Madan Mohan saxena's Posts - Open Books Online2024-03-28T18:36:33ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxenahttps://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991282715?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1https://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=3bckn3v9iendm&xn_auth=noख्बाब केवल ख्बाबtag:openbooks.ning.com,2023-05-23:5170231:BlogPost:11041912023-05-23T05:36:47.000ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
ख्बाब केवल ख्बाब<br />
<br />
ख्बाब था मेहनत के बल पर , हम बदल डालेंगे किस्मत<br />
ख्बाब केवल ख्बाब बनकर, अब हमारे रह गए हैं<br />
<br />
कामचोरी ,धूर्तता ,चमचागिरी का अब चलन है<br />
बेअर्थ से लगने लगे है ,युग पुरुष जो कह गए हैं<br />
<br />
दूसरो का किस तरह नुकसान हो सब सोचते है<br />
त्याग ,करुना, प्रेम ,क्यों इस जहाँ से बह गए हैं<br />
<br />
अब करा करता है शोषण ,आजकल बीरों का पौरुष<br />
मानकर बिधि का विधान, जुल्म हम सब सह गए है<br />
<br />
नाज हमको था कभी पर आज सर झुकता शर्म से<br />
कल तलक जो थे सुरक्षित आज सारे ढह गए हैं<br />
"मौलिक व अप्रकाशित"<br />
प्रस्तुति:<br />
मदन मोहन सक्सेना
ख्बाब केवल ख्बाब<br />
<br />
ख्बाब था मेहनत के बल पर , हम बदल डालेंगे किस्मत<br />
ख्बाब केवल ख्बाब बनकर, अब हमारे रह गए हैं<br />
<br />
कामचोरी ,धूर्तता ,चमचागिरी का अब चलन है<br />
बेअर्थ से लगने लगे है ,युग पुरुष जो कह गए हैं<br />
<br />
दूसरो का किस तरह नुकसान हो सब सोचते है<br />
त्याग ,करुना, प्रेम ,क्यों इस जहाँ से बह गए हैं<br />
<br />
अब करा करता है शोषण ,आजकल बीरों का पौरुष<br />
मानकर बिधि का विधान, जुल्म हम सब सह गए है<br />
<br />
नाज हमको था कभी पर आज सर झुकता शर्म से<br />
कल तलक जो थे सुरक्षित आज सारे ढह गए हैं<br />
"मौलिक व अप्रकाशित"<br />
प्रस्तुति:<br />
मदन मोहन सक्सेनाजिंदगानी लुटाने की बात करते होtag:openbooks.ning.com,2016-09-27:5170231:BlogPost:8040272016-09-27T06:30:00.000ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
<p>किस ज़माने की बात करते हो <br/> रिश्तें निभाने की बात करते हो</p>
<p>अहसान ज़माने का है यार मुझ पर <br/> क्यों राय भुलाने की बात करते हो</p>
<p>जिसे देखे हुए हो गया अर्सा मुझे <br/> दिल में समाने की बात करते हो</p>
<p>तन्हा गुजरी है उम्र क्या कहिये <br/> जज़्बात दबाने की बात करते हो</p>
<p>गर तेरा संग हो गया होता "मदन "<br/>जिंदगानी लुटाने की बात करते हो</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p>मदन मोहन सक्सेना</p>
<p></p>
<p>किस ज़माने की बात करते हो <br/> रिश्तें निभाने की बात करते हो</p>
<p>अहसान ज़माने का है यार मुझ पर <br/> क्यों राय भुलाने की बात करते हो</p>
<p>जिसे देखे हुए हो गया अर्सा मुझे <br/> दिल में समाने की बात करते हो</p>
<p>तन्हा गुजरी है उम्र क्या कहिये <br/> जज़्बात दबाने की बात करते हो</p>
<p>गर तेरा संग हो गया होता "मदन "<br/>जिंदगानी लुटाने की बात करते हो</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p>मदन मोहन सक्सेना</p>
<p></p>कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ हैtag:openbooks.ning.com,2016-08-04:5170231:BlogPost:7904212016-08-04T07:33:51.000ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
