For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

August 2012 Blog Posts (230)

अ-विराम

                         

प्रगति पथ पर चलो निरंतर

न किसी का भय न कोई डर

करना है कुछ अलग सा काम

चाहे हो जाए जीवन तमाम

पर चले चलो अ-विराम

 

कांटो सी राह पर चलते है जाना

सूरज की आग में जलते है जाना

रोशन करना है जग में नाम

चाहे हो जाए जीवन तमाम

पर चले चलो…

Continue

Added by Ranveer Pratap Singh on August 7, 2012 at 11:33pm — 5 Comments

मुक्तक

कभी  मेरी धडकनों में स्वर तुम्हारे थे 
आज  मेरे स्वरों में तेरी धडकन है  
मेरी सरगम पे बजा करती थी तुम्हारी पायल 
आज बजती है कही सरगम तो करती घायल 
-------------------------------------------------------------
मेरे  घर से निकलने की आहट पे 
द्वार में आया तुम करती…
Continue

Added by Ashish Srivastava on August 7, 2012 at 9:00pm — 8 Comments

कुण्डलिया : धोती मुनिया फर्श को.....

धोती मुनिया फर्श को, मुन्ना माँजे प्लेट |

कल का भारत देख लो, ऐसे भरता पेट ||

ऐसे भरता पेट, और ये नेता सारे,

चलते सीना तान, लगा के जमकर नारे |

नहीं तनिक है शर्म, कहाँ है जनता सोती,…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 7, 2012 at 6:00pm — 18 Comments

दो कुण्डलियाँ...सावन की.

हरी-हरी धरती भई.....

----------------------------------------
बदरा बरसे शान से, बिजुरी चमके जोर.
हरी - हरी धरती भई,जित देखूं उत ओर.
जित देखूं उत ओर,हुआ है दृश्य मनोहर.
दिखा  रहें  हैं  मेघ , देखिये अपने तेवर.
कहता है अविनाश,झेलिये उनका नखरा.
भीगो  उनके संग,बरसते जब तक बदरा.
-----------------------------------------
--------------------------------------------
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on August 7, 2012 at 2:00pm — 7 Comments

बदन पे आज कपडा तंग होता जा रहा है क्यूँ

यहाँ आजाद है हर सख्स थोपा जा रहा है क्यूँ

लडूं अधिकार की गर जंग रोका जा रहा है क्यूँ



हुआ है आज का हर आदमी अब तो सलामत-रौ

बदन पे आज कपडा तंग होता जा रहा है क्यूँ



नहीं बेफिक्र है लोगो जिसे हालात है मालुम

जवाँ फिर आज मूंदे आँख सोता जा रहा है क्यूँ



सलीका इश्क करने का कभी आया नहीं लेकिन

जिसे देखो दिलों में आग बोता जा रहा है क्यूँ



खुदी मसरूफ है फिर भी शिकायत वक़्त से करता…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 7, 2012 at 11:44am — 14 Comments

"कील चुभी वो नहीं विलग "

"कील चुभी वो नहीं विलग "

वे कहते हैं सब भूल गये

हम कहते कुछ भी याद नहीं

कारण मैंने भी किया वही

जो उसने पिछले साल किये

अब उसके भी एक आगे है

मेरे भी पीछे बाँध दिए !!

रस्में पूर्ण समाज…

Continue

Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 7, 2012 at 1:02am — 19 Comments

कह मुकरी: मोहपाश में नित्य फँसाये!

कह-मुकरी

(1)

पल में सारा गणित लगाये 

इन्टरनेट पर फिल्म दिखाये 

मेरे बच्चों का वह ट्यूटर.

ऐ सखि साजन? नहिं कम्प्यूटर..

(2)

बड़ों-बड़ों के होश उड़ाये

अंग लगे अति शोभा पाये

डरती जिससे दुनिया सारी

क्या वो नारी? नहीं कटारी!! 

(3)

रहे मौन पर साथ निभाये

मैडम का हर हुक्म बजाये 

नहीं आत्मा रहता बेमन 

ऐ सखि रोबट? नहिं मन मोहन!!

