दरमियाने इश्क जब दुश्वारियां आने लगीं
एक दूजे में नज़र सौ खामियाँ आने लगीं
मैं ये सोचे हूँ कि कोई याद मुझको भी करे
तुम परेशां हो कि फिर से हिचकियाँ आने लगीं
माँ का दामन है या है मेरा बिछौना मखमली
गोद में जाते ही मीठी झपकियाँ आने लगी
हम अकेले रो रहे थे अपने दिल के जख्म पर
और हमारा साथ देने सिसकियाँ आने लगीं
इश्क के झोंके फरेबी खुश्बुओं से क्या मिले
“दीप” फिर नफ़रत भरी कुछ आँधियाँ आने…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on May 14, 2013 at 7:00pm — 5 Comments
जब कली ही मुरझाने लगी , फूल कहाँ से आयेगा | |
फिर निर्जन विरान मरूस्थल में , फूल कहाँ से लायेगा | |
सब तोड़ते रहेंगे कली , पौधा कौन बनाएगा | |
वो दिन भी ऐसा आयेगा , जब गुलशन… |
Added by Shyam Narain Verma on May 14, 2013 at 4:23pm — 7 Comments
हर रात
देखता हूं
एक नदी का सपना
जो भरती है
निर्मल धार
उष्ण अंतस की गहराई तक
नसों में बहते लावे
जिसके घने स्पर्श से
जीवंत हो उठते हैं
पर आंख खुलते ही
घबरा जाता हूं
जब देखता हूं
जलती रेत पर
फड़फड़ाते अंश को
और देह भी तब
भिनभिनाने लगती है
थके डैने थाम पंछी
भी तो सुस्ताते नहीं
और फिर
पन्नों पर दिखती है
दरिया की लकीरें
सिमटी हुई
इंच दर…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on May 14, 2013 at 4:10pm — 12 Comments
आजादी का मतलब
रामगढ़ के जमींदार ठाकुर दानवीर सिंह जैसा उनका नाम था उसी के अनुसार उनका चरित्र एवं व्यवहार था। गरीब कन्याओं के विवाह में मदद करना, किसान की फसल नष्ट होने पर उसके परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी उठाना या कोई भी धार्मिक या सामाजिक कार्यक्रम हो तो उसमें अपना पूरा सहयोग देना उनकी प्राथमिकता थी। अतिथियों का स्वागत करने में तो उनका कोई सानी नही था। अस्पताल, धर्मशाला, विद्यालय उनके द्वारा बनवाये गये साथ ही पशुओं के लिये चारागाह इत्यादि की व्यवस्था भी थी। गरीब…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 14, 2013 at 4:03pm — 10 Comments
ज़िन्दगी की दौड़ में आगे निकलने के लिए ,
आदमी मजबूर है खुद को बदलने के लिए ।
सिर्फ कहने के लिए अँगरेज़ भारत से गए ,
अब भी है अंग्रेजियत हमको मसलने के लिए ।
हाथ में आका के देकर नोट की सौ गड्डियां ,
आ गये संसद में कुछ बन्दर उछलने के लिए ।
गुम गयीं…
Added by Abhinav Arun on May 14, 2013 at 2:05pm — 55 Comments
Added by Abhinav Arun on May 14, 2013 at 1:30pm — 21 Comments
=====ग़ज़ल======
जो पता हो गये निशाने सब
तीर आने लगे चलाने सब
आँख खोली सुबह हक़ीकत ने
ख्वाब टूटे मेरे सुहाने सब
उनकी मासूम अदा देखें जो
थाम लेते हैं दिल दीवाने सब
कितनी तारीफ मैं करूँ उनकी
कम ही लगते हैं ग़ज़लो गाने सब
उनके दीदार जब हुए जाना
क्यूँ भटकते हैं उनको पाने सब
दौरे रुखसत में दोस्त आए हैं
बस जनाज़ा मेरा उठाने सब
झूठ आया है सामने अब तो
जान पाए…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 14, 2013 at 12:07pm — 9 Comments
कॉंग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट की उस टिपण्णी पर ऐतराज़ जताया है की सी बी आई को 'तोता' क्यों कहा? यहाँ दिग्गी राजा का कहना सही लगता है की सुप्रीम कोर्ट को टिपण्णी करने के बजाय फैसला देकर जवाबदेही तय करना चाहिए. दरअसल पिछले कुछ समय से आम जनता भी महसूस कर रही है की कोर्ट की सरकारों को दी जाने वाली बार-बार लताड़ का नतीजा आखिर क्या निकलता है. इससे तो आम सन्देश ये भी जा रहा है की कोर्ट द्वारा सख्त टिप्पणियों को करने के बाद भी देश में भ्रष्टाचार, जघन्य अपराधों में कोई कमी नहीं आ…
ContinueAdded by dinesh solanki on May 14, 2013 at 7:10am — 2 Comments
आपसे मिल कर ये जाना दोस्ती क्या चीज़ है
अब मुझे महसूस होता है,खुशी क्या चीज़ है।।
ख़ून बेमक़सद बहाये, आदमी क्या चीज़ है,
आज तक समझा नहीं वो,जिन्दगी क्या चीज़ है।
धूप आई, बर्फ पिघली, पानी बनकर बह गई,
ये हिमालय जानता है, बेबसी क्या चीज़ है।
कैसे सूरज एक पल में जादू सा कर जाता है,
रात मुझसे पूछती है रोशनी क्या चीज़ है।
अपने-आपे में नहीं है,अब मेरा अपना शरीर,
सोचता हूँ आज मैं, ये आशिकी़ क्या चीज़…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on May 14, 2013 at 12:39am — 18 Comments
बन गया हूँ भिखारी ,लगी थी प्रेम बीमारी !
