुम जैसे कायरो को दूर से सलाम करता हैं ,
Added by Rash Bihari Ravi on August 19, 2010 at 4:30pm —
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अधिवक्ता और नेता
"जिन्हें मालूम है गरीबों की झोपड़ी जली कैसे? वही पूछते हैं ये हादसा हुआ कैसे?"
ये पंकितियाँ किसी शायर के मन में उमड़े उस व्यंगात्मक पहलू को दर्शाती हैं की जानते हुए भी पूछते हैं. इन्होने चाहे जिस मंशा से लिखा हो पर एक अधिवक्ता के नाते में इन पंकित्यों को ऐसे देखती हूँ की जानते तो हैं पर बात की तह तक पहुचना चाहते हैं ताकि कोई निर्दोष महज शको - शुबहा के आधार पर दोषी ना घोषित हो जाये.
अधिवक्ता का अर्थ होता है अधिकृत वक्ता, जब हमें कोई व्यक्ति अधिकार देता है तो…
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Added by alka tiwari on August 19, 2010 at 4:30pm —
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کهن جانگه
कहाँ जाएँगे
कश्ती मंझधार में है बचकर कहाँ जाएंगे
अब तो लगता है ऐ-दिल डूब जाएँगे
कोई आएगा बचाने ऐसा अब दौर कहाँ
अब तो चाहकर भी साहिल पे ना आ पाएँगे
हमनें सोचा था संवर जाएगी हस्ती अपनी
उनके दिल में ही बसा लेंगे बस्ती अपनी
इस भंवर में पहुँचाया हमें अपनों ने ही
अब इस तूफां से क्या खाक बच पाएँगे
अपनी बेबसी पे ऐ-कुल्लुवी क्या बहाएँ आंसू
वक़्त जो बच गया अब उसको कैसे काटूं
चंद लम्हों में यह 'दीपक' भी बुझ जाएगा
हम भी…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 19, 2010 at 4:19pm —
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वाह रे हिंद के लोकतंत्र ,
सब कुछ दिखा दिया ,
तेरे प्रतिनिधियों में भी ,
अब दिखने लगी एकता ,
हम सब समझते हैं,
कारण ?
लुट सको तो लुट लो ,
सदन में जो एक दुसरे को ,
बोलने नहीं देते ,
बच्चो सा लड़ते ,
मूर्खो सा हरकत करते ,
आज है हाथ मिलाते,
कारण ?
लुट सको तो लुट लो ,
वेतन की बात अच्छी हैं ,
सचिव से ज्यादा चाहिए ,
हम इसकी पहल करेंगे ,
मगर इमानदार बन के दिखाइए ,
आते फकीर, बन जाते अमीर,
कारण ?
लुट सको तो…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 19, 2010 at 4:00pm —
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गमन पे उसके एक आवाज़ लगाई न गई |
हाय ये व्यथा, ये कथा जो सुनाई न गई||
लौट जाती वो, मुझे था यकीं, इस बात का भी|
हाय मज़बूरी,ज़बां पे बात ही लाई न गई||
पलों के साथ में कई सदियाँ जी लीं हमने|
एक छोटी बात की अलख, हमसे जगाई न गई||
कह दूँ मैं तो कहीं रुसवा न मुझसे हो बैठे|
ह्रदय की बात मुझसे, उसको बताई न गई||
अब तो मुझसे दूर, बहुत दूर जा चुकी है वो|
'दाग' पर याद की लगी ऐसी की मिटाई न गई||
आशीष यादव "राजा रुपर्शुखम"
Added by आशीष यादव on August 18, 2010 at 7:55pm —
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क्या बोलूँ अब क्या लगता है..
चाहत में घन-पुरवाई है
किन्तु, पहुँच ना सुनवाई है
मेघ घिरे फिर भी ना बरसे तो मौसम ये लगता है.. क्या बोलूँ अब क्या लगता है?!
आस भरा 'थप-थप' चलता था
’ताता-थइया’ उठ गिरता था
आज पिघलती सड़कों पर निरुपाय खड़ा है, लगता है.. क्या बोलूँ अब क्या लगता है?!
ओढ़ गंध बन-ठन जाने का
शोर बहुत है खिल जाने का
लद गई उन्मन डाली भी यों कि अँदेसा लगता है.. क्या बोलूँ अब क्या लगता है?
