Anita Bhatnagar's Posts - Open Books Online2024-03-28T14:39:43ZAnita Bhatnagarhttps://openbooks.ning.com/profile/AnitaBhatnagarhttps://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/10948737295?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1https://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=482e3cfdd0db4b20b85556177ae24656&xn_auth=noहाइकु - मोर /मयूरtag:openbooks.ning.com,2023-07-01:5170231:BlogPost:11065122023-07-01T07:30:00.000ZAnita Bhatnagarhttps://openbooks.ning.com/profile/AnitaBhatnagar
<p>देख मयूर<br/> अनुपम सौंदर्य<br/> मन बावरा।</p>
<p></p>
<p>विश्व सौंदर्य<br/> प्रकृति हो रमणी<br/> नाचे मयूर।</p>
<p></p>
<p>सुंदर पंख<br/> नागराज भी डरे<br/> निराला मोर।</p>
<p></p>
<p>मन हर्षाता<br/> पंख फैलाए मोर<br/> जो इठलाता।</p>
<p></p>
<p>काला बादल<br/> नर्तकप्रिय मोर<br/> मन को भाता।</p>
<p></p>
<p>अनिता भटनागर </p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>
<p>देख मयूर<br/> अनुपम सौंदर्य<br/> मन बावरा।</p>
<p></p>
<p>विश्व सौंदर्य<br/> प्रकृति हो रमणी<br/> नाचे मयूर।</p>
<p></p>
<p>सुंदर पंख<br/> नागराज भी डरे<br/> निराला मोर।</p>
<p></p>
<p>मन हर्षाता<br/> पंख फैलाए मोर<br/> जो इठलाता।</p>
<p></p>
<p>काला बादल<br/> नर्तकप्रिय मोर<br/> मन को भाता।</p>
<p></p>
<p>अनिता भटनागर </p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>नकाबपोश रिश्तेtag:openbooks.ning.com,2023-06-30:5170231:BlogPost:11061042023-06-30T13:30:00.000ZAnita Bhatnagarhttps://openbooks.ning.com/profile/AnitaBhatnagar
<p>पैसों के तराजू में अब तुल रहे हैं रिश्ते,<br></br> छल कपट के नकाब में पल रहे हैं रिश्ते,<br></br> छीन लेते हैं अपने ही हमारी मुस्कान,<br></br> दिल के बंद पन्ने अब खोल रहे हैं रिश्ते।<br></br> <br></br> चेहरों पे अब नकाब लगाने का चलन है,<br></br> नाप तौल से रिश्ते निभाने का चलन है,<br></br> चार दिन की जिंदगी भूल गए हैं सब,<br></br> गले लगा कर गला काटने का चलन है।<br></br> <br></br> दिलजलों की महफिल में एहतराम कैसा,<br></br> गुम हो रहे रिश्ते, है ये फरमान कैसा,<br></br> चांद की चांदनी से चमकते रिश्ते,<br></br> स्वार्थ के अंधकार में फिर छिपना…</p>
<p>पैसों के तराजू में अब तुल रहे हैं रिश्ते,<br/> छल कपट के नकाब में पल रहे हैं रिश्ते,<br/> छीन लेते हैं अपने ही हमारी मुस्कान,<br/> दिल के बंद पन्ने अब खोल रहे हैं रिश्ते।<br/> <br/> चेहरों पे अब नकाब लगाने का चलन है,<br/> नाप तौल से रिश्ते निभाने का चलन है,<br/> चार दिन की जिंदगी भूल गए हैं सब,<br/> गले लगा कर गला काटने का चलन है।<br/> <br/> दिलजलों की महफिल में एहतराम कैसा,<br/> गुम हो रहे रिश्ते, है ये फरमान कैसा,<br/> चांद की चांदनी से चमकते रिश्ते,<br/> स्वार्थ के अंधकार में फिर छिपना कैसा।<br/> <br/> क्यूं शह और मात का हैं खेल खेलें,<br/> रिश्तों का नहीं मान उम्मीदें तोलें,<br/> रिश्तों की कशमकश खत्म हो कैसे,<br/> ख्वाहिशों का थैला लिए सुकून खोजें।<br/> <br/> अनिता भटनागर<br/> पंजाब</p>
<p></p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>छंदमुक्त - अनुशासनtag:openbooks.ning.com,2023-06-22:5170231:BlogPost:11062142023-06-22T07:13:36.000ZAnita Bhatnagarhttps://openbooks.ning.com/profile/AnitaBhatnagar
