Babitagupta's Posts - Open Books Online2024-03-28T13:01:14Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631https://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/986210709?profile=original&width=48&height=48&crop=1%3A1https://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=38ywtir59to34&xn_auth=noस्वतंत्रता में साहित्यकारों का अतुलनीय योगदानtag:openbooks.ning.com,2023-08-15:5170231:BlogPost:11080262023-08-15T09:44:43.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>रचनात्मक योगदान से समृद्ध स्वाधीनता का साहित्य'</p>
<p>स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में सृजनशील लेखनधर्मियों का अतुल्यनीय योगदान.......<br></br>स्व की भावना से प्रेरित आजादी का आंदोलन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जन-जन के अवचेतन मन को जाग्रत करने आंदोलन चलाये गए। देशी रियासतों पर राज करते हुये उनके जीवन मूल्यों पर हस्तक्षेप करना, क्रूरता पूर्वक नरसंहार के विरूद्ध चेतना जगाने में साहित्यकारों का योगदान अविस्मरणीय हैं। महासंग्राम की धधकती ज्वाला की प्रचंड रूप प्रदान करने में सृजनकारों ने अपने ओजपूर्ण…</p>
<p>रचनात्मक योगदान से समृद्ध स्वाधीनता का साहित्य'</p>
<p>स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में सृजनशील लेखनधर्मियों का अतुल्यनीय योगदान.......<br/>स्व की भावना से प्रेरित आजादी का आंदोलन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जन-जन के अवचेतन मन को जाग्रत करने आंदोलन चलाये गए। देशी रियासतों पर राज करते हुये उनके जीवन मूल्यों पर हस्तक्षेप करना, क्रूरता पूर्वक नरसंहार के विरूद्ध चेतना जगाने में साहित्यकारों का योगदान अविस्मरणीय हैं। महासंग्राम की धधकती ज्वाला की प्रचंड रूप प्रदान करने में सृजनकारों ने अपने ओजपूर्ण साहित्य सृजनशीलता का परिचय दिया। <br/>स्वतंत्रता संग्राम में अनुपान योगदान के साथ महिलाओं के उत्थान ,सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ संघर्षरत रही उत्कृष्ट कवयित्री , शिक्षिका, समाजसेविका, प्रथम शिक्षाविद ,साहस की प्रतिमूर्ति सावित्री वाई फुले जीवन और लेखन दोनों में अद्वितीय मिसाल थी। स्वतंत्रता आंदोलन में अहम योगदान देने वाली वीरांगना श्रेष्ठ कवयित्री भारत कोकिला सरोजनी नायडू झीलों की रानी शीर्षक से लंबी कविता द गिफ्ट ऑफ इंडिया में देशप्रेम की की कविताएं लिखकर अपने मधुर कंठ से आजादी का गान किया...'समय के पंछी को उड़ाने को सीमित विस्तार, पर लो पंछी तो उड़ चला।' वन्देमातरम! सुजलाम सुफलाम मलयज शीतलाम...... के रचनाकार भारतीय राष्ट्रवाद के दार्शनिक साहित्यकार बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जी द्वारा सृजित राष्ट्रगीत अंग्रेजी शासन के विरुद्ध स्वाधीनता संग्राम में जनगण का अस्त्र बना। स्वतंत्र भारत में राष्ट्रगीत के रूप में मान्य इस गीत स्वाधीनता का मूलमंत्र और राष्ट्रीयता का मूलमंत्र बना और इस गीत को स्वर दिया रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने दिया।देश भर में राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत करने वाले भारतीय राष्ट्रवाद के इस दृष्टा को महर्षि अरविंद ने भारतीय राष्ट्रवाद के ऋषि कहकर अभिहित किया। <br/>साहित्याकाश में एक उज्ज्वल नक्षत्र के रूप में उदित व बांग्ला उपन्यास के प्रथम सृजक बंकिम जी ने अनुभव किया कि भारत वर्ष व बंगाल में आत्मजागरण और देशभक्ति की भावना उत्पन्न करने की आवश्यकता हैं और मातृभाषा को माध्यम बनाया। वर्ष 1856 में उपन्यास दुर्गेश नंदनी जिसमें उड़ीसा को केंद्र में रखकर मुगलों व पठानों के आपसी संघर्ष की पृष्ठभूमि में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष के लिए भारतीयों को प्रेरित किया। भारतीय संस्कृति का आदर्श प्रस्तुत किया। वर्ष 1869 में सृजित मृणालिनी उपन्यास में मुगलों के षड्यंत्र से संघर्षरत हिन्दू राजा हेमचन्द्र की गौरवगाथा व देशप्रेम और मातृभूमि की पुजा का सूत्रपात हुआ। धर्मतातव में कहा गया हैं कि देशप्रेम उनके लिए केवल आदर्श नही वरन एक धर्म था। देश केवल माँ नही वरन स्वर्ग हैं, धर्म हैं, देवता हैं और देश ही हृदय हैं। सन्यासी आंदोलन व बंगाल अकाल की पृष्ठभूमि पर रचित आनंदमठ की क्रांतिकारी विचारधारा ने देश में सामाजिक राजनीतिक चेतना जाग्रत करने का काम किया। <br/>देश की मिट्टी को समर्पित गोपाल सिंह, नेपाली जी की कविताओं में कूट-कूट कर भारी राष्ट्रीय चेतना व जोश जगाने वाली हैं। स्वाधीनता संग्राम का उनकी रचनाओं का स्थान हैं जिसमें राष्ट्रीयता केवाल युगीन प्रवृति के रूप में ग्रहण नही कि बल्कि उनके अंदर से जन्मी थी, मिट्टी के साथ गहरा लगाव था। <br/>'ओ वतन-चमन के मालियों, व्रत जनम-जनम यह पालियों, तुम अमर उड़सी की लाली से,अपना अंगना रंग डालियो।' <br/>सशक्त राष्ट्रीय धारा के कवि छायावादोत्तर काल के महान गीतकार राष्ट्र कवि गोपाल सिंह नेपाली ने अपनी स्वाधीनता संग्राम में निर्णायक दृष्टि से आसन्न स्वतंत्रता का स्वागत करते हुये कहा- 'हम कलम चलाकर त्रास बदलने वाले हैं, हम तो कवि हैं इतिहास बदलने वाले हैं।' आने अंतिम समय में कवि ने हिमालय को पुकारा स्वाधीनता की रक्षा के लिए अलख जगाती पंक्तियाँ....... 'भारत के प्यारे जागो, सोये सितारों जागो, बैरी द्वार आए हैं, तुम सीस उतारों जागो।' अप्रतिम कवि औजास्वी वाणी वीर रस के अन्यतम प्रस्त्तोतर ओज एवं शौर्य के सुविख्यात कवि श्री श्याम नारायण पाण्डेय जी के बालमन में देश के लिए गौरव भावना बीज रूप में विकसित हो गई थी। देश के लिए मर मिटने वाले प्रचंड ओज के कवि श्यामनारायण जी की र्चनाए आजादी के परवानों के साथ बच्चों के लिए भी थी। मंत्रमुग्ध करती पंक्तियाँ....... 'बैरी दल को ललकार गिरी, वह नागिन भी फुफकार गिरी, था शोर मौत से बचो-बचो, तलवार गिरि ,तलवार गिरि।' उत्कृष्ट काव्यों में अकबर और महाराज के युद्ध की साक्षी रणभूमि हल्दी घाटी जिसमें जन्मभूमि के स्वातंत्र्य के प्रति तड़प और गौरव की भावना स्वावलंबायमान दृष्टांत हैं। <br/>राष्ट्र के प्रति अपने स्वधर्म का निर्वाह राष्ट्रीय भावनाओं को अपनी कविता का विषय बनाया। जौहर में रानी पद्मावती की राजपूती स्वाभिमान नारी के गौरव का प्रतीक ओज और वीर रस की प्रमुखता हैं।मातृभूमि के लिए सर्वस्व समर्पण के सहज भावों से सजा शौर्य काव्य...... 'ज्वलंत पुच्छ्लाहु व्योम में उछालते हुये, असती पर असह्य अग्निदृष्टि डालते हुये।' बुन्देली के समृद्ध साहित्य में मदन मोहन द्विवेदी मदनेश ने रासो काव्य परंपरा में लक्ष्मी बाई अमूल्य कृति हैं। सामाजिक सांस्कृतिक गतिविधियों से चर्चा में रहा बुंदेलखंड का जनजीवन ,संस्कृति और भाषा बुंदेला क्षेत्रों के वैभव को प्रदर्शित करता हैं। राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अतीत के चलचित्रों को आधार बनाकर संस्कृति ,धर्म और देशभक्ति की रचनाएँ हैं।<br/>देश-विदेश में स्वाधीनता का शंखनाद करने वाले मेधावी, क्रांतिकारी कवि कृष्णलाल श्रीधारावी की दांडी यात्रा के प्रयाण के समय एक सत्याग्रही के रूप में हुंकार थी कि चाहे कुत्ते-बिल्ली की मौत मिस्टर जाऊँ, लेकिन स्व्रज्य लिए बगैर आश्रम नही लौटूँगा। कवि कृष्णलाल जी ने दांडी मंच के तरूण सैनिक के सपूत काव्य लिखा। <br/>'आववुम ण आशरमे माले नही स्वतन्त्रता। जम्पवुं नथी लगीर जो नही स्वतन्त्रता॥ <br/>भारत में अङ्ग्रेज़ी शासन कि ज़्यादतियों व आक्रांता शासन की कुप्रवृतियों को उजागर करने वाला पहला प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता हैं जो 18 मार्च ,1938 में लिखा गया जिसकी धड़ाधड़ बिकती प्रतियों से चिंतित व विचलित ब्रिटिश शासन ने प्रतिबंधित कर दिया क्योकि वो कूटनीति के तथ्यों आर आधारित था। फूट डालो राज करो की नीति का खुलासा व उनकी ज्यादातियों से लिपिबद्ध उपन्यास उन्हे कठघरे में खड़ा कर देता। पुस्तक का जब्ती अभियान चलाया गया।छिपे हुये साम्यवादी से विभूषित क्रांतिकारी आंदोलन के कारब लगभग 1921-1947 तक आठ बार जेल गए। मुगल शासको, सिकंदर के आगमन से अच्छी-बुरी बातों का विश्लेषण करते हुये भारत में अंग्रेजों के आगमन के बाद ही हुये भारतीयों के चारित्रिक पाटन की बात की जो अंग्रेजों की सोच-समझी साजिश थी। उन्होने लिखा हैं कि यदि पलासी के मैदान से ही भारत में अङ्ग्रेज़ी राज का आरंभ मान लिया था तो साख के लिए 180 साल के विदेशी शासन का नतीजा प्रतिदिन हुई भयंकर दरिद्रता , निर्बलता, फूट, महामारिया के सिवा कुछ और दिखाई ना दे। पाठको के समक्ष स्थिति उजागर कर प्रयास किया कि उन्हे अपने देश के ऊपर अंग्रेजी राज के हितकर अथवा अहितकर प्रभाव का ठीक-ठाक समझने में सुगमता हो।<br/>19 वी शताब्दी में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुनाफा कमाने में बंगला देश एमआरएन नील की खेती और किसानों पर हुये अत्याचार पर आधारित उत्पीड़न का आईना दिखाता दिन बंधु मिश्रा का नाटक नील दर्पण जिसमें अंग्रेजों के क्रूर चेहरे को दर्शया हैं। भारत रंगमंच इतिहास में उपनिवेशवाद के क्रूर चेहरे में अरशने वाली कृति में राष्ट्रीय उन्मेष और स्वाभिमान जाग्रत करने का महत्व दर्शाती रचनाएँ हैं। सामाजिक आंदोलन का हिस्सा बनाने की मुहिम में इस नाटक का लखनऊ में मंचन 19 वी शताब्दी की प्रख्यात अभिनेत्री नटी बिनोदिनी और उनके थियेटर सहकर्मियों द्वारा 1875 में प्रदर्शित किया। भारतीय थियेटर इतिहास के सबसे विवादास्पद नाटकों के म्हिमामायी मंचन मंचन के बाद अंग्रेजों ने 1876 में ड्रामेटिक प्रदर्शन अधिनियम पारित कर दिया जिसमें ब्रिटिश विरोधी नाटकों ,षडयंत्रकारी नाटको और तथाकथित तयशुदा सामाजिक मूल्यों कमतर लेने वाले नाटकों के मंचन पर प्रतिबंध लगाया गया। <br/>अंधविश्वास व पाखंड पर प्रहार करने के साथ धर्म व आध्यात्म का वैज्ञानिक विश्लेषक युग ऋषि श्रीराम शर्मा जी स्वाधीनता आंदोलन में परम साधक के रूप में उपस्थित रहे। जागृति की अखंड ज्योति जलाने वाले श्रीराम जी के जीवन पर यजुर्वेद के नवे अध्याय की 23 वी कंडिका में वर्णित श्लोक 'वयं राशट्रे जगरियाम पुरोहिताः चरितार्थ करती हैं। आधुनिक युग के मनीषी ,ऋषि व युगदृष्टा जिनका सम्पूर्ण जीवन राष्ट्रकी सच्ची आराधना को समर्पित रहा। स्वतन्त्रता आंदोलन के प्रखर भागीदार होने के साथ सैनिक प्रताप, दैनिक विश्व मित्र में नियमित रूप से अपने छपते लेखों से ना केवल स्वतंत्रता सेनानियों का मनोबल बढ़ाया बल्कि द्रुतगति से क्रांति की ज्वाला भड़काई। <br/>विशाल साहित्यिक अवदान के लिए विख्यात हुये महाकवि राष्ट्राचेतना के संवाहक पंडित नाठूराम शंकर जी के विपुल रचना समंदर में पराधीन राष्ट्र की वेदना समाज में व्याप्त पाखंड, अंधविश्वास ,कदाचार और विधवाओं की दीन-हीन दशा की उपस्थिती थी। तात्कालीन ब्रिटिश शास्ङ्काल से छुटकारा पाने की टीस उपदेश, संदेश मुखर हुये। विशेष उद्धेश्य पार्क भाव से जोड़ती रचनाएँ हैं। भूखा भारत का दृश्य में...... 'जो था नवखंडों में नामी, हीय रहे जिसमे अनुगामी, सो सारे देशों के स्वामी, अब औरों का दास हैं, देखों कैसा डरता हैं, भारत भूखा मारता हैं।' पीड़ित जर्जर भारत की वेदना....... 'बल बिन कौन र्खवे घर को, विद्या बंट गई इधर-उधर को, संपत्ति फांद गई सागर को, कोरा रंग विराम हैं। हाँ पेट नही भर्ता हैं, भारत भूखा मारता हैं।'<br/>ऐसे ही अङ्ग्रेज़ी शासन कि नीति-अनीति पर, नैतिक शिक्षा का उदाहरण...... बैर फूट के पास ना जाना, सब में रखना मेल-मिलाप, पुनयशील सुख से दिन काटे, पापी करते रहे विलाप। पंडित नाथू राम की रचनाओं में तात्कालीन भारत दशा और समाज का जीवंत वर्णन हैं। <br/> भारतीय स्वतंत्रता चेतना के इतिहास में महत्वपूर्ण नाम बांग्ला के प्रसिद्ध कवि काजी नज़रूल की कविताओं के संग्रह [विष की बांसुरी] बिशर बंशी जिसे अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया तो उसे चोरी छिपे अपने साथियों तक पहुंचाया। अपनी कविताओं से ना केवल अंग्रेजों की साम्राज्यवादी अनीतियों का विरोध किया बल्कि आमजन में स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रति उत्साह बढ़ाया। जोश भारती रचनाओं के प्रज्ञा चक्षु कवि हंसराज जिंका पूरा नाम हंसराज भाई हरखाजी भाई कानाबार, ने गांधी जी के आह्वान पर मन की आँखों से राष्ट्रीय गीतों की रचना कर अपनी बुलंद आवाज में जोशीले गीत गाकर सत्याग्रहियों क्रांतिकारीत्यों को जाग्रत किया। आँखों से दिखाई नही देता था पर प्रज्ञा चखूटा से मोम के अक्षरों के स्पर्श से अक्षर ज्ञान किया। वर्ष 1921 में भावभंगिमा के साथ सस्वर गीत से खाड़ी प्रचार करते......'पूर्वजना प्रेम रंगायेल, सरल सनातन सादी, हरदम हम हैं ये उछलावे, मन्नग्ल मानी यादी, धर्मगुरु गाड़ी, ते एक अमूलात खादी।' <br/>वीर सत्याग्रहियों में जोश को उन्माद बनाएँ रखने वाले जीव हंसराज को राजकोट के सत्याग्रह में भाग लेने पर कारावास की सजा मिली। स्वाधीनता प्राप्त हेतु रचित गीत गुजरात के शहरों में गाये गए जिनहे झकझोर के रख दिया। सन 1857 की क्रान्ति पर लिखा अमृतलाल नागर जी का उपन्यास गदर के फूल तथ्यात्मकता से विशिष्ट व रोचक शैली में लिपिबद्ध हैं। अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई बाराबंकी के निवासियों पर शब्दचित्र विश्लेषणात्मक शैली में 1857 की क्रान्ति के नाकों की क्रान्ति संबंधी संलग्नता और वैशिष्टय के अतिरिक्त उनके बारे में जो भी जनप्रचलित अवधारणाएँ प्रचलित हुई हैं उनकी तथ्यात्मक पड़ताल के अवधारणा से भिन्न हैं। <br/>ऐतिहासिक दांडी यात्रा और नमक सत्याग्रह से जनमानस की सुप्त चेतना प्रखर संचरित हुए। इसी समय क्रांतिकारी कवि व लोक कवि झवेरचंद मेधानी जी ने मर्मस्पर्शी स्वतन्त्रता सनरम के 15 शौर्य गीतों का संग्रह सिंघूडो देशप्रेम से युक्त इन प्रार्थना गीतों के जादूई प्रभाव से अद्भुत चेतना जाग्रत हुई। उपस्थित लोंगो के साथ न्यायाधीश की भी आंखे नम हो गई।हँसते हुये कारागार जाने वाले निर्भीक कवि जनचेतना जाग्रत करने वाली पंक्तियाँ झकझोर देती......'रज-रज नोधी राखथु, हैया बीच हिसाब, मांगवा जबावों एक दिन आवशु ,अमारा खतना होज छलकावशु। <br/>अमोध संकल्प के अतुल्य साधक, क्रांतिकारी राजनेता, उच्चकोटी के शिक्षक, प्रखर चिंतक, विलक्षण कवि, दार्शनिक लेखक श्री अरविंद जो बाल,लाल, पाल के गरम दल के जनक थे। वब्डेमटर्म और कर्मयोगी में उनके विचार चिंगारी बनकर दहकते थे। भारत उस तरह नही जाग रहा जिस तरह देश जाग रहे। वह जग रहा हैं उस शाश्वत आलोक को विश्व में विकीर्ण करने के लिए जो उसे भगवान द्वारा सौपा गया हैं। भारत सदैव मानव जाती के लिए जिया हैं,अपने लिए नही,उसे मानव जाति के लिए काम करना हैं।दार्शनिक और आध्यात्मिक क्रांति के उद्घोषकों में अरविंद जी सबकी ओर से धर्मयुद्ध लड़ रहे थे। भारत की आत्मा को जगाना चाहते थे। जन-जन में भवानी मंदिर बनाना चाहते थे।<br/>भारतीय भाषाओं के विज्ञानी आधार स्तम्भ प्रसिद्ध भाषाविद्ध ,साहित्यकार, विद्याशास्त्री श्री सुनीति कुमार चाटुर्ज्या को स्वयं टैगोर जी ने भाषाचार्य जी की उपाधि से आख्यायित किया। गोंडवाना के अंतिम राजा शंकर शाह उनके पुत्र घुनाथ शाह ने अंग्रेजों के खिलाफ जनमानस को आंदोलित करने वाली कविता लिखी। साहित्यकार प्रताप ने प्रवेशांक में लिखा कि समस्त मानव जाति का कल्याण हमारा परम उद्धेश्य हैं और इस उद्धेश्य की प्राप्ति का एक बहुत बड़ा और बहुत जरूरी साधन हम भारत वर्ष की उन्नति को समझते हैं। <br/>स्वाधीनता आंदोलन में दक्षिण-उत्तर के साहित्य सेतु सुब्रहमण्य भारती राष्ट्र मुक्ति की प्रबल कामना ,सामाजिक नवजागरण ,नवोत्थान के स्वप्नदर्शी तमिल कवि पहले थे जिनके मन मस्तिष्क में अखिल भारती देवता जाग्रत व पल्लवित हुई। आप वंदे मातरम को आजादी का मंत्र मानते हुये कहते हैं कि हम गुलामी रूपी धंधे की शरण में पड़कर बीते हुये दिनों के लिए मन में लज्जित होकर द्वंदों व निंदाओं से निवृत होने के लिए इस गुलामी की स्थिति को थू कहते हुये धिक्कारने के लिए सम्बोधन में हमेशा वंदे मातरम का उद्घोष करते रहेंगे।पद के साथ गद्य विधा और तमिल पत्रकारिता के क्षेत्र में ऐतिहासिक अवदान का स्मरण करते हुये सुब्रह्मण्यम का जीवन भारत माता को दासता की बेड़ियों से मुक्त कराने का अदम्य संकल्प जीवन थे।रियासत में राजा व जनता पर साहित्य का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उनका नाम भारती रख दिया।<br/>गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित साहित्य राष्ट्रीय जागरण के दूत द्विवेदी युग के कवियों में रामनरेश त्रिपाठी अंग्रेजी शासन के प्रबल विरोधी अपनी ओजस्वी लेखनी से स्वतंत्रता संग्राम के दौरान समाज को जाग्रत किया। बचपन से ही राष्ट्रीय चेतना का भाव समाहित थी।अंग्रेजी की नीति-रीति, कूट चाल ,साजिशे देखकर विक्षुब्ध होकर स्वाधीनता के प्रति ऊर्जास्वित स्वर से गुंजायमान कर जनता को जाग्रत किया। काव्य में जन्मभूमि और जन संस्कृति की प्रमुखता, देशप्रेम का गहरा भाव आदर्शवादी कवि की रचनाओं में समाहित था।काव्य कृति पथिक के तीसरे सर्ग में लिखा…. 'देश की यह दशा देखकर पथिक देश सेवा में निश्चित मन और अपूर्व उमंग से तत्पर हुआ।आत्मा के विकिस से मानवता विकसित होती हैं….'देशप्रेम वह पुण्य क्षेत्र हैं ,असल असीम त्याग में विकसित, आत्मा के विकास से जिसमें, मनुष्यता होती विकसित।' मानसी में भावप्रवण और विचारपरक राष्ट्र प्रेम रचना….'वह देश कौन सा हैं? जिसमें दधीच दानी हरिश्चन्द्र कर्ण से थे, सब लोक के हितैषी , वह देश कौन सा हैं? '<br/>संपादकीय निष्ठा प्रौढ़ परिपक्व और गुरू गंभीर हैं…. यह उद्घोष आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी विरचित इस दोहे के रूप में प्रताप के प्रत्येक अंक में मुख्य पृष्ठ के नाम से ठीक नीचे लिखा होता था….' जिसको ना निज गौरव और निज देश का अभिमान हैं। वह नर नहीं, नर पशु निरा हैं, और मृतक समान हैं। ' प्रताप पत्रकारिता की पाठशाला रहा।