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July 2017 Blog Posts (114)

जरा जी कर देखें ...

चलो

जिन्दगी को

ज़रा करीब से देखें

दर्द को ज़रा

महसूस करके देखें

क्या खबर

कोई लम्हा

अपना सा मिल जाए कहीं

चलो

उस लम्हे को

जरा जी कर देखें//

जिन चेहरों पे हंसी

बाद मुद्दत के आई है

जिन आँखों में

अब सिर्फ और सिर्फ तन्हाई है

जिस आंगन में

धूप अब भी

सहमी सहमी आती है

उस आंगन के

प्यासे रिश्तों से

जरा रूबरू होकर देखें

चलो!

जिन्दगी को

जरा जी कर देखें//

हमारे अहसास

किसी…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 9, 2017 at 4:30pm — 10 Comments

नई सदी का मर्द (लघुकथा)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"देखो तो, कैसा इतरा-इतरा कर नाच रहा है!"

"हाँ, उस मोरनी को देखकर!"

"नहीं, हमें देखकर इतरा रहा है!" सारस ने अपनी टांगों को ज़मीन पर आड़े-तिरछे पटकतेे हुए हंस से कहा।



"बस कुछ ही महीने तो सुंदर दिखता है, फिर भी इंसानों के दिलों में राज करता है!" यह कहते हुए ईर्ष्यालू हँस ने नदी में गोता सा लगाया।



"हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती, यह जानते हुए भी!" हंस की बात पर सारस ने कटाक्ष किया।



"आकर्षक तो हम भी हैं, लेकिन न तो हमारा मेकअप इस तरह होता है, न ही हमें ऐसा… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 9, 2017 at 10:50am — 5 Comments

लघुकथा

गुरु की जीत



आज फिर मोहन सर ने क्लास में अनुराग से प्रश्न पूछा था ,उसके जवाब न देने पर वो उसे डाँटने लगे थे ।अनुराग ने डरते हुए कहा ,"सर अभी ये सवाल आपने करवाया नहीं है । "सर ने कहा "चुप चाप खड़े रहो बहस मत करो ।"अनुराग ने अपनी बड़ी २ आँखो से ऐसे देखा ,जैसे पूछ रहा हो आप हमेशा बिना किसी ग़लती के मुझे क्यों डाँटते रहते है । मोहन सर जब इस स्कूल में नये आए थे तो अनुराग की आँखे उन्हें किसी की याद दिला रही थी । उन्होंने उस से उसके पापा का नाम पूछा था । उनका अंदाज़ा सही था वो उनके कॉलेज के… Continue

Added by Barkha Shukla on July 9, 2017 at 9:09am — 12 Comments

दुमदार दोहे --

1-

कौन सुखी संसार में, जिसे न हो व्यवधान।

होती बुद्धि विवेक से, हर मुश्किल आसान।।

निरापद किसको देखा।।

2-

विपदा हो जब सामने, मुश्किल में हो जान।

ऐसे में हिम्मत रखें, सँग में प्रभु का ध्यान।।

आपदा टल जाएगी।।

3-

मुश्किल का मिलता नहीं, जब कोई भी तोड़।

अंदर ही अंदर वही, लेती रक्त निचोड़।।

आदमी घुटता रहता।।

4-

होती मुश्किल वक्त में, रिश्तों की पहचान।

सब दिन होते हैं नहीं, हरदम एक समान।।

परख सबकी हो जाती।।

5-

चुप रहकर… Continue

Added by Hariom Shrivastava on July 8, 2017 at 11:46pm — 7 Comments

गज़ल

*2122 1122 1122 22*

इस तरह अम्न को बर्बाद करेगी दुनिया ।

फिर नए जुर्म की तादाद करेगी दुनिया ।।



छीन लेती है निवाले भी मेरे बच्चों से ।

कब तलक कर्ज से आज़ाद करेगी दुनियां ।।



जब भी मकसद का शजर बनके नज़र आऊंगा।

मेरी ताक़ीद पे फरियाद करेगी दुनिया ।।



रोज उठता है धुंआ एक कहानी लेकर ।

क्या बताऊँ की किसे याद करेगी दुनिया ।।



है सराफ़त से तेरी बज्म में जीना मुश्किल ।

साफ दामन पे बहुत शाद करेगी दुनिया ।।



कत्ल करने का सलीका भी… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on July 8, 2017 at 11:27pm — 9 Comments

