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February 2014 Blog Posts (175)

है मुहब्बत चीज ऐसी (ग़ज़ल ) -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122    2122    2122    2122



राह  में  अवरोध  जितने, ओ!  जमाने  तूँ  लगा  ले

है  मुहब्बत  चीज  ऐसी, रास्ता  फिर  भी  बना  ले



हर जुनूँ  कमतर  है इसको, आग इसकी  कौन रोके

आशिकी  पीछे  हटी  कब, इम्तहाँ  गर  जो खुदा ले 



कैश  की  हर  पीर  लैला,  खीच  लेती  ओर  अपनी

है मुहब्बत को बहुत कम, जुल्म जग जितने बढ़ा ले

इस मुहब्बत की बदौलत, शिव फिरे ले शव सती का

अंध   देखे  रंग  दुनिया, नेह  में  जब  मन  रमा  ले

खत्म …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 14, 2014 at 7:00am — 13 Comments

हाशिये में प्रेम

जाने क्या सोचकर 

.......उसने भेजा 

एक गुलाब 

एक मुस्कान 

एक चितवन 

एक सरगोशी 

एक कामना 

एक आमंत्रण 



और मैंने पलटकर 

उसकी तरफ देखा भी नही 

भाग लिया 

उस तरफ 

जहां काम था 

चिंताएं थीं 

अपूर्णताये थीं 

सुविधाएं थीं 

अनुकूलताएँ थीं 

थकन और 

स्वप्न-हीन निद्रा…

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Added by anwar suhail on February 13, 2014 at 8:43pm — 6 Comments

अपने हाथों के लकीरों को बदल जाऊंगा.............

अपने हाथों के लकीरों को बदल जाऊंगा

यूँ लगा है की सितारों पे टहल जाऊंगा ll



जर्रे-जर्रे में इनायत है खुदाया अब तो

तू है दिल में बसा मैं खुद में ही ढल जाऊंगा ll



रो लिया चुपके जरा हस लिया हमनें ऐसे

ज़ख्म तो दिल के दबाकर मैं बहल जाऊंगा ll



प्यार में गम है मिला दिल हो गया ये घायल

ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊंगा ll



है कशिश तीरे नज़र टकरा गयी हमसे जो

इक छुवन से ही जरा उसके मचल जाऊंगा ll



तू खुदा, बंदा मैं हूँ , हाथ जो सर पे रख…

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Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on February 13, 2014 at 5:30pm — 8 Comments

धुंए का गुबार : नीरज नीर

मेरी आँखों के सामने

रूका हुआ है

धुएं का एक गुबार 

जिस पर उगी है एक इबारत ,

जिसकी जड़ें

गहरी धंसी हैं

जमीन के अन्दर.

इसमें लिखा है

मेरे देश का भविष्य,

प्रतिफल , इतिहास से कुछ नहीं सीखने का .

उसमे उभर आयें हैं ,

कुछ चित्र,

जिसमे कंप्यूटर के की बोर्ड

चलाने वाले , मोटे चश्मे वाले

युवाओं को

खा जाता है,

एक पोसा हुआ भेड़िया,

लोकतंत्र को कर लेता है ,

अपनी मुठ्ठी में…

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Added by Neeraj Neer on February 13, 2014 at 9:00am — 21 Comments

अभिलाषा - कविता !!

देवदार के पत्ते पर 

बर्फ के कतरे जितनी

मेरी अभिलाषा |

उस पर भी दुनिया की सौ-सौ शर्तें

सौ-सौ पहरे

तीक्ष्ण-तल्ख भाषा |

पलकों की ड्योढ़ी पर बैठे स्वप्न

कुछ नेपथ्य में टूट-फूट

करते विलाप

सभी प्रतीक्षारत, कब छँटे

घना कुहासा |

प्रस्वेदित तन

म्लानता का प्रचण्ड सूरज

जीवन नभ पर

और सिद्धि की

शून्य सदृश आशा |

भिक्षुक द्वार खड़ा आशीष लिए

दानी परदे में बैठा

यहाँ कौन भिक्षुक…

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Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 13, 2014 at 12:51am — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
पहचानो आवाज-दोहे

इक गुलदस्ते की तरह, सजा हमारा देश।

तरह-तरह के लोग हैं, तरह-तरह के वेश।।

 

जाति धर्म के फेर में, उलझ गया इंसान।
प्रेम शांति का मार्ग है, सत्य यही लो जान।।

 

तुम अपनी पूजा करो, औ मैं पढ़ूँ नमाज।

बस इतना ही फर्क है, अपना एक समाज।।

 

मक्कारी औ झूठ से, जो ना आये बाज।

उसकी भाषा लो समझ, पहचानो आवाज।।

(मौलिक व अप्रकाशित)* संशोधित

Added by शिज्जु "शकूर" on February 12, 2014 at 9:30pm — 22 Comments

थोड़ा हँस लो थोड़ा गा लो [गीत]

आओ कुछ तो समय निकालो

थोड़ा हँस लो थोड़ा गा लो |

जीवन की आपाधापी में

अपने पीछे छूट न जाएँ

नन्हे सपने टूट न जाएँ

जरा नया उत्साह जगा लो

थोड़ा हँस लो.......

अपने हम से रूठ गए जो

जीवन पथ पर छूट गए जो

उनकी यादों से अब निकलो

रूठ गए जो उन्हें मना लो

थोड़ा हँस लो........

देख समय ने करवट खाई

फिर क्यों है मायूसी छाई

दे दो गम को आज विदाई

बुरे समय को हँस कर टालो

थोड़ा…

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Added by Sarita Bhatia on February 12, 2014 at 3:00pm — 31 Comments

अब वो भोर कहाँ !

वो मुर्गे की बांग

वो चिडियों की चीं-चीं

वो कोयल की कूक

अब वो भोर कहाँ ..



वो जांत का घर्र-घर्र

वो चूड़ी की खन-खन

वो माई का गीत

अब वो भोर कहाँ ..



वो कंधे पर हल

वो बैलों की जोड़ी

वो घंटी का स्वर

अब वो भोर कहाँ ..



वो पहली किरन

वो अर्घ-अचवन

वो पार्थी की पूजा

अब वो भोर कहाँ ..



वो माई की टिकुली

वो पीला सिन्दूर

वो पायल की छम-छम

अब वो भोर कहाँ ..



वो…

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Added by Meena Pathak on February 12, 2014 at 3:00pm — 17 Comments

आग पानी से जलाकर देख लेते ( गज़ल ) - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122    2122    2122



आँख में  उनकी  छिपा डर  देख लेते

जल गये  जो आप  वो घर  देख लेते



कर दिया अंधा सियासत ने सहज ही

आप वरना  खूँ  के  मंजर  देख  लेते



क्यों किसी  के  आसरे पर  आप बैठे

कुछ नया खुद आजमाकर देख लेते



बात करते हो बहुत तुम न्याय की जब

हाकिमों नित  क्यों कटे  सर देख लेते



खूब   सुनते   है  तेरी  जादूगरी   की

आग  पानी  से  जलाकर  देख  लेते



सोच लेता मैं  कि  जन्नत पा गया हूँ …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 12, 2014 at 7:30am — 16 Comments

रूप-सौन्दर्य

रति भी तू,कामना भी तू,                                                                  

कवि  की सुंदर कल्पना है,

प्रेम से भरी मूरत है तू,

कुदरत का कोई करिश्मा है ...

सांवली रंगत,सूरत मोहिनी,

कातिलाना तेरी अदाएं है,

सात सुरों की सरगम तू,

फूलों की महकती डाली है....

नयन तेरे काले कज़रारे है,

लब ज्यूँ मय के प्याले है,

जिन पर हम दिल हारे है,

उल्फ़ते-राज़ ये गहरे है ....

हुस्नों-हया की मल्लिका…

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Added by Aarti Sharma on February 12, 2014 at 12:30am — 15 Comments

कुंडलियाँ छंद-लक्ष्मण लडीवाला

टिकती है क्या झूठ पर, रिश्ते की बुनियाद

झूठ बोल हर बात में, करते सदा विवाद |

करते सदा विवाद, सवाल पूछ कर देखे

मुखड़ा करे बयान, होंठ व ननन जब निरखे 

कहते है कविराय. कभी न सत्यता छिपती

रिश्ते की बुनियाद कभी न झूठ पर टिकती ||

(2)

डाली डाली में जहाँ,फूलों की मुस्कान,

मेरा देश अखंड वह, भारतवर्ष महान 

भारतवर्ष महान,छटा है मोहक न्यारी  

दुल्हन जैसा रूप,जहां खिलती हर क्यारी 

लक्ष्मण…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 11, 2014 at 7:30pm — 11 Comments

दोहा...........पूजा सामाग्री का औचित्य

दोहा...........पूजा सामाग्री का औचित्य

रोली पानी मिल कहें, हम से है संसार।

सूर्य सुधा सी भाल पर, सोहे तेज अपार।।1

चन्दन से मस्तक हुआ, शीतल ज्ञान सुगन्ध।

जीव सकल संसार से, जोड़े मृदु सम्बन्ध।।2

अक्षत है धन धान्य का, चित परिचित व्यवहार।

माथे लग कर भाग्य है, द्वार लगे भण्डार।।3

हरी दूब कोमल बड़ी, ज्यों नव वधू समान।

सम्बन्धों को जोड़ कर, रखती कुल की शान।।4

हल्दी सेहत मन्द है, करती रोग-निरोग।

त्वचा खिले…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 11, 2014 at 6:28pm — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मन – पाँच दोहे

मन – पाँच दोहे

************

मन को मत कमजोर कर , फिर से होगी भोर

फिर से गुनगुन धूप में , नाचेगा मन मोर 

 

मन, आखें मीचे अगर , खूब मचाये शोर

आँख अगर हो  देखती , मन…

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Added by गिरिराज भंडारी on February 11, 2014 at 6:00pm — 28 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
दायरा ....(डॉ० प्राची )

दायरा...

       सोच का,

       मन की उड़ान के

       परिचित आसमान का,

       अंतर्भावनाओं के विस्तार का,

       अनुभूतियों के सुदूर क्षितिज का,

समयानुरूप

स्वतः विस्तारित हो, तो कैसे ?

 

तन मन बुद्धि अहंकार की

लोचदार चारदीवारी मैं कैद...

संकुचन के बल-प्रतिबल

से संघर्षरत,

होता क्लिष्ट से क्लिष्टतर

जटिल से दुर्भेद फिर अभेद

कर्कश कट्टर असह्य  

 

आखिर

कौन सचेत, पहचानता है…

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Added by Dr.Prachi Singh on February 11, 2014 at 1:00pm — 15 Comments

मिले दिल से साथ (नवगीत)

मंदिर मस्जिद द्वार

बैठे कितने लोग

लिये कटोरा हाथ



शूल चुभाते अपने बदन

घाव दिखाते आते जाते

पैदा करते एक सिहरन

दया धर्म के दुहाई देते

देव प्रतिमा पूर्व दर्शन



मन के यक्ष प्रश्‍न

मिटे ना मन लोभ

कौन देते साथ



कितनी मजबूरी कितना यथार्थ

जरूरी कितना यह परिताप

है यह मानव सहयातार्थ

मिटे कैसे यह संताप

द्वार पहुॅचे निज हितार्थ



मांग तो वो भी रहा

पहुॅचा जो द्वार

टेक रहा है माथ



कौन भेजा उसे यहां पर

पैदा…

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Added by रमेश कुमार चौहान on February 11, 2014 at 12:08pm — 6 Comments

सुना है मैने वसंत आ गया है

सुना है मैने वसंत आ गया है। पेडों पे नये पत्ते बौर और आम्रकुजों मे अमराइंया आ गयी है। कोयलें कभी मुंडेर पे तो कभी डालियों पे कुहुकने लगी हैं। विरहणियां सजन के बिना एक बार फिर हुमगने लगी हैं। सखियां हाथों मे मेहंदी लगा के झूला झूलने लगी हैं। कवियों के मन मे भावों के नव पल्लव लहलाहाने लगे हैं। हवाएं इठलाने लगी हैं। घटाएं मचलने लगी है। साजिंदे अपने साज सजाने लगे हैं गवइये कभी राग विरह तो कभी राग सयोंग गाते हुए कभी उठान पे तो कभी सम पे आने लगे हैं। हर तरफ लोग हर्षों उल्लस मनाने लगे है। ऐसा ही सब…

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Added by MUKESH SRIVASTAVA on February 11, 2014 at 12:00pm — 4 Comments

कह मुकरियाँ (कल्पना रामानी)

इस विधा में मेरा प्रथम प्रयास(1से 10)

1)

रखती उसको अंग लगाकर।

चलती उसके संग लजाकर।

लगे सहज उसका अपनापन।

क्या सखि, साजन?

ना सखि, दामन!

 2)

दिन में तो वो खूब तपाए।

रात कभी भी पास न आए।

फिर भी खुश होती हूँ मिलकर।

क्या सखि साजन?

ना सखि, दिनकर!

 3)

वो अपनी मनमानी करता।

कुछ माँगूँ तो कान न धरता।

कठपुतली सा नाच नचाता।

क्या सखि साजन?

नहीं, विधाता!

 4)…

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Added by कल्पना रामानी on February 11, 2014 at 10:30am — 38 Comments

एक कवि की पाती वीर जवानों के नाम

एक पुरानी रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ ,इस  रचना का जन्म उस समय हुआ जब कारगिल में युद्ध चल रहा था |

" एक कवि की पाती वीर जवानों के नाम "



देश के वीर जवानों प्यारे , मेरी पाती नाम तुम्हारे |

नहीं पहुँचती कलाम ये मेरी , वहाँ खड़ी बन्दूक तुम्हारी ||

नहीं लिखी है ये शाही से , लिखी गई है जिगर लहू से |

जमी हमारी है ये थाती , हो इस दीपक की तुम बाती ||

देश के दुश्मन आए तो , खून उनका तुम बहा देना |

गोली आए दुश्मन की तो , छाती मेरी भी ले लेना ||

कतरा-कतरा…

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Added by chouthmal jain on February 10, 2014 at 11:30pm — 6 Comments

दोहा-१४(विविधा)

रह जाएगा धन यहीं,जान अरे नादान!

इसकी चंचल चाल पर,मत करिये अभिमान!!

सत्कर्मों से तात तुम,कर लो ह्रदय पवित्र!

उजला उजला ही दिखे,सारा धुँधला चित्र!!

सागर में मोती सदृश,अंधियारे में दीप!

पाना है यदि राम को,जाओ तनिक समीप!!

मन गंगा निर्मल रखें,सत्कर्मों का कोष!

ऐसे नर के हिय सदा,परम शांति संतोष!!

जाग समय से हे मनुज,सींच समय से खेत!

समय फिसलता है सदा,ज्यों हाथों से रेत!!

मन करता फिर से चलूँ,उसी…

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Added by ram shiromani pathak on February 10, 2014 at 10:30pm — 19 Comments

ग़ज़ल : नयन में प्यार का गौहर सम्हाल रक्खा है

बह्र : १२१२ ११२२ १२१२ २२

---------

सभी से आँख चुराकर सम्हाल रक्खा है

नयन में प्यार का गौहर सम्हाल रक्खा है

 

कहेगा आज भी पागल व बुतपरस्त मुझे

वो जिसके हाथ का पत्थर सम्हाल रक्खा है

 

तेरे चमन से न जाए बहार इस खातिर

हृदय में आज भी पतझर सम्हाल रक्खा है

 

चमन मेरा न बसा, घर किसी का बस जाए

ये सोच जिस्म का बंजर सम्हाल रक्खा है

 

तेरे नयन के समंदर में हैं भँवर, तूफाँ

किसी के प्यार ने लंगर सम्हाल…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 10, 2014 at 8:13pm — 25 Comments

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