शहीद ए अरजम भगत सिंह की क्रांतिकारिता को गणेश शंकर विद्यार्थी के प्रताप में ठांव मिला।चाहे किसानी हो या मजदूरों का शोषण या फिरंगी हुकूमत की प्रताड़ना का प्रतिरोध हो या फिर धार्मिक पाखंडों हर विषय पर बेवाक कलम चलाई।<br/>विद्यार्थी जी के व्यक्तित्व का एक ओर पक्ष विचारणीय भविष्य में झांकने की क्षमता थी।<br/>कलम से आजादी की लड़ाई लड़ने वाले बुद्धिनाथ झा कैरव भारत की स्वाधीनता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने और गीतों से क्रान्तिकारियों में जोश भरा। अपनी कविता का आरंभ ब्रजभाषा से किया बाद में हिन्दी भाषा में अपने लेखन से साहित्य को समृद्ध किया।आजादी की गतिविधियों में शामिल होकर जेल भी गये। बंधनों व विवशताओं के बीच निश्चिंत होकर लिखी रचनाओं में स्वतंत्रता के स्वर मुखर थे। जब वर्ष 1942 में देश धधक रहा था तब बुद्धिनाथ जी अपनी कविताओं से क्रान्तिकारियों में जोश भर रहे थे….'जो बचे भागकर घर में निज, छिपकर, घुसकर,दबकर,डरकर, कहता जग उनको कायर रे! क्या जीते यो जीवित मरकर?' देश की आजादी का उन्हें पूर्ण विश्वास मानते हुये हजारीबाग जेल में जब वह बंद थे तब उन्होंने लिखा था….'युग-युग से पीड़ित मानवता को देकर अभिनव उन्मेष, लाया था यह दिन स्वतंत्रता का सुन्दर सुखमय संदेश।' संस्कृति और समाज के जागरण में अपना महत्तर योगदान देते हुये उनका पूरा साहित्य खादी लहरी, हीरा, पश्चाताप आदि राष्ट्रीयता से आप्लावित हैं। <br/>प्रखर स्वतंत्रता सेनानी बालकृष्ण शर्मा, नवीन जी पर वर्ष 1916 में लखनऊ में हुए कांग्रेस अधिवेशन का गहरा प्रभाव पड़ा। समय को अभिव्यक्त करने के साथ समय की सीमाओं को लांघता नवीन जी का साहित्य राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत हैं….'कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससेषुथल-पुथल मच जाये।' ऐसे विप्लव गीत रचने वाले नवीन जी स्वाधीनता की चेतना के संवाहक थे उन्होंने साहित्य एवं पत्रकारिता को राष्ट्रीय आंदोलन के वृहत्तर उद्देश्यों के साथ जोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।<br/>देशकाल के अनुरूप आने वाले वातावरण में समय की आहट सूंघ लेने वाले राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्तजी ने विभिन्न विधाओं में भाषिक प्रयोगों की विपुलता और रचनाओं में काव्य की नवीनता और वैविध्य हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया।किसानों की दयनीय दशा पर किसान प्रबंध काव्य में उनकी निरीहता और निश्छलता को साकार रूप दिया….'आया महाजन के यहां वह अन्न सारा अंत में, अधपेट रहकर फिर उन्हें हैं कांपना हेमंत में। 19वी सदी के नवजागरण काल में आधौनिक चेतनावके युग में होने वाले परिवर्तनों को आपने खड़ी बोली में कलमवद्ध कर उसे प्रतिष्ठित रूपषदिया।लोकमंगलकारी रूपो व सांस्कृतिक उत्थानों को गहराई से पिरोकर भारत की अस्मिता और राष्ट्रीय चेतना को भारती भारती में उभारा जिसमें पूर्व परंपराओं के प्रति मोहविष्ट होकर कह उठे…..'संपूर्ण देशों से किस देश का उत्कर्ष हैं, उसका कि जो ॠषिभूमि हैं, वह कौन?भारतवर्ष हैं। '<br/>अपने लेखन से स्वाधीन आंदोलन की धार देने वाले राष्ट्रीय चेतना के प्रतिबिम्ब रामवृक्ष बैनी पुरी जी की रचनाएँ मनुष्यता के मूल से निकली जातीय संकीर्णता से ऊपर उठकर राष्ट्र निर्माण में प्रेरक होती रही।राष्ट्र की मुक्ति और नये भारत के निर्माण में प्रेरक लेखन उनका एक सक्रिय आंदोलनकारी के रूप में सर्जक था।अंग्रेजों के खिलाफ गौरिल्ला युद्ध की शुरूआत करते हुथे बेनीपुरी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी साहित्य चेतना से जगाने वाले आजीवन योद्धा रहे।अपनी पत्रकारिता से अंग्रेजों को समय-समय पर बोध कराने वाले कि हम उनके गुलाम नही, बैनीपुरी जी ने कारागार मही कैदी नामक हस्तलिखित पत्र निकालकर जनसंवाद को जीवंत रखा।उनकी कलम साम्राज्यवाद के खिलाफ आग उगलती रही।<br/>एक भारतीय आत्मा के नाम से इस विशेषण को चरितार्थ करते भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अमर सेनानी माखनलाल चतुर्वेदी जी का लेखनकर्म परंपरागत छवियों से बाहर निकल स्वाधीनता के लिए लंबे कठिन संघर्ष के लिए हुआ। मरे हुए लोगों में जुनून व जोश भरकर प्राण फूअअंकने वाले माखनलाल जी के लेखों में भारतीय आत्मा के दर्शन होते हैं। वे क्रान्तिकारियों की युवा ऊर्जा को अपने सिद्धांतों की ओर मोड़कर अंगार बरसाने वाली कविताएं जो यथार्थ से दूरी बनाएं रखने वाले आदर्शवाद में यकीन कर ही नहीं सकते थे।राजनीति के जरिए खोई हुई स्वाभिमान को वापस लाने वाले माखनलाल जी के शब्द प्रलय मचा देते थे….'सूली का पथ ही सीखा हैं सुविधा सदा बचाता आया।मैं बलिपथ का अंगारा हूँ, जीवन ज्वाल जगाता आया।' बलिदान पथ की कविता पुष्प की अभिलाषा वैदिक ॠचाओं से भी अधिक पावन…. करोड़ो भारत वासियों को पुकार रही… मुझे फेंक देना उस पथ वनमाली ,जिस पथ जाये वीर अनेक।अपनी मिट्टी से बेहद प्यार करने वाले माखनलाल जी में भारत की स्वाधीनता और स्वाभिमान के लिए वो आग प्रज्ज्वलित थी जो शब्द बनकर धधकते थे।<br/>अपनी रचनात्मकता को राष्ट्रीय धारा के लिए समर्पित महात्मा गांधी से प्रेरित राष्ट्र कवि सोहनलाल द्विवेदी जी स्कूल समय से ही आंदोलन में टूट पड़े। प्रसिद्ध क्रांतिकारी यतीन्द्रनाथ के उनके सामने जेल जाते देख कवि मन का आक्रोश फंट पड़ा….'दुनिया में जीने का सबसे सुन्दर मधुर तकाजा, ऐ शहीद उठने दे अपना फूलों भरा जनाजा हैं। 'राष्ट्र जागरण हेतु साहित्य सृजन को अपना हथियार बनाने वाले सोहनलाल जी की कविताओं ने पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों के ह्रदय में देशभक्ति का संचार किया।एंजेल के दीवाने ओजस्वी व्यक्तित्ववाले सोहनलाल द्विवेदी जी की लोकप्रिय कविता की चंद पंक्तियाँ…'गला दिया तुमने तन को रो-रो आंसू के पानी में, मातृभूमि की व्यथा सह रहे भरी जवानी में। <br/>गोपालदास जी की पंक्तियाँ.... 'आजादी के चरणों में जो जयमाल चढ़ाई जाएगी, वह सुनो तुम्हारे शीशों के फूलों से गूँथी जाएंगी। कवि प्रदीप की ये मेरे वतन के लोगों...... लता मंगेशकर द्वारा गाया ......पूरे देश को झकझोर के रख दिया। .प्रसादजी का काव्य और नाट्य कृतियों में राष्ट्रीय अस्मिता और स्वाभिमान में उद्घोष के साथ क्रानीतिकारियों के प्रति गहन अनुराग भी था। हिन्दी साहित्य के विशाल कालखण्ड में देशभक्त स्वतंत्रता के उद्घोषक और समाज सुधारक साहित्यकारों ने अपनी कलम से जन-जन में सोई चेतना को जगाने क्रांतिकारी ज्वाला जलाकर साहित्य, समाज और देश की अतिशय सेवा की।</p>
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<p>स्वरचित व अप्रकाशित हैं। </p>राष्ट्र कविtag:openbooks.ning.com,2023-08-03:5170231:BlogPost:11074982023-08-03T08:31:12.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तजी <br></br>मानस भवन में आरय़जन जिसकी उतारे आरती।<br></br>भगवान भारतव्रष में गूंजें हमारी भारती।।<br></br>हिंदी साहित्य के राष्ट्र कवि पद्मभूषण से सम्मानित श्री मैथलीशरण गुप्त जी का जन्म ३ अगस्त,१८८५ में उत्तर प्रदेश के जिला झाँसी के चिरगांव में हुआ था.हम सब प्रतिवर्ष जयंती को कवि दिवस के रूप में मनाते हैं.अपनी पहली काव्य रचना 'रंग में भंग'रचने वाले गुप्त जी को मूल्यों के प्रति आस्था के अग्रदूत दद्दा के नाम से विख्यात हुए.इस विख्यात रचनाकार का विषय भारतीय संस्कृति और देश…</p>
<p>राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तजी <br/>मानस भवन में आरय़जन जिसकी उतारे आरती।<br/>भगवान भारतव्रष में गूंजें हमारी भारती।।<br/>हिंदी साहित्य के राष्ट्र कवि पद्मभूषण से सम्मानित श्री मैथलीशरण गुप्त जी का जन्म ३ अगस्त,१८८५ में उत्तर प्रदेश के जिला झाँसी के चिरगांव में हुआ था.हम सब प्रतिवर्ष जयंती को कवि दिवस के रूप में मनाते हैं.अपनी पहली काव्य रचना 'रंग में भंग'रचने वाले गुप्त जी को मूल्यों के प्रति आस्था के अग्रदूत दद्दा के नाम से विख्यात हुए.इस विख्यात रचनाकार का विषय भारतीय संस्कृति और देश निवासियों के ह्रदय में गुलामी की जंजीरों को तोड़कर आजादी की व्हींगारी फूकना थीभारतीय संस्कृति की गैरव गाथा का गुणगान करने वाले कवि को उनकी चंद रचनाओं के प्रेरित भाव के रूप में श्रद्धा सुमन अर्पित-<br/> अंग्रेजों की दासता ,उनके अत्याचारों से ग्रसित देशवासियों और दुर्दशा का 'भारत भारती' में मनुष्य के अस्तित्व को झंझोड़ते हुए कहा था- 'हम कौन थे,क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी'.देश की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त करती ये कविता ना केवल मानव को एक जुट होकर गुलामी की जंजीरे तोड़ने का आह्वान करती हैं,बल्कि मानव जागरण को शक्ति प्रदान करती हैं.इस काव्य में भारतीय संस्कृति का ऐतिहासिक दस्तावेज है,वही 'यशोधरा 'में नारी की दयनीय दशा का वर्णन 'अबला जीवन हाय,यही तुम्हारी कहानी,आँचल में हैं दूध,आँखों में हैं पानी,' करते हुए नारी के हक में आवाज उठाते हुए कहा हैं कि 'सखी ,वे मुझसे कहकर जाते,तो क्या वे मुझको अपनी पगबाधा पाते,'पंक्तियाँ उल्लेखित करती हैं कि मैं इतनी भी कमजोर,भावुक नहीं हूँ कि तुम्हारे रास्ते का रोड़ा बनती. त्याग, बलिदान को बताती पंक्तियाँ - 'मानस मंदिर में सती,पति की प्रतिमा थाप,'साकेत'काव्य में वर्णित किया हैं.नारी की महत्वता बताते हुए कहा हैं कि नारी तो दो किलो की रक्षक ,दीपक,.रखवाली होती हैं.आधुनिकता की दौड़ में भागती नारी में माँ-बच्चों के एहसास के विस्मृत होते रिश्तो को 'माँ,कह एक कहानी' में प्रति कर्तज्ञता का भाव जगाया हैं.जनजागरण करती कविता में देशवासियों को देश के उत्थान को उल्लेखित पंक्तियाँ समृद्ध संस्कृति को बताती हैं- 'जो ऋषि भूमि हैं,वह कौन हैं,भट वर्ष हैं,'स्वदेश का अनुराग अलापते गुप्त जी ने किसान,गरीब संस्कृति,मानवीय स्थिति और उसके संघर्षमयी जीवन में हिम्मत से काम लेने की प्रेरणा देती कविता- 'नर हो न निराश करो मन को,'हैं.तो दूसरी तरफ मृत्यु के भी का सामने करने वाली कविता 'जीवन की जय हो.'जिसमे कवि ने समय का सदुपयोग करने पर भी जोर दिया हैं.भारतीय संस्कृति का ऐतिहासिक दस्तवेज 'भारत भारती 'में कहा हैं - हमे मृत्यु नहीं डरना चाहिए,आत्मा अमर हैं ,शरीर नश्वर हैं,इसलिए मूलयवान समय का सदुपयोग करना व्हाहिये।वही उपेक्षित व्यक्ति की गाथा 'विष्णु प्रिया'में किया हैं तो दूसरी और धरती पर स्वर्ग बनाने के अभिलाषी दद्दा जी ने अपनी बात कही हैं कि हमे इसे स्वर्ग बनाना होगा,क्योकि स्वर्ग लाया नहीं जा सकता - 'संदेश नहीं मैं यहांसवर्ग को लाया,इस भूतल की ही स्वर्ग बनाने आया.'देश में ही नहीं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हमारे देश का,,देशवासियों के कार्यों का गुंजायमान हो.<br/> अंततः हमे इस भागते जीवन में गुप्त जी की रचनाओं का अपने जीवन में समावेश करनी चाहिए ,तभी हमारा अस्तित्व ,हमारी संस्कृति -सभ्यता,रिश्ते,बच सकेंगे।<br/>दद्दा के नाम से विख्यात व महान रचनाकार को शत-शत नमन.......</p>
<p>स्वरचित व अप्रकाशित हैं </p>अनकंडीशनल दोस्तीtag:openbooks.ning.com,2022-08-07:5170231:BlogPost:10874842022-08-07T04:51:11.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
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<p><span style="font-weight: 400;">दोस्ती यानि जिंदगी....जिंदगी की नींव, खुशी, ख्वाब हैं और ख्वाब की ताबीर भी...!दोस्ती वो ताकत होती हैं जो निराशा, हताशा, अवसाद के क्षणों में समझकर मानसिक शांति देता हैं।लेकिन यह भी सच हैं कि बुनियादी संस्कार व जीवन जीने का सलीका सिखाने वाले परिवार के अस्तित्व के बिना कल्पना नही की जा सकती।उन्मुक्त संसार में उम्मीदों की किरणें बिखेरने वाली दोस्ती और इच्छाओं को सम्मान देने वाले परिवार के मध्यस्थ महीन बाल बराबर अंतर होते हुये भी हर रिश्ते…</span></p>
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<p><span style="font-weight: 400;">दोस्ती यानि जिंदगी....जिंदगी की नींव, खुशी, ख्वाब हैं और ख्वाब की ताबीर भी...!दोस्ती वो ताकत होती हैं जो निराशा, हताशा, अवसाद के क्षणों में समझकर मानसिक शांति देता हैं।लेकिन यह भी सच हैं कि बुनियादी संस्कार व जीवन जीने का सलीका सिखाने वाले परिवार के अस्तित्व के बिना कल्पना नही की जा सकती।उन्मुक्त संसार में उम्मीदों की किरणें बिखेरने वाली दोस्ती और इच्छाओं को सम्मान देने वाले परिवार के मध्यस्थ महीन बाल बराबर अंतर होते हुये भी हर रिश्ते के अपने-अपने रंग होते हैं। </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> प्यार, स्नेह, सादगी, आत्मीयता की प्रतीक दोस्ती में समाहित आपकी आंतरिक सुंदरता को समझती हैं, आपको वैसा ही बनाती हैं जैसा आप चाहते हों। आप जैसे हो, वैसा ही स्वीकारती हैं.....आपके बीते कल को समझती हैं।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">सच हैं,जहां अपने अध्यापनकाल के एक पढ़ाव में साथीगण सभी आदरणीय उम्र के थे पर सभी ने मुझे सच्चे सलाहकार बनकर तो कभी दोस्त बनकर मेरे गुणों को सराहा तो अवगुणों की ओर इंगित कर उनका परिमार्जन किया। बेटी की तरह ध्यान रखते हुये कभी जिम्मेदारियों से उपेक्षित नही होने दिया। सब कुछ जानते हुये भी बिना किसी मतभेद के सादगी और सहानुभूति व आत्मीयता से जरूरतों को पूर्ण करने में वैचारिगी,दयालुता दिखाकर मनोबल नहीं गिरने दिया।सामाजिकता का पाठ सीखने के साथ जिंदगी के वास्तविक मायने समझे। </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">वहीं अध्यापनकाल के दूसरे पढ़ाव में आदरणीय के साथ हमउम्र साथीगण मिलें। इस दौर में जीवन की खुशी, जमीन का खजाना, मनुष्य के रूप में फरिश्ता....दोस्ती का भाव गूंगे के गुड़ जैसा एहसास कराया।दिल की गहराइयों को छू गई। रूह तक एहसास कराने वाली ये दोस्ती आईने की तरह पारदर्शी हैं.....जिसमें निःस्वार्थता का उदार भाव होने के कारण बिना लेन-देन के स्वार्थ से परे।विकट परिस्थितियों में आपसी वैचारिक मतभेद और गिले-शिकवे दरकिनार कर दुःख में राहत, हताश में हौंसला, कठिनाई में पथप्रदर्शक बन समस्या का सतर्कता से समाधान करने में स्वनिर्णय लेने में निर्णायक भूमिका निर्वहन की।प्रतीक के रूप में मानी जाने वाली ये अनमोल दोस्ती ही तो हैं जिसे पाना सच्चे प्रेम से ज्यादा दुर्लभ होती हैं। </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जीवन को प्रकाशवान बनाकर धनवान बनाती दोस्ती बेशकीमती और शुभचिंतक तोहफा ही तो कहेंगे, जिसे एक्सप्लेन करना मुश्किल होता हैं। एक-दूसरे से बंधे होने पर भी एक-दूसरे की आजादी पर कभी हस्तक्षेप नही करते। जीवन की खुशी, जमीन का खजाना मनुष्य के रूप में फरिश्ता दोस्ती...दास्तान सहेजने वाली निःशब्द.....पारस्परिक विश्वास और समझ के कारण गहरी होती खूबसूरत दोस्ती का सफर ख़ुशबुओं से भरा होता हैं। दोस्ती के सरगम में मानसिक,सामाजिक और शारीरिक सेहत के तार होते हैं। जिसके छेड़ने से परवाह,आत्मीयता,मनुहार, भावनाओं, तकरार के सुर बहते हैं। </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">दिल की गहराई छूती दोस्ती जीवन के गुजरते पढ़ावों में आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ती गई।और दोस्ती का बना खूबसूरत गुलदस्ता अपनी महक से जीवंत करता गया। रूह तक एहसास करने वाली दोस्ती ही तो थी जो संकीर्ण बाधाओं को तोड़कर अटूट भावना से जुड़ी। कभी वक्त के मुहाने ठंडी पड़ी बचपन की दोस्ती को बेतार के तार ने फिर से जोड़ दिया। आत्मीयता की प्रतीक दोस्ती, बड़ी बहन की तरह....मधु दी की अनुरागमयी बातें मनोबल बढ़ाने वाली.... मेरी मिलने की इच्छा को .स्क्रीन से निकल प्रत्यक्ष सामने ....खुशी का ठिकाना नही था...मधु-सी मधुरता...। जिंदगी के लम्हों को यादगार बनाते दोस्ती की जीवंत डायरी के पन्नों को किसी लक्ष्मण रेखाके धागे से बंधा नहीं जा सकता। बिना लेन-देन के स्वार्थ से परे दोस्ती ही तो हैं जिसने दोस्ती कि सौहादर्यता को बढ़ाने कई किलोमीटर की दूरी को संकुचित कर दिया।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बिछड़ने पर भी भावनाओं के सुदर अदृश्य तार प्रत्यक्ष रूप से जुड़कर और सुदृढ़ बन गए। चंद मिनटों का मिलना लक्ष्मी दीदी चंद घंटों की मुलाक़ात सपरिवार वंदना दीदी से..... त्रिवेणी का संगम सुनीता दीदी,मीरा दीदी,कुसुम दीदी… मीलों का सफर संकुचित हो गया… अविस्मरणीय यादगारों को संजोता पल कुछ वक्त के लिए जैसे थम-सा गया हो।दोस्ती का कद ऊंचा करते दोस्ती दुनिया बन जाती हैं। </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> हर समस्या का समाधान करने वाला प्रेम, विश्वास और भरोसे पर खरा उतरने वाला परिवार व्यक्तित्व को गढ़ता हैं तो दोस्ती व्यक्तित्व को निखारकर आकार देती हैं।अशांत जीवन की उलझनें सच्चे दोस्तों ने ही सुलझाई।संस्कार व समाजिकता सिखाने वाले परिवार ने पहचान दिलाई तो वही दोस्ती ने बिना किसी आडंबर के अतीत को समझते हुये जीने का अंदाज सिखाकर जीने की वजह दी। </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">फिर चाहे बालपन के दोस्त हो या जिंदगी के नए मोड़ पर हाथ थामने वाली सखियाँ, जिंदगी के रेखाओं का केनवास पर परिचय करवाने वाली कलाकार दोस्त या फिर केनवास पर चित्रात्मक भावों को पन्नों पर कलमबद्ध करने को प्रेरित करने वाली साहित्यिक अग्रजा जैसी दोस्त.......।उनकी बातों में झलकता अथाह विश्वास और प्यार......संकीर्ण बाधाओं को तोड़ती अटूट भावना से जुड़ी दोस्ती ही तो थी जिसने दोस्ती की सौहादर्ता को बढ़ाने में मीलों के सफर को संकुचित कर उन तारीखों को अविस्मरणीय बना दिया।जीवन के उपवन में पारस्परिक समझ और विश्वास से खिले फूलों की महक ने दोस्ती को जीवंत कर दिया। </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">सही हैं, संस्कार और दोस्ती जीवन के बहुमूल्य खजाने में से ऐसे शुभचिंतक व अनमोल रत्न ही तो हैं जिसने आत्मबल और आत्मसम्मान बढ़ाकर जीवन को प्रकाशवान बनाकर ना केवल जीने की वजह दी बल्कि जीने का अंदाज सिखाया।</span></p>