<p>अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर<br></br> बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल</p>
<p>ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है<br></br> समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल</p>
<p>कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम<br></br> जुबां से दिल की बातो को है कह पाना बहुत मुश्किल</p>
<p>ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता<br></br> अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल</p>
<p>कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है<br></br> क्या खोया और क्या पाया कह पाना बहुत मुश्किल</p>
<p>कुछ…</p>
<p>अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर<br/> बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल</p>
<p>ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है<br/> समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल</p>
<p>कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम<br/> जुबां से दिल की बातो को है कह पाना बहुत मुश्किल</p>
<p>ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता<br/> अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल</p>
<p>कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है<br/> क्या खोया और क्या पाया कह पाना बहुत मुश्किल</p>
<p>कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है<br/> "मौलिक व अप्रकाशित" <br/>
मदन मोहन सक्सेना</p>चंद शेर आपके लिएtag:openbooks.ning.com,2016-02-24:5170231:BlogPost:7427782016-02-24T06:39:34.000ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
<p>चंद शेर आपके लिए</p>
<p>एक।</p>
<p>दर्द मुझसे मिलकर अब मुस्कराता है<br/> जब दर्द को दबा जानकार पिया मैंने</p>
<p>दो.</p>
<p>वक्त की मार सबको सिखाती सबक़ है<br/> ज़िन्दगी चंद सांसों की लगती जुआँ है</p>
<p>तीन.</p>
<p>समय के साथ बहने का मजा कुछ और है यारों<br/> रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है</p>
<p>चार.</p>
<p>जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी<br/> बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था</p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित"<br/> प्रस्तुति:<br/>
मदन मोहन सक्सेना</p>
<p>चंद शेर आपके लिए</p>
<p>एक।</p>
<p>दर्द मुझसे मिलकर अब मुस्कराता है<br/> जब दर्द को दबा जानकार पिया मैंने</p>
<p>दो.</p>
<p>वक्त की मार सबको सिखाती सबक़ है<br/> ज़िन्दगी चंद सांसों की लगती जुआँ है</p>
<p>तीन.</p>
<p>समय के साथ बहने का मजा कुछ और है यारों<br/> रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है</p>
<p>चार.</p>
<p>जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी<br/> बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था</p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित"<br/> प्रस्तुति:<br/>
मदन मोहन सक्सेना</p>अब समाचार ब्यापार हो गएtag:openbooks.ning.com,2015-10-08:5170231:BlogPost:7054632015-10-08T09:00:00.000ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
<p>अब समाचार ब्यापार हो गए</p>
