For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

June 2021 Blog Posts (32)

नग़मा: दिल

1222 1222 1222 1222

अज़ीब इस दिल की बातें हैं अज़ीब इसके तराने हैं

अज़ीब ही दर्द है इसका अज़ीब ही दास्तानें हैं

अज़ीब अंज़ाम है इसका अज़ीब आग़ाज़ करता है

अगर जो टूट भी जाये तो ना आवाज़ करता है

कभी सुरख़ाब करता है कभी बेताब करता है

दिल ए नादाँ............. दिल ए नादाँ...........

दिल ए नादाँ हर इक ख़्वाहिश को ही आदाब करता है

ये करतब कितनी आसानी से यारो दिल ये करता है

कभी ये ज़ख़्म देता है,…

Continue

Added by Aazi Tamaam on June 10, 2021 at 10:23am — 2 Comments

ग़ज़ल नूर की - दिल लगाएँ, दिल जलाएँ, दिल को रुसवा हम करें

दिल लगाएँ, दिल जलाएँ, दिल को रुसवा हम करें

चार दिन की ज़िन्दगी में और क्या क्या हम करें?

.

एक दिन बौनों की बस्ती से गुज़रना क्या हुआ

चाहने वो यह लगे क़द अपना छोटा हम करें.

.

हाथ बेचे ज़ह’न बेचा और फिर ईमाँ बिका  

पेट की ख़ातिर भला अब और कितना हम करें?

.

चाहते हैं हम को पाना और झिझकते भी हैं वो  

मसअला यानी है उनका ख़ुद को सस्ता हम करें.

.

इक सितम से रू-ब-रु हैं पर ज़ुबां ख़ुलती नहीं

ये ज़माना चाहता है उस का चर्चा हम करें.…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on June 8, 2021 at 12:00pm — 8 Comments

आश्वासन

एक आयु के उपरान्त

प्रेम मुदित तुम्हारा लौट आना

गुज़रती साँसों को मानो

संजीवनी की बूटी से

साँस नई दे देना

स्नेह का यह फल मीठा

और अति आनन्ददायक था…

Continue

Added by vijay nikore on June 7, 2021 at 1:00pm — 8 Comments

कहता था हम से देश को आया सँभालने-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



करता है जग में धर्म के लोगो न काम वो

लेकिन बताता नाम है सब को ही राम वो।१।

**

कहता था हम से देश को आया सँभालने

पर उजली भोर कर रहा देखो तो शाम वो।२।

**

महँगा हुआ है थाली में निर्धन का कौर भी

सेठों को  मुफ्त  बाँटता  हर दम ईनाम वो।३।

**

केवल उड़ायी  नींद  हो  ऐसा नहीं हुआ

सपने भी लूट ले गया सब के तमाम वो।४।

**

समझा न मन के दर्द को लोगो भले कभी

करता है मन की  बात  बहुत बेलगाम…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2021 at 7:08am — 5 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
पर्यावरण-दिवस के अवसर पर छ: दोहे // --सौरभ

आपाधापी, व्यस्तता, लस्त-पस्त दिन-रात

छोड़ इन्हें, आ चल सुनें, कली-फूल की बात ।



मन मारे चुप आज मैं.. सोचूँ अपना कौन..

बालकनी के फूल खिल, ढाँढस देते मौन !!



सांत्वना वाले हुए.. हाथ जभी से दूर ..

लगीं बोलने डालियाँ, 'मत होना मज़बूर' !!



जाने आये कौन कब, मन की थामे डोर

तुलसी मइया पोंछना, नम आँखों की कोर



फिर आया सूरज लिये, नई भोर का रूप

उठ ले अब अँगड़ाइयाँ, निकल काम पर धूप ! 

 

मन-जंगल उद्भ्रांत है, इसे चाहिए त्राण…

Continue

Added by Saurabh Pandey on June 5, 2021 at 5:30pm — 10 Comments

थी अस्ल में सियाह वो रंगीन हम ने की.....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221 2121 1221 212

थी अस्ल में सियाह वो रंगीन हम ने की

कुछ इस तरह से रात की तज़ईन हम ने की (1)

उनकी नज़र के सामने गिरने से बच गए

कल आइने में अपनी ही तौहीन हम ने की (2)

अपने गिरोह में हमें शामिल तो कीजिए

लोगों ने दी हैं गालियाँ तहसीन हम ने की (3)

उस ने तो चीर फाड़ के क्या कर दिया इसे

पहलू में दिल नहीं था ये तस्कीन हम ने की (4)

सौ काम ठीक ठाक कीये आज तक मगर

ग़लती भी एक बारहा संगीन हम ने की…

Continue

Added by सालिक गणवीर on June 5, 2021 at 9:00am — 10 Comments

कम है-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" (गजल)