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<p><span style="font-weight: 400;">स्वरचित व अप्रकाशित हैं </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बबीता गुप्ता </span></p>प्रेमचंद जी के जन्मदिन पर लेखtag:openbooks.ning.com,2022-07-31:5170231:BlogPost:10871972022-07-31T05:46:04.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>कालजयी प्रेमचंद जी......... </p>
<p>विश्व साहित्य पटल पर हिन्दी साहित्य के महान कथा सम्राट,महान उपन्यासकार प्रेमचंद जी का उतना ही सम्मान किया जाता हैं जितना कि गोर्की और लू श्यून का.... इसके बाद रविन्द्रनाथ टैगोर जी को प्राप्त हुआ। आधुनिक हिन्दी साहित्य के जन्मदाता, शब्दों के जादूगर प्रेमचंदजी का लेखन पत्रकारिता और साहित्य के माध्यम से हिन्दी की सेवा में आज की मौजूदगी कराता हैं।अधोरात्र लिखने वाले प्रेमचंद जी को हिन्दी लेखकों की आर्थिक समस्याएँ उन्हें कचोटती थी। 'हिन्दी में आज हमें न पैसे…</p>
<p>कालजयी प्रेमचंद जी......... </p>
<p>विश्व साहित्य पटल पर हिन्दी साहित्य के महान कथा सम्राट,महान उपन्यासकार प्रेमचंद जी का उतना ही सम्मान किया जाता हैं जितना कि गोर्की और लू श्यून का.... इसके बाद रविन्द्रनाथ टैगोर जी को प्राप्त हुआ। आधुनिक हिन्दी साहित्य के जन्मदाता, शब्दों के जादूगर प्रेमचंदजी का लेखन पत्रकारिता और साहित्य के माध्यम से हिन्दी की सेवा में आज की मौजूदगी कराता हैं।अधोरात्र लिखने वाले प्रेमचंद जी को हिन्दी लेखकों की आर्थिक समस्याएँ उन्हें कचोटती थी। 'हिन्दी में आज हमें न पैसे मिलते हैं ,ना यश मिलता हैं। दोनों ही नहीं। इस संसार में लेखक को चाहिए किसी की भी कामना किए बिना लिखता रहे।<br/>राष्ट्र चेतना से संबन्धित विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पत्रकारिता को माध्यम बनाया। सामाजिक समरसता और स्वदेशी के भाव स्फूर्तरूप से समझाने में पत्रकारिता ही एक ऐसा सशक्त माध्यम हैं जो जनजागरण की प्रचंड प्रदीप्ति की ज्वाला रिपोतार्ज,लेख,रपट, पत्रकारिता, समीक्षा, लेखन, टिप्पणियाँ से जला सकता हैं।'महिला जगत से लेकर राष्ट्र भाषा के बड़े से बड़े अबगिनत मुद्दे, हिन्दू-मुस्लिम, छूयाछूत,साहित्य दर्शन जैसे कई विषयों पर अपनी कलाम चलाकर जनमानस से सीधे जुड़े किस्से सामाजिक,राजनैतिक, बौद्धिक क्रान्ति लाई जा सके। <br/>कथा शिल्पी प्रेमचंदजी का काल महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में स्वाधीनता और अहिंसात्मक युद्ध का था। राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रचेतना, सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह, स्वदेशी आंदोलनों की गूंज से उथल-पुथल वातावरण से प्रेमचंद जी साहित्य सृजन तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि पत्रकारिका द्वारा राष्ट्रीय चेतना वाला साहित्य लिख एयर इसी वैचारिक भावना से ओत-प्रोत होकर सं 1903 में पत्रकारिता प्रारंभ की और सं 1930 में हंस पत्रिका चलने तक अपनी कलम चलाई। आपने हंस पत्रिका के प्रथम अंक में लिखा, 'हंस भी मानसरोवर की शांति छोड़कर अपनी नन्ही चोंच में चुटकी भर मिट्टी लिए हुये समुद्र पाटने, आजादी की जंग में योगदान देने वाले साहित्य और समाज में वह उन गुणों का परिचय करा ही देगा, जो परंपरा से उसे प्राप्त हुये हैं।'<br/> निजी जीवन के झंझवातों का दर्द ,संवेदनाएँ उनके लेखन कार्य में दृष्टिगोचर होती हैं। दशकों पूर्व जिन समस्याओं के प्रति किया था ,वो वर्तमान में यथावत हैं। वर्तमान में उठती सांप्रदायिकता की समस्या का बिगुल मुंशी जी ने हंस पत्रिका में रपट का शीर्षक 'अच्छी और बुरी सांप्रदायिकता ' में हवाला दिया था...'अगर सांप्रदायिकता अच्छी हो सकती हैं तो पराधीनता भी अच्छी हो सकती हैं, झूठ भी अच्छा हो सकता हैं।……बुरी सांप्रदायिकता को उखाड़ फेंकना चाहिए अगर अच्छी सांप्रदायिकता वह हैं जो अपने क्षेत्र में बड़ा उपयोगी काम कर सकते हैं,उसकी अवहेलना क्यों की जाए।' अज़हर हाशमी, प्रसिद्ध कवि और गीतकार का वक्तव्य हैं कि प्रेमचंद जी की पत्रकारिता ने समाज में सौहदर्ता का पाठ प्रशस्त किया। मेरे मौलिक मत में मुंशी जी की पत्रकारिता प्रेम का पनघट थी। जहां सौहार्द की सुराही से हिन्दू-मुस्लिम एकता पानी पीती थी। लेकिन ऐसी पत्रकारिता करने वाले की सुविधाओं के सिक्के नहीं बल्कि मुफ़लिसी के मुक्के मिले। पत्रकारिता तब ही सद्भावना सेतु बनेगी, जब सदाशयता का सीमेंट और इंसानियत रूपी ईंटों के साथ संवेदनशीलता का साहस चाहिए। सौहार्द की स्थापना के लिए सहूलियत को त्यागना पड़ता हैं।<br/>आम जनता में असहमति होने पर ना कहने का साहस और सहमत होने के लिए अपना विवेक विकसित करने के लिए अच्छे-बुरे की पहचान होनी चाहिए जनमत निर्माण करने का दस्तावेज और निष्पक्षता से साहस,दिलेरी से बेबाक टिप्पणी करने वाले प्रेमचंद जी ने पत्रकारिता को ईमान और इंसान की पत्रकारिता बना दिया।फरवरी, 1934 में हंस पत्रिका में जाति भेद मिटाने की एक आलोचना जिसमें उनकी पीड़ा स्पष्ट झलकती हैं….'इंसान हम बाद में हैं, पहले जाति,ऊंट-नीच के बंधनो के जाल में गुंथे हुये हैं। आगे रपट की एक पंक्ति 'प्रस्ताव बड़े रूप में हैं, हम उस दिन को भिरत के इतिहास में मुबारक समझेगे,जब सभी हरिजन ब्राह्मण कहलाएंगे।'<br/>हाशमी जी का मानना है कि वर्तमान पत्रकारों के लिए, मुंशी प्रेमचंद चंद जी की पत्रकारिता एक ऐसी पुस्तक हैं जिसमें विश्वास की वर्णमाला, बहादुरी की बारहखड़ी, प्रेम के पाठ और अपनत्व के अध्याय हैं, पठनीय व अनुकरणीय भी हैं। आवाजे मल्क में एक मई,1903 से 24 सितम्बर, 1903 तक ऑलिवर क्राॅणवेल के विभिन्न प्रसंगों पर टिप्पणी छपी।स्वदेश और मर्यादा में रिपोतार्ज करने के साथ उर्दू के प्रसिद्ध पत्र जमाना से उनका आत्मीय रूप से लगाव जो जीवनपर्यन्त बना रहा।इसमें रपटों और टिप्पणियों के अलावा रफ्तारे जमाना के नाम से स्थायी स्तंभ लिखा और बेधड़क होकर सशक्त लेख, स्पष्ट वक्तव्य के साथ संपादन भी किया।1933-1934 में जागरण, साप्ताहिक पत्र का संपादन किया तो 1930-1936 तक मासिक हंस का का, जनता के हित से बंधी पत्रिका के सर पर ब्रिटिश हुकुमत की तलवार लटकी जरूर वो विरोध करने में डरे नही और कोपभाजन का शिकार होने पर भी प्रतिरोध करने पर पीछे नहीं हटे।'<br/>दिलेर और दमदार व्यक्तित्व वाले राजा-महाराजाओं का अभिमान पस्त होने के कारण रियासतें अंग्रेजी हुकूमत की गुलाम थी।कथाशिल्पी प्रेमचंद जी एक तरफ महात्मा गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित करते वही दूसरी ओर अंग्रेजों के अन्याय,अत्याचार, नृशंसता पर प्रतिवाद भी करते।संपादकीय में समाज सुधार, राष्ट्रीय चेतना, अंग्रेजों की दासता से मुक्ति आंदोलन से जनता को जाग्रत करते।ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ अनवरत संघर्ष करते हुये दमन की सीमा, स्वराज रहेगा, काले कानूनों का व्यवहार, शक्कार की एक्साईज ड्यूटी, कोढ़ पर खाज जैसे वर्णन पर टिप्पणियां लिखी और स्वराज और साम्राज्यवादी शोषण पर उनका चिन्तन राष्ट्रीय चिन्तन था।उन्होने आगाह किया था कि जिस दिन से भारतीय बाजार में विलायती मिल भर गया,भारत का गौरव उसी दिन लुट गया।<br/>फूट डालो शासन करो की ब्रिटिश सरकार की नीति हिन्दु-मुस्लिम सौहार्दता नही चाहती थी।इस कूट नीति को विफल करने और लोगों को दोगली शासन के प्रति जागरूक करने पत्रकारिता में एक नई शैली से मार्ग प्रशस्त कर सामाजिक कुरीतियों की जंजीरों को तोड़ने में कलम चलाई।लोगों की प्रेमभाव की डगर में सौहार्दथा के फूल खिलाकर सुख-दुख की हवाओं से समस्या रूपी कांटों को निकालने के नव आयाम स्थापित किए।ब्रिटिश सरकार के कानूनन्यू इंडिया प्रेम आर्डिनेस ,1930 पास होने पर इस दमनकारी किनून के विरोध में प्रेमचंद जी ने आवाज उठाई।इसके फलस्वरूप हंस पत्रिका बंद हो जाने की कीमत चुकानी पड़ी।प्रेमचंद जी की टिप्पणी विरोध में थी….'अब ना कानून की जरूरत हैं, काउंसिले और असेंबलियां सब व्यर्थ, अदालतें और महकमे सब फिजूल… डंडा क्या नहीं कर सकता,वह अजेय हैं, सर्वशक्तिमान है। <br/>प्रेमचंद जी तटस्थ संपादकीयता पर जैनेन्द्र जी ने ममताहीन सद्भावना कहा।रूढ़ियों को तोड़ने पर ही क्रांति की जंजीरे जुड़ेगी…सच कहने और सच लिखने पर सब सुविधाएं छोड़नी पड़ती हैं। पूंजी के प्रभुत्व को त्यागने पर ही सबल सशक्त लेखनी में सिद्धांतों की कुर्बानी करने का कोई सवाल ही नहीं उठता।प्रेमचंद चंद जी की पत्रकारिता में बुनियादी सवालों से जुड़ी, आदर्श मानदंड,जज्बाती भावनाएं, राष्ट्रवादी आंदोलनों के विचारो का प्रतिनिधि एवं जनमत निर्माण में उनके विचार प्रेमचंद जी के एक लंबे अर्से से चले आ रहे विचारों केवमंथन का परिणाम है। आपने कितनी भी आर्थिक कठिनाई को झेला पर आपकी पत्रकारिता निष्कलंक हैं हंस पत्रिका बंद हो जाने पर उसे साहित्य परिषद के हवाले किया पर जब साहित्य परिषद ने उसे सिर्फ पकास रूपये के लालच में सस्ते साहित्य को बेच दिया ।इस पर दुखित प्रेमचंद जी ने अपना दर्द बयां करते हुये लिखा जिसमें उनकी पीड़ा स्पष्ट झलकती हैं, 'बनिया के साथ काम करने पर यह सिला मिला कि तुमने हंस से ज्यादा रूपया खर्च किया,इसके लिए दिलोजान से काम किया। बिल्कुल अकेले वक्त और सेहत का मिलकर खून किया।इसका किसी को लिहाज नहीं।'<br/>बहुमुखी प्रतिभा के धनी जिनकी रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता हैं।विषमताओं और कटुताओं से भरा जीवन,मानव जीवन से जुड़ी आधारभूत महत्ता पर बल दिया पर जीवन के प्रति आस्था होते हुई भी विकट परिस्थितियों में ईश्वर के प्रति आस्था नही थी।सादा जीवन ,उच्च विचार सरलता,सौम्यता,सौजन्यता और उदारता की साक्षात की प्रतिमूर्ति ने गवई लिवास में संपूजीवन गुजारा।बाह्य आडंबर से कोसे दूर उनके दिल में गरीबों व पीड़ितों के प्रति सहानुभूति का अथाह सागर था।अपने जीवन के अंतिम समय तक कलम चलाने वाले प्रेमचंद चंद जी भारतीयों की सुप्त चेतना को अपने क्रान्तिकारी विचारो से स्वाधीनता की ज्वाला को प्रदीप्त करने वाले दीपक थे जिन्होंने अपनी कहानी कायाकल्प में कहा कि सूरज जलता भी हैं, रोशनी भी देता हैं। </p>
<p>बबीता गुप्ता </p>
<p>स्वरचित व अप्रकाशित हैं </p>महामहिम द्रौपदी जीtag:openbooks.ning.com,2022-07-28:5170231:BlogPost:10873842022-07-28T13:38:04.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p><span style="font-weight: 400;">सशक्तिकरण का मील का पत्थर </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जब देश आजादी का 75 वां अमृत महोत्सव मना रहा हैं तब 21जुलाई, 2022 का दिन भारत के इतिहास में लिखा जाने वाला गौरवान्वित करने वाला ऐतिहासिक दिन… नवभारत की भावना को अभिव्यक्त करने के साथ स्पष्ट संदेश प्रेषित होता हैं कि तुष्टीकरण की बजाय सामाजिक परिवर्तन के सूत्रधार को प्राथमिकता प्राप्त हुई।वैचारिक जड़ता को मिटाने वाला सामाजिक न्याय के क्षेत्र में बड़ा कदम साबित हुआ।जमीनी स्तर के लोगों को…</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">सशक्तिकरण का मील का पत्थर </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जब देश आजादी का 75 वां अमृत महोत्सव मना रहा हैं तब 21जुलाई, 2022 का दिन भारत के इतिहास में लिखा जाने वाला गौरवान्वित करने वाला ऐतिहासिक दिन… नवभारत की भावना को अभिव्यक्त करने के साथ स्पष्ट संदेश प्रेषित होता हैं कि तुष्टीकरण की बजाय सामाजिक परिवर्तन के सूत्रधार को प्राथमिकता प्राप्त हुई।वैचारिक जड़ता को मिटाने वाला सामाजिक न्याय के क्षेत्र में बड़ा कदम साबित हुआ।जमीनी स्तर के लोगों को सशक्त बनाना व वंचितों को आवाज देने और इतिहास को फिर से स्वर्णिम अक्षरों से लिखने की अवधारणा हैं।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पूर्वी भारत के ओडिशा के मयूरगंज जिले के उपरखेड़ा गांव के मुखिया बिरंची नारायण टुहूरिया के यहां 20 जून, 1958 में जन्मी द्रौपदी मुर्मू इतिहास रचकर राष्ट्रपति बनी।शीर्ष संवैधानिक पदभार संभालते हुये मुर्मू के माध्यम से महिला सशक्तिकरण के साथ मातृशक्ति के अनन्य जुड़ाव का संदेश प्रेषित होता हैं। राजनीतिक बदलाव की मद्धिम पर ताजगी भरी नई उम्मीदों की…आस्था की बयार विस्तारित होते देख प्रतीत होता हैं कि सर्वभाव, सर्वजात,समानता,एकता,लोकतंत्र के प्रति विश्वास सुदृढ़ हो रही हैं। </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">वंचित वर्गों में स्वाभिमान का पुनर्जागरण होगा, जनजाति समाज में आशा की किरण बनकर अपनी अस्मिता का बोध जाग्रत होगा।महिला सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।आजादी के बाद जन्म लेने वाली पहली महिला राष्ट्र की आदि शक्ति महामहिम द्रौपदी मुर्मू पहली आदिवासी गांव की शिक्षक रही और अब सेना की सर्वोच्च कमांडर!विषम परिस्थितियों में यहां तक पहुंचने का सफर प्रेरणास्रोत रहा।प्रथम नागरिक चुनकर लोकतंत्र की शक्ति दिखाई दी।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">भारत के ससबसे वंचित जनजाति समाज की बेटी सर्वोच्च संवैधानिक पद की नई आभा परिवर्तन की अवधारणाओं को प्रतिबिम्बित कर इतिहास को बदलने को मजबूर कर दिया।अपने ही समाज में स्वाभिमान की भावना करने वाली मुर्मू उस गांव से हैं जहां पुरूषों को भी राजनीति में जाना बुरा माना जाता था।भूतपूर्व राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी (64 साल दो माह छैः दिन) के बाद सबसे कम उम्र की दौपदी मुर्मू (64 साल एक माह छैः दिन) राष्ट्रपति बनी। अंग्रेजी प्रेमी मुर्मू की नानी चाहती थी कि मुर्मू फर्राटेदार अंग्रेजी बोले इसके लिए नानी ने उन्हें भुवनेश्वर पढ़ने भेजी,वो गांव की पहली लड़की थी।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">राजनीति की शुरूआत 1997 में हुई।इससे पहले 1979-1983 तक सिंचाई विभाग में जूनियर असिस्टेंट बनी।1994 -1997 तक शिक्षक रही, 1997 में राजनीति मे उतरी मुर्मू रायरंगपुर नगरपालिका में पार्षद बनी फिर चेयरपर्सन बनी।ओडिशा इकाई की अनुसूचित जाति व जनजाति मोर्चे की उपाध्यक्ष बनी।ओडिशा ने सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरूस्कार के लिए सम्मानित किया। जब मुर्मू झारखंड की राज्यपाल पर पदस्थ थी तब एक माँ द्वारा अपने बच्चे को किसी को गोद देने की खबर पता लगने पर उन्होंने उस बच्चे को गोद लेने की घोषणा की और पढ़ाई-लिखाई का भार उठाने का संकल्प लिया।इसी तरह प्रकृति प्रेमी मुर्मू का मानना हैं कि पेड़ पोषणकर्ता के साथ ही जीवन साथी हैं। अब्दुल कलाम का आदर्श मानते हुये कहते हैं कि एक परिवार को दस पेड़ लगाना चाहिए।ट्रीज फोर टाईगर अभियान चलाकर पचास लाख पेड़ लगाएं।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">2009-2015 इन छैः सालों में उन्होंने पहाड़-सा दुःख झेला।पति,दो बेटे,माँ की मृत्यु व्यक्तिगत त्रासदियों ने भी उन्हें जन सेवा करने से बाधित नहीं होने दिया।जन आकांक्षाओं को जीवन केन्द्र बनाने वाली मुर्मू का कार्यकाल विकासोन्मुखी व निष्कलक रहा।धैर्यता से सब परिस्थितियों को झेलती हुई अपना जीवन जन सेवा में समर्पित कर संकल्पित हुई और सार्वजनिक जीवन में उत्तम आदर्श स्थापित किए।विनम्रता की मूर्ति, जमीन से जुड़ी दयालुता का भाव समाहित मुर्मू का महामहिम बनना वंचित वर्ग व अत्यंत पिछड़े वर्ग के लिए संदेश जाता हैं कि व्यक्ति की अपनी कार्यशैली से सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों से उत्पन्न चुनौतियों का सामना कर ऊंचाईयां पा सकता हैं।</span></p>
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<p><span style="font-weight: 400;">स्वरचित व अप्रकाशित </span></p>
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<p><span style="font-weight: 400;">बबीता गुप्ता </span></p>सीड बमtag:openbooks.ning.com,2022-06-06:5170231:BlogPost:10851972022-06-06T04:00:00.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>पतझड़ का मौसम लगते ही बाग-बगीचों में जहां देखों वही पत्तों से जमीन ढक जाती हैं। <br></br> गर्मियों की छुट्टियों में बिनी और पम्मी के घर उनकी बुआजी के बच्चे टिपलू और टीना आए हुये थे।दिनभर खेलकूद खाने-पीने की मस्ती चलती और सुबह-शाम को बगीचे मे दादी के साथ पौधो को पानी डालते।<br></br> एकदिन शाम को रोजमर्रा की तरह पानी डालते बच्चों को दादाजी ने अपने पास बुलाया और क्यारियों में जमी खरपतबार को उखाड़कर एकतरफ ढेर लगाने को कहा और साथ में उग आए नीम, जामुन, पीपल, तुलसी बगेरह के पौधों को जड़ों सहित मिट्टी में…</p>
