For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

March 2012 Blog Posts (129)

बहू या अलादीन का चिराग

एक बात समझ में नहीं आती है कि जब हमारी हैसियत नहीं होती तो क्यों दूसरे परिवार की प्यारी सी बिटिया को अपने घर में बहू बनाकर लाते है. क्या हम इतने निकम्मे, लूले-लंगडे हो गए है कि बेटे व परिवार की सुख-सुविधा की वस्तुओं को एकत्र करने की नियत के साथ दूसरे से धन ऐंठने के लिए उनकी प्यारी सी बिटिया को विवाह मंडप में अग्नि के सात फेरों के बाद अपने घर ले आते है. फिर उस परिवार की मजबूरी बन जाता है कि वह अपनी बिटिया की खुशी के लिए वह सब कुछ करे, जो हम चाहते है. क्योंकि हम तो पहले से ही इतने कंगाल हैं,…

Continue

Added by Harish Bhatt on March 8, 2012 at 12:04pm — 3 Comments

होली आई रे



 नीला   रंग अम्बर पे धरा हरियाली छायी है 

फीकी पड़ी वसंत बयार लगे होली आयी है 
चहके कानन फूला उपवन चली पवन मतवाली है 
पुलकित तन  बहके मन आनन् पे  छायी लाली  है 
फीकी पड़ी वसंत बयार .........
अमराई फूली सरसों फूली डार डार कोयलिया कूकी 
चातक पपीहा विरही प्रियतमा पिया मिलन हिय हूकी 
फीकी पड़ी वसंत बयार…
Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 7, 2012 at 7:26pm — 1 Comment

तक धिनैया तक धिनैया फागुन के बयार

 [चित्र द्वारा: सोनाली सिंह ]


तक धिनैया तक धिनैया फागुन के…
Continue

Added by Sulabh Jaiswal on March 7, 2012 at 5:08pm — 2 Comments

होली एक चुनौती

आपको और आपके परिवार को रंगों के त्यौहार होली की हार्दिक शुभकामनाएं

हम खुशनसीब है कि जिंदगी ने हमको अपने गिले-शिकवे दूर करने का एक और मौका दिया है। माना जाता है कि रंगो की होली में गिले-शिकवे बह जाते है। भले ही दिखावे के लिए ही सही, लोग एक-दूसरे के गले मिलकर होली की बधाई के साथ-साथ अपने को पाक-साफ बताते है, तो इसमें क्या बुरा है। आखिर होली का मकसद ही है बैर-भाव भुला कर प्यार से एक-दूसरे के गले लग जाना। वैसे भी दिखावे का जमाना है, तो दिखाने के लिए ही सही, कुछ बुराई तो कम होगी ही हमारे…

Continue

Added by Harish Bhatt on March 6, 2012 at 9:43am — 1 Comment

भारत और हम









भारत सदैव 
आजाद था
आजाद है 
आजाद रहेगा 
 गुलामी और आजादी
 का कैसे भान हो 
शासक कोई, शासन कोई 
चाहें जो सरकार हो 
जब मानसिकता विकलांग हो 
भारत कभी जकड़ा नहीं 
गुलामी की जंजीर में 
देखने का…
Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 5, 2012 at 3:50pm — 11 Comments

जरूरत सोच बदलने की

हर सोच, हर कल्पना, हर विचार पर हजारों पन्ने लिखे जा चुके है. कुछ लोगों की दुष्ट मानसिकता की बदौलत आज तक भी हम गुलामी की मानसिकता से पूरी तरह नहीं उबर पाए है. समय के साथसाथ गुलामी की परिभाषा भी बदल गई. पहले विदेशियों का कब्जा होने से हम गुलाम थे. उनको खदेड़ा, तो अब यहां धार्मिक, राजनैतिक ताकतों के गुलाम हो गए. जो इनकी सीमाओं से बाहर रहने का साहस दिखाए, वह समाज के अयोग्य नागरिकों में शामिल कर दिया जाता है. बहरहाल बात यह है कि कुछ लोग अपने जीवनकाल में वह मुकाम हासिल करते है, जिनके आचरण को आदर्श…

Continue

Added by Harish Bhatt on March 5, 2012 at 1:32pm — 3 Comments

कटी पतंग (एक बलात्कार -पीड़िता का ग़म)

 
ना मैं हंसी हूँ - ना मैं ख़ुशी हूँ, ना मैं रंग -उमंग हूँ.
मेरा जीवन एक अफसाना , मैं एक कटी पतंग हूँ.
डोर से कटकर लटक गयी हूँ, मंजिल -पथ से भटक गयी हूँ.
कोई रंग चढ़े भी कैसे , मैं ऐसा बदरंग हूँ.
मेरा जीवन एक अफसाना , मैं एक कटी पतंग हूँ.
तूफानों में जकड़ गयी हूँ, साहिल से मैं बिछड़ गयी हूँ.
किस मुँह से बाबुल से कहूँ मैं, रंज़ोग़म के संग हूँ.
मेरा जीवन एक अफसाना , मैं एक कटी पतंग हूँ.
किस -किस…
Continue

Added by satish mapatpuri on March 4, 2012 at 5:20pm — 7 Comments

ग़ज़ल- गालियों से पेट भर रोटी नहीं तो क्या हुआ

 

ग़ज़ल- गालियों से पेट भर रोटी नहीं तो क्या हुआ

 

ये व्यवस्था न्याय की भूखी नहीं तो क्या हुआ ,

गालियों  से पेट भर रोटी नहीं तो क्या हुआ |

 

पार्कों में रो  रही  हैं गांधियों…

Continue

Added by Abhinav Arun on March 4, 2012 at 10:43am — 18 Comments

ओ बी ओ का नव रूप ..

कितने वक़्त के बाद आई यहाँ ..

जैसे…
Continue

Added by Lata R.Ojha on March 4, 2012 at 2:30am — 11 Comments

गुफ़्तगू पत्रिका का आनलाईन विमोचन व मुशायरा धूमधाम से सम्पन्न

इलाहाबाद। एक पुलिसकर्मी हमेशा डंडा ही नहीं चलाता बल्कि कलम उठाकर अपनी अभिव्यक्ति भी खूबसूरती से व्यक्त कर सकता है। इश्क सुल्तानपुरी ने इस को बेहतरीन ढंग से करके दिखाया है। इन्होंने अपनी काव्य सृजन की क्षमता से लोगों को अवगत करा दिया है। यह बात डीआईजी कार्मिक श्री लाल जी शुक्ल ने ‘गुफ्तगू’ के इश्क सुल्तानपुरी अंक के विमोचन के अवसर पर कही। उन्होंने कहा कि इश्क साहब की शायरी को लोगों तक लाने में गुफ्तगू पत्रिका ने महत्वपूर्ण भूमिका…

Continue

Added by वीनस केसरी on March 3, 2012 at 9:30pm — 7 Comments

जुदाई (गजल)

अपनों से जुदा अपने,होते हैं कहां प्रियवर।

अनमोल रतन धन,खोते हैं कहां प्रियवर॥



नजरों से दूरी तो,दूरी ही नहीं होती।

दिल से अलग अपने,होते हैं कहां प्रियवर॥



आंखों में आंसू हैं,अपनों के लिए ही हैं।

गैरों के लिए हम,रोते हैं कहां प्रियवर॥…



Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 3, 2012 at 9:30pm — 15 Comments

भूला कहाँ हूँ कच्चा घर अपने गाँव का

भूला कहाँ हूँ कच्चा घर अपने गाँव का ||

जो बना था लकड़ी का दर अपने गाँव का ||

थी वो महकती मिटटी और वो कच्ची गली ,

घूमे  ख़्यालों में  मंज़र अपने  गाँव का ||

आँखे हुई नम , देखकर  पानी  बरसात  का ,

जो याद आये जोहड़ अक्सर अपने गाँव का ||

जब…

Continue

Added by Nazeel on March 3, 2012 at 7:00pm — 11 Comments

प्रथम पुष्प

प्रथम पुष्प अर्पित तुमको, मसलो या श्रृंगार करो,

आया तेरे द्वार प्रभु, मेरा बेड़ा पार करो ,



चाहत थी जीवन की मेरी, दुखियों का दर्द उधार लूं

उजड़ चुके है जिनके घर,…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 3, 2012 at 3:00pm — 26 Comments

अपवाद मेरे जीवन के

विकल्पों की इस दुनियां में

बेरस से इस जहां में

तुम्ही कहो क्यों ढूँढूँ विकल्प तुम्हारा

तुम ही तो वो लम्हा हो

जिसे जीया है मैने

तुम्हारी ही सॉसों के बिगङते तरन्नुम को

तो गीतों में पिरोया है मैंने

तुम्ही पर छोङ रखी है हर ख्वाहिश

 एक ही तो है सपना,जिसे तुम्हारी ही

आंखों से देख रखा है मैने

तुम्हारे ही हर लफ्ज को कैद रखा है दिल में,

जिसे तुम्हारा ही आशियां बनाया है मैने

तुमसे ही तो खुशियों-गमों का रिश्ता…

Continue

Added by minu jha on March 3, 2012 at 1:00pm — 26 Comments

दुनियादारी के दस हाइकू

फूटा ठीकरा

शेख बच निकला

तू था मुहरा

 

ढूंढ़ बकरा

शनैः रेत लो गला

दे चारा हरा

 

बेजुबाँ खरा

हक माँगने लगा

तो दोष भरा

 

अना दोहरी

नश्तर सी चुभन

दगा अखरी!

 

यहाँ खतरा

ईश्वर हुआ अंधा

इन्सां बहरा

 

यार बिसरा

अब यहाँ क्या धरा

चलो जियरा

 

छटा कुहरा

छद्म बंधन मुक्त

पिया मदिरा

 

समा ठहरा

इंद्रधनुषी दुनिया

नशा…

Continue

Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 3, 2012 at 10:30am — 17 Comments

-:प्रेम के कुछ मुक्तक:-

"कम से कम दो कदम प्रेम पथ पर चलें"…




Continue

Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 3, 2012 at 1:30am — 13 Comments

हाइकु गीत



 खुद बेवफा

 दूसरों से चाहते

 करें वो वफा |…

Continue

Added by dilbag virk on March 2, 2012 at 8:42pm — 6 Comments

वक़्त का वज़ूद

वक़्त का वज़ूद

वक़्त की बेलगाम रफ़्तार का वज़ूद

दिखता है चेहरे की गहराती लकीरों में

या मिलता है जीवन की भूलभुलैया में

स्नेहसिक्त माँ की आँचल में मौज़ूद

है अब भी मेरे होने की महक

सन्नाटों में गूँजती है मेरी चहक ।

चलती थी एक गुड़िया उँगलियों को थामे

उन काँपती बेजान हाथों की नरमी

और छुपी उनमे उनके नेह की गरम

उन्हीं थापों से बीतती हैं रातें ,हँसती है शामें ।

चराचर का भेद समझा जब ज्ञानदीप से

जीवन को गुज़रता देखा सामने से

अतीत के गर्त में…

Continue

Added by kavita vikas on March 2, 2012 at 7:34pm — 6 Comments

अंतस का कोना...

बतकही कितनी भी
कर लूँ
रहता है खाली खाली
अंतस का कोना
ढोल बजा लूँ कितनी भी
रहता है सुना सुना
अंतस का कोना
शब्दों का मायाजाल है
जिंदगी का ख्याल है
कोशिश कितनी भी कर लूँ
रहता उदास है
अंतस का कोना
इश्वर के दरबार में
सब के लिए अरदास है
चलो अक दीप जला लूँ
जुगनुओ को दोस्त बना लूँ
अपनेपन के शोर से
गुंजित कर लूँ
अंतस का कोना.....

Added by MAHIMA SHREE on March 2, 2012 at 5:52pm — 9 Comments

मेरे कुछ हाइकू...( 5 - 7- 5 )

1.

प्रकृति प्यारी 

रुई बिछी धरती

ये बर्फ़बारी .

२.

मुखौटे छाए

जनमानस लुटा

चुनाव आये .

३.

उड़ते गिद्ध

फिर मारा आदमी

लो आया युद्ध .

४.

ये दुपहरी 

अलसाया शरीर

जेठ का माह .

रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 2, 2012 at 5:26pm — 6 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
11 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service