<p>किसकी बातें सच्ची जानें <br/> अब समाचार ब्यापार हो गए</p>
<p>पैसा जब से हाथ से फिसला <br/> दूर नाते रिश्ते दार हो गए</p>
<p>डिजिटल डिजिटल सुना है जबसे <br/> अपने हाथ पैर बेकार हो गए</p>
<p>रुपया पैसा बैंक तिजोरी <br/> आज जीने के आधार हो गए</p>
<p>प्रेम ,अहिंसा ,सत्य , अपरिग्रह <br/> बापू क्यों लाचार हो गए</p>
<p>सीधा सच्चा मुश्किल में अब <br/> कपटी रुतबेदार हो गए</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p>मदन मोहन सक्सेना</p>
<p>अब समाचार ब्यापार हो गए</p>
<p>किसकी बातें सच्ची जानें <br/> अब समाचार ब्यापार हो गए</p>
<p>पैसा जब से हाथ से फिसला <br/> दूर नाते रिश्ते दार हो गए</p>
<p>डिजिटल डिजिटल सुना है जबसे <br/> अपने हाथ पैर बेकार हो गए</p>
<p>रुपया पैसा बैंक तिजोरी <br/> आज जीने के आधार हो गए</p>
<p>प्रेम ,अहिंसा ,सत्य , अपरिग्रह <br/> बापू क्यों लाचार हो गए</p>
<p>सीधा सच्चा मुश्किल में अब <br/> कपटी रुतबेदार हो गए</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p>मदन मोहन सक्सेना</p>होली हैtag:openbooks.ning.com,2015-03-05:5170231:BlogPost:6260892015-03-05T11:57:39.000ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
<p>आया फ़ाग का मौैसम मुझे सपने सजाने दो <br></br> दिल के पास जो रहता उसी के पास जाने दो</p>
<p>तू मेरे रंग में रंग जा मैं तेरे रंग को पा लूँ<br></br> प्रियतम ने प्रिया से आज मन की बात खोली है</p>
<p>अधूरा श्याम राधा बिन ,राधा श्याम की हो ली <br></br> दिलों में प्यार भरने को आयी आज फिर होली</p>
<p>होली की असीम शुभकामनायें</p>
<p>तन से तन मिला लो अब मन से मन भी मिल जाये<br></br> प्रियतम ने प्रिया से आज मन की बात खोली है</p>
<p>ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज<br></br> यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली…</p>
<p>आया फ़ाग का मौैसम मुझे सपने सजाने दो <br/> दिल के पास जो रहता उसी के पास जाने दो</p>
<p>तू मेरे रंग में रंग जा मैं तेरे रंग को पा लूँ<br/> प्रियतम ने प्रिया से आज मन की बात खोली है</p>
<p>अधूरा श्याम राधा बिन ,राधा श्याम की हो ली <br/> दिलों में प्यार भरने को आयी आज फिर होली</p>
<p>होली की असीम शुभकामनायें</p>
<p>तन से तन मिला लो अब मन से मन भी मिल जाये<br/> प्रियतम ने प्रिया से आज मन की बात खोली है</p>
<p>ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज<br/> यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है.</p>
<p>मौसम आज रंगों का , छायी अब खुमारी है<br/> चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है</p>
<p>क्या जीजा हों कि साली हो ,देवर हो या भाभी हो<br/> दिखे रंगनें में रंगानें में ,सभी मशगूल होली है</p>
<p>प्रियतम क्या प्रिय क्या अब सभी रंगने को आतुर हैं<br/> हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है</p>
<p>ना शिकबा अब रहे कोई ,ना ही दुश्मनी पनपे<br/> गले अब मिल भी जाओ सब, कि आयी आज होली है<br/>
.</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित"<br/> मदन मोहन सक्सेना</p>हिम्मत साथ नहीं देती हैtag:openbooks.ning.com,2015-01-22:5170231:BlogPost:6092112015-01-22T11:30:00.000ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
<p>हिम्मत साथ नहीं देती है</p>
