For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

May 2011 Blog Posts (84)

एक बार और

एक बार और



एक बार और जीने की ख्वाहिश हुई

और उमंगे सातवें आसमान छूने को है

एक बार और मन के बीज अंकुरित हुए

और दिल की सरहदें खुलने को है



असंभव कुछ पहले भी नही था

लेकिन इंद्रियां जुड़ नही रही थी

मन… Continue

Added by AJAY KANT on May 25, 2011 at 2:00pm — 1 Comment

GAZAL BY AZEEZ BELGAUMI

अहबाब ऐतबार के काबिल नहीं रहे

ये कैसे सर हैं ..! दार के काबिल नहीं रहे



जज़्बात इफ्तेखार के काबिल नहीं रहे

अब नवजवान प्यार के काबिल नहीं रहे



हम बेरुखी का बोझ उठाने से रह गए

कंधे अब ऐसे बार के काबिल नहीं रहे



ज़ागो ज़गन तो खैर, तनफ्फुर के थे शिकार

बुलबुल भी लालाज़ार के काबिल नहीं रहे



पस्पाइयौं के दौर में यलगार क्या करें

कमज़ोर लोग वार के काबिल नहीं रहे



कांटे पिरो के लाये हैं अहबाब किस लिए

क्या हम गुलों के हार…

Continue

Added by Azeez Belgaumi on May 25, 2011 at 12:15am — 7 Comments

इक मासूम ग़ज़ल

हर दिन जमाना दिल को मेरे आजमाता है

 मिलता है जो भी, बात उसकी ही चलाता है

 

मालूम है मुझको की आईना है सच्चा पर

ये आजकल, सूरत उसी, की ही दिखाता है

 

पीना नहीं चाहा कभी मैने यहाँ फिर भी

मयखाने का साकी, ज़बरदस्ती पिलाता है

 

सच है खुदा तू ही मदारी है जहाँ का बस

हम सब कहाँ है नाचते, तू ही नचाता है

 

"मासूम" अब रोना नहीं दुनिया मे ज़्यादा तुम

इस आँख का पानी उठा सैलाब लाता है

Added by Pallav Pancholi on May 25, 2011 at 12:00am — 3 Comments

आज एक बार फिर OBO पे मेरी कविता ,

क्या करू मन कहता हैं उसको मैंने लिखा ,

आज एक बार फिर OBO पे मेरी कविता ,
राजा दसरथ के चौथापन नहीं कोई संतान ,
फिर गुरु वसिष्ठ ने दिया उनको ज्ञान ,
हुई जग सफल और प्रभु लिए अवतार ,
राम लक्ष्मण भरत शत्रुधन भाई चार ,
चौदह साल की वनवास बोल दिए पिता ,
चल पड़े प्रभु राम संग लक्ष्मण और सीता ,
रावण ने…
Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 24, 2011 at 7:30pm — 1 Comment

कुछ ख़ुदरा शे'र.......कुछ क़ता'त....

तेरे लब छू के, कोई हर्फ़-ए-दुआ हो जाता.

तू अगर चाहता, तो मैं भी ख़ुदा हो जाता.

====

तन्हाइयों में गीत लिखे, और गा लिए.

नाकाम दिल के दर्द हँसी में छुपा लिए.

कल शब जो ज़िंदगी से हुआ सामना "साबिर"

क़िस्से सुने कुछ उसके, कुछ अपने सुना लिए.

====

हमने तो तुझे अपना ख़ुदा मान लिया है,

अब तेरी रज़ा है कि करम कर या मिटा दे.…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on May 24, 2011 at 6:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल : दिल की बात आँखों से बताना...........

दिल की बात आँखों से बताना अच्छा लगता है.

झूठा ही सही पर आपका बहाना अच्छा लगता है.

 

छू जाती है धडकनों को मुस्कराहट आपकी,

 फिर शरमा के नज़रे झुकाना अच्छा लगता है.

 

मुरझे फूलों में ताजगी आती है आपको देखकर,

आप संग हो तो मौसम सुहाना अच्छा लगता है.

 

बिन बरसात के ही अम्बर में घिर आते है बादल,

आपकी सुरमई जुल्फों का लहराना अच्छा लगता है.

 

जंग तन्हाई के संग हम लड़ते है रात-दिन,

देर से ही सही पर आपका आना अच्छा…

Continue

Added by Noorain Ansari on May 24, 2011 at 1:00pm — 3 Comments

मेरे चमड़े का जूता

इन गर्मियों में,

अकस्मात् छाये बादल,

कहते हैं की,

हम नहीं बरसेंगे...

तो क्या हम यूँ ही,

मोतियों को तरसेंगे....

पर मैं जानता हूँ,

की आज नहीं तो कल,

ये बरसेंगे...