Added by Saurabh Pandey on August 18, 2010 at 6:00pm —
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कोन कहता ज़िन्दगी इक गम का नाम है
दर्द मैं डूबी हुई दुखों की खान है
मेरी तरह जलो और रोशन करो दुनियां को
फिर देखो यह ज़िन्दगी कितनी हसीन ख्वाब है
दीपक शर्मा कुल्लुवी
09136211486
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 5:47pm —
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मैं
नदी का बहाव नहीं
ना वक्त
मेरी फितरत है
लौटता हूँ
नमी बन
रिसता हूँ
तुम्ही में
***
इधर कविता
पीर की परिधि पर
साकार हो
शब्दों में
भरती रही भाव;
उधर
एक जिंदगी
मेरी कविता को
आकार देती सी
एक
नवजात कविता
आँचल में संजोये,
एक और
नई कविता का
तलाशती धरातल
माथे पे ले तगारी
उतरती
उस गोल घुमावदार
सीढ़ियों से
किसी मौल के
***
Added by Narendra Vyas on August 18, 2010 at 4:27pm —
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ग़ज़ल
تنهى تنهى بيا
तन्हा तन्हा पाया
न उसनें साथ निभाया
न इसने साथ निभाया
जब भी देखा दिल को अपनें
तन्हा तन्हा पाया
कहनें को तो सब थे अपनें
सब तो यही कहते थे
लेकिन जब भी मुड़कर देखा
साथ किसीको ना पाया
कद्र मेरे जज्वातों की
वोह क्या खाक करेंगे
जिनको मुहब्बत नफरत में
फर्क करना ना आया
कोन नहीं चाहता उनकी याद में
बनें ना यादगारें
हमनें अपनी यादों को
सबके दिल…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 3:36pm —
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कितना बदल गया
मेरा शहर कितना बदल गया
मेरे वास्ते अब क्या रहा
मेरा शहर कितना बदल -----
न वोह मंजिलें न वोह रास्ते
जो कभी थे मेरे वास्ते
यहाँ लुट गया मेरा आशियाँ
यहाँ हमसफ़र न कोई रहा
मेरा शहर कितना बदल -----
जो गुजर गया उसे भूल जा
मेरा दिल यह कहता है मान जा
यह वक़्त की सौगात है
मेरा वक़्त अच्छा ना रहा
मेरा शहर कितना बदल -----
अब तो अजनवी सा लगे शहर
रिश्तों में घुल चुका ज़हर
कहने को सब अपनें हैं
अपनापन अब…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 12:41pm —
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अफ़सोस
किनारों पे चलाना मुमकिन नहीं था
डूब जाएंगे हम यह डर था हमें
खुद हमनें किनारों पे मारी थी ठोकर
आज तलक रास्ता मिला ना हमें
हम अपनीं तवाही के कसूरबार खुद हैं
संभल ही सके ना यह ग़म है हमें
यादों के नश्तर तीखे बहुत हें
यह अपनें ही ग़म हैं मंज़ूर है हमें
देखते हैं आइना जब फुर्सत में हम
सोचते हैं अक्सर हुआ क्या हमें
जलाते रहो यूँ भी 'दीपक' हैं हम
और आपकी फ़ितरत का ईल्म है हमें
दीपक शर्मा कुल्लुवी
09136211486
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 12:26pm —
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हमारी हंसी पे न जाओ यारो
दर्द तो मेरे भी दिल में होता है
लेकिन उनके ग़म की मीठी सी चुभन
रोने भी नहीं देती हमें
DEEPAK KULUVI
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 12:25pm —
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نا کارنگه
ना करेंगे
हम दर्द अपना बाँट कर
कुच्छ कम ना करेंगे
जो लिखा है किस्मत में
उसका ग़म ना करेंगे
मिट जाएँगे हंसते हुए
यह जानते हैं हम
बेरुखी पे आपकी
शिकवा ना करेंगे
आपको भी याद तो
आएगी एक दिन
जब ना लगेगा दिल आपका
'दीपक कुल्लुवी' के बिन
आपको हो ना हो
कोई ग़म नहीं
हम तो आपकी मुहब्बत पे
एतवार करेंगे
दीपक शर्मा कुल्लुवी
داپاک شارما…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 12:22pm —
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सुबह-शाम - वह रोज दिखता । देह पर उसके गन्दे फटे चीथड़े जैसे कपड़े होते । कन्धे से एक झोला नुमा लटक रहा होता । शहर की मुख्य सड़क के बड़े चौराहे पर, जहाँ से सबसे अधिक गाड़ियाँ गुजरतीं अल्ल-सुबह से आधी रात तक वह वहीं दिखता । जैसे ही सिग्नल की बत्ती लाल होती, अपनी इकलौती टांग पर कूद-कूद कर हर रुकने वाली गाड़ी की खिड़की पर हाथ से ठोकता, दयनीय भाव से गिड़गिड़ाता, पेट पर हाथ फिराता और भूखा होने का भाव जताता हुआ गाड़ी वालों से पैसे मांगता । उसकी पसन्द लेकिन बड़ी सेलेक्टेड होती । उसके 'आर्डर आफ…
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Added by Neelam Upadhyaya on August 18, 2010 at 11:51am —
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क्या होगा
जहाँ सैक्स स्कैंडल हाकी में
इंजेक्शन लगता लौकी में
अस देश का यारो क्या होगा
वहां पड़ता सबको ही रोना
ओ-ओ-ओ-ओ-ओ-ओ-ओ
जहाँ चौड़ी छाती चोरों की
मौज है रिश्वत खोरों की
अस देश का यारो क्या होगा
वहां पड़ता सबको ही रोना
ओ-ओ-ओ-ओ-ओ-ओ-ओ
जहाँ मिलता सबकुछ नकली है
और गरीब की हालत पतली है
अस देश का यारो क्या होगा
वहां पड़ता सबको ही रोना
ओ-ओ-ओ-ओ-ओ-ओ-ओ
दीपक शर्मा कुल्लुवी
09136211486
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 10:48am —
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ग़ज़ल
حد
हद
ले लो कुछ मेरे भी गम दोस्तों
कब तलक आपके ग़म उठाऊंगा मैं
बह न जाएँ कभी अश्क डर है मुझे
कब तलक अपनें आसूं छुपाऊंगा मैं
आपकी याद जीने ना देगी मुझे
मोत से खुद को कब तक बचाऊंगा मैं
खुदा तो नहीं मैं भी इन्सान हूँ
ज़ख्म सीने में कब तक दबाऊंगा मैं
ना पीने की हमनें कसम तोड़ दी
आपके ख्यालों से कब तक बहलाऊंगा मैं
दीपक शर्मा कुल्लुवी
دبك شارما كلف
09136211486
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2010 at 10:45am —
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