तुमको पढ़ा तुमको जाना तो ये समझ में आया है
कितनी बेकरारी को समेट कर तूने कोई एक शेर बनाया है
रईसी ऐसी की बस इशारों में मुआ हर काम हो जाए
फकीरी ऐसी की जो सब पाकर भी बेइंतजाम हो जाए
हमने सुने है किस्से तेरी बेरुखी की ज़िंदगी से
शोहरत पाकर भी कोई कैसे तुझसा बेनाम हो जाए
लिखा जो तूने कहा जो तूने कोई ना जान सका
तू सभी का है अभी पर तब तुझे कोई ना पहचान सका
आज नज़्में तेरी दासतां बताती है
कैसे…
ContinueAdded by AMAN SINHA on August 6, 2023 at 8:56pm — No Comments
दोहा पंचक
खुद पर खुद का जब नहीं, चलता कोई जोर ।
निर्णय उस इंसान के , पड़ जाते कमजोर ।।
जीवन मधुबन ही नहीं, यहाँ फूल अरु शूल ।
सुख के पथ पर है पड़ी , यहाँ दुखों की धूल ।।
रिश्ते कागज पुष्प से, हुए आज निर्गंध ।
तार -तार सब हो गए, रेशम से अनुबंध ।।
कौन यहाँ पर पारसा, किसे कहें हम चोर ।
सच्चाई की राह में, मचा झूठ का शोर ।।
मीठी लगती चाँदनी, तीखी लगती धूप ।
ढल जाएगा एक दिन, चाँदी जैसा रूप…
Added by Sushil Sarna on August 4, 2023 at 1:06pm — 2 Comments
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तजी
मानस भवन में आरय़जन जिसकी उतारे आरती।
भगवान भारतव्रष में गूंजें हमारी भारती।।
हिंदी साहित्य के राष्ट्र कवि पद्मभूषण से सम्मानित श्री मैथलीशरण गुप्त जी का जन्म ३ अगस्त,१८८५ में उत्तर प्रदेश के जिला झाँसी के चिरगांव में हुआ था.हम सब प्रतिवर्ष जयंती को कवि दिवस के रूप में मनाते हैं.अपनी पहली काव्य रचना 'रंग में भंग'रचने वाले गुप्त जी को मूल्यों के प्रति आस्था के अग्रदूत दद्दा के नाम से विख्यात हुए.इस विख्यात रचनाकार का विषय भारतीय संस्कृति और देश…
Added by babitagupta on August 3, 2023 at 2:01pm — No Comments
दोहा त्रयी : बदनाम
उल्फत में रुसवा हुए, मुफ्त हुए बदनाम ।
आँसू आहों का मिला , इस दिल को ईनाम ।।
शमा जली महफिल सजी, चले जाम पर जाम ।
रिन्दों ने की मस्तियाँ, शाम हुई बदनाम ।।
वफा न जाने बेवफ़ा ,क्या उस पर इल्जाम ।
खाया फरेब इस तरह, इश्क हुआ बदनाम ।।
सुशील सरना / 3-8-23
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 3, 2023 at 1:59pm — No Comments
कौन बाँधे तू बता, बिल्ली ...घंटी आज ।
चूहों की बारात है, गधों के सर स्वराज।।
ग़ज़ल की बज़्म है सजा, चूहों.. का दरबार ।
कहते कलाम... शोहदे, होते ....हाहाकार ।।
रोबोट हो गये सखा, सच के पैरोकार ।
शेर हथेली पीटते, करते हैं जयकार ।।
अब तो शिकार हो रहे, शायर मंच विकार ।
रीमोट, सिद्ध बन गये, ग़ज़ल कहें..दरबार ।।
बनते मूर्ख बुद्ध यहाँ, फँसे हैं वाग्जाल ।
कौन यहाँ है पूछता, मरहूम…
Added by Chetan Prakash on August 3, 2023 at 12:00pm — No Comments
पास आ गया है बेहद
जब से चुनाव फिर संसद का
राजनीति की चिमनी जागी
धुँआँ उठा है नफ़रत का
आहिस्ता-आहिस्ता
सारी हवा हो रही है जहरीली
काले-काले धब्बों ने …
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 2, 2023 at 8:26pm — 4 Comments
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