क्योंकि मेरे पास,

पानियों का अभाव है,

और बरसना तो,

बादलों का स्वभाव है...



आँख मिचौली खेलती धूप,

कहती है मुझे पकड़ो,

और हर बार,

छिटक कर दूर चली जाती है,

और मेरे मायूस होने पर,

फिर पास चली आती है...

मैं जानता हूँ की,

वो मुझे चिढ़ाती है,

उसके और मेरे… Continue

Added by neeraj tripathi on May 24, 2011 at 12:00pm — 1 Comment

ग़ज़ल : हो गयी नंगी सियासत, वजह क्या है ?

 

ग़ज़ल

भूख-वहशी , भ्रम -इबादत वजह क्या है

हो गयी नंगी सियासत, वजह क्या है ?

 

मछलियों को श्वेत बगुलों की तरफ से -

मिल रही क्या खूब दावत, वजह क्या है ?

 

राजपथ पर लड़ रहे हैं भेडिये सब…

Continue

Added by Ravindra Prabhat on May 24, 2011 at 11:31am — 2 Comments

ग़ज़ल : सूरज उगता है तो सब यादें सो जाती हैं

चंदा तारे बन रजनी में नभ को जाती हैं।
सूरज उगता है तो सब यादें सो जाती हैं।

आँखों में जब तक बूँदें तब तक इनका हिस्सा
निकलें तो खारा पानी बनकर खो जाती हैं।

खुशबूदार हवाएँ कितनी भी हो जाएँ पर
मरती हैं मीनें जल से बाहर जो जाती हैं।

सागर में बारिश का कारण तट पर घन लिखते
लहरें आकर पल भर में सबकुछ धो जाती हैं।

भिन्न उजाले में लगती हैं यूँ तो सब शक्लें
किंतु अँधेरे में जाकर इक सी हो जाती हैं।

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 23, 2011 at 10:50pm — 3 Comments

इबादत...

 

उखाड़ दो खूंटे ज़मीन से इबादतगाहों के ,

 

उतारो गुम्बद,

 

समेटो खम्भे,

 

उधेड़ दो सारे मंदिर-मस्जिदों के धागे,

 

मिट्टी-पत्थरों में ख़ुदा नहीं बसता,

 

सुकूँ…

Continue

Added by Veerendra Jain on May 23, 2011 at 1:40pm — 10 Comments

मात मिली

रस्ते रस्ते बात मिली 
नुक्कड़ नुक्कड़ घात मिली
 
चिंदी चिंदी दिन पाए है
 क़तरा क़तरा रात मिली
 
सिला करोड़ योनियों का है
ये मानुष की जात मिली
 
बादल लुका-छिपी करते थे 
कभी कभी बरसात मिली
 
चाहा एक समंदर पाना 
क़तरों की औकात मिली
 
जीवन को जीना चाहा पर 
सपनों की…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 23, 2011 at 11:30am — 3 Comments

अजायब घर में रखा हुआ इन्सान

जब गुजर कर सफ़र से थक जाता हूँ मै

तब तब उस गाँव के पुराने घर जाता हूँ  मै ,



गाँव के आम के  बगीचे में जितना हम तोड़ कर फेंक दिया करते थे

उससे  बहुत कम  इस शहर  में पैसे के बराबर   तौल कर के लाता हूँ में  ..



जब भी मिलता हूँ इस  शहर में… Continue

Added by Rajeev Kumar Pandey on May 23, 2011 at 9:51am — No Comments

समाज में गहरी होती अंधविश्वास की जड़ें

सूचना क्रांति के दौर में हम भले ही अंतरिक्ष और चांद पर घर बसाने की सोच रहे हों, लेकिन अंधविश्वास अब भी हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा है। वैज्ञानिक युग के बढ़ते प्रभाव के बावजूद अंधविश्वास की जड़ें समाज से नहीं उखड़ रही हैं। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जादू-टोना के नाम पर लोगों को प्रताड़ित किए जाने, आंख फोड़ने, गांव से बाहर निकाल देने सहित कई तरह…

Continue

Added by rajendra kumar on May 23, 2011 at 12:21am — No Comments

फुटकर शेर

दायरे सिमट के रह गए हैं यूँ ग़म-ए-रोज़गार में,
दोस्तों से भी मिला अब तो करते हैं वो बाज़ार में....

पैसा तो हाथों का मैल होता है,
लेकिन अक्सर ये मलाल होता है.
होने लगते हैं हाथ मैले तो,
रिश्तों से क्यूँ, इंसान हाथ धोता है.

‎"नागहाँ ये अजब सा मुकाम आया, 
आज तन्हाई को भी तन्हां पाया.."

Added by AjAy Kumar Bohat on May 21, 2011 at 7:50am — No Comments

पावस आएगा क्या ????