<p>पतझड़ का मौसम लगते ही बाग-बगीचों में जहां देखों वही पत्तों से जमीन ढक जाती हैं। <br/> गर्मियों की छुट्टियों में बिनी और पम्मी के घर उनकी बुआजी के बच्चे टिपलू और टीना आए हुये थे।दिनभर खेलकूद खाने-पीने की मस्ती चलती और सुबह-शाम को बगीचे मे दादी के साथ पौधो को पानी डालते।<br/> एकदिन शाम को रोजमर्रा की तरह पानी डालते बच्चों को दादाजी ने अपने पास बुलाया और क्यारियों में जमी खरपतबार को उखाड़कर एकतरफ ढेर लगाने को कहा और साथ में उग आए नीम, जामुन, पीपल, तुलसी बगेरह के पौधों को जड़ों सहित मिट्टी में बांधकर एकतरफ रखते देख बिनी ने उत्सुकता से पूछा।<br/> 'दादा जी, आप इन पौधों को क्यों नहीं फेक रहे ?'<br/> एक-एक पौध की पहचान कराते हुये दादाजी ने समझाते हुये उत्तर दिया, 'बेटा ये बहुत गुणकारी पेड़ हैं। ये ना केवल वातावरण को शुद्ध करते हैं बल्कि पर्यावरण का संतुलन बनाने में मदद भी करते हैं। '<br/> 'हां नाना जी, साइंस की मेडम ने समझाया था कि कैसे पौधे वर्षा रानी को बुलाते हैं और अपनी जड़ों से उस पानी को सोखकर जमीन में पानी की कमी पूरी करने में सहायता करते हैं।'<br/> 'सही कहा तुमने टीना!हम जो ऑक्सीजन लेते हैं वो पौधों द्वारा ही छोड़ी जाती हैं।'<br/> 'बिल्कुल सही कहा तुम दोनों ने… हमें पेड़ों को काटने वालों से बचाना चाहिए...अधिक से अधिक पेड़ लगाना चाहिए,समझी,'दादाजी ने हंसते हुये कहा।<br/> 'मालुम हैं नानी जी, स्कूल में वृक्षारोपण करवाते हुये सिखाया था कि हम घर पर आम,जामुन बगेरह की गुठली से कैसे सीड बम तैयार करते हैं और कही सफर करते हुये खाली जमीन में फेंक दो तो हरियाली बनाए रखने में इस तरह सहयोग दे सकते हैं साथ ही ऑक्सीजन की भी कमी ना होगी।'<br/> बिनी ने जैसे कुछ याद करते हुये कहा, 'हां ...टीव्ही में देखा था.. हरियाली की कमी होने से ही कितनी ऑक्सीजन सिलेण्डर की कमी हो गई थी… कितने लोगों की जान ऑक्सीजन सिलेण्डर ना मिलने पर चली गई थी। '<br/> तीनों को बातें करते देख दूर बैठे आमों को चूसकर मजा लेते टिपलू और पम्मी भी आकर जिज्ञासा से बातें सुनने लगे।<br/> 'पर दादाजी ।ये सब पेड़ अपने बगीचे में लगे हुये हैं तब इनका क्या….?' पेड़ों की तरफ इशारा करते हुये बिनी ने कहा।<br/> दादजी कुछ कहते कि इससे पहले टीना ने टिपलू की तरफ शरारत से चुटकी लेते हुये कहा, 'अरे, परसो ही तो टिपलू का जन्मदिन आ रहा हैं और मेडम ने बताया था कि दोस्तों को पौधें उपहारस्वरूप भेंट करना सबसे यादगार दोस्ती याद रखने वाला होता हैं...क्यो,टिपलू भाई!'<br/> इतने में टिपलू और पम्मी के खाए आम की गुठलियों को हाथ में बटोरकर लाई बिनी ने सभी को बांटकर टीना से कहा, 'चलिए टीनाजी हमें भी सिखाईये सीडबम बनाना...।'<br/> 'हां...हां.. नेक काम में देरी कैसी!...टीना से हम भी सीखेगे…!'<br/> बिनी ने दादाजी द्वारा बनाये छोटे-छोटे पौध की तरफ इशारा करके भोलेपन से पूछा, 'तो क्या दादा जी, अपने बगीचे में किसी ने सीडबम फेंके थे .. तभी ये जगह-जगह उग आए।'<br/> 'धत् पगली!इतना भी नही पढ़ा विज्ञान में… पक्षियों की बीट से ही तो उग आते हैं….पक्षी ही सीडबम हैं।' टीना ने शरारती अंदाज में हंसते हुये कहा। <br/> टीना के किए मज़ाक से चिड़ते हुये बिनी ने कहा, 'ठीक हैं...ठीक हैं....तुम्हें सीड बम बनाना भी याद हैं या भूल गई...... ।'<br/> दोनों के बीच बढ़ती बहस को विराम देते हुये कहा, 'बहसबाजी बंद करो.....ये रही मिट्टी और आम की गुठलियाँ .....और क्या मिलते हैं इसमें टीना बेटा।'<br/> 'और मेडम ने बताया था गोबर की खाद और पानी मिलाकर रोटी का आटा जैसा गूंथेंगे और फिर लड्डू जैसे गोल-गोल सीड बम बनाएँगे।'<br/> दादाजी ने खुश होकर कहा, 'बहुत बढ़िया!पेड़ों के लिए मंगाई खाद भी हैं और मिट्टी भी। चलों,जुट जाओ सभी मिलकर हरियाली बनाए रखने के लिए गोल-गोल सीड बम बनाने।'<br/> उत्साहित होकर सभी सीड बम बनाने लगे।पम्मी ने टीना को धन्यवाद देते हुये कहा, 'विज्ञान के प्रोजेक्ट वर्क में मैं सीड बम ले जाऊँगी ... मेरा सबसे अच्छा वर्क होगा।'<br/> टिपलू ने हाथ में पकड़ी गुलेल को हवा में चलाते हुये कहा, और मैं अपने घर वापस बस से जाऊंगा तो बहुत सारे सीड बम अपने थैले में भर लूँगा और जहां जमीन खाली दिखेगी वही गुलेल से फेंक दूंगा।'<br/> सभी उसी बात का समर्थन करते हुये हंसने लगे और दादाजी ने प्यार से सिर पर हाथ भेरते हुये कहा, 'और तुम सब जैसे बच्चों के रहते धरती हमेशा खुश रहेगी।</p>
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<p>स्वरचित व अप्रकाशित </p>
<p>बबीता गुप्ता </p>
<p></p>अद्भुत गुणों की खान... माँtag:openbooks.ning.com,2022-05-08:5170231:BlogPost:10836692022-05-08T03:40:03.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>माँ सिर्फ जननी ही नही पालनहार भी होती हैं। संतान के जीवन को परिपूर्णता देने वाला माँ जीवन का संबल साया होता हैं। बच्चों के संघर्ष में कदम-दर-कदम साथ निभाती माँ का भरोसा आत्मविश्वास को कभी कम नही होने देती। अपने बच्चों के इर्द-गिर्द सपने बुनती माँ का स्पर्श तसल्ली देता हैं उसके कहे शब्द ,सीखे संकटमोचक बनकर हिम्मत देते हैं,ढांढस बँधाते हैं। प्यार-दुलार की बारिश करने वाली माँ भावनाओं का ऐसा अथाह सागर हैं माँ शब्द में पूरा संसार समाया हैं।अपने पूरे जीवन को समर्पित करने वाली माँ के त्याग अनमोल…</p>
<p>माँ सिर्फ जननी ही नही पालनहार भी होती हैं। संतान के जीवन को परिपूर्णता देने वाला माँ जीवन का संबल साया होता हैं। बच्चों के संघर्ष में कदम-दर-कदम साथ निभाती माँ का भरोसा आत्मविश्वास को कभी कम नही होने देती। अपने बच्चों के इर्द-गिर्द सपने बुनती माँ का स्पर्श तसल्ली देता हैं उसके कहे शब्द ,सीखे संकटमोचक बनकर हिम्मत देते हैं,ढांढस बँधाते हैं। प्यार-दुलार की बारिश करने वाली माँ भावनाओं का ऐसा अथाह सागर हैं माँ शब्द में पूरा संसार समाया हैं।अपने पूरे जीवन को समर्पित करने वाली माँ के त्याग अनमोल हैं। माँ एक सोच हैं जो ममता की विराटता से आकार ही नही देती बल्कि ज़िंदगी मुस्कराती हैं, विस्तार देती हैं।<br/>हर सुख-दुख में आशीर्वाद बनकर रास्ता दिखाने वाली अद्भुत गुणों की भंडार माँ ज्ञान और अनुभवों का इनसाइक्लोपीडिया होती हैं। <br/>घर से लेकर सेना और अर्थव्यवस्था तक अपने साहस,रचनात्मकता,उद्यमिता से दशक-दर-दशक बदलाव की नई इबारत लिखती माँ ने परिवर्तन लाने की ताकत का लोहा मनवा लिया। लिंगभेद की मानसिक संकीर्णता पितृसत्तात्मक सोच के खिलाफ सपनों की उड़ान भर नए आयाम दिए। विधाता की सर्वोत्तम विराट स्वरूपा माँ अनगिनत गुणों की खान विविधता में एकता की प्रतीक...... परिवार की धुरी बच्चे की प्रथम शिक्षिका जीजा वाई,पन्नाधाय बनकर ना केवल बहुआयामी व्यक्तित्व का विकास किया घर बैठकर ऑनलाइन ऑफिस के साथ घर भी सँभाला। अन्नपूर्णा की वचत की प्रवृति के अलावा हसुरा को फाउंडर की राजोशी घोष हो या महिला उद्यमी फाल्गुनी नायर, एयरपोर्ट की एटीसी अदिति अरोरा और संजुला इनके इशारों पर टेक ऑफ लैंडिंग होती हैं। देश की सबसे छोटी पाइलट मैत्री ,पहली चीफ जस्टिस नागरला,निर्मला सीतारमण,सुषमा स्वराज्य या घर की ज़िम्मेदारी भूमिका निर्वहन के साथ चीन सीमा पर सड़क बनाने की ज़िम्मेदारी उठाने वाली मेजर आईना....<br/>मल्टीटास्किंग माँ खुद एक प्रबंधक का चिट्ठा रिश्तों के सम्बोधन में सबसे छोटा पहला शब्द माँ भविष्य को संबारने वाली पुरुषवर्चस्व समाज की नायिकाएँ होती हैं। <br/>जैसा कि टी। टालनेज ने कहा हैं , 'माँ उस बैंक की तरह हैं जहां हम सारे दुःख-दर्द और परेशानियाँ जमा कर सकते हैं। ' बच्चों की हर वक्त सलामती की दुआएं मांगने वाली हर माँ की अपनी एक कहानी होती हैं.....<br/>मातृत्व के समर्पण,त्याग और निःस्वार्थ प्रेम की मूरत एक ब्रिटिश माँ मैरी वोरटले ने चेचक जैसी महामारी के खिलाफ पुनीत प्रयास करके विश्व को पहला टीका दिया था वही आज कोरोना काल में भारत की बायोटेक कंपनी की डायरेक्टर, सुचित्रा इला ने अपने पुनीत प्रयास से भारत की पहली स्वदेशी वैक्सीन दी। त्यागमयी माँ सारा गिलबर्ट,रिसर्चर एस्ट्रोजन वैक्सीन देवलप कर अपने तीन जुड़वा बच्चों पर ट्रायल किया। कम समय में अधिक काम अत्यधिक दवाब में शांत चित रहने वाली वैक्सीन डिस्कवरी और ट्रांसलेशन मेडिसिन विभागाध्यक्ष हनेक शूटमेकर ने जॉन्सन वैक्सीन बनाई जिसकी दो खुराक के बदले एक ही खुराक काफी हैं। इम्युनोलोजिस्ट और वयोटेक की मुख्य चिकित्सा अधिकारी ओजलें ट्ररेसी ने फाइजा वैक्सीन बनाकर कोरोना रोगियों को राहत का विकल्प दिया। <br/>शब्दों और अर्थों में ना समाने वाली माँ 66 वर्षीया कैटलीन कैरिको ने मॉडर्ना की उस साम्य वकालत की जब एम आर एन ए तकनीकी को अव्यवहारिक आइडिया माना जा रहा था। आज इस तकनीकी पर विकसित फाइजर और माडर्ना सबसे ज्यादा असरकारक पाई गयी। भारतीय मूल की अमेरिकन अरूना सुब्रह्मर्यम के नेतृत्व में कोविड-19 के खिलाफ रेमडेसवीर वैक्सीन एंटीवायरल मेडिसिन का क्लिनिकल ट्रायल हुआ। <br/>भारतीय संस्कृति में धरती,प्रकृति,गौ को माँ की श्रेणी में रखा जाता हैं। बिना कहे सब दुःख समझने वाली कोरोनाकाल में चंडीगढ़ पीजी में माँ अपनी दस माह की कोरोना संक्रामित बेटी के साथ पूरी सावधानी अपनाते हुये बची रही।माँ की ममता भेद नहीं करती। मां सी मां .....मैं तेरी माँ तो नहीं लेकिन तुझ से जुड़ गया नाता....सिर्फ जन्म देने से ही मातृत्व का एहसास नही होता .....जयपुर महिला चिकित्सालय में नवजात शिशुओं की मांओं को जब कोरोना हो गया तब चिकित्सालयों की नर्सों ने जितना वक्त मिलता भरपूर लाड़ लुटाती बच्चों पर..... । <br/> परिभाषाओं से परे माँ सर्वस्व लुटाकर जीवन को सींचती ईश्वर का अनमोल तोहफा प्रकृति की माँ सौ वर्ष की उम्र पार बरगदों की माँ सालुमरादातिम्मक्का कर्नाटक के तुमकुट जिले की रहने वाली ,400 से अधिक बरगद के पेड़ लगाकर अपनी संतान की तरह पोषा। <br/>खुशनुमा आँचल में सीखें कड़वी दवा से लेकर मजेदार लोरिया सुनने वाली मां जे के रोलिंग ने अतुल समरिद्धी का आधार बना हेरी पॉटर रचा। <br/>जैसा कि सोजोर्नर ट्रुथ का कथन हैं कि अपने सही अधिकारों की रक्षा के लिए किसी से भी लड़ने या टक्कर लेने से मत घबराओ...ये जज्बा और हिम्मत दिलाने वाली माँ जिसके शब्द में बसे प्यार को तोला नही जा सकता ....उसकी अहमियत को,भावों को,अहसास को पर्दे पर उतारने वाली कई फिल्में जिनमे पूज्यनीय माँ,आशीर्वाद बरसती ,उदारता,सहनशीलता,समर्पण,त्याग।निःस्वार्थ प्रेम के प्रतिमान गढ़ती फिल्मों में माँ की भूमिका को उकेरा। असल जिंदगी में माँ की भूमिका निर्वहन करने वाली नायिकाओं ने पर्दे पर अपनी सशक्त छवि को निभाया। सामाजिक परिस्थितियों का फिल्मों कि माँ पर गहरा असर पड़ा। मुगले आजम,औरत,मदरइंडिया की माँ जो समाज से टकरा जाने वाली तंगहली से जूझते परिवार को संबल देती हैं। हमारी संस्कृति में बसुंधरा से पुकारे जाने वाली माता मदरइंडिया में अपनी खेत को जोतते,सींचते दर्शाई गई । दीवार फिल्म का 'मेरे पास माँ हैं 'अविस्मरणीय डायलॉग हैं जिसमें पैसे में मदहोश बेटे को सही रास्ते पर लाने के लिए वो प्रकृति के नियम के विरुद्ध अपने मातृत्व का गला घोंट निष्प्रभ होकर मुंह मोड लेती हैं।जैसा कि मैक्सिम गोर्की का वक्तव्य हैं कि केवल माँ ही भविष्य के बारे में सोच सकती हैं क्योकि वही तो भविष्य को जन्म देती हैं। अपनी पारंपरिक भोली-भाली,दुखियारी वात्सल्यमयी भूमिकाओं के साथ बदलते वक्त में नई परते जुड़कर उन्हे सशक्त भूमिका में दर्शाया। <br/>दुर्गा खोटे,रीमा लागू, आशा सचदेव ,ललिता पँवार , लीला मिश्रा,नूतन,फरीदा जलाल,रत्ना पाठक,श्रीदेवी,स्मिता जयकर,शीबा चड्डा,सुप्रिया पाठक सपोर्टिंग भूमिका से हटकर समानान्तर भूमिका बदलते दौर के साथ नई सोच से लबरेज सशक्त स्वनिर्णय भूमिका देती हैं।शुरू में देवी स्वरूपा सद्गुणों के प्रतिमान के रूप में आत्मबलिदानी ,सिलाई मशीन पर खाँसने वाली विधवा माँ,अथक परिश्रम करने वाली मिलनसार हंसमुख माँ स्टीरियोटाइप भूमिका से हटकर सामाजिक रूप से जाग्रति लाने सवाल करने लगी हैं। बाला,शुभमंगल सावधान की माँ बनी सुनीता राजवर,बाहुबली की शिवगामी रमईया,मॉम की माँ बनी श्रीदेवी बेटी के साथ दुष्कर्म करने वालों का अपने हिसाब से बदला लेती हैं। अपनी सशक्त भूमिका के जरिये समाज के दक़ियानूसी और प्रशासनिक अव्यवस्थाओं पर उंगली उठाने का साहस करती हैं। <br/>प्यार और खुशी की लहर लाने वाला शब्द माँ केवल जन्म देने वाली ही नही होती बल्कि जिससे माँ जैसा रिश्ता हो वो भी माँ होती हैं। सास-बहू,माँ-बेटी की तरह अपने रिश्ते में मजबूती देने के लिए प्रेरित करती फिल्म सोलमदर में बहू अपने भाई के साथ मिलकर साथ के साथ न रहने का प्रपंच रचती हैं पर समय के साथ उसे अपने व्यवहार पर पछतावा होता हैं। बच्चे कितने भी बूढ़े हो जाए पर माँ के लिए वो बच्चे ही होते हैं माँ फिल्म जिसमें तीन विषयों पर बात उठती हैं- बेटा-बेटी में भेद, ताउम्र घर संभालने माँ का कोई अस्तित्व नहीं और बच्चों ए लिए माँ की चिंता। जैसा कि ओलिवर वेंडल ने कहा हैं कि युवावस्था बीत जाती हैं ,प्रेम की बेल मुरझा जाती हैं,रिश्ते अपनी उजास खोने लगते हैं लेकिन माँ की आशाएँ,उनका प्यार बेमियाद होता हैं। <br/>पहला निवाला बच्चों को खिलाने से लेकर खुशियों का घ्यान रखने वाली माँ बिना कहे ख़्वाहिशों को पूरी करती हैं अबोली आहट से लेकर नवागत के अवतरण के बाद भी आजीवन चिंता की कोंपले फिल्म स्पेशल डे में दिखाया हैं, भावुक कर देने वाली फिल्म जिसमे वो अपने बेटे के जन्मदिन की तैयारी कर रही होती हैं और बेटा भूल ही जाता कि माँ घर पर उसका इंतजार कर रही हैं ,वो अपने दोस्तों के साथ जन्मदिन बना रहा होता हैं । <br/>संसार के सारे सुखों की शुरुआत और अंत माँ के प्रेम में ही हैं। वो जन्नत का फूल,खिली धूप में साया,वात्सल्य की मूरत किस्में पूरा ब्रह्मांड समाया जैसा कि मुनब्बर राणा ने लिखा हैं कि उसके ओंठों पर कभी बददुआ नही निकलती,बस एक माँ हैं जो कभी खफा नही होती। अहिर्निसम बच्चों की चिंता में अपनी ओर कभी ध्यान नहीं देती जिंदगी के फैसले और रिश्तों के मायने बच्चों को जीना सिखाती हैं। बेटी के प्रति चिंतित करने वाली माँ केले जाने नही देती । दोहरी भूमिका निर्वहन करी माओं पर बनी फिल्म ज़िंदगी की आइटनरी हैं। <br/>व्याख्या नही की जा सकती... शब्दों की अनंता....नियमों से परे शांत, गंभीर,उदार अथाह नीले समंदर-सी गहराई वाली माँ के प्रति श्रद्धाभाव दिवस बनाकर नही जाता सकते। माँ शब्द में बसे प्यार को शब्दों से तोला नही जा सकता बस अपने भावों को एहसास कर सकते हैं। जैसा कि माया एंडालाओ ने कहा हैं कि अपनी माँ को परिभाषित करना चाहूँ तो कहना होगा एक तूफान जो अपनी शक्तियों पर पूरा नियंत्रण रखना जनता हैं या कहूँगी कि किसी इंद्रधनुष से टपकते रंगों का मेला...! <br/>आधुनिकता की दौड़ में भागते बच्चे माँ के नाम का मनका अपनी उपलब्धियों की माला में गूंथना भूलता-सा जा रहा हैं। तकनीकि से जुड़े बच्चे दोस्तायारों में खोये भूल गए,फिल्म मदर्स में दर्शाया हैं उस माँ को जो पहली शिक्षिका,दोस्त पहला जुड़ाव,उसी से जुड़ा होता हैं। माँ के सुझावों,सीखों को भाषण समझने वाले बच्चे की चिंता से बेफिक्र अपनी ही दुनिया में मस्त हैं। पॉकेट मनी फिल्म में बच्चों की पीछे से चिंता,फिक्र में माँ आत्मनिर्भर होकर बच्चों को अपने से बांधने का एक जरिया ढूंढ लेती हैं। <br/>थपकी,लॉरियों में सपनों की दुनिया घुमाने वाली चाँद-तारे तोड़कर लाने वाली माँ को भूलते जा रहे हैं। तस्वीर फिल्म में ऐसी तस्वीर से बाहर निकल वास्तविकता से परिचय कराती हैं।माँ की थपकी सपनों को पूरा करने का आशीर्वाद देती हैं। खुली आँखों के सपनों के पीछे भागते बच्चों के सपने अधूरे रह जाते हैं.....अधूरी नींद,अधूरा सपना.... माँ की हर बात बुरी लगती हैं पास रहती हैं तो कद्र नही करते लेकिन जब जब बच्चे उसकी जगह आते हैं तब बहुत देर हो चुकी होती हैं। ऐसा ही माँ कहती हैं फिल्म में दर्शाया हैं कि जब बच्चे माँ जैसा व्यवहार करने लगते हैं तो चुभन होती हैं। मन को झिंझोड़ती चुभने वाली सोचे दिल को छूने वाले दृश्य फिल्म माँ नही बोलती में दिखाये हैं जिसमें दूर बैठे बच्चे की चिंता हैं पर कुछ नही बोलती। दूर रहकर भी पसंद का ख्याल रखती हैं। बचपन में हर पल बच्चे का ख्याल रखने वाली माँ का बच्चे बड़े होकर एक काम समझ लेते हैं।ता उम्र आशीर्वाद देने वाली माँ की जीवटता विकट से विकट परिस्थितियों में संघर्ष करती हैं पर पलायन नही करती। फिर भी ओनोर दे बाल्जक के शब्दों में- माँ का हृदय एक गहरी खाई की तरह हैं जिसके ताल में आपकों हमेशा क्षमाशीलता मिलेगी। <br/> पुनश्च नए भारत का निर्माण करती माएँ कारोबार,विज्ञान,हेल्थ,कला,खेल, प्रबन्धन हर क्षेत्र में उनके अतुलयनीय अद्धभुत योगदान ना केवल घर बल्कि राष्ट्र निर्माण और विकास में हैं। इस बदलाव की बयार में सफलता की प्रतिमूर्ति अपनी कर्मठता ,सृजनशीलता से लोकतन्त्र की उपलब्धि के लिए अपरिहार्य हैं।अतः माँ शब्द से शुरू होता और खत्म होता असीम प्यार ...सुधा मूर्ति के शब्दों में- अगर आपके पास पैसा हैं तो उसका सदुपयोग करे। माँ ही बच्चों के विचारो को सही दिशा देती हैं। जीवनदायनी के ऋण से कभी उऋण नही हो सकते हैं जिनेके घरों में माँ होती हैं वहाँ हर चीज होती हैं क्योकि माँ और मातृभूमि का स्थान सबसे ऊंचा होता हैं। <br/>मातृत्व दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ......</p>
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<p>स्वरचित व अप्रकाशित हैं। </p>
<p>बबीता गुप्ता </p>पलछिनtag:openbooks.ning.com,2022-03-08:5170231:BlogPost:10805462022-03-08T09:23:23.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p><span style="font-weight: 400;">पलछिन</span></p>
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<p><span style="font-weight: 400;">अम्मा जी को आज अस्पताल में भर्ती हुये दस दिन हो गये थे। दौड़ी आई अलविदा होती अम्मा की बेटी की बातों और दिन-रात उनकी सेवा करती दोनों बहुओं ने मिलकर अपनी बूढ़ी अम्मा को भला चंगा कर दिया।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">झाईयों से झांकती मुस्कान के साथ बेटी-बहुओं के खिलखिलाते चेहरे… हंसी-मजाक में … सुकून के पल चुराती… एक-दूसरे को देख जैसे कुछ चटककर हंसी में खनखना…</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पलछिन</span></p>