<p>किसको अपना दर्द बतायें कौन सुनेगा अपनी बात<br></br> सुनने <span>वाले व्याकुल</span> हैं अब अपना राग सुनाने को</p>
<p>हिम्मत साथ नहीं देती है खुद के अंदर झाँक सके<br></br> सबने खूब बहाने सोचे मंदिर मस्जिद जाने को</p>
<p>कैसी रीति बनायी मौला चादर पे चादर चढ़ती है<br></br> द्वार तुम्हारे खड़ा है बंदा , नंगा बदन जड़ाने को</p>
<p>दूध कहाँ से पायेंगें जो, पीने को पानी न मिलता<br></br> भक्ति की ये कैसी शक्ति पत्थर चला नहाने को</p>
<p>जिसे देखिये मिलता है अब चेहरे पर मुस्कान लिए…<br></br></p>
<p>हिम्मत साथ नहीं देती है</p>
<p>किसको अपना दर्द बतायें कौन सुनेगा अपनी बात<br/> सुनने <span>वाले व्याकुल</span> हैं अब अपना राग सुनाने को</p>
<p>हिम्मत साथ नहीं देती है खुद के अंदर झाँक सके<br/> सबने खूब बहाने सोचे मंदिर मस्जिद जाने को</p>
<p>कैसी रीति बनायी मौला चादर पे चादर चढ़ती है<br/> द्वार तुम्हारे खड़ा है बंदा , नंगा बदन जड़ाने को</p>
<p>दूध कहाँ से पायेंगें जो, पीने को पानी न मिलता<br/> भक्ति की ये कैसी शक्ति पत्थर चला नहाने को</p>
<p>जिसे देखिये मिलता है अब चेहरे पर मुस्कान लिए<br/> मुश्किल से मिलतें है अपने दिल से आज लगाने को</p>
<p>तेरी यादों की <span><span>खुशबू</span></span> अब मन <span>उपवन</span> महका देती है <br/> फिर से आज ग़ज़ल निकली है महफ़िल को महकाने को</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p>प्रस्तुति<br/> मदन मोहन सक्सेना</p>जिंदगी जिंदगीtag:openbooks.ning.com,2014-12-18:5170231:BlogPost:5956602014-12-18T05:40:50.000ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
<p>तुझे पा लिया है जग पा लिया है <br/> अब दिल में समाने लगी जिंदगी है</p>
<p>कभी गर्दिशों की कहानी लगी थी <br/> मगर आज भाने लगी जिंदगी है</p>
<p>समय कैसे जाता समझ मैं ना पाता <br/> अब समय को चुराने लगी जिंदगी है</p>
<p>कभी ख्बाब में तू हमारे थी आती <br/> अब सपने सजाने लगी जिंदगी है</p>
<p>तेरे प्यार का ये असर हो गया है <br/> अब मिलने मिलाने लगी जिंदगी है</p>
<p>मैं खुद को भुलाता, तू खुद को भुलाती<br/> अब खुद को भुलाने लगी जिंदगी है</p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित"</p>
<p>मदन मोहन सक्सेना</p>
<p>तुझे पा लिया है जग पा लिया है <br/> अब दिल में समाने लगी जिंदगी है</p>
<p>कभी गर्दिशों की कहानी लगी थी <br/> मगर आज भाने लगी जिंदगी है</p>
<p>समय कैसे जाता समझ मैं ना पाता <br/> अब समय को चुराने लगी जिंदगी है</p>
<p>कभी ख्बाब में तू हमारे थी आती <br/> अब सपने सजाने लगी जिंदगी है</p>
<p>तेरे प्यार का ये असर हो गया है <br/> अब मिलने मिलाने लगी जिंदगी है</p>
<p>मैं खुद को भुलाता, तू खुद को भुलाती<br/> अब खुद को भुलाने लगी जिंदगी है</p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित"</p>
<p>मदन मोहन सक्सेना</p>ये जीबन यार ऐसा हीtag:openbooks.ning.com,2014-08-06:5170231:BlogPost:5650452014-08-06T10:27:12.000ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
<p>ये जीबन यार ऐसा ही</p>
<p>ये जीबन यार ऐसा ही ,ये दुनियाँ यार ऐसी ही <br/> संभालों यार कितना भी आखिर छूट जाना है</p>
<p>सभी बेचैन रहतें हैं ,क्यों मीठी बात सुनने को<br/> सच्ची बात कहने पर फ़ौरन रूठ जाना है</p>
<p>समय के साथ बहने का मजा कुछ और है प्यारे <br/> बरना, रिश्तें काँच से नाजुक इनको टूट जाना है</p>