गज़ल

*2122 1122 1122 22*

इस तरह अम्न को बर्बाद करेगी दुनिया ।

फिर नए जुर्म की तादाद करेगी दुनिया ।।



छीन लेती है निवाले भी मेरे बच्चों से ।

कब तलक कर्ज से आज़ाद करेगी दुनियां ।।



जब भी मकसद का शजर बनके नज़र आऊंगा।

मेरी ताक़ीद पे फरियाद करेगी दुनिया ।।



रोज उठता है धुंआ एक कहानी लेकर ।

क्या बताऊँ की किसे याद करेगी दुनिया ।।



है सराफ़त से तेरी बज्म में जीना मुश्किल ।

साफ दामन पे बहुत शाद करेगी दुनिया ।।



कत्ल करने का सलीका भी… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on July 8, 2017 at 11:27pm — No Comments

ऐडजस्टमेन्ट्स (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

पता नहीं क्यों ज़ुबैर के क़दम कभी पापा के बेडरूम की ओर बढ़ जाते, तो कभी उस कमरे की ओर जहां उसकी मम्मी की सभी चीज़ें कबाड़ की तरह रख दीं गईं थीं। यही तो वे वज़हें हैं जो उसे नाना-नानी के घर से वापस पापा के घर खींच लाती थीं। मंहगाई और कलह के वातावरण में न तो कोई रिश्तेदार उसे ढंग से अपने पास रख पा रहा था, न ही पापा उसे किसी होस्टल में डाल पा रहे थे। पापा को नई मम्मी के साथ ख़ुश देखकर वह ख़ुश हो भी तो कैसे? दो साल पहले उसने अपनी आंखों से देखा था पैसों के ख़र्च के मसले पर बढ़ी बहस में पापा को मम्मी… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 8, 2017 at 8:00pm — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
निकलते अब पहाड़ों के सुरों से दर्द के नाले (ग़ज़ल 'राज'

१२२२   १२२२   १२२२   १२२२

कहीं मलबा कहीं पत्थर कहीं मकड़ी के हैं जाले

कहानी गाँव  की कहते घरों के आज ये ताले  

 

किया बर्बाद मौसम ने छुड़ाया गाँव घर आँगन

यहाँ दिन रात रिसते हैं दिलों में गम के ये छाले

 

भटकते शह्र में फिरते मिले दो वक्त की रोटी

सिसकते गाँव के चूल्हे तड़पते दीप के आले*

 

कहाँ संगीत झरनों के परिंदों की कहाँ चहकन 

निकलते अब  पहाड़ों के सुरों से  दर्द के नाले

 

लुटा…

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Added by rajesh kumari on July 8, 2017 at 6:30pm — 13 Comments

आदमी तो बनो

१२२ १ २२ १२२ १२
समंदर मिलेगा नदी तो बनो
मिलेगा खुदा आदमी तो बनो

अँधेरा मिटेगा अभी के अभी
जलो तुम जरा रौशनी तो बनो

तुम्हें भी मिलेगी ख़ुशी एक दिन
कभी तुम किसी की ख़ुशी तो बनो

करो गर मुहब्बत तो ऐसे करो
किसी की कभी जिंदगी तो बनो

जो भी चाहिए दूसरों से तुम्हें
खुदा के लिए तुम वही तो बनो

नीरज कुमार नीर 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by Neeraj Neer on July 8, 2017 at 3:34pm — 5 Comments

तिरंगे की लाज के लिए ....

तिरंगे की लाज के लिए ....