२१२२/२१२२/२१२२

गीत में सद् भावना का ज्वार कम है

सर्वहित की कामना का ज्वार कम है।१।

**

दे रहे  सब  सान्त्वना  पर  जानता हूँ

शुद्ध मन की प्रार्थना का ज्वार कम है।२।

**

सिद्ध कैसे  झट  से  होगी  योग  माया

आज साधक साधना का ज्वार कम है।३।

**

सत्य मर्यादा टिकेगी किस तरह अब

हर किसी में वर्जना का ज्वार कम है।४।

**

हर नगर श्मसान जैसा आज दिखता

किस नयन में वेदना का ज्वार कम है।५।

**…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 4, 2021 at 1:20pm — 11 Comments

समझा बताओ किसने किताबों ने जो कहा-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

लिक्खा सजा के हम ने उजालों ने जो कहा

लाया  मगर  अमल  में  अँधेरों  ने जो कहा।१।

**

बैठक में ला के रख दी वो शोभा बढ़ाने को

समझा बताओ किसने किताबों ने जो कहा।२।

**

देखा जो उसको मान के आँखों का धोखा है

जाना  अमर  है  सत्य  हवाओं  ने  जो  कहा।३।

**

सोचा ही था कि शाप के परिणाम आ गये

आया असर  न  एक  दुआओं ने जो कहा।४।

**

इस दौर कह के झूठ है अन्नों की बात को

सच कह रही है  देह  दवाओं ने जो…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 3, 2021 at 11:30am — 9 Comments

ग़ज़ल: लाओ जंजीर मुझे पहना दो

2122 1122 22

लाओ जंजीर मुझे पहना दो 

मेरी तकदीर मुझे पहना दो

तुम ख़ुदा हो तो ये डर कैसा है

मेरी तहरीर मुझे पहना दो

जो भी चाहो वो सज़ा दो मुझको

जुर्म ए तामीर मुझे पहना दो

पहले काटो ये ज़ुबाँ मेरी फिर

कोई तज़्वीर मुझे पहना दो

मुफ़्लिसी ज़ुर्म अगर है मेरा

सारी ताजी़र मुझे पहना दो

आज आया हूँ मैं हक की खातिर

कोई तस्वीर मुझे पहना दो

मौलिक व…

Continue

Added by Aazi Tamaam on June 2, 2021 at 12:30pm — 9 Comments

ग़जलः

ग़जलः

2122 2122 2122 212

मुन्तज़िर थे हम मगर मिलना मयस्सर ना हुआ

वस्ल तो तय थी नसीबा पर हमारा ना हुआ

चाँद रातों में तड़पता वस्ल की खातिर कोई

वो मुहर लब पर हुई कब वो नज़ारा ना हुआ

चाँदी की दीवारें आड़े आईं आशिक प्यार के

मुफलिसों को प्यार का या रब सहारा ना हुआ

जो पहुँचना था हमें अफलाक की ऊँचाइयों,

रह गये बैठे जमीं कोई हमारा ना हुआ ।

टूटती साँसे रही मकतल बना अस्पताल अब,

ज़िन्दगी तेरा भरोसा…

Continue

Added by Chetan Prakash on June 2, 2021 at 11:30am — 4 Comments

जिसे दिल ने चाहा, मिला ही नहीं...

जिसे दिल ने चाहा, मिला ही नहीं
सिवा इसके कोई गिला ही नहीं

नसीबों में उनके बहारें लिखीं
इधर तो कोई सिलसिला ही नहीं

कहां से महकतीं ये फुलवारियां
कोई फूल अब तक खिला ही नहीं

जड़ें उसकी मजबूत थीं इसलिए
शज़र आंधियों में हिला ही नहीं

यहां भीड़ में भी अकेले हैं सब
मुहब्बत का वो काफ़िला ही नहीं।।  # अतुल कन्नौजवी

                                    (मौलिक व अप्रकाशित)

Added by atul kushwah on June 1, 2021 at 8:31pm — 1 Comment

लावणी छन्द,संपूर्ण वर्णमाला पर प्रेम सगाई

(सम्पूर्ण वर्णमाला पर एक अनूठा प्रयास)

.

अभी-अभी तो मिली सजन से,

आकर मन में बस ही गये।

इस बन्धन के शुचि धागों को,

ईश स्वयं ही बांध गये।

उमर सलोनी कुञ्जगली सी,

ऊर्मिल चाहत है छाई।

ऋजु मन निरखे आभा उनकी,

एकनिष्ठ हो हरषाई।

ऐसा अपनापन पाकर मन,

ओढ़ ओढ़नी झूम पड़ा,

और मेरे सपनों का राजा,

अंतरंग मालूम खड़ा।

अ: अनूठा अनुभव प्यारा,

कलरव सी ध्वनि होती है।

खनखन चूड़ी ज्यूँ मतवाली,

गहना…

Continue

Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on June 1, 2021 at 8:30am — 10 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
12 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday
PHOOL SINGH added a discussion to the group धार्मिक साहित्य
Thumbnail

महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकिमहर्षि वाल्मीकि का जन्ममहर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में बहुत भ्रांतियाँ मिलती है…See More
Apr 10

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service