अनुशासन के दायरे<br />
कर्म पथ पर दृढ़ता से<br />
बढ़ना सिखलाते,<br />
अनुशासन की महिमा से<br />
जन्म सफल हो जाते<br />
मन के वशीकरण का,<br />
अनुशासन सुंदर मंत्र<br />
ज्यों अपनी ही धूरी पर,<br />
चलता जीवन तंत्र।<br />
अनुशासन को ध्येय बना लो,<br />
लक्ष्य भेद है निश्चित<br />
और सफलता है निमित्त,<br />
अनुशासन लाता है,<br />
जीवन में उजियार,<br />
सफल बनो संसार में,<br />
खुशहाली हो अपार<br />
अनुशासन ही है ,<br />
विद्या का श्रृंगार<br />
तत्परता से दूर हो ,<br />
मूढ़ मन के विकार।<br />
<br />
अनिता भटनागर<br />
आदमपुर, पंजाब
अनुशासन के दायरे<br />
कर्म पथ पर दृढ़ता से<br />
बढ़ना सिखलाते,<br />
अनुशासन की महिमा से<br />
जन्म सफल हो जाते<br />
मन के वशीकरण का,<br />
अनुशासन सुंदर मंत्र<br />
ज्यों अपनी ही धूरी पर,<br />
चलता जीवन तंत्र।<br />
अनुशासन को ध्येय बना लो,<br />
लक्ष्य भेद है निश्चित<br />
और सफलता है निमित्त,<br />
अनुशासन लाता है,<br />
जीवन में उजियार,<br />
सफल बनो संसार में,<br />
खुशहाली हो अपार<br />
अनुशासन ही है ,<br />
विद्या का श्रृंगार<br />
तत्परता से दूर हो ,<br />
मूढ़ मन के विकार।<br />
<br />
अनिता भटनागर<br />
आदमपुर, पंजाबग़ज़लtag:openbooks.ning.com,2023-01-25:5170231:BlogPost:10968892023-01-25T16:00:00.000ZAnita Bhatnagarhttps://openbooks.ning.com/profile/AnitaBhatnagar
<p> </p>
<p>ग़ज़ल - मुहब्बत क्यूँ नहीं करते </p>
<p></p>
<p>1222 1222</p>
<p></p>
<p>मुहब्बत क्यूँ नहीं करते,</p>
<p>शरारत क्यूँ नहीं करते |</p>
<p>बड़े ही बे - मुरव्वत हो,</p>
<p>अदावत क्यूँ नहीं करते ||</p>
<p></p>
<p>अलग अंदाज है उनका,</p>
<p>बगावत यूँ नहीं करते |</p>
<p>बिखर जाए अगर लाली,</p>
<p>वो हसरत भी नहीं करते ||</p>
<p></p>
<p>बड़े अरमान हैं मेरे,</p>
<p>हिफाज़त भी नहीं करते |</p>
<p>शिकायत लाख है उनको,</p>
<p>मुखालिफ वो नहीं करते ||</p>
<p></p>
<p>भरोसा तोड़ देते हैं,</p>
<p>इबादत…</p>
<p> </p>
<p>ग़ज़ल - मुहब्बत क्यूँ नहीं करते </p>
<p></p>
<p>1222 1222</p>
<p></p>
<p>मुहब्बत क्यूँ नहीं करते,</p>
<p>शरारत क्यूँ नहीं करते |</p>
<p>बड़े ही बे - मुरव्वत हो,</p>
<p>अदावत क्यूँ नहीं करते ||</p>
<p></p>
<p>अलग अंदाज है उनका,</p>
<p>बगावत यूँ नहीं करते |</p>
<p>बिखर जाए अगर लाली,</p>
<p>वो हसरत भी नहीं करते ||</p>
<p></p>
<p>बड़े अरमान हैं मेरे,</p>
<p>हिफाज़त भी नहीं करते |</p>
<p>शिकायत लाख है उनको,</p>
<p>मुखालिफ वो नहीं करते ||</p>
<p></p>
<p>भरोसा तोड़ देते हैं,</p>
<p>इबादत वो नहीं करते|</p>
<p>फरिश्ते भी अगर आयें,</p>
<p>तगाफुल वो नहीं करते ||</p>
<p></p>
<p>मुबारक शोखियाँ उनको,</p>
<p>हक़ीक़त से नहीं डरते |</p>
<p>झलक देखी नहीं हमने,</p>
<p>शिकायत हम नहीं करते ||</p>
<p></p>
<p>तसल्लीबख्श हैं देखो,</p>
<p>वो ख्वाहिश भी नहीं करते |</p>
<p>मयस्सर जो नहीं उनको,</p>
<p>तकाज़ा वो नहीं करते ||</p>
<p></p>
<p>मुकद्दर देख कर अपना,</p>
<p>सितम से हम नहीं डरते |</p>
<p>ज़माने की मुहब्बत में,</p>
<p>कयामत से नहीं डरते ||</p>
<p></p>
<p>अनिता भटनागर(मौलिक व अप्रकाशित) </p>ग़ज़लtag:openbooks.ning.com,2023-01-25:5170231:BlogPost:10969832023-01-25T03:54:58.000ZAnita Bhatnagarhttps://openbooks.ning.com/profile/AnitaBhatnagar
<p>भाव शून्य हो अंतरपट जब,</p>
<p>पराधीन मन बोल रहा है |</p>