<p>रखोगे हौसला प्यारे तो हर मुश्किल भी आसां है <br/> अच्छा भी समय गुजरा बुरा भी फूट जाना है</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p>मदन मोहन सक्सेना</p>
<p>ये जीबन यार ऐसा ही</p>
<p>ये जीबन यार ऐसा ही ,ये दुनियाँ यार ऐसी ही <br/> संभालों यार कितना भी आखिर छूट जाना है</p>
<p>सभी बेचैन रहतें हैं ,क्यों मीठी बात सुनने को<br/> सच्ची बात कहने पर फ़ौरन रूठ जाना है</p>
<p>समय के साथ बहने का मजा कुछ और है प्यारे <br/> बरना, रिश्तें काँच से नाजुक इनको टूट जाना है</p>
<p>रखोगे हौसला प्यारे तो हर मुश्किल भी आसां है <br/> अच्छा भी समय गुजरा बुरा भी फूट जाना है</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p>मदन मोहन सक्सेना</p>क्यों हर कोई परेशां हैtag:openbooks.ning.com,2014-07-07:5170231:BlogPost:5565182014-07-07T11:25:12.000ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
<p>क्यों हर कोई परेशां है</p>
<p>दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है <br></br> ख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती है</p>
<p>अपनों संग समय गुजरे इससे बेहतर क्या होगा <br></br> कोई तन्हा रहना नहीं चाहें मजबूरी बनाती है</p>
<p>किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है<br></br> बिना मेहनत के मंजिल कब किसके हाथ आती है</p>
<p>क्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत से <br></br> दशा कैसी भी अपनी हो किसको रास आती है</p>
<p>दिल की बात दिल में ही दफ़न कर लो तो अच्छा है <br></br> पत्थर दिल ज़माने में कहीं ये बात भाती…</p>
<p>क्यों हर कोई परेशां है</p>
<p>दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है <br/> ख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती है</p>
<p>अपनों संग समय गुजरे इससे बेहतर क्या होगा <br/> कोई तन्हा रहना नहीं चाहें मजबूरी बनाती है</p>
<p>किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है<br/> बिना मेहनत के मंजिल कब किसके हाथ आती है</p>
<p>क्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत से <br/> दशा कैसी भी अपनी हो किसको रास आती है</p>
<p>दिल की बात दिल में ही दफ़न कर लो तो अच्छा है <br/> पत्थर दिल ज़माने में कहीं ये बात भाती है</p>
<p>भरोसा खुद पर करके जो समय की नब्ज़ को जानें <br/> "मदन " हताशा और नाकामी उनसे दूर जाती है</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p>मदन मोहन सक्सेना</p>बचपन यार अच्छा थाtag:openbooks.ning.com,2014-06-23:5170231:BlogPost:5517242014-06-23T07:37:36.000ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
<p>जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी<br></br> बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था</p>
<p>बारीकी जमाने की, समझने में उम्र गुज़री<br></br> भोले भाले चेहरे में सयानापन समाता था</p>
<p>मिलते हाथ हैं लेकिन दिल मिलते नहीं यारों<br></br> मिलाकर हाथ, पीछे से मुझको मार जाता था</p>
<p>सुना है आजकल कि बह नियमों को बनाता है <br></br> बचपन में गुरूजी से जो अक्सर मार खाता था</p>
<p>उधर माँ बाप तन्हा थे इधर बेटा अकेला था <br></br> पैसे की ललक देखो दिन कैसे दिखाता था</p>
<p>जिसे देखे हुआ अर्सा , उसका हाल जब पूछा <br></br> बाकी…</p>