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<p><span style="font-weight: 400;">अम्मा जी को आज अस्पताल में भर्ती हुये दस दिन हो गये थे। दौड़ी आई अलविदा होती अम्मा की बेटी की बातों और दिन-रात उनकी सेवा करती दोनों बहुओं ने मिलकर अपनी बूढ़ी अम्मा को भला चंगा कर दिया।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">झाईयों से झांकती मुस्कान के साथ बेटी-बहुओं के खिलखिलाते चेहरे… हंसी-मजाक में … सुकून के पल चुराती… एक-दूसरे को देख जैसे कुछ चटककर हंसी में खनखना जाता। </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मरीजों का हाल-चाल पूछते डाॅक्टर साहब ने जब अम्मा जी की रिपोर्ट देखी तो सिरहाने खड़ी बेटी और अम्मा जी के पांव दबाती रिद्धी-सिद्धी- सी बहुओं की ओर मुखातिब होकर कहा।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">'आप दोनों की सेवा ने उखड़ती सांसों में जान डाल दी।बस ,अब अपनी अम्मा जी को शाम तक घर ले जा सकते हैं। क्यों अम्मा जी! घर पर बहुओं के हाथ के गर्मागरम फुलके खाना।'</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">डाॅक्टर साहब की बात सुन अम्मा जी के दोनों बेटों के चेहरे खिल गये।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">'थोड़े दिन और अच्छे से आपकी देखरेख में इलाज हो जाता तो…! '</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> बेटी-बहुयें… एकस्वर में कही बात सुन एक-दूसरे को देखने लगी। </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> डाॅक्टर के नकारने पर खुश हुई बेटी और बहुओं के चेहरे सोचते हुये म्लान हो गये…दायरों की देहरी सोचकर…. अंगुली पर गिनाये जाने वाले ये सुकून के पल … फिर से छिन जायेंगे! </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> बबीता गुप्ता</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">स्वरचित व अप्रकाशित हैं। </span></p>शास्त्री जीtag:openbooks.ning.com,2021-10-02:5170231:BlogPost:10703572021-10-02T09:58:29.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>अगर राष्ट्रपिता के नाम से महात्मा गांधी को याद किया जाता है वही उजास की लकीर बिखेरने। वाले नैतिक मूल्यों को स्थापित करने में शास्त्री जी को याद किया जाता है। संपूर्ण भारतीयता का उदाहरण शास्त्री जी के विषय में राम मनोहर लोहिया जी ने कहा था कि भारतीयता को जो तीन कसौटियाँ भाषा भूसा और भवन बांधी थी, शास्त्री जी उसका स्पष्ट प्रतिबिंब हैं। सादगी प्रिय शास्त्री जी करूणामयी अग्रगामी सोच वाले ऐसे दार्शनिक प्रधानमंत्री थे जिनके संस्कार व नैतिकता व्यक्तिवाद और परिवारवाद से परे थी। अपने पद व प्रतिष्ठा…</p>
<p>अगर राष्ट्रपिता के नाम से महात्मा गांधी को याद किया जाता है वही उजास की लकीर बिखेरने। वाले नैतिक मूल्यों को स्थापित करने में शास्त्री जी को याद किया जाता है। संपूर्ण भारतीयता का उदाहरण शास्त्री जी के विषय में राम मनोहर लोहिया जी ने कहा था कि भारतीयता को जो तीन कसौटियाँ भाषा भूसा और भवन बांधी थी, शास्त्री जी उसका स्पष्ट प्रतिबिंब हैं। सादगी प्रिय शास्त्री जी करूणामयी अग्रगामी सोच वाले ऐसे दार्शनिक प्रधानमंत्री थे जिनके संस्कार व नैतिकता व्यक्तिवाद और परिवारवाद से परे थी। अपने पद व प्रतिष्ठा से परिवार, नाते-रिशतेदारों को लाभान्वित करने की कभी कोशिश नहीं की। आज के समय की स्वार्थी राजनीति के लिए उदाहरण पेश करते शास्त्री जी जीवन पर्यंत अपने गुरु नरेन्द्रजी के आदर्शों पर चले।अभावग्रस्त संघर्षमय जीवन होने पर भी अपनी ईमानदारी और नैतिक मूल्यों को नहीं छोड़ा। सियासत से ज्यादा नैतिकता सर्वोपरि थी।<br/>सादगीप्रिय शास्त्री जी लोकतन्त्र के लिए गौरव बिन्दु नैतिक मूल्यों के किवदन्ती बने शास्त्री जी आम से खास बने। उनका व्यक्तित्व सदा उज्ज्वल ,दैदीप्यवान पारदर्शी रहा। रेलमंत्री रहते हुये रेल दुर्घटना होने पर अपने को जिम्मेदार ठहराकर, इस्तीफा एते हुये कहा था कि शायद मेरे लंबाई में छोटे होने और नम्र होने की वजह से लोगोंको लगता हैं कि मैं बहुत दृढ़ नही हो पा रहा हूँ। हालांकि शारीरिक रूप से मैं मजबूत नहीं लेकिन मुझे लगता हैं कि मैं आंतरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ। एक समय में उनके आदर्शों और ईमानदारी की नेहरूजी ने संसद में प्रशंसा की थी। <br/>सोलह वर्ष की उम्र में देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। युवाओं में नैतिक चरित्र पर बल देते हुये कहा था कि मैं अपने जवानों से खुद को अनुशासन में रखने और राष्ट्र हित एकता और उन्नति के लिए काम करने की अपील करता हूँ। विनम्र, दृढ़, सहिष्णु और जवरदस्त ऊर्जावान दूरदर्शी प्रधानमंत्री शास्त्री जी ने महिलाओं को सार्वजनिक परिवहन में कंडक्टर के रूप में नियुक्त करने की अपील की। जय जवान,जय किसान का नारा देने वाले शास्त्री प्रेरक व्यक्तित्व के धनी रहे। कठोर नैतिकता जिसे व्यावहारिक जीवन में ढाला। सामाजिक रूढ़िवादियों के घोर विरोधी थे। दहेज के नाम पर अपनी शादी में केवल चरखा ही लिया। <br/>संघर्ष को समर्पित आदर्शों के ज्वलंत प्रतीक आदर्शों को कर्म में परिणित करना ही कर्मयोग हैं।</p>
<p></p>
<p>स्वरचित व अप्रकाशित हैं। </p>
<p>बबीता गुप्ता </p>विश्व पटल पर हिन्दी का परचम लहरायाtag:openbooks.ning.com,2021-09-14:5170231:BlogPost:10683412021-09-14T02:00:00.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p></p>
<p>संप्रभू भाषा हिन्दी भारत की मिट्टी से उपजी है जो किसी की मोहताज नहीं है। इसकी अपनी प्राणवायु, प्राणशक्ति व उदारभाव होने के कारण ये शब्दसंपदा का अनूठा उपहार हैं। 130 करोड़ की आबादी वाले भारत देश में करीब 44% से ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली राष्ट्र भाषा हिन्दी को दुनिया में बोलने वालों का प्रतिशत 18.5% हैं। दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली हिन्दी भाषा विश्व की पांच भाषाओं में से एक है।</p>
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<p>भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने 2006 में दस जनवरी को विश्व हिन्दी…</p>
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<p>संप्रभू भाषा हिन्दी भारत की मिट्टी से उपजी है जो किसी की मोहताज नहीं है। इसकी अपनी प्राणवायु, प्राणशक्ति व उदारभाव होने के कारण ये शब्दसंपदा का अनूठा उपहार हैं। 130 करोड़ की आबादी वाले भारत देश में करीब 44% से ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली राष्ट्र भाषा हिन्दी को दुनिया में बोलने वालों का प्रतिशत 18.5% हैं। दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली हिन्दी भाषा विश्व की पांच भाषाओं में से एक है।</p>
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<p>भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने 2006 में दस जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस की घोषणा की जाने के साथ ही विदेशों में भारतीय दूतावास इस दिवस पर विभिन्न विषयों पर हिन्दी में कार्यक्रम आयोजित करते हुये विशेष आयोजन करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से प्रचार-प्रसार किया जा रहा हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में नागपुर में प्रथम विश्व हिन्दी दिवस 10 जनवरी,1975 में मनाया गया जिसमें तीस देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुये थे। और नार्वे में पहला विश्व हिन्दी दिवस भारतीय दूतावास ने मनाया था और दूसरा व तीसरा भारतीय नार्वे सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वावधान में लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल जी की अध्यक्षता में बहुत ही धूम-धाम से मनाया गया।</p>
<p></p>
<p>भारत के अलावा अनुमानित 800 से अधिक दुनिया के विश्वविद्यालयों व शालाओं में पढ़ाई जाने वाली हिन्दी ने वैश्विक दर्जा प्राप्त कर इसको अवसान की ओर धकेलने वाले विद्रोही स्वरों पर ताला लगा दिया। अभिजात्य वर्ग के लोग, जिनकी गुलामों की भाषा बनी अंग्रेजी के दबे तले हिन्दी की हिन्दी करके इसे ज्ञान-विज्ञान की भाषा नहीं मानते हैं, कहानी,कविता,कथा की भाषा मानकर इसके प्रति नफरत,उपेक्षा,वैचारिगी जतलाते हुये तिल भर भी आत्मग्लानि नही करते, उन्हें इसकी सामर्थ्य शक्ति, समृद्धि, प्रतिष्ठा और सर्वव्यापकता समझ आने लगी हैं।</p>
<p></p>
<p>अपनी संप्रेषण कला का माध्यम बनी हिन्दी भाषा के विषय में प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल जी का कहना हैं कि जब हम किसी भाषा की विकास प्रक्रिया की चर्चा करते हैं तो हमें ध्यान रखना चाहिए कि भाषा का विस्तार कोई जड़ नहीं अपितु एक विकासशील प्रक्रिया हैं जो निरंतरता में होती हैं। क्योकि संस्कृति व सभ्यता की वाहक और समय के साथ रंग बदलती हिन्दी भाषा ने लोकोपयोगी एवं जनोपयोगी बनने के लिए अन्य भाषाओं के शब्दों को अंगीकृत कर ना केवल अपने कोष को समृद्ध बनाया हैं बल्कि बन्धनहीन होकर सात समंदर पार अपनी ख्याति विस्तारित की और दिलों तक पहुंचने का माध्यम बनी। </p>
<p><br/> उपेक्षित क्षेत्रों में भी अपना बोलवाला करता हिन्दी भाषा जो अवधी, भोजपुरी और अन्य बोलियों का मिला-जुला रूप हैं, ने दक्षिण प्रशस्त महासागर के मेलानेशिया में फिजी नाम के द्वीप में आधिकारिक तौर पर दर्जा प्राप्त कर लिया हैं। रग-रग में रची बसी, भारत की आन-वान हिन्दी ने तकनीकि क्षेत्र में अपने पांव जमाने में कामयाब हुई। एक तरफ जहां इण्टरनेट पर हिन्दी भाषा 94% का बढ़ता प्रभाव विस्तृत हो रहा हैं वही 2015 में ट्वीटर में हिन्दी भाषा बनी और गूगल पर हिन्दी में सर्च करने वालों की अधिक विश्वसनीयता दर्शाती हैं। अमेरिका में तीसरी सबसे ज्यादा समझी जाने वाली हिन्दी भाषा हैं।</p>
<p></p>
<p>भूमंडलीय पटल पर अंतर्राष्ट्रीय भाषा बन रही हिन्दी को जो लोग बोझिल समझते हैं उन्हें सचेत हो जाना चाहिये कि वैज्ञानिक रिसर्च द्वारा सिद्ध हो चुका हैं कि मस्तिष्क के दोनों हिस्से देवनागरी में ऊपर-नीचे,दाएं-बाएं अक्षर और मात्राएं होने के कारण काम करते हैं जबकि अंग्रेजी भाषा में केवल बायां हिस्सा ही काम करता हैं। लखनऊ का बायोमेडिकल रिसर्च सेंटर कहता है कि हिन्दी पढ़ने से मस्तिष्क का विकास बेहतर तरीके से होता हैं। इसलिए अंग्रेजी भाषा को आवश्यकता होने पर ग्रहण कीजिए ना कि हजारों वर्षों की विरासत को संचित कर पोषित करती व हमारे अस्तित्व का हिस्सा बनी हिन्दी को अधिग्रहण ना करके। संस्कारों से समृद्ध हिन्दी के प्रति विवादास्पद बयानों का पैमाना इस बात से ही निराधार हो जाता हैं जिसमें अंतर्राष्ट्रीय संबंध शिक्षा संस्थान ने हिन्दी भाषा को अंतरराष्ट्रीय मामलों में अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए पांच भाषाओं में स्थान दिया।</p>
<p></p>
<p>वैश्विक फलक पर वर्चस्व स्थापित करती हिन्दी को सन् 1685 में जाॅन केटलर ने हिन्दी सीखकर डच भाषा में एक व्याकरण की रचना की।इसकी प्रभुत्वत्ता का अनुमान इसी बात से लगाया जाता हैं कि 1950-1980 के दशक तक जापान में सभी हिन्दी फिल्मों गानों का जापानी भाषा में अनुवाद किया और चीन की दीवार के शिलालेख पर हिन्दी में 'ओम नमो भगवते' लिखा है। सन् 1608 में पहले ब्रिटिश जहाज के व्यापारी हाकिंस ने सूरत के समुद्र तट पर सम्राट जहांगीर से हिन्दी में बात की।</p>
<p></p>
<p>विभिन्न माध्यमों से संप्रेषण कला का माध्यम बनकर सर्वव्यापी हुई हिन्दी निरंतर तीव्रता के साथ अग्रसर हो रही हैं। इसकी विकासयात्रा की शुरुआत 19वी सदी में अपनी भाषा में हिन्दवी का उल्लेख करने वाले अमीर खुसरो के जमाने से ही प्रगतिशीलता की और बढ़ी। हिन्दी समृद्धि का दायित्व बताने वाली चित्रा मुद्गल का कहना हैं कि हिन्दी अब कागज, कलम और किताब से निकलकर स्क्रीन पर आ जाने के कारण युवाओं की बड़ी जिम्मेदारी बन जाती है कि वे तकनीकि इस्तेमाल में समृद्ध और विकास में सहयोग दें। हम सबको इसके संवर्धन और संरक्षण में आ रहे अवरोधों के प्रति कारगर और ठोस कदम उठाकर ही इसके प्रति मानसिक संकीर्णता के अंधकारमय परिदृश्य से उबार पाएंगे। निरंतर प्रगतिपथ पर कदम बढ़ाती हिन्दी भाषा पर अमीर खुसरो का उदाहरण -<br/> 'खुसरो सरीर सराय हैं, क्यों सोवे सुख चैन।<br/> 'कूच नगारा सांस का, बजत हैं दिन नैन।।</p>
<p></p>
<p>अंततोगत्वा वैश्विक स्तर पर स्वीकार्यता मिलने पर भी हिन्दी भाषा के सामने कई चुनौतियां हैं। व्यक्तित्व की शान और वर्तमान समय की जरूरत अंग्रेजी भाषा के कारण हिन्दी भाषा का दर्जा निम्न वर्ग तक रह गया हैं। अखिल भारतीय रूप इसका स्वयं अर्जित हैं। ऐतिहासिक प्रक्रिया व विस्तृत क्षेत्र और राजभाषा का दर्जा प्राप्त होने पर भी इसके प्रचार-प्रसार में अंग्रेजी भाषा आड़े आ रही हैं। देश-विदेशों में अपना परचम फहराती हिन्दी ने सूर्योदय कर जन-जन में अपना प्रकाश फैला दिया हैं बस जरूरत हैं,अंग्रेजी दासता से मुक्त होकर खुले दिल से हिन्दी में हस्ताक्षर करने के लिए खुले दिल से व्यवहारिकता में लाकर आगे हाथ बढ़ाना होगा। क्योंकि कदम से कदम बढ़ाकर आगे चलने से ही अपनत्व की भावना, गौरवान्वित होने का एहसास करा सकते हैं और इसको विस्तार देकर समूचे विश्व में पंख पसारकर लोगों के अंतर्मन में पल्लवित किया जा सकता हैं। निराधार बोझ समझने वालों की आशंकाओं का समाधान कर मानसिकता को बदला जा सकता हैं। देश की संस्कृति व सभ्यता की वाहक हिन्दी के प्रसार के लिए चेतना व चिन्तन कर गरिमा बनाये रखनी होगी।</p>
<p></p>
<p>यह भी कटु सत्य है कि अंग्रेजी भाषा अंतर्राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त सकारात्मक भाषा होने के कारण इसके बिना काम नहीं चल सकता। भाषा का सामाजिक स्तर बन जरूर गया हैं पर प्रगति, आत्मसंतुष्टि और सरल,सहज संप्रेषित का माध्यम हिन्दी से ही मिला हैं,मिल रहा हैं और मिलता रहेगा।</p>
<p></p>
<p>स्वरचित व अप्रकाशित हैं। </p>
<p>बबीता गुप्ता </p>
<p></p>गुरवै: नमों नमःtag:openbooks.ning.com,2021-09-06:5170231:BlogPost:10679102021-09-06T08:00:00.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<div class="mail-message-content collapsible zoom-normal mail-show-images"><div class="clear"><div dir="auto"><p><span>अनेकानेक देशो की संस्कृति में शिक्षकों क़े सम्मान में पूरी दुनिया झुकती </span><span>हैं। भारतीय संस्कृति में जहाँ शिष्य अपने गुरु के पैर धोते हैं वही दक्षिण कोरिया में शिष्यों के पैर शिक्षक घुटने के बल बैठकर धोते हैं। शिक्षक ज़िंदगी की पाठशाला में सबक पढ़ाने- सिखाने और व्यवहारिक जीवन में उतारने वाले</span><span>,हर अक्षर को शब्द मूल्यो में सार्थक कर कामयाबी की सीढ़ी पार कराते…</span></p>
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<div class="mail-message-content collapsible zoom-normal mail-show-images"><div class="clear"><div dir="auto"><p><span>अनेकानेक देशो की संस्कृति में शिक्षकों क़े सम्मान में पूरी दुनिया झुकती </span><span>हैं। भारतीय संस्कृति में जहाँ शिष्य अपने गुरु के पैर धोते हैं वही दक्षिण कोरिया में शिष्यों के पैर शिक्षक घुटने के बल बैठकर धोते हैं। शिक्षक ज़िंदगी की पाठशाला में सबक पढ़ाने- सिखाने और व्यवहारिक जीवन में उतारने वाले</span><span>,हर अक्षर को शब्द मूल्यो में सार्थक कर कामयाबी की सीढ़ी पार कराते हैं। जीवन जीने की कला सिखाने वाला शिक्षक बच्चे को सामाजिक बनाने में अहम् भूमिका निर्वहन कर आने वाले समाज का निर्माण कर्ता हैं। हालांकि जीवन संघर्ष पथ के हर मोड़ पर शिक्षा देने वाला व्यक्ति शिक्षक बन जाता हैं।</span></p>
<p><span>भारत को भारत की पह्चान दिलाने वाले शिक्षक सर्वंपल्ली राधाकृष्णन</span><span>,जाकिर हुसैन,अन्ना साहब कर्वे,सी.वी.रमन, तिलक, टैगोर, प्रेमचन्द जी हैं तो जिन्होने भारत को विश्वगुरु बनाया वो हैं- प्रकांड पण्डित,अर्थशास्त्री चाणक्य ने विचार को व्यवहार में बदलने की सीख दी। पंचतंत्र कहानियो के रचयिता ने शिक्षा को कहानी के रूप में बदला। दुनिया को शून्य देने वाले गणितज्ञ, खगोल शास्त्री आर्यभट्ट, चार हजार प्रमेय के जनक श्री निवास रामानुज जिंका कह्ना था कि जो भी करे जुनून के साथ करे तो सफलता अवश्य मिलेगी। शास्त्रार्थ की परम्परा को सम्मान दिलाने वाले धर्माचार्य आदि शंकराचार्य जी,दोहो द्वारा कुरीतियो पर कटाक्ष करने वाले संतकवि कबीर,बुद्ध शिक्षा प्रचार-प्रसार करने वाले अशोक या अहिंसा का मार्ग अपनाने वाले वर्धमानजी।शिक्षा के महत्व पर महिला और दलितों के लिये काम करने वाले ज्योतिबा फुले का क्हना था कि बिना शिक्षा के बुद्धि नष्ट हो जाती हैं। बिना बुद्धि के नैतिकता और बिना नैतिकता विवेकहीन।विधवा पुनर्विवाह पारित करने वाले स्त्री शिक्षा के समर्थक ईश्वर चंद विद्या सागर जी की वाणी से ही बिगड़े हुये छात्र सुधर जाते थे। और महानुभाव सवाई गंधर्व जी जहाँ पर शिष्य मिलते वही उनकी गल्तियाँ सुधारने जुट जाते थे।</span></p>
<p><span>एक ओर अपने से बड़ी कक्षा के बच्चों को पढ़ाने वाले सत्येंद्र्नाथ बोस आधुनिकता के समर्थक थे वही दूसरी ओर मानव विकास में बाधक परंपरागत सोच को निरर्थक परंपराओं को छोड़ने पर जोर देने वाले सर सैयद अहमद खान ने अंग्रेजी पर जोर दिया वरना पिछड़ जाओगे। परिवार संस्था पहली पाठशाला के पश्चात जीवन के सही-गलत के सबक सिखाने वाली दूसरी पाठशाला के प्रेरणास्पद शख्स शिक्षक होते हैं जिनका कोई स्थान नहीं ले सकता हालांकि संघर्षपथ पर हर शिक्षा देने वाला व्यक्ति शिक्षक बन जाता हैं। फिर चाहे आजादी की लड़ाई में लोगों के हृदय में संघर्ष करने के लिये भारत छोड़ो आंदोलन का नारा देने वाले गांधीजी हो या फिर लोगों को अपने अधिकारों के प्रति सजग करने वाले बालगंगाधर तिलक जी। एक तरफ विघटित होती मानव सभ्यता के संकट को अपने भाषणों में उम्मीद जलाने वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर जी तो दूसरी तरफ शिकागो सम्मेलन में सनातन का प्रचार-प्रसार करने वाले विवेकानंदजी जिन्होने पश्चिमी देशों को परिचित कराया।</span></p>