मैं अब तुम्हें

मुड़ के न देखूँगा

अपने बढ़े कदम

विछोह के डर से

न रोकूंगा

जानता हूँ

कितना मुशिकल है

अपनी प्रीत को

दूर जाते हुए देखना

कतरा कतरा

अपने प्यार को

बिखरते हुए देखना

अपने सपनों को

अनजानी भोर की

बलि चढ़ते हुए देखना

पंखुड़ी की जगह

ओस को शूलों पर

सोते देखना

कितनी आँखों से तुम

अपने बहते दर्द को छुपाओगी





सब कुछ जानते हुए भी

मैं न…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 8, 2017 at 2:30pm — 8 Comments

जीवन के तीन कर्त्तव्य

कर्तव्य प्रथम इस जीवन का है ,

मात -पिता की सेवा करना। 

आशीर्वाद उन्हीं का लेकर ,

जीवन पथ पर आगे बढ़ना।।

कर्तव्य दूसरा जगती पर है ,

मानवता की रक्षा करना। 

दया धर्म का भाव सदा ही ,

अपने से छोटों पर रखना।।

कर्तव्य तीसरा यही हमारा ,

देश धर्म के लिये ही जीना। 

बलिदानों के पथ पर बढ़कर ,

मातृ -भूमि की सेवा करना।।

"मौलिक व अप्रकाशित "

Added by chouthmal jain on July 7, 2017 at 10:11pm — 3 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - अजब मासूम है क़ातिल हमारा ( गिरिराज भंडारी )

1222    1222   122

वो दहशत गर्द है या मुस्तफ़ा है

क्या तुमने फैसला ये कर लिया है ?

 

अजब मासूम है क़ातिल हमारा

वो ख़ूँ बारी से अब दहशत ज़दा है

 

तमाशाई के सच को कौन जाने ?

वो सच में मर रहा है, या अदा है

 

वो सारी ख़ूबियाँ पत्थर की रख कर

किया है मुश्तहर... वो.. आइना है

 

कज़ा से बस कज़ा की बात होगी

हमारा बस यही इक फैसला है

 

बहुत दूरी नहीं है, पर चला जो

कभी मस्ज़िद से मन्दिर... हाँफता…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 7, 2017 at 10:10pm — 18 Comments

यारियां .../रूठे ...



1. यारियां ...

एक ही पल में कितनी दूरियां  हो जाती हैं

हर नफ़स अश्कों से यारियां  हो  जाती  हैं

धड़कनें ख़ामोश ज़िस्म बेज़ान हो जाता  है

गिरफ़्त में हालात के खुद्दारियां हो जाती हैं

....................................................

2. रूठे ...

न जाने कितने शबाबों की शराब अभी बाकी है

न जाने कितने जख्मों का हिसाब अभी बाकी है

कैसे चले जाएँ भला हम उठ के अभी मैखाने से 

बेवज़ह रूठे हर सवाल का जवाब अभी…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 7, 2017 at 9:30pm — 8 Comments

उम्र

उसने मिलते ही कहा..

उस उम्र से ये उम्र की उम्र हो गई

जाने कहाँ कब कैसे वो उम्र खो गई

मीठे लम्हों से जो निखरी थी

खट्टे लफ्ज़ो से जो बिख़री थी

जहाँ मैं तुं नहीं सिर्फ हम थे

वहाँ हम नहीं सँभल पायें 

चलो फिर कही ढुंढते है

जिस…

Continue

Added by संजय गुंदलावकर on July 7, 2017 at 10:30am — 5 Comments

याद आता तब ख़ुदा जब आसरा कोई न हो

बह्र 2122 2122 2122 212



बे असर हों सब दुआएँ,और दवा कोई न हो

याद आता तब ख़ुदा जब आसरा कोई न हो ||



क्यूँ छुपाती हुस्न अपना हर घड़ी पर्दानशी

हुस्न वो किस काम का गर देखता कोई न हो ||



एक ख़्वाहिश है मेरी यारो ख़ुदा के फ़ज़्ल से

शैर इक ऐसा कहूँ, जैसा कहा कोई न हो ||



कौन आया है यहाँ पीकर,बता आब-ए-हयात

कौन सा घर है बता जिसमें मरा कोई न हो ||



दोष देना हो किसी को,देख लो ख़ुद आइना

ये भी तो सम्भव है कि तुमसे बुरा कोई न हो… Continue

Added by नाथ सोनांचली on July 6, 2017 at 10:39pm — 24 Comments

गजल(गदहा बोला......)