<p>मूक शब्द हैं शुष्क नयन पर,</p>
<p>द्रवित हृदय भी डोल रहा है ||</p>
<p>अस्त व्यस्त हैं कर्म हमारे,</p>
<p>बिगड़े हैं संजोग यहाँ पर |</p>
<p>दो दिन की है बची जिंदगी,</p>
<p>समय पहिया बोल रहा है ||</p>
<p>समय हुआ विपरीत कभी तो,</p>
<p>फिर कोई साथ नहीं होगा |</p>
<p>बढ़ते कदमों को मत रोको,</p>
<p>अवलोकन यूँ डोल रहा है ||</p>
<p>अनिता भटनागर(मौलिक व अप्रकाशित)</p>
<p>भाव शून्य हो अंतरपट जब,</p>
<p>पराधीन मन बोल रहा है |</p>
<p>मूक शब्द हैं शुष्क नयन पर,</p>
<p>द्रवित हृदय भी डोल रहा है ||</p>
<p>अस्त व्यस्त हैं कर्म हमारे,</p>
<p>बिगड़े हैं संजोग यहाँ पर |</p>
<p>दो दिन की है बची जिंदगी,</p>
<p>समय पहिया बोल रहा है ||</p>
<p>समय हुआ विपरीत कभी तो,</p>
<p>फिर कोई साथ नहीं होगा |</p>
<p>बढ़ते कदमों को मत रोको,</p>
<p>अवलोकन यूँ डोल रहा है ||</p>
<p>अनिता भटनागर(मौलिक व अप्रकाशित)</p>ग़ज़लtag:openbooks.ning.com,2023-01-25:5170231:BlogPost:10970572023-01-25T03:30:00.000ZAnita Bhatnagarhttps://openbooks.ning.com/profile/AnitaBhatnagar
<p>122 122 122 122</p>
<p></p>
<p>जो ख्वाबों ख़यालों में खोए रहेंगे |</p>
<p>सहर के अँधेरे डराने लगेंगे ||1</p>
<p>बनोगे जो धरती के चाँद सूरज |</p>
<p>तो सातों फ़लक सर झुकाने लगेंगे ||2</p>
<p>मुहब्बत ज़माने से जो बेख़बर है |</p>
<p>बशर देख ताने सुनाने लगेंगे ||3</p>
<p>खुदा की तमन्ना जो करते चलोगे |</p>
<p>फ़लक के सितारे लुभाने लगेंगे ||4</p>
<p>हमें जिंदगी से अदावत मिली है |</p>
<p>इशारे हमें अब डराने लगेंगे ||5</p>
<p>लिखेंगे जुदाई के नगमें कभी जो |</p>
<p>वही तीर बन के सताने लगेंगे…</p>
<p>122 122 122 122</p>
<p></p>
<p>जो ख्वाबों ख़यालों में खोए रहेंगे |</p>
<p>सहर के अँधेरे डराने लगेंगे ||1</p>
<p>बनोगे जो धरती के चाँद सूरज |</p>
<p>तो सातों फ़लक सर झुकाने लगेंगे ||2</p>
<p>मुहब्बत ज़माने से जो बेख़बर है |</p>
<p>बशर देख ताने सुनाने लगेंगे ||3</p>
<p>खुदा की तमन्ना जो करते चलोगे |</p>
<p>फ़लक के सितारे लुभाने लगेंगे ||4</p>
<p>हमें जिंदगी से अदावत मिली है |</p>
<p>इशारे हमें अब डराने लगेंगे ||5</p>
<p>लिखेंगे जुदाई के नगमें कभी जो |</p>
<p>वही तीर बन के सताने लगेंगे ||6</p>
<p>बढ़े हौंसले रास आने लगे हैं |</p>
<p>अँधेरे में दीपक जलाने लगेंगे |7</p>
<p>वो शफ्फाक किरणें ग़ज़ल गा रहीं हैं |</p>
<p>कुहासे घनेरे छकाने लगेंगे ||8</p>
<p>कमी ग़र किसी की कभी तुम दिखाओ |</p>
<p>वो आँखें तुम्हें तो दिखाने लगेंगे ||9</p>
<p>वो शामों-सहर है मुकद्दर बना यूँ |</p>
<p>उसी आग में हम नहाने लगेंगे ||10</p>
<p>तुम्हारी जो नफरत बढ़ाने लगे हैं |</p>
<p>वही आइने दिल दुखाने लगेंगे ||11</p>
<p>बड़ी ही अनोखी मुलाकात है ये |</p>
<p>वो तीरे नज़र के निशाने लगेंगे ||12</p>
<p>जिसे ख्वाब में रोज देखा किए थे |</p>
<p>उसे घर की जीनत बनाने लगेंगे ||13</p>
<p>ये कमजर्फ कैसी मुहब्बत हुई है |</p>
<p>हवस ही ज़मानत जताने लगेंगे ||14</p>
<p>अलामत तरस पैरहन मुहब्बत हुई है |</p>
<p>अकीदे की चादर बिछाने लगेंगे ||15</p>
<p>सदाकत रफाकत मुहब्बत करोगे |</p>
<p>अजीयत विरह की जताने लगेंगे ||16</p>
<p>वो गम-ए-दहर को मिला एक मंजर|</p>
<p>सहर-ए-हयात जगाने लगेंगे ||17</p>
<p>हिकारत कभी जो मुहब्बत बनेगी |</p>
<p>नज़र वो हमीं से चुराने लगेंगे ||18</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>