<p>जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी<br/> बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था</p>
<p>बारीकी जमाने की, समझने में उम्र गुज़री<br/> भोले भाले चेहरे में सयानापन समाता था</p>
<p>मिलते हाथ हैं लेकिन दिल मिलते नहीं यारों<br/> मिलाकर हाथ, पीछे से मुझको मार जाता था</p>
<p>सुना है आजकल कि बह नियमों को बनाता है <br/> बचपन में गुरूजी से जो अक्सर मार खाता था</p>
<p>उधर माँ बाप तन्हा थे इधर बेटा अकेला था <br/> पैसे की ललक देखो दिन कैसे दिखाता था</p>
<p>जिसे देखे हुआ अर्सा , उसका हाल जब पूछा <br/> बाकी ठीक है कहकर वह ताना मार जाता था</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p>मदन मोहन सक्सेना</p>सबकी ऐसे गुजर गयीtag:openbooks.ning.com,2014-06-13:5170231:BlogPost:5480702014-06-13T11:25:47.000ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
<p>सबकी ऐसे गुजर गयी</p>
<p>हिन्दू देखे ,मुस्लिम देखे इन्सां देख नहीं पाया <br/> मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में आते जाते उम्र गयी</p>
<p>अपना अपना राग लिए सब अपने अपने घेरे में <br/> हर इन्सां की एक कहानी सबकी ऐसे गुजर गयी</p>
<p>अपना हिस्सा पाने को ही सब घर में मशगूल दिखे <br/> इक कोने में माँ दुबकी थी , जब मेरी बहाँ नजर गयी</p>
<p>दुनिया जब मेरी बदली तो बदले बदले यार दिखे <br/> तेरी इकजैसी सच्ची सूरत, दिल में मेरे उतर गयी</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p>मदन मोहन सक्सेना</p>
<p>सबकी ऐसे गुजर गयी</p>
<p>हिन्दू देखे ,मुस्लिम देखे इन्सां देख नहीं पाया <br/> मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में आते जाते उम्र गयी</p>
<p>अपना अपना राग लिए सब अपने अपने घेरे में <br/> हर इन्सां की एक कहानी सबकी ऐसे गुजर गयी</p>
<p>अपना हिस्सा पाने को ही सब घर में मशगूल दिखे <br/> इक कोने में माँ दुबकी थी , जब मेरी बहाँ नजर गयी</p>
<p>दुनिया जब मेरी बदली तो बदले बदले यार दिखे <br/> तेरी इकजैसी सच्ची सूरत, दिल में मेरे उतर गयी</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p>मदन मोहन सक्सेना</p>ऐसा घर बनातें हैंtag:openbooks.ning.com,2014-06-05:5170231:BlogPost:5464182014-06-05T09:39:20.000ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
<p>इन कंक्रीटों के जंगल में नहीं लगता है मन अपना <br></br> जमीं भी हो गगन भी हो ऐसा घर बनातें हैं</p>
<p>ना ही रोशनी आये ना खुशबु ही बिखर पाये <br></br> हालात देखकर घर की पक्षी भी लजातें हैं</p>
<p>दीबारें ही दीवारें नजर आये घरों में क्यों <br></br> पड़ोसी से मिले नजरें तो कैसे मुहँ बनाते हैं</p>
<p>मिलने का चलन यारों ना जानें कब से गुम अब है <br></br> टी बी और नेट से ही समय अपना बिताते हैं</p>
<p>ना दिल में ही जगह यारों ना घर में ही जगह यारों <br></br> भूले से भी मेहमाँ को ना नहीं घर में टिकाते हैं</p>
<p>अब…</p>
<p>इन कंक्रीटों के जंगल में नहीं लगता है मन अपना <br/> जमीं भी हो गगन भी हो ऐसा घर बनातें हैं</p>
<p>ना ही रोशनी आये ना खुशबु ही बिखर पाये <br/> हालात देखकर घर की पक्षी भी लजातें हैं</p>
<p>दीबारें ही दीवारें नजर आये घरों में क्यों <br/> पड़ोसी से मिले नजरें तो कैसे मुहँ बनाते हैं</p>