<p><span>जीवन के किसी भी मोड़ पर व्यक्ति कोई अनुभव सीख देने में भूमिका निर्वहन करते हैं। पाठशाला ने शिक्षा देने के अलावा जीवन में सीख देने वाले और भी शिक्षक होते हैं। कहते हैं कि एक चींटी से शिक्षा ली जा सकती हैं। शिक्षा वही हैं जिससे हम किसी भी प्रकार की कोई शिक्षा ले सकते हैं। शिक्षा और शिक्षक की परिभाषा की सार्थकता केवल दिवस बनाकर इतिश्री न कीजिये। बल्कि हर दिन दिवस मनाईये। क्योकि जनसामान्य के जीवन को सही दिशा देने वाले शिक्षकों की गरिमापूर्न भूमिका व्यवहारिक या आधिकारिक तौर पर भव्य परम्परागत रही हैं। जीवन की सीख देते शिक्षक से औपचरिक ही नहीं सामाजिक रिश्ता भी होता हैं। लक्ष्य प्राप्ति पथ कर्मठता की फसल में संकटों की खरपतबार को उखाड़ने में शिक्षक की सीख का हल से जोतना सिखाता हैं।जैसा कि अलबर्ट आइंसटीन का कथन हैं- स्कूल में सीखी चींजे भूल जाने के बाद भी शेष रह जाता हैं</span><span>, वही शिक्षा हैं,हमारे जीवन की दुनिया की पढ़ाई होती हैं। इसलिये हम जीवन में कितना भी गुरुत्तर स्थान ग्रहण कर ले पर गुरु का स्थान सर्वोपरि हैं....रहा हैं.....हमेशा रहेगा.....।विवेकानंद जी का कथन हैं कि मैं जीवन देने के लिये अपने पिता का ऋणी हूँ लेकिन अच्छे जीवन के लिये अपने गुरू का जो जीवन को बनाने में अमूल्य योगदान देता हैं। जीवन के मोड़ पर कठिन परिस्थितियों में यही दिशा दिखाते हैं।</span></p>
<p><span>स्वरचित व अप्रकाशित </span></p>
<p><span>बबीता गुप्ता </span></p>
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</div>वक्त से आगे चलने वाली....अमृता प्रीतमtag:openbooks.ning.com,2021-08-31:5170231:BlogPost:10677252021-08-31T08:00:00.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>पंजाबी साहित्य की प्रथम कवयित्री, निबंधकार, उपन्यासकार, अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अमृता प्रीतम का जन्म 31 अगस्त, 1919 गुजरांवाला, पंजाब में हुआ था। अपनी रचनाओं में विभिन्न रूपो मे नारी चित्रण करने वाली अमृता प्रीतम के साहित्य संसार की नारी अपनी स्वतंत्रता के प्रति सजग रह्ती हैं। </p>
<p>सामाजिक परंपराओं के जाल को काटकर अपना अस्तित्व गढ़ती हैं। हिंदी भाषा में सरलता, सौंदर्यता से अंतर्मन की भावनाओं को पहुंचाने में कामयाब रहीं। गद्य-पद में समान रूप से ख्याति प्राप्त बहुमुखी प्रतिभा की धनी…</p>
<p>पंजाबी साहित्य की प्रथम कवयित्री, निबंधकार, उपन्यासकार, अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अमृता प्रीतम का जन्म 31 अगस्त, 1919 गुजरांवाला, पंजाब में हुआ था। अपनी रचनाओं में विभिन्न रूपो मे नारी चित्रण करने वाली अमृता प्रीतम के साहित्य संसार की नारी अपनी स्वतंत्रता के प्रति सजग रह्ती हैं। </p>
<p>सामाजिक परंपराओं के जाल को काटकर अपना अस्तित्व गढ़ती हैं। हिंदी भाषा में सरलता, सौंदर्यता से अंतर्मन की भावनाओं को पहुंचाने में कामयाब रहीं। गद्य-पद में समान रूप से ख्याति प्राप्त बहुमुखी प्रतिभा की धनी अमृता प्रीतम दृढ़ मनोबल, अथक परिश्रम, अनुशासित दिनचर्या थी। भारत-पाक विभाजन पश्चात लाहौर से भारत आकर बसी अमृता प्रीतम के उपन्यास ‘पिंजर’ में विभाजन की त्रासदी, पीड़ा, नरसंहार का चित्रण हुआ है। अपनी शर्तो पर जीने वाली आजाद ख्याल अमृता की लेखनी महिलाओ के खिलाफ हिंसा की प्रतीक हैं। इसे 2003 में फिल्म पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।24 उपन्यास, 15 लघुसंग्रह और 23 कविता संकलन की रचनाधर्मी अमृता जी को उनकी कविता ‘सुनेट’ के लिये साहित्य का सर्वोच्च पुरुस्कार भारतीय ज्ञान पीठ और 1969 में पद्मश्री, 2004 में पद्मभूषण लाइफ टाइम उपलब्धियो के लिये मिला। </p>
<p><br/> वक्त से आगे चलने वाली अमृता प्रीतम का जिन्दगी जीने का अंदाज निराला था। नारी जगत की वास्तविकता का चित्रण का उनके साहित्य में दृष्टिपात होता हैं। नारी के विविध रूपों ग्रामीण-शहरी, कामगार-गृहणी, परंपरागत-प्रगतिशील, शिक्षित-अशिक्षित, पतिपरायण, तलाकशुदा, वैवाहिक जीवन की कटु पीड़ा को उजागर किया है। अपने दर्द को रचनाओं में उतारने वाली अमृता जी के साहित्य की नारी पितृसत्तात्मक समाज की बेड़ियों से जकड़ी स्त्रियों के लिए प्रेरणा स्रोत बना।मुखर कलम से नारी स्वतंत्रता और स्वायत्त का बीड़ा उठाया। सामाजिक रूढ़ियों व पुरूषवर्चस्व जीवन मूल्यों की परवाह किए बिना हिम्मत और साहस के साथ अपना अस्तित्व कायम ही नहीं करती बल्कि समाज और परिवार के खिलाफ स्वनिर्णय लेती हैं। अपने अस्तित्व के बल पर परिस्थितियों से समझौता नहीं करती। अपनी संवेदनशील रचनाओं में दोहरी मानसिकता वाले समाज पर तीखा प्रहार किया है। उनके साहित्य में घटनाक्रम की जीवंतता आज भी दिखती हैं। </p>
<p><br/> विसंगतियों पर कटाक्ष करने वाली चिन्तनशील साहित्यकार ने रचित शब्दों को जिया है। आधी आबादी की पूरक की सिसकियों व चीखों से हुई सीलन और कमरे की दीवारों पर जमी काई को अपनी बेवाक शैली से जीवंत दस्तावेज अपने साहित्य में समेटा है। अन्यायपूर्ण व्यवहार पर बगावत करती उनकी अभिव्यक्ति है कि केवल भौतिक सुख-सुविधाओं से जीवन की संपूर्णता नहीं बल्कि पूरी औरत होने का मतलब- वह औरत जो आर्थिक तौर पर जज्बाती तौर पर और जहनी तौर पर स्वतंत्र हो।आजादी कभी भी छीनी या मांगी नहीं जाती और ना पहनी जा सकती यह तो वजूद की मिट्टी से उगती हैं। स्त्री शक्ति को इंकार करने वाला अहंकारी पुरूष अवचेतन होकर नकारता रहता हैं। स्त्रियों के प्रति उदासीनता हैं।उनके साहित्य की नारी अपने अधिकारों के प्रति सजग भी हैं और हिम्मत व साहस के साथ लड़ना भी जानती हैं, समाज की सोच पर प्रश्नचिन्ह भी लगाती हैं। पाठको को अभिभूत करती अपनी रचनाओं के संबंध में उनका कहना हैं कि मेरी सारी रचनाएं, क्या कविता, क्या कहानी, क्या उपन्यास, मैं जानती हूँ, नाजायज बच्चों की तरह है। जानती हूँ एक नाजायज बच्चे की किस्मत इनकी किस्मत हैं और इन्हें सारी उम्र अपने साहित्यिक समाज के माथे के बल भुगतना हैं।</p>
<p></p>
<p>स्वरचित व अप्रकाशित </p>
<p></p>
<p></p>सुभद्रा कुमारी चौहानtag:openbooks.ning.com,2021-08-16:5170231:BlogPost:10666072021-08-16T08:30:00.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>राष्ट्रीय चेतना की सजग प्रहरी और मणिकर्णिका की वीरता को घर-घर पहुंचाने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान की सुप्रसिद्ध कविता झांसी की रानी की पंक्तियाँ</p>
<p></p>
<p>'बुन्देले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी</p>
<p>खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी...</p>
<p></p>
<p>'सुप्त जनता के दिलों में आजादी का अलाव जगाने आयी सुभद्रा कुमारी चौहान की ये पंक्तियाँ सुभद्रा जी द्वारा रचित कई कविताओं से ज्यादा ख्याति प्राप्त हैं। </p>
<p><br></br> नौ साल की उम्र में पहली कविता ’नीम’ लिखने वाली सुभद्रा जी का…</p>
<p>राष्ट्रीय चेतना की सजग प्रहरी और मणिकर्णिका की वीरता को घर-घर पहुंचाने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान की सुप्रसिद्ध कविता झांसी की रानी की पंक्तियाँ</p>
<p></p>
<p>'बुन्देले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी</p>
<p>खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी...</p>
<p></p>
<p>'सुप्त जनता के दिलों में आजादी का अलाव जगाने आयी सुभद्रा कुमारी चौहान की ये पंक्तियाँ सुभद्रा जी द्वारा रचित कई कविताओं से ज्यादा ख्याति प्राप्त हैं। </p>
<p><br/> नौ साल की उम्र में पहली कविता ’नीम’ लिखने वाली सुभद्रा जी का जन्म इलाहाबाद के निहालपुर में जमींदार परिवार में 16 अगस्त, 1904 में हुआ था। चार बहनों और दो भाईयों वाली सुभद्रा जी का विवाह खंडवा निवासी ठाकुर लक्ष्मण के साथ हुआ था और अपने जीवन संगिनी के साथ राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ी,कई बार जेल भी गयीं। सरल, सहज, सपष्ट भाषा और वातावरण अनुसार चित्रण प्रधान शैली में लिखी नारी विमर्श केन्द्रित कहानियां ’बिखरे मोती’ संग्रह में पन्द्रह कहानियां, उन्मादिनी संग्रह में नौ कहानियां,सीधे-साधे चित्र में चौदह कहानियां तथा कविता संग्रह मुकुल, त्रिधारा,अन्य कविताएँ, बाल साहित्य झांसी की रानी,कदंब का पेड़, सभा का खेल हैं। सरल काव्यात्मक ह्रदयग्राही,उन्माद,जुनून,जज्बात और वीर रस की प्रधानता हैं। </p>
<p><br/> कुछ रचनाओं की अद्भुत पंक्तियाँ...</p>
<p></p>
<p>झाँसी की रानी कविता में देशभक्ति, राष्ट्रीय चेतना की भावना...सोये हुये को जगाना वीर रस की सरसता..</p>
<p></p>
<p>सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी<br/> बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी।</p>
<p></p>
<p>कविता 'वीरों का कैसा हो नमन ?’ में एक वीर सैनिक सारी सुख-सुविधाओं को त्यागकर देश की सेवा के लिए तत्पर हैं...</p>
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<p>आ रही हिमाचल से पुकार<br/> दे उदधि गरजता भू नभ अपार।</p>
<p></p>
<p>कदंब का पेड़ कविता में बाल सुलभ मन की इच्छाओं को चित्रण करती...</p>
<p></p>
<p>यह कदंब का पेड़ अगर होता मां यमुना तीरे <br/> मैं भी उन पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।</p>
<p></p>
<p>मुकुल कविता में अपनी दुखःद स्थिति की ओर इशारा हैं...</p>
<p><br/> मुझे छोड़कर तुम्हें प्राणधन<br/> सुख या शान्ति नहीं होगी<br/> यही बात तुम भी कहते<br/> सोचो,भ्रान्ति नहीं होगी।</p>
<p></p>
<p>नारी विमर्श केन्द्रित कहानियां जिनकी कथावस्तु नारी प्रधान पारिवारिक सामाजिक समस्याएं, राष्ट्रीय आंदोलन, स्त्रियों की स्वाधीनता, जातियों का उत्थान,देशभक्ति समाहित हैं।</p>
<p><br/>’बिखरे मोती’ किताब में आत्मकथ्य में लिखा...हृदय के टूटने से ऑसू निकलते हैं, जैसे सीप फूटने से मोती....मोती का मूल्य रत्न पारखी ही जानता हैं...मैं भूखे को भोजन और प्यासे को पानी पिलाना अपना परम धर्म समझती हूँ। ईश्वर के बनाएं नियमों को मानती हूँ।’</p>
<p><br/> अल्पायु से ही कविता लिखने का सिलसिला आजीवन जारी रहा, साथ ही पारिश्रमिक तौर पर कहानियां लिखने वाली सुभद्रा जी की जीवन-मृत्यु के साथ अद्भुत संयोग था। नागपंचमी को जन्मी और वसंत पंचमी को स्वर्गारोहण करने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान जी धरा पर साहित्य परिवार की अनमोल धरोहर के रूप में सदैव स्मृतियों में रहेगी।</p>
<p></p>
<p>स्वरचित व अप्रकाशित </p>
<p>बबीता गुप्ता </p>
<p></p>आज़ादी में आधी आबादी का योगदान....जंग अभी भी जारी हैं....tag:openbooks.ning.com,2021-08-14:5170231:BlogPost:10665602021-08-14T18:36:21.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p><strong>आज़ादी में आधी आबादी का योगदान....जंग अभी भी जारी हैं..</strong>...<br></br>महात्मा गांधी जी ने कहा, आंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी के बिना स्वराज्य प्राप्ति असंभव हैं। शारीरिक-मानसिक रूप से कमजोर समझने वाले लोगों के खिलाफ जाकर महिलाओं को राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य धारा से जोड़ा।और महिलाओं ने लोगों के कहने की परवाह किए बिना अपने आपको तौले मानसिक दृढ़ता के दस्तावेज,संघर्ष के संवेदनशील चित्रण पर डर को खारिज करते हुये समय के फलक पर अपनी कहानी लिख दी।पूर्वाग्रही सोच में जकड़े नकारात्मक…</p>
<p><strong>आज़ादी में आधी आबादी का योगदान....जंग अभी भी जारी हैं..</strong>...<br/>महात्मा गांधी जी ने कहा, आंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी के बिना स्वराज्य प्राप्ति असंभव हैं। शारीरिक-मानसिक रूप से कमजोर समझने वाले लोगों के खिलाफ जाकर महिलाओं को राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य धारा से जोड़ा।और महिलाओं ने लोगों के कहने की परवाह किए बिना अपने आपको तौले मानसिक दृढ़ता के दस्तावेज,संघर्ष के संवेदनशील चित्रण पर डर को खारिज करते हुये समय के फलक पर अपनी कहानी लिख दी।पूर्वाग्रही सोच में जकड़े नकारात्मक मानसिकता पर पर्दा डालकर मजबूत इरादों के साथ चुनौतियों का सामना करते हुये खिंची लकीर को बढ़ा दिया और परिस्थितियों और रूढ़ियों में खुद को साबित करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।<br/>आजादी की पिचहत्तर वीं सालगिरह बना रहा देश...इस आजादी के संघर्ष में समाज के विकास और तरक्की में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रही आधी आबादी की पूरक महिलाएं...घूंघट से निकलकर स्वतंत्रता आन्दोलनों में अभूतपूर्व योगदान दिया।फिर भी हम आजादी के करीब सात दशक व्यतीत होने के पश्चात भी सोच से आजाद नही हो पाये हैं। बाहरी तौर पर आधुनिक सोच का लबादा ओढ़े चेहरे के पीछे खोखली संकीर्ण मानसिकता झलकती हैं। बदलाव हुआ हैं आधी आबादी घर से निकल संसद तक पहुंची...फिर भी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं।ये लड़ाई आज की नहीं बल्कि आजादी से पहले से चली आ रही हैं। स्वतंत्रता की लड़ाई से लेकर संविधान निर्माण में उनके अभूतपूर्व योगदान को भुलाया नहीं जा सकता,जिनमें कई गुमनाम हैं तो कई इतिहास में दर्ज हैं जो आज की महिलाओं की प्रेरणास्रोत हैं। <br/>इस आजादी के संघर्ष में पुरुषवर्चस्व समाज और आधी आबादी की पूरक महिलाओं ने परिस्थितियों व रूढ़ियों में खुद को साबित करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराई हैं। समाज के विकास और तरक्की में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन कर रही हैं जिन्हें पूर्वाग्रही सोच के चलते सामाजिक-पारिवारिक ढांचे में महिलाओं को हाशिये पर रखकर कमतर आँका जाता हैं।</p>
<p>गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित राधाबाई ने अपना सर्वस्व जीवन देश की आजादी के लिए समर्पित करने की ठानी। रग-रग में बसा देशभक्ति का जज्बा अंग्रेजों की यातनाओ से भी नही डिगा। विश्व की प्रथम महिला विधानसभा उपाध्यक्ष और भारत की पहली महिला विधायक पद्म भूषण सम्मानित मुत्तुलक्ष्मी दक्षिण भारत से अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिनिधित्व किया। सामाजिक पुनर्जागरण स्वतन्त्रता संग्राम,महिला शिक्षा एवं लोकतन्त्र में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करवाने नारी जागरण की पक्षधर रेड्डी ने देवदासी प्रथा,मताधिकार दिलाने हेतु अनुकरणीय प्रयास किए। क्रांतिकारियों के विचारों से प्रभावित राजकुमारी ने काकोरी कांड में सेनानियों के लिए हथियार पहुंचाने की ज़िम्मेदारी उठाई। गांधीवादी आदर्शों से प्रभावित राजकुमारी चन्द्रशेखर आजाद की हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन का हिस्सा बनकर आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया।</p>
<p>स्वदेशी आंदोलन की प्रेणता,भारती की संपादक प्रख्यात स्वतन्त्रता सेनानी ,लेखिका सरला देवी ने अपनी लेखनी के कहर को जन-जन के दिलोदिमाग में उद्धेलित की। बचपन से ही अँग्रेजी शासन की विद्रोहक सरला देवी ने स्वतन्त्रता आंदोलन को लोकमान्य की तर्ज पर धार्मिक पर्वों से जोड़कर जनसामान्य में प्रतिष्ठित कर दिया कि लोग खुद-व-खुद गुलामी की बेड़ियों से मातृभूमि को आजाद करने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दे। गांधीजी के सान्निध्य में तपोनिष्ठ बनी रामेश्वरी भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ी और अपने रचनात्मक नारी शिक्षा,नारी कल्याण,हिन्दी प्रचार में लगाकर आंदोलन में भाग लेकर जेल जाकर स्वतन्त्रता सेनानी में नाम दर्ज कराना मकसद नही था बल्कि देश सेवा कार्य में अंतिम समय तक प्राणप्रण से निभाते रहना था। माता रामेश्वरी व महिला उद्धारक के नाम से विख्यात रामेश्वरी को जब पुलिस हरिजन वेश में घर पकड़ने आई तब उन्होने कहा, ‘अब शायद पुलिस वाले भी जान गए हैं कि मेरे घर के दरवाजे हरिजनों के लिए चौबीस घंटों के लिए खुले हुये हैं।</p>
<p>नेहरू जी करीबी महिला मित्र उनके कई कामों में सलाह देने वाली पश्चिमी बंगाल की पहली राज्यपाल पदमाजा नायडू भारत छोडो आंदोलन में सक्रिय भाहीदारी लेकर जेल गई और खाड़ी को बढ़ावा देकर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया।कई भाषाओं की जानकार अपनी क्लाश छोड़कर जुलूस में शामिल होने वाली तेरह वर्षीया निरमाला देशपांडे ने सृजनात्मक लेखन कार्यों से हिट उत्थान और राष्ट्र उत्थान जगाया। देशभक्ति का जज्बा,जुनून रगो में बसा था,आंदोलन में भाग ना लेने के लिए शिक्षको द्वारा चॉकलेट का प्रलोभन दिया जाता था तो प्रतिउत्तर होता था, 'चॉकलेट नहीं,स्वराज्य चाहिए।'वर्मा की भरदामिनी गांधी जी के नक्शे कदम पर चलकर देश की आजादी से लेकर आजीवन उनके कहे शब्दों को अपने जीवन में ढाला, 'अब तुम खुद बापू बन गई हो।' पद्मश्री व नेहरू पुरुसकार से सम्मानित कुलसुम सयानी ने स्वतन्त्रता संघर्ष के दौरान जेलों में बंद कैदियों की हिन्दुस्तानी में सुधार उनके रहबर अखबार को पढ़कर-सुनकर करते थे।<br/>स्त्री शिक्षा और नारी अधिकारों की लड़ाई शुरू करने वाली जोशीली दुर्गावती ने नमक सत्याग्रह के दिनों में जगह-जगह तूफानी दौरों में ओजस्वी भाषणों द्वारा आम लोगों में स्वतन्त्रता का अलख जलाया। महिला हितों के साथ कभी भी सम्झौता ना करने वाली दुर्गावती दो-तीन बार जेल भी गई और अपनी अड़भूत संगठन क्षमता जनप्रियता से ब्रिटिश खेमे में खलबली मचा दी।आज जो केंद्रीय कल्याण योजनाएँ क्रियान्वित हैं उनका श्रेय दूरगावाती को जाता हैं जिंका कहना था कि एक लड़के की शिक्षा एक व्यक्ति की शिक्षा और एक लड़की शिक्षा पूरे परिवार की शिक्षा। महिलाओं के दिलों में आजादी की ज्योति जलाने वाली और राष्ट्र प्रेम की राह दिखाने वाली बसंत लता ने प्रभात फेरी,जोशीले नारों से आजादी का बिगुल बजाकर अंग्रेजों को नाको चने चबाबा दिये। विदेशी सामान,शरा,गाँजा के उत्पादन का वीरोध किया और अपनी साथिन मोहिनी,गौहेन,स्वर्णलता के साथ मिलकर एक बिंग बाहिनी की स्थापना की।</p>