मुझे पता है,

तुम पावस के एक टुकड़े को 

देखते हो टकटकी बांधे ,

आँखों में पाले सपने सा 

नजदीकी रिश्तेदारी में गए अपने सा.

पर अब पावस भी नहीं आता बेलौस

आता है एक धुंधले कुहासे में ढका,

शरमाता,संकुचाता,लडखडाता ,

कभी किसी ठूंठ के कंधे पर 

सर रख सिसकी भरता पावस 

आता है.....

शहर की चौहद्दी पर ठिठकता,

धुएं से सहमता लौट जाता है,

फिर किसी दिन आने को .....

आंचल में मीठा पानी लाने को,

तुम कब तक देखोगे राह पावस की 

वो आएगा तो भी आ नहीं… Continue

Added by Sheel Kumar on May 20, 2011 at 10:45pm — 1 Comment

भोलू का बेटा

आसमां बिजलियों से जो डर जायेगा
फिर ये भोलू का बेटा किधर जायेगा
 
नींद में करवटें जुर्म  ऐलानिया 
जुर्म किस ने किया किस के सर जायेगा
 
जो बताया सलीके में क्या खामियां 
एक अहसान सर से उतर जायेगा
 
ज्ञान पच ना सका वो करे उलटियाँ
जैसे बू से ये गुलशन संवर जायेगा
 
गालियाँ, प्यालियाँ,कुछ बहस,साजिशें 
गर ये सब ना मिला वो…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 19, 2011 at 11:00pm — No Comments

आसमां झुकता है

कभी कभी अपनी आवाज़,

किसी अनदेखे पहाड़ से,

टकरा कर,

वापस लौट आती है,

कभी कभी,

सुबह के इंतज़ार में,

रात के बाद,

फिर रात ही आती है,

जिंदगी तब,

बेईमान लगती है,

और बिलकुल नहीं भाती है;

कभी लाख कोशिशों के बावजूद,

एक राही छूट जाता है,

बहुत सँभालने पर भी,

कांच का गिलास,

टूट जाता है,

कभी अरमानों का पुलिंदा,

एक मन में,

सिमट नहीं पाता है,

और कितना भी,

खाद दो, पानी दो,

बगीचे का एक पौधा,

रोज़ सूख जाता है;

और ऐसे… Continue

Added by neeraj tripathi on May 19, 2011 at 6:48pm — No Comments

कविता : हम-तुम

हम-तुम
जैसे सरिया और कंक्रीट
दिन भर मैं दफ़्तर का तनाव झेलता हूँ
और तुम घर चलाने का दबाव

इस तरह हम झेलते हैं
जीवन का बोझ
साझा करके

किसी का बोझ कम नहीं है
न मेरा न तुम्हारा

झेल लेंगें हम
आँधी, बारिश, धूप, भूकंप, तूफ़ान
अगर यूँ ही बने रहेंगे
इक दूजे का सहारा

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 17, 2011 at 11:44pm — 1 Comment

ग़ज़ल :- पहरे शब्दों पर भी अब पड़ने लगे

ग़ज़ल :- पहरे शब्दों पर भी अब पड़ने लगे

पहरे शब्दों पर भी अब पड़ने लगे ,

घाव जो गहरे थे अब बढ़ने लगे |

 …

Continue

Added by Abhinav Arun on May 17, 2011 at 10:01am — 7 Comments

दो मुक्तक.....

 

= एक =

कोई इंसा "किसी" के लिए - 

सिसकता है, मचलता है, तड़पता है......

रोता है, मुस्कुराता है....

गाता है, गुनगुनाता है....…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on May 17, 2011 at 9:06am — 3 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"//मशाल शब्द के प्रयोग को लेकर आश्वस्त नहीं हूँ। इसे आपने 121 के वज्न में बांधा है। जहाँ तक मैं…"
57 seconds ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है हर शेर क़ाबिले तारीफ़ है गिरह ख़ूब हुई सादर"
21 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
22 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. भाई महेन्द्र जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई। गुणीजनो की सलाह से यह और…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, बेह्तरीन ग़ज़ल से आग़ाज़ किया है, सादर बधाई आपको आखिरी शे'र में…"
5 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा जी बहुत धन्यवाद"
6 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी, आपकी बहुमूल्य राय का स्वागत है। 5 में प्रकाश की नहीं बल्कि उष्मा की बात है। दोनों…"
6 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी। आप की मूल्यवान राय का स्वागत है।  2 मय और निश्तर पीड़ित हृदय के पुराने उपचार…"
6 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय महेंद्र कुमार जी नमस्कार। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।"
6 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी ।सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। अच्छी ग़ज़ल हेतु आपको हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए।  ग़ज़ल हेतु बधाई। कंटकों को छूने का.... यह…"
6 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा यादव जी ।सादर नमस्कार।ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।गुणीजनों के इस्लाह से और निखर गई है।"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service