(4)

मोहपाश में नित्य फँसाये

सास-बहू हैं घात…

Continue

Added by Er. Ambarish Srivastava on August 7, 2012 at 12:30am — 25 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३३

रात की सन्नाटगी बोलने लगी है, कानों की वीरानियाँ सुनने. कालोनी की सडकों पे तन्हाईयों के डेरे लग चुके हैं और घरों में लोग अपने अपने बिस्तर पे कटे दरख्तों की मानिंद बिछ से गए हैं. किसी किसी घर से टीवी के चलने की आवाज़ भी आ रही है, पता नहीं देखने वाला जाग भी रहा है या सो रहा है. लोग इक समूचे दिन को पीछे छोड़ आए हैं और रोज़मर्रा की तमाम कदोकाविश (भाग दौड़) जैसे उनके कपड़ों के साथ आलमीरों में टंग गई है इक रात के आराम के लिए. जूते मेज के किनारे चुपचाप पड़े हैं, उनके तस्में (फीते) लहराते अंदाज़ में…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 7, 2012 at 12:28am — No Comments

दोहे : आत्मावलोकन

१. नहीं किसी से हूँ चिढ़ा, आता खुद पे रोष |

मुझमें ही सारी कमी, मुझमें सारा दोष ||

२. मैं ही पूरा आलसी, सोता हूँ दिन-रात |

नहीं ठहरती जीत तो, कौन अनोखी बात ||

३. मुझमें ही है वासना, मुझमें है आवेश |

मक्कारी की खान मैं, धर साधू का वेश ||

४. मन को कलुषित कर लिया, लाता नहीं सुधार |

हरा दिया हठ ने मुझे, कर डाला लाचार ||

५. करने थे सत्कर्म पर, किये बहुत से पाप |

इतना नीचे हूँ गिरा, सोच न सकते आप ||

६. जीत गई हैं इन्द्रियाँ, मिली मुझे है हार…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 6, 2012 at 11:08pm — 10 Comments

भाव निर्झरणी बहे /गीत

भाव निर्झरणी बहे बस है विनत यह कामना 

जब लिखे दिल से लिखे कवि,सत्य हो या कल्पना



परख सत्यासत्य की रख ,सृजन पथ गढ़ते रहें 

त्याग व्यष्टि समष्टि हित ,शब्द नद भरते रहें 

कर नवल,चिंतन,मनन शुभ ,गूंथ माला काव्य की

शारदे माँ की हृदय से कवि करो तुम अर्चना 



भाव निर्झरणी बहे बस है विनत यह कामना 

जब लिखे दिल से लिखे कवि,सत्य हो या कल्पना …



Continue

Added by seema agrawal on August 6, 2012 at 11:00pm — 17 Comments

फितरत ए इन्सान ए अजब

आज मुझ पे हसीं इल्ज़ाम लगाया उसने,

मेरे सोते हुए बातिन को जगाया उसने।

मुझसे बोला के ये क्या रोग लगा बैठा है,

धूप निकली है अन्धेरे में छुपा बैठा है?

तुझको दुनिया की जो तकलीफ का हो अन्दाज़ा,

अपनी मायूसियों के खोल से बाहर आ जा।…

Continue

Added by इमरान खान on August 6, 2012 at 3:33pm — 7 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
नेताजी (कुण्डलिया-2)

नेताजी (कुण्डलिया-2) 

 

बीवी टॉपर ही मिले, नेताजी की चाह,
खुद थे इंटर पास वो, पीजी से गय ब्याह,
पीजी से गय ब्याह, किया था फर्जीवाड़ा,
ज्ञानी साथी पाय विरोधी खूब पछाड़ा,
नेतानी जी सभ्य, चतुर और बुद्धिजीवी,
घर हु पढाए पाठ, मिली थी ऐसी बीवी.

Added by Dr.Prachi Singh on August 6, 2012 at 2:30pm — 15 Comments

एक ही विधान है

देने वाला दाता ही,  ताप है संताप है 
तुझे मिल रहा जो, कर्मो  का ही श्राप है 
 
मत समझ वे कमजोर, और तू बलवान है 
उनके बल पर ही बना, आज तू धनवान है …
Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 6, 2012 at 12:30pm — 7 Comments

कवितायेँ कैसे बनती है...............!!

कविताये कैसे बनती है 

कुछ खबर नहीं होती 

बस ..........................

दिल की कुछ भावनाएं होती है 

जो शब्दों का रूप लेकर 

कागज पर उतर आती है

और कवितायेँ बन जाती है

कवितायेँ कैसे बनती है........................

कवितायेँ .................

कभी दर्द से जन्म लेती है

कभी गम का रूप होती है

कभी दिल की ख़ुशी की पहचान बनती है

तो कभी विरोध के लिए लिखी जाती है

कवितायेँ कैसे.....................

कवितायेँ…
Continue

Added by Sonam Saini on August 6, 2012 at 12:00pm — 16 Comments

सावन.(कुंडलिया)

सावन   नभ  पर    छा गया,  हरियाए    सब  खेत/

हरियाली     छा   ने   लगी,  ओझल   बालू    रेत//

ओझल   बालू    रेत,     हरित    होते  सब  जंगल/

कल कल नदी का शोर, बहे झरने भी…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on August 6, 2012 at 12:00am — 9 Comments

दुःख

तृष्णा की कोख से जन्मा

वासनाओं के साये में पला

एक मनोभाव है दुःख ;

सांसारिक माया से भ्रमित

षटरिपुओं से पराजित

अंतस की करुण पुकार है दुःख ;

स्वार्थ का प्रियतम

घृणा का सहचर

भोगलिप्सा की परछाई है दुःख ;

वैमनस्य का मूल्य

भेदभाव का परिणाम

आलस्य का पारितोषिक है दुःख ;

अधर्म से सिंचित

अमानवीय कृत्यों की

एक निशानी है दुःख ;

कलुषित मन की

कुटिल चालों का

सम्मानित अतिथि है दुःख ;

निरर्थक संशय से उपजी

मानसिक स्थिति का

एक नाम…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 5, 2012 at 8:23pm — 22 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- २४

ये जो शहरेवीराँ ये बस्तीएतन्हाई है  

आदमोहव्वाकी यही दौलतेआबाई है

 

चलिए रखके अपनी रफ़्तार पे काबू

ख्यालोंका शह्र है आबादीहीआबादी है  

 

कोई रोटी चाहे फूली, या न फूली हो

तवे से आखिर उतार ही दी जाती है

 

ख्वाबोंसे लाख बनाऊं घरौंदे जीने के

सफ़र लंबाहै और मुकाम इब्तेदाई है

 

तू फ़िक्रज़दा होती है तो यूँ लगता है

एक चिड़या है, बिल्ली से घबराती है

 

नसही तू तेरे नामसे वाबस्तगी सही

तुझसे…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 5, 2012 at 7:00pm — 4 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३२

कोई दिन यूँ ही उदास सा बारिश का, इक नीम के दरख्त सा खड़ा, बिना परिंदों का, न ही कोई फूल महकते, न ही कोई चिड़िया चहकती, बस बारिश की बूंदों को टपकाते ख्यालों से चुप, ऊँचाइयों को छूते शज़र, पानी और नमी से झुके-झुके.  

 

सुबह से बादलों के काले सायों का आँचल ओढ़ रखा है फ़ज़ा ने, घरों ने भी जैसे खामोशी की बरसाती ओढ़ रखी है, पहचाने घर भी पराए से लगते हैं. गली में कुत्ते भी भागते छुपते शायद ही नज़र आते, लोग भी कम ही दीखते हैं नुक्कड़ की दूकानों के इर्द गिर्द, गाड़ियों ने भी गोया आज…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 5, 2012 at 3:30pm — 2 Comments

खून चूसना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है

जैसाकि हम सभी जानते हैं कि मच्छर खून चूसते हैं।बरसात के मौसम में गंदगी के कारण इनकी संख्या और भी बढ़ जाती है,ये हमें और भी पीड़ा पहुंचाने लगते हैं।कुछ समय पहले की बात है मच्छरों से पीड़ित कुछ उपद्रवी आन्दोलनकारी मच्छरों के खून चूसने की क्रिया पर प्रतिबंध की मांग करने लगे।वो "खून मत चूसो कानून" पारित करवाने की जिद पे अड़ गये।तत्कालीन कठमुल्ला भारत सरकार ने उन उपद्रवियों की जिद मानते हुए बिल पास कर दिया।मच्छरों के क्रिया-कलाप पर प्रतिबंध लगा दिया गया।उनकी गिरफ्तारियां होने लगी।उनसे सुरक्षा के लिए… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 5, 2012 at 2:00pm — 14 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
नेताजी (कुण्डलिया)

नेताजी (कुण्डलिया)
 

नेताजी का हो गया, कवियित्री से ब्याह,

नेतानी कविता लिखें, उनकी निकले आह,

उनकी निकले आह, सुनें जब भी वो दोहा,

लिखना विखना छोड़ पकाना सीखो पोहा,

चलो डार्लिंग किटी, रमी में जीतो बाजी,

समझाते हैं मस्त, नेतानी को नेताजी .......

Added by Dr.Prachi Singh on August 5, 2012 at 1:30pm — 28 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
Monday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बेहतरीन 👌 प्रस्तुति और सार्थक प्रस्तुति हुई है ।हार्दिक बधाई सर "
Monday
Dayaram Methani commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर गीत रचा अपने। बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"सही कहा आपने। ऐसा बचपन में हमने भी जिया है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
Sunday
Sushil Sarna posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

ममता का मर्म

माँ के आँचल में छुप जातेहम सुनकर डाँट कभी जिनकी।नव उमंग भर जाती मन मेंचुपके से उनकी वह थपकी । उस पल…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Nov 30

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service