<p>आजाद हिन्द फौज की फली कमांडर लक्ष्मी सहगल ने अपनी पहली लड़ाई का शुभारंभ अपनी दादी के खिलाफ जातिवाद के मुद्दे पर आवाज बुलंद करके किया। पेशेवर से डॉक्टर लक्ष्मी की जिंदगी नेताजी से भेंट करने पर बदल गई।दिसंबर,1944 में वर्मा के लिए कूच किया और मई,1945 में उन्हें ब्रिटिश सेना ने गिरफ्तार कर लिया तथा मार्च,1946 तक वर्मा के जंगल में नजरबंद रही। लेखन को प्यार और पत्रकारिता को विवेक माने वाली नयनतारा देश की स्वतन्त्रता के साथ ही वैचारिक स्वतन्त्रता की पक्षधर थी। गांधीवाद से प्रभावित नयनतारा ने इंग्लैंड जाका पढ़ाई ना करने का तर्क दिया कि हम जिस देश से आजादी के लिए जंग कर रहे थे,वहाँ जाकर शिक्षा ग्रहण करना कैसे संभव हैं। क्रान्ति की पताका कमला देवी वूमेंस मूवमेंट ऑफ इंडिया जैसी अनेक किताबो की लेखिका ही नही बल्कि स्वतन्त्रता संग्राम की जुझारू नेत्री,सामाजिक क्रान्ति की अग्रदूत और एक महान कलाकार भी थी।स्वभाव व रहन-सहन में विद्रोह रंगीन मिजाजी कमला देवी ने 1930, नमक सत्याग्रह के दिन बंबई स्टॉक एक्सचेंज के बाहर खड़े लोगों मे बेधड़क होकर गैर कानूनी नामक की पुड़िया बेचकर आजादी की लड़ाई के लिए चन्दा एकत्र किया। कलाओं को पुनर्जीवन देने वाली क्रांतिकारी रंगीन महिला के नाम से विख्यात कमला देवी पद्मविभूषण,रमन मैगसेसे पुरुसकार से सम्मानित थी और बचपन से ही गंभीर,खामोश रहने वाली कमला ने अपनी पढ़ाई विदेश की सुविधा छोड़ स्वदेश लौटी और असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन आजादी की लड़ाई में कूद गई।<br/>भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की बेजोड़ वीरांगना और भारतीय साहित्य में कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध सरोजनी नायडू असहयोग आंदोलन से जुड़ी और बंगाल विभाजन के समय स्वतन्त्रता संग्राम में हिस्सा लिया। आत्मविश्वास से भरी दृढ़ मनोबली सरोजनी ने घर-घर घूमकर स्वतन्त्रता का अलख जलाया। विनोदी स्वभाव से घनी उनकी आँखों में बचपन से ही साहस की चमक दिखती थी। जालियांवाला बाग हत्याकांड से व्यथित होकर क़ैसर ए हिन्द खिताब वापस करने वाली सरोजनी को जब दांडी यात्रा के दौरान पुलिस कर्मी ने हाथ पकड़ा तो वो सिंहनी-सी गरजकर दहाड़ी, 'हाथ मत लगाओ, मैं स्वयं आती हूँ।' स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन की स्थापना करने वाली उमा देवी ने स्त्रियॉं को चाहादीवारी से बाहर निकालकर आजादी के स्वतन्त्रता आंदोलन से जोड़ा। उन्होने बड़े-बड़े ओहदे को ठुकराकर अपनी सोच की आजादी को चुना। आम महिला से हटकर संविधान प्रारूप तय करने बिना किसी छुट्टी के रोजाना असेंबली जाने वाली अममू स्वामी नाथन ने आजादी की लड़ाई में अपनी निजी जिंदगी न्यौछावर कर दी। भारतीयों को स्त्रियों के प्रति रूढ़िवादी सोच को चुनौती देने वाली इक्कीस साल की बीना ने सरे आम बंगाल गवर्नर स्टेनले जैक्सन पर गोली चलाकर अग्रेजों के दिलों में दहशत बैठा दी। अँग्रेजी शासन को अपने कारनामो से हिलाने वाली बीना के साहस की चर्चा गली-गली हवा की तरह फ़ैल गई।<br/>सन 1930 में रायपुर में हुआ आंदोलन खाड़ी प्रचार एवम महिलाओं के योगदान पर आल्हाकार ने लिखा- ‘बहू-बेटियाँ हमारी कहिए,रणचंडी की ही अवतार,खादी आज देश में विपत पड़ी हैं,तुम सब हो तैयार।’पद्मभूषण से सम्मानित आदिवासी रानी गैदिनलियू नागा समुदाय की 13 साल में आंदोलन से जुड़ी और सोलह साल में उन्हे अंग्रेजों ने आजीवन कारावास दिया। आदिवासियों का नारा था, ‘करो या मरो,अंग्रेजों भारत छोड़ो।’ </p>
<p>सविनय अवज्ञा आंदोलन हो या दांडी यात्रा,असहयोग आंदोलन या आंदोलनों के लिए जुटाई जाने वाली सहयोग राशि सभी में महिलाओं ने अपनी अग्रणी भूमिका निर्वहन की।महिलाओं में बढ़ती जागृति से वो स्थानीय स्तर पर हड़ताल,धारणा,प्रदर्शनी,विदेशी कपड़ों का बहिष्कार,शराब की दुकानों पर धारणा, नाटकीय शैली में बहिष्कार को सफल बनाया। घर में रहने वाली महिलाओं में से रोहिणी, गोस्वामी, रुक्मणी बाई,खूब चंद बघेल की माँ केतकी बाई ,अंजुमन,मंटोरा बाई, मौरकी बाई जैसी अनेक महिलाओं ने स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान अभूतपूर्व उत्कृष्ट हिस्सा लेकर आंदोलन की सेनानी बनी। हर कदम पर आधी आबादी का साथ दिया।<br/>हालांकि अन्य देशों की तरह हमारे देश कि महिलाओं को मताधिकार,आत्मनिर्भरता के लिए संवैधानिक अधिकार मिले। फिर भी उन्हे अपने अस्तित्व के लिए आज दिन तक संघर्ष करना पड़ रहा हैं।जितनी आसानी से उन्हे अधिकार संविधान से प्राप्त हुये पर उतनी तत्परता से सामाजिक-पारिवारिक परिवेश में नही। आधी आबादी की पूरक होने पर भी उन्हे अपनी निर्णायक भूमिका की बागडोर संभालने की कमान थामने में संकीर्ण सोच हावी हो रही हैं। उनके प्रतिनिधित्व को नजर अंदाज कर नक्कारखाने की तूती समझकर अपने इशारे पर कठपुतली की तरह करवाया जाता हैं।</p>
<p>यद्यपि हम अंग्रेजों की दासता से तो मुक्त हो गए पर महिलाओं को दोयम दर्जे का मानने वाला पुरुषप्रधान समाज की अहंकारी मानसिक संकीर्णता से आजाद नही हो पा रहे हैं। अभी भी ऊपर से आधुनिकता का दिखावा करती मानसिकता परंपरागत रूढ़ियों की बेड़ियों में जकड़ी हुई आजाद होने से छटपटा रही हैं। तथापि आजादी के बाद बढ़ते शैक्षणिक स्तर के ग्राफ से विभिन्न क्षेत्रों मे तरक्की की ओर नई इबारत लिखी हैं,नई बेड़ियाँ तैयार हो गई हैं।श्वेत-श्याम चलचित्रों की तरह आजादी की तस्वीर में आज के चलचित्रों कि तरह रंग भरे जा रहे हैं पर अभी भी कुछ रंग धुंधले हैं।</p>
<p>केरल के करीब 800 साल पुराने सबरीमाला स्थित भगवान अय्यप्पा के मंदिर में 10-50 साल कि महिलाओं के प्रतिबंध को हटाते हुये जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि शारीरिक वजहों से मंदिर में आने से रोकना रिवाज का जरूरी हिस्सा नही। ये पुरुषप्रधान सोच को दर्शाता हैं। हॉस्टल से दिन ढलने के पश्चात आजादी की मांग करने वाली सर्वप्रथम भोपाल की लड़कियों ने विरोध किया तत्पश्चात दिल्ली की महिला ने पिंजरा तोड़ अभियान चलाया जिसका मकसद था,गैर वाजिब बन्दिशों को हटाकर महिलाओं को बराबरी का हक मिले। उनका कहना था कि हक की लड़ाई तो हम जीत गए पर लैंगिक समानता की राह अभी मुश्किल हैं।</p>
<p>सशस्त्र सेना में बराबरी का मोर्चा हासिल करने करीब दो दशक की लंबी कानूनी जंग जीती। महिलाओं को कमांड की पोस्ट ना दिये जाने का कारण, ‘पुरुष आदेश नही मानेंगे’ पर अदालत ने सरकार की दलील को रूढ़िवादी बताकर, फटकार लगाते हुये कहा कि मानसिकता बदलने की जरूरत हैं। संविधान अनुच्छेद 14 के खिलाफ लैंगिक रूढ़ियाँ महिलाओं के खिलाफ का ही नही ,सेना का भी अपमान हैं।मुस्लिम महिलाओं के हिट में तीन तलाक ,हिन्दू उत्तराधिकार संशोधन ऐक्ट के तहत बेटी को पैतृक संपत्ति मे बराबर का हिस्सा, तीस फीसदी वर्क फोर्श में महिलाओं की भागीदारी हुई।<br/>यह कटु सत्य हैं कि समाज सहजता से कुछ नही देता।यह हमारे देश की बिडंबना है कि संवैधानिक तौर पर अधिकारसंपन्न होकर भी महिलायें समाज की मानसिक संकीर्णता के तले उनके अधिकार रौंदे जाते हैं। हालांकि हर क्षेत्र में सफलता के झंडे गाढ़ती जनगणना की मृतप्राय आधी आबादी अपनी क्षमता,जागरूकता,दृढ़संकल्प संजीवनी से जीवांत होकर बदलती परिस्थितियों के साथ पूर्वाग्रही सोच को बदलकर एक नई इबारत लिखने में कामयाब हो रही हैं ,घिसी-पिटी परंपरागत परिभाषा की नई भाषा गढ़ रही हैं। फिर भी अभी सच्ची आजादी की जंग जारी हैं..<br/>पुरूषवर्चस्व क्षेत्रों में शंखनाद करती महिलाएं चुनौतियों से पार पाने का माद्दा उठाती,किसी मौके का इंतजर नही करती बल्कि खुद मौके तलाश कर अपने अस्तित्व के लिए जंग छेड़ रही हैं। जब तक विचार को आचार में नही ढालेगे तब बदलाव नामुमकिन है...संकुचित सोच के खिलाफ जंग जारी हैं...!</p>
<p></p>
<p>स्वरचित व अप्रकाशित हैं। </p>
<p>बबीता गुप्ता </p>रूंद गया बचपन...tag:openbooks.ning.com,2021-06-10:5170231:BlogPost:10616082021-06-10T10:00:00.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>गुमनाम अंधेरे में देखो भारत का भविष्य पल रहा<br></br> दो जून रोटी की खातिर कोमल बचपन सुबक रहा<br></br> कलम चलाने वाले नन्हे हाथ झूठन साफ कर रहे<br></br> बस्ते उठाने वाले कंधे परिवार का बोझ उठा रहे<br></br> माँ के आंचल का फूल दरबदर की गाली खा रहा<br></br> भूखे पेट अपमान का घूंट पीकर जीवन गुजार रहा<br></br> हंसने-खेलने-पढ़ने की उम्र में मजदूर बन गये<br></br> बचपन की किलकारी खो गई मांझते-धोते<br></br> निरीह तरस्ती ऑखें उठ रही कुछ आस में...<br></br> इंसानियत के ठेकेदारों नियमों को मान लो<br></br> मंझवाने से अच्छा कल का भविष्य मांझ…</p>
<p>गुमनाम अंधेरे में देखो भारत का भविष्य पल रहा<br/> दो जून रोटी की खातिर कोमल बचपन सुबक रहा<br/> कलम चलाने वाले नन्हे हाथ झूठन साफ कर रहे<br/> बस्ते उठाने वाले कंधे परिवार का बोझ उठा रहे<br/> माँ के आंचल का फूल दरबदर की गाली खा रहा<br/> भूखे पेट अपमान का घूंट पीकर जीवन गुजार रहा<br/> हंसने-खेलने-पढ़ने की उम्र में मजदूर बन गये<br/> बचपन की किलकारी खो गई मांझते-धोते<br/> निरीह तरस्ती ऑखें उठ रही कुछ आस में...<br/> इंसानियत के ठेकेदारों नियमों को मान लो<br/> मंझवाने से अच्छा कल का भविष्य मांझ दो....<br/> बर्तन चमकाने से अच्छा उसका कल चमका दो....<br/> निजी स्वार्थ त्यागकर बचपन रूंदने से पहले बचा लो<br/> गुमनाम अंधेरे में खोती देश की धरोहर को संवार लो....</p>
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<p>स्वरचित व अप्रकाशित हैं। </p>
<p>बबीता गुप्ता</p>मुखरता से हो रहा बदलाव (आलेख)tag:openbooks.ning.com,2021-03-08:5170231:BlogPost:10565122021-03-08T07:00:00.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>मुखरता से हो रहा बदलाव..... और बदल रही तस्वीर...! <br></br> <br></br> विश्व की अन्य महिलाओं की तरह भारत की महिलाओं को आजादी से जीने और अधिकारों का उपयोग कर सर्वांगीण विकास करने के लिए संघर्ष नही करना पड़ा।समय के साथ सकारात्मक बदलाव भी हुये।पुरूषवर्चस्व क्षेत्रों में अपना उपस्थिति दर्ज कराके अपनी आजादी की नई ईबारत लिखती हौसले बुलंद महिलाओं ने देश-विदेश में अपनी सफलता, उपलब्धियों का परचम फहराया। अपने संघर्ष, मेहनत,जज्बा,जुनून से हर सीमाओं को लांघकर कामयाबी हासिल कर नई ऊंचाईयां छूकर प्रेरणा…</p>
<p>मुखरता से हो रहा बदलाव..... और बदल रही तस्वीर...! <br/> <br/> विश्व की अन्य महिलाओं की तरह भारत की महिलाओं को आजादी से जीने और अधिकारों का उपयोग कर सर्वांगीण विकास करने के लिए संघर्ष नही करना पड़ा।समय के साथ सकारात्मक बदलाव भी हुये।पुरूषवर्चस्व क्षेत्रों में अपना उपस्थिति दर्ज कराके अपनी आजादी की नई ईबारत लिखती हौसले बुलंद महिलाओं ने देश-विदेश में अपनी सफलता, उपलब्धियों का परचम फहराया। अपने संघर्ष, मेहनत,जज्बा,जुनून से हर सीमाओं को लांघकर कामयाबी हासिल कर नई ऊंचाईयां छूकर प्रेरणा बनी।</p>
<p><br/> परंपरागत से गैरपरंपरागत क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर पुरूषों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर चलने वाली महिलाओं ने अपनी दकियानूसी छवि को एक नई परिभाषा से गढ़ दिया।पुरूषप्रधान सोच का गुरूर तोड़ा।समाज का मजबूत होता दूसरा स्तंभ अपने कौशल,आत्मविश्वास पर चुनौतियों का सामना कर रही हैं और अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानकर उसे रचनात्मक कार्यों में लगातार सम्मानजनक ओहदा प्राप्त कर रही हैं।समाज में उचित व सकारात्मक स्थिति दिलाने के लिए कई कल्याणकारी उत्थानपरक कार्यक्रम व योजनाओं को क्रियान्वित की गई और की जा रही हैं। बदलाव की मिशाल कायम की,अपनी सोच को शब्द दे रही,सामाजिक सरोकारों को लेकर आवाज उठा रही,दबी हुई आवाज वाजिब हक दिलाने में प्रेरणास्रोत बन रही,काबलियत के बल पर ऊंचे मुकाम छू रही हैं। व्यवहारिकता और समझदारी से तमाम चुनौतियों का प्रबल इच्छा शक्ति, परिश्रम और संघर्ष करने के जुनून ने पहचान दिलाई।अपने आपके प्रति सकारात्मक सोच कर यानि अपने भावनात्मक विचारों की सफाई की।मनोभावों पर नियंत्रण रखकर अतीत व भविष्य में भटके बिना मनचाहा मुकाम हासिल किया।प्रशस्त पथ पर अग्रसर होती महिलाएं अपनी अहमियत और अस्तित्व कायम रखते हुये अहम् बदलाव ला रही हैं जो सशक्तिकरण की राह में एक बड़ा कदम हैं। महिला साक्षरता के प्रतिशत का बढ़ता ग्राफ लोकतंत्र की सशक्त प्रहरी बन रही हैं। मताधिकार का स्वनिर्णय लेकर सशक्त व जिम्मेदार नागरिक के रूप में मौजूदगी दर्ज करा रही हैं। सजग होकर अत्याचार व शोषण के खिलाफ आवाज उठाती हैं, न्याय के लिए,हक पाने के लिए लड़ती भी हैं। <br/> <br/> अपनी सुप्त अन्तर्निहित क्षमता को जाग्रत कर परिस्थितियों के अनुकूल बनने की अपेक्षा अपने अंदर के प्रकाश को जगमगा रही हैं।अंतर्मन की धधक को बुझने नहीं दिया।अपने व्यक्तित्व को गढ़ने वाली आज की नारी ने अपनी उम्मीद व हौसलों को मरने नहीं दिया।रूढ़िवादी सोच से निकल एक यौद्धा की तरह अपनी ताकत का अंदाजा लगाया और पुरूषसत्तात्मक व्यवस्था की गहरी जड़ों को काटकर अपना जज्बा हासिल कर रही हैं। संकीर्ण मानसिकता को दरकिनार करते हुये रूढ़िवादी सोच को पुनर्भाषित कर पुराने मानदंडों को कड़ी चुनौती देकर सफलता के नये पैमाने स्थापित कर रही हैं। जीवन को रेखांकित करते नियमों को तोड़कर खुद को तलाश रही हैं और मुख्य धारा से जुड़कर हौसलों की रोशनी व कामयाबी की महक घर-घर पहुंचा रही हैं।विकासोन्मुखी योजनाओं से लाभान्वित होकर महिलाएं देश के व्यापक हितों के लिए आवाज उठाकर परंपरागत धारा को मोड़ रही।आधी आवादी की पूरक की अहमियत सही समय पर फैसले लेती महिलाओं के सर्वागीर्ण विकास के लिए सुरक्षा और सम्मान देना अभी भी शेष हैं।</p>
<p><br/> हर रोज कितनी सहजता से विभिन्न भूमिकायें निभाती हैं फिर भी उनकी भूमिकाओं को नजरअंदाज किया जाता हैं। जबकि पूरी शिद्दत के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुये वर्चस्वता स्थापित कर नये-नये मुकाम हासिल कर रही हैं। परंपरागत ठर्रे पर चलने वाली स्त्री की छवि उन आसमान की ऊंचाई पर अपनी कामयाबियों की उड़ान भरकर सिद्ध कर रही हैं कि असमानता आड़े नहीं आयेगी बल्कि अपनी अस्तित्वता की छाप छोड़ने पर भी अपनी जमीनी हक की लड़ाई के लिए छटपटा रही हैं।आर्थिक संबल होते हुये भी उन पर पुरूषों का मालिकाना हक बाकी हैं, अभी भी मानसिक संत्रास झेलती नारी अगर डरकर घर बैठ जाती हैं तो सभ्यता फिर चाहे आई एमएफ की चीफ इकोनोमिस्ट का पद भार संभालने वाली गीता गोपीनाथ ने देश को गर्व करने का मौका दिया हो।पर निर्णायक भूमिका का निर्वहन करने वाली आधी आबादी का एक ओर पक्ष जो काबलियत का कड़वा सच हैं कि महिला-पुरुष बराबरी के मामले में चार पायदान फिसलकर 112 वे स्थान पर आ गया। ग्लोबल जेंडर गेप 2000 की रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक बराबरी में 257 साल लग जाएँगे,शिक्षा,स्वावथ्य ,जीवन रक्षा के प्रतिशत का ग्राफ थोड़ा बढ़ा हैं।राजनीतिक असमानता खत्म होने में 95 साल लग सकते हैं। महिलाओं की निचले सदन में 25.2% और मंत्री पदों पर 21.1%हिस्सेदारी हैं।अंततोगत्वा विश्व की अन्य महिलाओं की तरह भारत की महिलाओं को आजादी से जीने और अधिकारों का उपयोग कर सर्वांगीण विकास करने के लिए संघर्ष नही करना पड़ा।समय के साथ सकारात्मक बदलाव भी हुये।पुरूषवर्चस्व क्षेत्रों में अपना उपस्थिति दर्ज कराके अपनी आजादी की नई ईबारत लिखती हौसले बुलंद महिलाओं ने देश-विदेश में अपनी सफलता, उपलब्धियों का परचम फहराया।</p>
<p><br/> अपने संघर्ष,मेहनत,जज्बा,जुनून से हर सीमाओं को लांघकर कामयाबी हासिल कर नई ऊंचाईयां छूकर प्रेरणा बन रही। हर रोज कितनी सहजता से विभिन्न भूमिकायें निभाती हैं फिर भी उनकी भूमिकाओं को नजरअंदाज किया जाता हैं। जबकि पूरी शिद्दत के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुये वर्चस्वता स्थापित कर नये-नये मुकाम हासिल कर रही हैं। परंपरागत ढर्रे पर चलने वाली स्त्री की छवि उन आसमान की ऊंचाई पर अपनी कामयाबियों की उड़ान भरकर सिद्ध कर रही हैं कि असमानता आड़े नहीं आयेगी। लेकिन अपनी अस्तित्वता की छाप छोड़ने पर भी अपनी जमीनी हक की लड़ाई के लिए छटपटा रही हैं। <br/> <br/> विकासोन्मुखी योजनाओं से लाभान्वित होकर महिलाएं देश के व्यापक हितों के लिए आवाज उठाकर परंपरागत धारा को मोड़ रही।आधी आबादी की पूरक की अहमियत सही समय पर फैसले लेती महिलाओं के सर्वागीर्ण विकास के लिए सुरक्षा और सम्मान देना होगा। अपनी सुप्त अन्तर्निहित क्षमता को जाग्रत कर परिस्थितियों के अनुकूल बनने की अपेक्षा अपने अंदर के प्रकाश को जगमगा रही हैं।अंतर्मन की धधक को बुझने नहीं दिया।अपने व्यक्तित्व को गढ़ने वाली आज की नारी ने अपनी उम्मीद व हौसलों को मरने नहीं दिया।रूढ़िवादी सोच से निकल एक यौद्धा की तरह अपनी ताकत का अंदाजा लगाया और पुरूषसत्तात्मक व्यवस्था की गहरी जड़ों को काटकर अपना जज्बा हासिल कर रही हैं। संकीर्ण मानसिकता को दरकिनार करते हुये रूढ़िवादी सोच को पुनर्भाषित कर पुराने मानदंडों को कड़ी चुनौती देकर सफलता के नये पैमाने स्थापित कर रही हैं। जीवन को रेखांकित करते नियमों को तोड़कर खुद को तलाश रही हैं और मुख्य धारा से जुड़कर हौसलों की रोशनी व कामयाबी की महक घर-घर पहुंचा रही हैं।</p>
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<p>स्वरचित व अप्रकाशित</p>मेरे पिता (लेख)tag:openbooks.ning.com,2020-06-21:5170231:BlogPost:10104632020-06-21T09:33:32.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>मेरे पिता</p>