22 22 22 22

*---------------*

गदहा बोला--- हाँक लगायें,

आओ लोगों को भड़कायें।1



मोर बना बैठा है राजा

उसकी कुर्सी को खिसकायें।2



हम भी हो सकते हैं मंत्री

आगे बढ़कर हाथ मिलायें।3



भैंस भली,जब अक्ल मरी हो

कुत्तों को माला पहनायें।4



'चीं चीं' कर दे सकती, चलकर,

'सोन चिरैया' को सहलायें।5



'नीति' नहीं अब प्रीत समझती

कितनी बार गले लग जायें?6



'भालू-कालू' !भेद भुलाकर

आओ एक जमात… Continue

Added by Manan Kumar singh on July 6, 2017 at 7:30pm — 17 Comments

राज़ [ लघुकथा प्रतिभा पाण्डे ]

“ कब से इंतज़ार कर रहा हूँ तेरा I एक राज़ की बात बतानी है I’’ राधा के बाहर आते ही अब्दुल ड्राईवर झट उसके पास आ गया I

“जल्दी बता, बहुत काम पड़ा है I” झटके का कपड़ा कमर में खोंसती राधा बोली I

“ कल तू बता रही थी ना कि मेमसाब आजकल बदली बदली हैं, बहुत मीठा बोलती हैं , टूट फूट में चिल्लाती  भी नहीं हैं I’’

“ हाँ तो ?’’

“दोनों कड़वे करेलों की दरियादिली का राज़ आज खुल गया है I’’ अब्दुल का अंदाज़ भेद भरा था  I

“दोनों मतलब ?’’

“ साहब भी आजकल मीठे हो रहे हैं I…

Continue

Added by pratibha pande on July 6, 2017 at 6:00pm — 9 Comments

'अजय' बीते जमाने में कहीं कुछ छोड़कर आया,

जरा सा सोंचकर देखा तो मुझको याद कर आया,

'अजय' बीते जमाने में कहीं कुछ छोड़कर आया,



सजी यारों की महफिल थी बड़ा बेखौफ बचपन था,

बड़ी मजबूरियों ने रास्तों पर जाल बिछवाया,



ज़माने को समझने की बड़ी पुरजोर कोशिश की,

ज़माने की नसीहत ने ही मुझको और भरमाया,



जिन्हें अपना समझ बैठे थे सारी भूलकर शर्तें,

उन्हीं के कारनामों ने ही मुझको और तड़पाया,



सिवा तेरे जहाँ में और कोई है नहीं मेरा,

मेरे मौला , मेरे मौला तू मेरी रूह में… Continue

Added by Ajay Kumar Sharma on July 5, 2017 at 11:57pm — 6 Comments

कुछ मुक्तक (भाग-5)

मात्रा विन्यास

1222 1222 1222 1222



लगे वो जल परी जैसी, अधर मधु हास बिखराती।

वो तरुणी वारुणी जैसी, नशा नस नस में महकाती।

लगे ज्यों दिव्य मूरत सी, रचा खुद ब्रह्म ने जिसको।

हुई मदहोश महफिल पर, तुरत ही ताजगी आती।



अलग है बात कुछ तुझमें, नहीं हर एक में मिलती।

भरी तू दोपहर जैसी, सुहानी शाम भी लगती।

निशा का मस्त आंचल तू, सुबह की ताजगी तुझमें।

स्वयं शृंगार कर उपमा, तुझे है आरती करती।



है कैसा हाल अब उनका, खबर कोई सुनाये तो।

तड़प मन… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 5, 2017 at 4:51pm — 4 Comments

ग़ज़ल...गमे दिल अब मुझे आराम दे दो

1222 1222 122
मेरी बेचैनियों को नाम दे दो
बहुत टूटा हूँ अब अंजाम दे दो

उन्हें मैं याद कर के थक चुका हूँ
गमे दिल अब मुझे आराम दे दो

पुरानी बात है आहें, तड़पना
मुहब्बत को नये आयाम दे दो

कि जिसको सोचते ही मुस्कुरा दूँ
तसव्वुर के लिए वो शाम दे दो

कहाँ है मीत वो किस हाल में है
हवाओ कोई तो पैगाम दे दो
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 5, 2017 at 8:48am — 16 Comments

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