थोड़ी दया दिखाकर ,मुझको बचाइये !
मुझको ऐसा निचोड़ा ,अब कहीं का ना छोड़ा !
जान बच जाय ऐसी ,युक्ति तो बताइए !!
माना गलती हो गयी ,थोड़ी देर कर गया !
बालक समझकर ,कष्ट से उबारिये !
कान पकड़कर अब ,माफ़ी…
Added by ram shiromani pathak on May 13, 2013 at 9:47pm — 10 Comments
Added by Roshni Dhir on May 13, 2013 at 6:47pm — 16 Comments
चांद सितारे
चुप से हैं।
रात
घनेरी छाई है।।
तेज घनी
दुपहरिया में
अब अंगार बरसते हैं।
तपती
बंजर धरती…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on May 13, 2013 at 6:00pm — 32 Comments
मेरे हित
सच है मां तुमने
केवल जन्नत
मांगी थी
सच कहना पर
कब बहना हित
कोई मन्नत
मांगी थी ?
सदा-सर्वदा
तेरा पूजन
रहा पिता या
मेरे नाम
बहना का पर
रहा हमेशा
एक वहीं
सबका श्रीराम
सच कहना
कब उसकी खातिर
कितनी चौखट
लांघी थी
सदा सर्वदा
मेरी खातिर
दुआ नहीं क्या
मांगी थी ?
और सास बन
तुमने ही…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on May 13, 2013 at 5:21pm — 12 Comments
सखि,चैत्र गया अब ताप बढ़ा।
धरती चटकी सिर सूर्य चढ़ा।
ऋतु के सब रंग हुए गहरे।
जल स्रोत घटे जन जीव डरे।
फिर भी मन में इक आस पले।
सखि पाँव धरें चल नीम तले।
इस मौसम में हर पेड़ झड़ा।
पर, मीत यही अपवाद खड़ा।
खिलता रहता फल फूल भरा।
लगता मन मोहक श्वेत हरा।
भर दोपहरी नित छाँव मिले।
सखि झूल झुलें चल नीम तले।
यह पेड़ बड़ा सुखकारक है।
यह पूजित है वरदायक है।
अति पावन प्राणहवा…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on May 13, 2013 at 8:46am — 21 Comments
Added by Veena Sethi on May 12, 2013 at 12:30pm — 9 Comments
!!! गजल !!!
वज्न-2122, 2122, 2122, 212
तुम जो आये जिन्दगी में, बात सादर हो गयी।
जिन्दगी की सारी सरिता, आज सागर हो गयी।।
आपसी मत भेद भूले, कामना सच हैं नये।
बात रातों की करे तो, चांदनी कर हो गयी।।
हुस्न के जल्वे दिखे है, शाम शबनम की खुशी।
हम सफर जो साथ रहता, आंख कातर हो गयी।।
बन्दगी अब बन्दगी है, रंग - रंगत एक से।
आज फिर राधा-किशन है, बात सुन्दर हो गयी।।
आपकी ही बांसुरी में, गोपियों की लालसा।
राम का दर्शन…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 12, 2013 at 12:00pm — 28 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on May 12, 2013 at 7:17am — 8 Comments
"सावन की झम झम हो
पायल की छम छम हो
भीगा भीगा तन मन हो
कोई प्यार का सरगम हो
खोई खोई सी धड़कन हो
और तू मेरी…
Added by Kedia Chhirag on May 12, 2013 at 12:30am — 9 Comments
Added by yatindra pandey on May 11, 2013 at 10:30pm — 11 Comments
मैं कैसे सोऊँ ??
नौ माह का अंकुर पूर्ण हुआ
व्याकुल जग पंथ निहारता
गर्भ नाल में जब हुई पीड़ा
रक्त माँ- माँ कह पुकारता
मैं कैसे सोऊँ ?
जब बिस्तर उसका हुआ गीला
वो करवट करवट जागता
मुख ,उँगलियाँ मचलती वक्ष पर
पय उदधि हिलौरे मारता
मैं कैसे सोऊँ ?
रोटी का कौर लिए फिरती
वो नाक चढ़ा चिंघाड़ता
मैं कलम किताब दूँ हाथों…
ContinueAdded by rajesh kumari on May 11, 2013 at 10:00pm — 16 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |