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January 2017 Blog Posts (139)

ग़ज़ल...बे-रंग-ओ-बू है ये ज़िंदगानी

121 22 121 22 121 22 121 22

बशर परेशां दरकतीं राहें पहाड़ सी ज़िन्दगी हुई है

कदम जहाँ सकपका के रक्खा वहीँ ज़मीं दलदली हुई है



बे-रंग-ओ-बू है ये ज़िंदगानी हँसी सा कोई मक़ाम दे दो

कि ये उदासी मेरे लवों पे कई दिनों से बसी हुई है



जिन्हें संभाला जिन्हें सँवारा वो ख्वाब जाने क्यों रूठ बैठे

सुबह से पलकों पे ओस आई औ आँख भी शबनमी हुई है



कफ़स से तो हम निकाल लाये मगर छुपाया ज़माने भर से

कि शूल बन कर वही सदा अब ह्रदय के अन्दर चुभी हुई है



अज़ब… Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 5, 2017 at 9:30am — 23 Comments

मुझे याद है ....

मुझे याद है

जानबूझ कर वो मेरा सामान भूल जाना....
ज़ोर देकर तुमने

जिसे  कहा बार बार कि ले जाना ...
कि इसी बहाने

चोरी से तुम उसे रख दोगी...
और मुझे फिर

एक बहाना मिल जाएगा

इस तरह मुस्कुराने का....


मौलिक और अप्रकाशित।

Added by ASHUTOSH JHA on January 4, 2017 at 8:00pm — 14 Comments

प्रेम गीत

मीत नहीं

संगीत नहीं

प्रेम का कोई गीत नहीं ।



दिल ही नहीं

धड़कन ही नहीं

जीवन की यह रीत नहीं ।



इंसान हैं तो दिल भी होगा

दिल में बसा संगीत भी होगा

बिन संगीत जीवन नहीं ।

बिना प्रीत के मिलन नहीं ।



गाओ गाओ मधुर तराने

प्रेम के होते बहुत फ़साने

बिना फ़साने के प्रेम नहीं

प्रेम नहीं तो जीत नहीं ।



जियो जियो तो ऐसे जियो

मधुर प्रेम के प्याले पियो

प्याले में मिश्री भी घोलो

मीठी मीठी वाणी बोलो… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 4, 2017 at 4:03pm — 17 Comments

मुस्कुरा दे वो अगर समझो सवाल अच्छा है (तरही गजल)

बह्र 2122 1122 1122 22



सोने चाँदी का जहाँ में न ख़याल अच्छा है

वक़्त पर काम जो आये वही माल अच्छा हैं।



हम जवाब़ो से परखते है रजामंदी को

मुस्कुरा दे वो अगर समझो सवाल अच्छा हैं।



शोर चलने नहीं देता है ये संसद यारो

फिर भी कैसे मै कहूँ ये कि बवाल अच्छा है।



एक सीमा में है अल्फाज़ पे सख़्ती लाज़िम

हद में रह कर जो करेंगे वो धमाल अच्छा है।।



मर रहे भूख से बच्चे तो कही बेबस माँ

वो समझते है कि इस देश का हाल अच्छा… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 4, 2017 at 2:00pm — 16 Comments

शराफत रास दुनिया को कहां आती है कहिए भी-ग़ज़ल

1222 1222 1222 1222



वो दिन बेहतर थे जो गुजरे मेरे आवारगी में ही

शराफ़त रास दुनिया को कहाँ आती है कहिये भी



जला डाले सभी सपने ये दुनिया तो सितमगर है

कहाँ पहले कभी बिखरी थी मन पे रात की स्याही



न अब मासूमियत बाक़ी न अब बेफ़िक्री का मौसम

सहर आते थमा देती पिटारी जिम्मेदारी की



न जाने ढूँढता है क्या किधर को जा रहा है मन

भला क्यूँ रास आती ही नहीं दुनिया की ये क्यारी



गज़ब इंसानियत बदली फ़िदा है बस दिखावे पर

नज़र हर आंकती कीमत हुआ… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 3, 2017 at 11:30pm — 27 Comments

ग़ज़ल -- जुमलों के तरकश ने तीर उछाले हैं ( दिनेश कुमार 'दानिश' )

22--22--22--22--22--2



जुमलों के तरकश ने तीर उछाले हैं

अच्छे दिन क्या सचमुच आने वाले हैं



नागनाथ और साँपनाथ में फ़र्क नहीं

तन उजले लेकिन मन इनके काले हैं



साँपों को भी दूध पिलाते हैं अक्सर

ज़ह्नों पर हम सब के कैसे ताले हैं



रोटी की फिर देखो बंदरबाँट हुई

कुछ भूखों के मुँह से छिने निवाले हैं



राहनुमा की शक़्ल में रहज़न हैं सारे

रात की आहट से ही डरे उजाले हैं



बारिश से बचते हैं जब तक रँगे सियार

शेर को भी तब… Continue

Added by दिनेश कुमार on January 3, 2017 at 10:00pm — 13 Comments

चांदनी ... (क्षणिका)

चांदनी ... (क्षणिका)

तमाम शब्
माहताब
अर्श पर
मुझे

घूरता रहा
रकीबों सा

निचोड़ता रहा
मन की झील पर
मैं
उसकी
चांदनी

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on January 3, 2017 at 5:40pm — 23 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
दोहा गीत - मिथिलेश वामनकर

पिया खड़े है सामने,

घूंघट के पट खोल।

 

चुप रहने से हो सका, आखिर किसका लाभ,

आज समय की मांग है, नैनो में रक्ताभ।

आधी ताकत लोक की,

अपनी पीड़ा बोल।

 

पौरुषता का वो करें, अहम् हजारों बार,

लेकिन तेरे बिन सखी, बिलकुल है लाचार।

वो आयेंगे लौटकर,

सारी धरती गोल।

 

जननी से बढ़कर भला, ताकत किसके पास,

आज संजोना है तुम्हें, बस अपना विश्वास।

हिम्मत से मिटना सहज,

जीवन का ये झोल।

 

अपने…

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Added by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2017 at 10:00am — 31 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल -उसका दावा है कि वो भटका नहीं है -- ( गिरिराज भंडारी )

2122   2122    2122

बात कहने का सही लहज़ा नहीं है

या जो रिश्ता था कभी, वैसा नहीं है

 

वो ये कह लें, उनमें तो धोखा नहीं है

पर हक़ीकत है, उन्हें मौक़ा नहीं है

 

गर दशानन आज भी है आदमी में

औरतों में क्या कहीं सुरसा नहीं है ?

 

जो न चल पाया कभी इक गाम अब तक

उसका दावा है कि वो भटका नहीं है

 

ज़ुर्म की गंगा सियासत से है निकली

लाख कह लें, वो कि सच ऐसा नहीं है

 

योजनायें उच्च –निम्नों…

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Added by गिरिराज भंडारी on January 3, 2017 at 9:30am — 30 Comments

दर्द दे गया (नज़्म)

न जाने क्यों उनका इंतज़ार करती हूँ
न आये कभी जो उनसे प्यार करती हूँ

देखा था उनकों पहली बार जब
नयन से नयन मिले थे तब
कशिश थीं उनकी आँखों में
डूबती गयी उनकी बाँहों में ।

स्पर्श था प्रथम वो मेहबूब का
एहसास था प्यार का प्रीत का
थामा जब हाथ उन्होंने मेरा
तब शर्माया था दामन मेरा ।


एक ख़्वाब ही तो था
जो प्यार का एहसास था
वो दर्द दे गया है मुझे
आह निकली है मुख से ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 2, 2017 at 10:03pm — 14 Comments

अमोल आभाएँ

तुम्हारे स्नेह की रंगीन रश्मि

मैं उद्दीप्त

गंभीर-तन्मय ध्यानमग्न

कहीं ऊँचा खड़ा था

और तुम

मुझसे भी ऊँची ...

वह कहकहे

प्रदीप्त स्फुलिंगों-से

हमारी वार्ताएँ मीठी

चमकती दमकती

आँखों में रोशनी की लहर-सी

तुम्हारी बेकाबू दुरंत आसमानी मजबूरी

बरसों पहले की बात

अचानक चाँटे-सी पड़ी

ताज़ी है आज भी

गुंथी तुमसे

उतनी ही मुझसे

बिंध-बिंध जाती है

वेदना की छाती को…

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Added by vijay nikore on January 2, 2017 at 8:40pm — 22 Comments

आख़िरी चाँद

सीनियर अफसर के साथ हुई बातचीत अभी भी उसके कॉकपिट में गूँज रही थी। "तुम्हें बम उन पहाड़ियों के बीच स्थित दुश्मन के अड्डे पर गिराना है।"



और देशवासियों की भी। "उन पापियों का नामोनिशान मिटा दो!"



अजय बचपन से ही वायुसैनिक बनना चाहता था और इलिशा एक शिक्षिका। साथ पढ़ते-पढ़ते दोनों कब एक दूसरे के प्यार में डूब गए उन्हें पता ही नहीं चला। "तुम हमेशा मुझे ऐसे ही चाहोगे?"



"हाँ।" अजय ने इलिशा को गले लगाते हुए कहा।



पर होनी को कुछ और ही मंज़ूर था। इलिशा अपने घर वालों के… Continue

Added by Mahendra Kumar on January 2, 2017 at 7:00pm — 19 Comments

जो करा रहा है पूजा बस उसी का फ़ायदा है (ग़ज़ल)

बह्र : ११२१ २१२२ ११२१ २१२२

 

जो करा रहा है पूजा बस उसी का फ़ायदा है

न यहाँ तेरा भला है न वहाँ तेरा भला है

 

अभी तक तो आइना सब को दिखा रहा था सच ही

लगा अंडबंड बकने ये स्वयं से जब मिला है

 

न कोई पहुँच सका है किसी एक राह पर चल

वही सच तलक है पहुँचा जो सभी पे चल सका है

 

इसी भोर में परीक्षा मेरी ज़िंदगी की होगी

सो सनम ये जिस्म तेरा मैंने रात भर पढ़ा है

 

यदि ब्लैकहोल को हम न गिनें तो इस जगत…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 1, 2017 at 8:19pm — 15 Comments

गजल

2122    1212   22  

 

श्याम तेरी अलक में खो जाऊं

एक न्यारे खलक में खो जाऊं

 

नेह से आँख जो हुयी बोझिल

बंद तेरी पलक में खो जाऊं

 

तू अँधेरे में काश दिख जाये 

और मैं उस झलक में खो जाऊं

 

रूप ऐसा कि थे सभी पागल

मैं उसी छवि-छलक में खो जाऊं

 

है सुना वह तेरा ठिकाना है  

तो चलूँ उस फलक में खो जाऊं

 

 (मौलिक /अप्रकाशित…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2017 at 8:00pm — 13 Comments

ग़ज़ल(तुम सदा मुस्कराना नये साल में )

ग़ज़ल(तुम सदा मुस्कराना नये साल में )

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(फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन)

क़ौले उलफत निभाना नये साल में |

मुझ को मत भूल जाना नये साल में |

क्यूँ हैं बाहर खड़े घर में आ जाइए

कीजिए मत बहाना नये साल में |

हाथ ही मिल सके अपने बीते बरस

दिल को दिल से मिलाना नये साल में |

इक कॅलंडर नया घर की दीवार पर

है ज़रूरी लगाना नये साल में |

सिर्फ़ गमगीन आशिक़…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on January 1, 2017 at 5:50pm — 16 Comments

ओजोन की परत में अब छेद खल रहा है- आशुतोष

ओजोन  की परत में अब छेद खल रहा है

धरती झुलस रही है जग सारा जल रहा है

उन्नति के नाम पर हैं ये कारनामे अपने

तालाब पाट घर के हम बुन रहे हैं सपने

खेतों में चौगनी है माना फसल बढ़ी  पर

सब्जी अनाज फल में बिष खा रहे हैं अपने

नूतन प्रयोग अपना खुद हमको छल रहा है

धरती झुलस रही है जग सारा जल रहा है

ये गंदगी का ढेर जो चारो तरफ लगाया

इस गंदगी के ढेर को खुद हमने है बढ़ाया

हम खूब समझते है परिणाम जानते है

पर…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on January 1, 2017 at 3:33pm — 12 Comments

आओ मिलकर चमन सजायें -आशुतोष

नवबर्ष पर हार्दिक शुभकामनाये 

आओ मिलकर चमन सजायें

गीत नए फिर मिलकर गायें

कुमकुम रोली से रंग धरती

दर पर वन्दनवार लगाये

जान दे रहे हैं सरहद पर

आज भारती के जो लाल

उनके सीने हैं फौलादी

उन्हें डराएगा क्या काल

मुल्क पड़ोसी को अब आओ

हम उसकी औकात दिखाएं

आओ मिलकर चमन सजायें

गीत नए फिर मिलकर गायें

अश्क बहाने से होती

तौहीन शेर दिल वीरों की

अश्कों से बलिदान…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on January 1, 2017 at 1:38pm — 8 Comments

तरही गजल/सतविन्द्र कुमार राणा

तरही गजल

बह्र:122 122 122 122

काफ़िया:अर

रदीफ़:देख लेना

---

गरीबों के दिल में है डर देख लेना

अमीरों की तिरछी नजर देख लेना।



नहीं तीरगी की हमें फ़िक्र कोई

नए हौंसलों की सहर देख लेना।



जरूरत नहीं है अभी बोलने की

खमोशी जो लाए ग़दर देख लेना।



मुहब्बत को मेरी भुला क्या सकेंगे?

*वो आएँगे थामे जिगर देख लेना।*



मेरा दर्द ही दर्द उनका बना है

मेरे अश्क उन गाल पर देख लेना।



सहारा बनोगे तभी फल वो देंगे

जरा… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 1, 2017 at 10:30am — 28 Comments


प्रधान संपादक
आते जाते पल (लघुकथा)

वह अपनी धुंधली आँखों से बीत रहे वर्ष की पीठ पर बने रंग बिरंगे चित्रों को बहुत गौर से निहार रही थी, वह अभी उनमें छुपे चेहरों को पहचानने का प्रयास ही कर रही थी कि सहसा वे चित्र चलने फिरने और बोलने लग पड़ेI   

"माँ जी! कितनी दफा कहा है कि इन बर्तनों को हाथ मत लगाया करोI" 

नये टी सेट का कप उससे क्या टूटा उसके घर में कलेश ने पाँव पसार लिए थेI 

अगले दृश्य में नए साल की इस झांकी को होली के रंगों ने ढक लियाI  

"बेटा ये बहू की पहली होली है, तो इस बार त्यौहार धूमधाम से..."…

Continue

Added by योगराज प्रभाकर on January 1, 2017 at 12:01am — 14 Comments

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