<p>मिलने का चलन यारों ना जानें कब से गुम अब है <br/> टी बी और नेट से ही समय अपना बिताते हैं</p>
<p>ना दिल में ही जगह यारों ना घर में ही जगह यारों <br/> भूले से भी मेहमाँ को ना नहीं घर में टिकाते हैं</p>
<p>अब सन्नाटे के घेरे में जरुरत भर ही आबाजें<br/> घर में दिल की बात दिल में ही यारों अब दबातें हैं</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p>मदन मोहन सक्सेना</p>मेरी आँखों सेtag:openbooks.ning.com,2014-04-29:5170231:BlogPost:5354862014-04-29T07:30:00.000ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
<p>मेरी आँखों से</p>
<p></p>
<p>सपनीली दुनियाँ मेँ यारों सपनें खूब मचलते देखे</p>
<p>रंग बदलती दूनियाँ देखी ,खुद को रंग बदलते देखा</p>
<p></p>
<p>सुबिधाभोगी को तो मैनें एक जगह पर जमते देख़ा</p>
<p>भूखों और गरीबोँ को तो दर दर मैनें चलते देखा</p>
<p></p>
<p>देखा हर मौसम में मैनें अपने बच्चों को कठिनाई में</p>
<p>मैनें टॉमी डॉगी शेरू को, खाते देखा पलते देखा</p>
<p></p>
<p>पैसों की ताकत के आगे गिरता हुआ जमीर मिला</p>
<p>कितना काम जरुरी हो पर उसको मैने टलते देखा</p>
<p></p>
<p>रिश्तें नातें प्यार की…</p>
<p>मेरी आँखों से</p>
<p></p>
<p>सपनीली दुनियाँ मेँ यारों सपनें खूब मचलते देखे</p>
<p>रंग बदलती दूनियाँ देखी ,खुद को रंग बदलते देखा</p>
<p></p>
<p>सुबिधाभोगी को तो मैनें एक जगह पर जमते देख़ा</p>
<p>भूखों और गरीबोँ को तो दर दर मैनें चलते देखा</p>
<p></p>
<p>देखा हर मौसम में मैनें अपने बच्चों को कठिनाई में</p>
<p>मैनें टॉमी डॉगी शेरू को, खाते देखा पलते देखा</p>
<p></p>
<p>पैसों की ताकत के आगे गिरता हुआ जमीर मिला</p>
<p>कितना काम जरुरी हो पर उसको मैने टलते देखा</p>
<p></p>
<p>रिश्तें नातें प्यार की बातें ,इनको खूब सिसकते देखा</p>
<p>नए ज़माने के इस पल मेँ अपनों को भी छलते देखा</p>
<p></p>
<p>( मौलिक और अप्रकाशित)</p>
<p></p>
<p>मदन मोहन सक्सेना</p>जीबन :एक बुलबुलाtag:openbooks.ning.com,2014-01-16:5170231:BlogPost:5004162014-01-16T08:23:48.000ZMadan Mohan saxenahttps://openbooks.ning.com/profile/MadanMohansaxena
<p>गज़ब हैं रंग जीबन के गजब किस्से लगा करते<br></br> जबानी जब कदम चूमे बचपन छूट जाता है</p>
<p>बंगला ,कार, ओहदे को पाने के ही चक्कर में<br></br> सीधा सच्चा बच्चों का आचरण छूट जाता है</p>
<p>जबानी के नशें में लोग क्या क्या ना किया करते<br></br> ढलते ही जबानी के बुढ़ापा टूट जाता है</p>
<p>समय के साथ बहना ही असल तो यार जीबन है<br></br> समय को गर नहीं समझे समय फिर रूठ जाता है</p>
<p>जियो ऐसे कि औरों को भी जीने का मजा आये<br></br> मदन ,जीबन क्या ,बुलबुला है, आखिर फुट जाता है</p>
<p>मदन मोहन सक्सेना</p>
<p>मौलिक व…</p>
<p>गज़ब हैं रंग जीबन के गजब किस्से लगा करते<br/> जबानी जब कदम चूमे बचपन छूट जाता है</p>
<p>बंगला ,कार, ओहदे को पाने के ही चक्कर में<br/> सीधा सच्चा बच्चों का आचरण छूट जाता है</p>
<p>जबानी के नशें में लोग क्या क्या ना किया करते<br/> ढलते ही जबानी के बुढ़ापा टूट जाता है</p>
<p>समय के साथ बहना ही असल तो यार जीबन है<br/> समय को गर नहीं समझे समय फिर रूठ जाता है</p>
<p>जियो ऐसे कि औरों को भी जीने का मजा आये<br/> मदन ,जीबन क्या ,बुलबुला है, आखिर फुट जाता है</p>
<p>मदन मोहन सक्सेना</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>