<p>पिता शब्द स्वयं अपने आप में बजनदार होता हैं। हाथ की दसों उंगलियों की तरह हर पिता का व्यक्तित्व अलग होता हैं। पिता को परिभाषित किया जा सकता हैं, उपमानों से अलंकारित किया जा सकता हैं पर रेखांकित नही किया जा सकता।बस,उम्मीद की जा सकती हैं कि हमारे पिता बहुत अच्छे हैं, बस थोड़े-से ऐसे और होते। सभी बच्चों के पिता उनके हीरो होते हैं। ऐसे ही मेरे पिता मेरे किसी सुपरमेन से कम नहीं हैं, हरफनमौला हैं। बचपन से मैंने उनका सख्त चेहरा,कठोर अनुशासनबद्ध,जुझारूपन देखा हैं। मितभाषी हम सब के…</p>
<p>मेरे पिता</p>
<p>पिता शब्द स्वयं अपने आप में बजनदार होता हैं। हाथ की दसों उंगलियों की तरह हर पिता का व्यक्तित्व अलग होता हैं। पिता को परिभाषित किया जा सकता हैं, उपमानों से अलंकारित किया जा सकता हैं पर रेखांकित नही किया जा सकता।बस,उम्मीद की जा सकती हैं कि हमारे पिता बहुत अच्छे हैं, बस थोड़े-से ऐसे और होते। सभी बच्चों के पिता उनके हीरो होते हैं। ऐसे ही मेरे पिता मेरे किसी सुपरमेन से कम नहीं हैं, हरफनमौला हैं। बचपन से मैंने उनका सख्त चेहरा,कठोर अनुशासनबद्ध,जुझारूपन देखा हैं। मितभाषी हम सब के लिए पर किसी-भी विषय पर बहस छिड़ जाए तो बस सामने वाला चुप ही हो जाये।उनकी इस आदत पर बाबा समझाते तो कहते क्या गलत कहा; और फिर हाथ कंगन को आरसी क्या,पढे-लिखे को फारसी क्या। परिवारोन्मुखी पिता हम बच्चों के साथ-साथ चाचा-बुआ के उज्जवल भविष्य के प्रति चिंतित ही नही रहते थे,बल्कि जो मन में ठान ली ,करवा ही मन लेते थे।जोंक की तरह चिपक जाते थे लक्ष्य हासिल करने के लिए ।नतीजन सभी सफलता-असफलता के पायदान चढ़ते-उतरते हुये सुखद ही नही संतुष्ट भी हैं। जुझारू व्यक्तित्व वाले पिताजी ने हारने नाम की चीज उनके शब्दकोष में ना कल थी और ना आज। हां,उम्र के पढ़ाव पर थोड़े थक जरूर गये पर जुनून यथावत बरकरार हैं। जब मैं पी-एच.डी की रजिस्ट्रेशन के लिए आरडीसी में जा रही थी तो मेरे चेहरे की घबड़ाहट भांप ली; समझाने लगे कि तुम तो इण्टरव्यू देते वक्त ,ध्यान से सवाल सुन जवाब देते वक्त बस इतना याद रखना कि सामने वाले सब अज्ञान हैं, बस तुम सही हो।मुझे इस मुकाम तक पहुँचाने के लिए मेरी कमजोरी आड़े नहीं आने दी,वो मेरे पैर बन हमेशा साथ खड़े रहे।जौहरी की तरह हम सब का व्यक्तित्व निखारा। जुनून के साथ पारखी नजर,दूरदर्शिता की दाद देना पड़ेगी।भाई को पीजी सर्जरी में करनी थी और पापा कहते, मेडिसिन में;कारण बताते औरों में तो उम्र आड़े आती हैं,तामझाम करना होते हैं लेकिन इसमें कुर्सी-टेबल डालकर कही भी बैठ जाओगे,हिलते हाथों से दवाइयां लिखते रहोगे।समय प्रबंधन करना पापा से सीखा।पढ़ाई के साथ-साथ बाबा के साथ दुकान में हाथ बंटाते,घर-गृहस्थी बसने के बाद पीजी की,वकालत का प्रथम वर्ष भी पास किया।जब कारण पूछते तो पापा तो चुप होकर निकल लेते,मम्मी बताती,तुम्हें पालन-पोषण पर ध्यान देना था,इसलिए। अनुभवों का तो पिटारा छिपा हैं,कभी-कभी उनका दिया अनुभव अहम् के कारण उपेक्षित भले ही कर दे,पर बात अधिकांशतः उन्हीं के बताये रास्ते से बनती हैं।आपस में कहते,जब आधी वकालत की तब इतना नियम-कायदों के जानकार,अगर पूरी कर लेते तब तो बात ही अलग होती। हम तीन बहनों के बीच अकेला भाई,लेकिन सभी को एक ऑख से देखा।बस,जब कभी भाई की गलती की सजा माफ हो जाती हैं। सुखसुविधा जुटाने में खुद की कभी चिन्ता नही की।परिवार के प्रति अतिचिन्ता ने ही शंकालू बना दिया।जो कभी-कभी हानिकारक भी होता था पर अधिकांशतः उनकी कही बात सौ फीसदी खरी उतरती।सामाजिकता में महीन-सी कमी हैं, दोस्त-यारी ,अड़ोस-पड़ोस से दो तीन से और सबसे रामजुहार ही काफी।एक वक्त यह आदत बहुत सुकून दी जब पूरा सालभर मैं और दादी अकेले रहे। बादल से गरजते पापा को स्नेहसिल बरसते तब देखा जब मेरा ब्लड टेस्ट लिया गया,जिन ऑखों से दहशत होती थी,उनसे ऑखों से आंसू निकलने लगे।कङकती आदेशात्मक आवाज को खुशी में बदलते तब देखा- दोफुट उछलते पापा ताली बजाकर कह रहे थे कि भाई का एमबीबीएस में सिलेक्शन हो गया। समय के साथ बदलाव आया,सख्त चेहरे पर मुस्कान दौड़ने लगी,दोस्ताना व्यवहार हो गया,उनके प्यार में मां की कमी पूरी होने लगी,नसीहतों की जगह तारीफ करने में पीछे नहीं हटते,अनुशासन में अवहेलना नजर आती।ये सब देख हम भाई-बहन आपस में हंसते हुये कहते, परिवर्तन प्रकृति का नियम हैं और फिर,भई,मूल से सूद प्यारा होता हैं।</p>
<p>हम सभी वट वृक्ष जैसी छत्रछाया में पले-बढें पर उसे गहराई में समाई जड़ों से नरम एहसासों से सिंचित कर स्थिर रखने वाली धरा सी माँ के जाने के पश्चात अब थोड़े डगमगाने जरूर लगते हैं पर पोतियों के कंधे उन्हें संभाल लेते हैं। </p>
<p></p>
<p>बबीता गुप्ता </p>
<p>स्वरचित व अप्रकाशित </p>फूलtag:openbooks.ning.com,2020-04-21:5170231:BlogPost:10048402020-04-21T11:02:03.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>फूल-सी सुकोमल,सुकुमारी <br></br>कौन-सा फूल तेरी बगिया की<br></br>न्यारी-प्यारी माँ-बाबा की दुलारी <br></br>मुस्कराती ,बाबा फूले ना समाते <br></br>फूल-से झङते माँ होले-से कहती<br></br>पर दादी झिङकती-फूल कोई-सा होवे<br></br>पर सिर पर ना ,चरणों में चढाये जावे<br></br>उस समय कोमल मन को समझ ना आई<br></br>जब किसी के घर गुलदान की शोभा बनी<br></br>तब बात समझ आई<br></br>नकारा,छटपटाई,महकना चाहती थी<br></br>टूटकर अस्तित्वहीन नहीं होना था<br></br>पर असफल रही,दल-दल छितर-बितर गया<br></br>सोचती,मैं फूल तो हूँ <br></br>चंपा,चमेली,चांदनी,पारिजात नहीं <br></br>गुलाब…</p>
<p>फूल-सी सुकोमल,सुकुमारी <br/>कौन-सा फूल तेरी बगिया की<br/>न्यारी-प्यारी माँ-बाबा की दुलारी <br/>मुस्कराती ,बाबा फूले ना समाते <br/>फूल-से झङते माँ होले-से कहती<br/>पर दादी झिङकती-फूल कोई-सा होवे<br/>पर सिर पर ना ,चरणों में चढाये जावे<br/>उस समय कोमल मन को समझ ना आई<br/>जब किसी के घर गुलदान की शोभा बनी<br/>तब बात समझ आई<br/>नकारा,छटपटाई,महकना चाहती थी<br/>टूटकर अस्तित्वहीन नहीं होना था<br/>पर असफल रही,दल-दल छितर-बितर गया<br/>सोचती,मैं फूल तो हूँ <br/>चंपा,चमेली,चांदनी,पारिजात नहीं <br/>गुलाब का फूल जो खिलता-मुस्कराता <br/>रूढियों रीतिरिवाजों रूपी कांटों के बीच....</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित हैं </p>
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<p>बबीता गुप्ता </p>जीवन का कर्फ्यूtag:openbooks.ning.com,2020-03-22:5170231:BlogPost:10025522020-03-22T18:03:13.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>जीवन का कर्फ्यू</p>
<p>रोजमर्रा की तरह टहलते हुये रामलाल उद्यान में गोपाल से मिला तो उसके चेहरे की झाईयां से झलकती खुशी कुछ और ही बयां कर रही थी।इससे पहले मैं कुछ पूछता कि उसने कहा, 'यार,कल जैसा दिन गुजारे जमाना हो गया।'<br></br>'पर यार कल तो कर्फ्यू लगा था।न किसी से मिलना-जुलना हुआ।कितना बोरियत भरा दिन था?'<br></br>'तेरे लिए था।पर इसने मेरी जिन्दगी के कर्फ्यू को हटा दिया।'<br></br>'कुछ समझा नही?'प्रश्न भरी निगाह से रामलाल ने गोपाल की तरफ देखकर कहा।<br></br>गोपाल ने पास पङी बेंच पर उससे बैठने का इशारा…</p>
<p>जीवन का कर्फ्यू</p>
<p>रोजमर्रा की तरह टहलते हुये रामलाल उद्यान में गोपाल से मिला तो उसके चेहरे की झाईयां से झलकती खुशी कुछ और ही बयां कर रही थी।इससे पहले मैं कुछ पूछता कि उसने कहा, 'यार,कल जैसा दिन गुजारे जमाना हो गया।'<br/>'पर यार कल तो कर्फ्यू लगा था।न किसी से मिलना-जुलना हुआ।कितना बोरियत भरा दिन था?'<br/>'तेरे लिए था।पर इसने मेरी जिन्दगी के कर्फ्यू को हटा दिया।'<br/>'कुछ समझा नही?'प्रश्न भरी निगाह से रामलाल ने गोपाल की तरफ देखकर कहा।<br/>गोपाल ने पास पङी बेंच पर उससे बैठने का इशारा किया।उसके कंधे पर आत्मीयता से हाथ रखते हुये कहा, 'कल घर,घर जैसा लग रहा था....नही तो....।'<br/>बीच में टोकते हुये कहा, 'ऐसा क्या हो गया? तेरा कितना ख्याल रखते हैं सब।'<br/>'हां, सो तो हैं। दिनभर फोन से खबर लेते रहते हैं बहू-बेटे।खाना खाया कि नही,दवाई समय से ले ली।कोई परेशानी तो नहीं। सुबह-शाम हालचाल पूछते हैं,सब अपनी जिन्दगी में मस्त है। पर कल पूरे दिन जो सबके साथ समय बिताया।आस-पास चहकते बच्चों से मकान ,घर बन गया था। कितने अर्से बाद साथ में बैठकर बातें की।'कहते-कहते गोपाल की ऑखों से आंसू बहने लगे,गला रूंध गया।<br/>तसल्ली देते हुये उसका हाथ दबाया।उसकी बात सुन रामलाल की ऑखें भी नम हो गई। सच तो कह रहा हैं, सब जगह कर्फ्यू लगा था,पर कल उसके जीवन का कर्फ्यू हट गया था।ठंडी पङी भावनाओं को संवेदनाओं ने,एहसासों ने गर्माहट दे दी थी।<br/>'</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित हैं </p>
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<p>बबीता गुप्ता </p>परिचय [लघु कथा ]tag:openbooks.ning.com,2019-03-04:5170231:BlogPost:9773642019-03-04T17:15:26.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>परिचय <br></br>मेला प्रांगण में आयोजित बारहवाँ साहित्य सम्मेलन में देशभर के साहित्यकारों का जमावड़ा लगा हुआ था,जिसमें माननीय राज्यपाल के करकमलों से पुस्तक का विमोचन किया जाना था. <br></br>आगंतुकों में शहर के प्रतिष्ठित,मनोहर बाबू भी विशिष्ठजन की पंक्ति मंं विराजमान थे.शीघ्र ही मंच पर राज्यपाल की उपस्थित से सन्नाटा खिंच गया.औपचारिकताओं के पश्चात,जिस लेखक की किताब ‘मेरा परिचय’का अनुमोदन किया जाना था,उसे संबोधित कर मंच पर आने का आग्रह किया गया.तो सभी की उत्सुकता में एकटक निगाहें मंचासीन होने वाले के…</p>
<p>परिचय <br/>मेला प्रांगण में आयोजित बारहवाँ साहित्य सम्मेलन में देशभर के साहित्यकारों का जमावड़ा लगा हुआ था,जिसमें माननीय राज्यपाल के करकमलों से पुस्तक का विमोचन किया जाना था. <br/>आगंतुकों में शहर के प्रतिष्ठित,मनोहर बाबू भी विशिष्ठजन की पंक्ति मंं विराजमान थे.शीघ्र ही मंच पर राज्यपाल की उपस्थित से सन्नाटा खिंच गया.औपचारिकताओं के पश्चात,जिस लेखक की किताब ‘मेरा परिचय’का अनुमोदन किया जाना था,उसे संबोधित कर मंच पर आने का आग्रह किया गया.तो सभी की उत्सुकता में एकटक निगाहें मंचासीन होने वाले के इंतजार मे ठहर गई,जिसकी सप्ताहभर से शहर के समाचार पत्रों में चर्चित थी.क्षणिक पल पश्चात साधारण लिबास में जो महिला उपस्थित हुई,उसे देख दर्शक दीर्घा में बैठे मनोहर बाबू को हदप्रद देख,बगल में बैठे,उनके दोस्त,त्रिपाठी जी ने बधाई देते हुये कहा,‘अरे,ये तो अपनी बिटिया,गरिमा हैं.पर सम्बोधन में नाम अर्पिता ले रहे थे.’<br/>त्रिपाठी जी की बात से वो भी असमंजस्य में बस हाँ,हूँ ही कर पा रहे थे,क्योंकि वो भी इस सबसे अंजान थे.तभी तालियों की गड़गड़ाहट के बीच अपना नाम सुन,मंच पर ध्यान गया,तो उनकी बेटी गरिमा हाथ के इशारे से आने का आग्रह कर रही थी.<br/>मंच पर पहुचते ही उनका फूलों की माला पहनाकर स्वागत किया गया.अर्पिता ने अपनी इस कामयाबी के लिए अपने परिवार के साथ-साथ,मम्मी-पापा को श्रेय देते हुये अतिथि महोदय से आग्रहपूर्वक कहा, ‘यह सम्मान अपने पिताजी को समर्पित चाहूंगी.’ <br/>प्रवक्ता गरिमा के संघर्ष पूर्ण कामयाबी के विषय मे बोले जा रहा था,पर मनोहर बाबू के कानों में सिर्फ अपना नाम सुनाई दे रहा था,और इशारे से बुलाती बिटिया का हाथ...उनके जेहन मे उस दिन की बात स्मरण हो आई,जब उनसे,नातिनी,चिकी ने वंशावली प्रोजेक्ट के लिए परदादा-दादी सहित सभी सदस्यों के नाम लिए,उसमें गरिमा का नाम ना देख पूछा तो मनोहरबाबू ने समझाते हुये कहा,‘बेटा,वंशावली में लड़कियों के नाम नहीं लिखे जाते.’<br/>‘फिर,मेरा नाम क्यों?’<br/>‘अभी आपकी शादी नहीं हुई हैं,इसलिए.’<br/>‘लेकिन गरिमा बुआ की भी तो नही हुई!!!’<br/>असमंजस में पड़े मनोहर बाबू निरूत्तर थे,दोनों की बातें सुन,गरिमा ने संयमित स्वर में चिकी को समझाया,‘देखना एक दिन,इस लिस्ट में नामजद ना सही,पर सरकार की लिस्ट में जरूर रहूँगी.’ और,चिकी को उसके कमरे में पढ़ने बैठा दिया,पर उसका अन्तर्मन चिकी के सवालों मे उलझ गया,कितनी संकीर्ण मानसिकता वाले रूढ़िवादी नियम हैं,समाज में तो ,परिवार को कुलदीपक देने वाली महिलाओं का श्राद्ध करना तो दूर,कही उनका नाम भी किसी वही-खाते में नहीं होता...फिर मेरा...तो....लेकिन मनोहर बाबू की बात से आहत हुई,पर अपने को कमजोर ना बना,मन-ही-मन द्रढ़ संकल्प लिया,वो अपनी पहचान खुद बनाएगी,किसी के परिचय की मोहताज नहीं रहेगी.<br/>शुरू से ही लिखने-पढ़ने की शौकीन गरिमा के यदा-कदा पत्रिकाओं,अखबारों में लेख छपते थे,पर,अर्पिता नाम से उसके इस शौक से घरवाले अपरिचित थे.इसी आधार को जुनून बना,अपना बजूद हासिल किया.<br/>आज एक अलग पहचान से जितनी उसे खुशी थी,उससे ज्यादा उसे अपने पिता को सम्मानित होते,गौरवान्वित होते देख.पिताजी सुन,देखा-सामने मुस्कराती गरिमा थी,उसे देख ,उन्हें अपनी ओछी सोच पर पछतावा था,जो उनकी आंखो से बह रहा था.</p>
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<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
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<p>बबिता गुप्ता </p>
<p></p>तपस्या [लघु कथा ]tag:openbooks.ning.com,2019-03-03:5170231:BlogPost:9771812019-03-03T11:21:48.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
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<p>तपस्या </p>
<p>राशि को एकटक सास-श्वसुर की फोटो देख,रोमिल के झकझोरने पर,सपने से जागी,कहने लगी,‘मेरी तपस्या पूरी हुई.’</p>
<p>'मुझे पाकर,अब कौन-सी तपस्या?'प्रश्नभरी निगाहों से,<span>देखकर बोला.</span></p>
<p>झेप गई,,फिर संभलते हुए बोली,'हां,लेकिन मम्मी-पापा की बहू,दिल से अपनाने की तपस्या.' </p>
<p>सुनकर,खुशी में,हाथ पकड़कर बोला,'पर,तुम्हें.... कैसे..........?'</p>
<p>चेहरे पर बनते-बिगड़ते भावों से,<span>लगा</span>,जैसे उसे स्वर्ग मिल गया,‘आज तड़के सुबह,फोन पर मम्मी ने पहली बार बात…</p>
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<p>तपस्या </p>
<p>राशि को एकटक सास-श्वसुर की फोटो देख,रोमिल के झकझोरने पर,सपने से जागी,कहने लगी,‘मेरी तपस्या पूरी हुई.’</p>
<p>'मुझे पाकर,अब कौन-सी तपस्या?'प्रश्नभरी निगाहों से,<span>देखकर बोला.</span></p>
<p>झेप गई,,फिर संभलते हुए बोली,'हां,लेकिन मम्मी-पापा की बहू,दिल से अपनाने की तपस्या.' </p>
<p>सुनकर,खुशी में,हाथ पकड़कर बोला,'पर,तुम्हें.... कैसे..........?'</p>
<p>चेहरे पर बनते-बिगड़ते भावों से,<span>लगा</span>,जैसे उसे स्वर्ग मिल गया,‘आज तड़के सुबह,फोन पर मम्मी ने पहली बार बात की,दीपावली पर घर आने को कहा.’ </p>
<p>.रोमिल चहका,पर,मम्मी की आखिरीबार बात,याद कर विचलित-सा हुआ,राशि से शादी करने पर,सदा के लिए नाता तोड़,कभी ना आने की सख्त हिदायत दी.राशि की आवाज से चेतकर,कहा,'रोज तस्वीर के सामने मनुहार करने का फल मिल गया.’.</p>
<p>'हां,अगर तुम सीधे-सीधे मान जाते तो वो सब नहीं ............'</p>
<p>बात पूरी सुने बिना,रोमिल ने उसके मुंह पर हाथ रखकर,मुस्कराकर कहा,'बीती ताहि बिसार दे,अब आगे की सोच.’</p>
<p>उन यादों में खो गई,जब पहली बार,औपचारिक जान-पहचान,कब दोस्ती से प्यार में बदल गई,सरकारी सर्विस में अधिकारी पोस्ट पर रोमिल,घर के बगल में रहता हैं.राशि भी कम्पनी में स्टेनों.जब कभी उदास रोमिल को,राशि के घरवालों से मिलकर अच्छा लगता,इतना घुल-मिल गया,बिना झिझक के आना-जाना,राशि के साथ अकेले घूमना,किसी रूढ़िवादी विचारों में ना बंधने वाले, जब घरवालों से शादी की बात रखी,तो दोनों खिलाफ हो गए.ज्यादा विरोध रोमिल के घरवालो ने किया.हालांकि रोमिल के बड़े भाई,प्रसून की शादी दूसरे समाज में हुई थी.लेकिन बात यहां राशि,रोमिल से बड़ी,परबिरादरी,बस,यही दो टूक-बात हो गई.समझाने-बुझाने पर रोमिल,घरवालों की सहमति में हामी भरता,पर राशि को घोलमाल जबाव देता,और कोई चारा ना देख ,दोनों ने शादी करने का विचार बना लिया,पर एक दिन गलतफहमी के चलते,संबंध विच्छेद हो गए.अपने-अपने रास्ते चल पड़े,इधर राशि का दूसरी जगह संबंध तय होने पर,रोमिल ने भी अपना जीवन साथी चुन लिया.लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था.रोमिल के साथ दोस्ती का पता लगने पर,<span>राशि का रिश्ता टूट गया</span>,फिर उसका लगाव रोमिल की तरफ झुक गया.जब उसने रोमिल से अपनी सगाई तोड़ने की बात,मना करने पर,उसने लड़की के घरवालों से अपना रोमिल के साथ पूर्व संबंध की बात कह रिश्ता तुड़वा दिया.रोमिल के घरवालों को समाज के साथ-साथ,घरवालों से काफी भला-बुरा सुनना पड़ा,रोमिल को भी राशि की इस हरकत से गुस्सा आया,पर कहीं-ना-कहीं अंदर से असीम शान्ति का एहसास,<span>जैसे मन चाही मुराद</span>,<span>मिल गई.</span></p>
<p> बिछड़ा प्यार फिर फल-फूलने लगा,आपस में शादी करने का बचन दिया,लेकिन रोमिल ने परिवार को गुमराह कर,दवाब में,शादी की तिथि निश्चित कर दी.सब कुछ शांत था,कहते हैं,ना,गहरी शान्ति किसी बड़े तूफ़ान का संकेत.यही हुआ.अचानक प्रसून के फोन से,कोहराम मच गया,रोमिल की माँ तो अपनी ही कोख को भला बुरा कहे जा रही थी,हुआ यूं,कि राशि को शादी की खबर लगते ही,अपना खो बैठी,उसने,<span>रोमिल</span>,<span>उसके भाई</span> से बात की,धमकी दी,पर दोनों ने बात हल्के में ली,उलटा उसको ही धमकाया.बात हाथ से जाती देख,राशि ने दोनों भाईयों,उसकी भाभी के खिलाफ धोखा-घड़ी की रपट दर्ज करवा दी,घूमने,समय बिताने के सबूत भी पेश कर दिए.सभी के होश उड़ गए,इज्जत सड़क पर आ गई,रिश्ते-नातेदार सलाह कम,उलाहने ज्यादा मारते.आखिर में,रोमिल के ताऊजी ने राशि से बात कर,सुलटाने की बात की,हर तरह का प्रलोभन दिया,पर वो अपनी बात पर अडिग रही.उनके वकील ने भी यही एक रास्ता सुझाया,नहीं तो तीनो बच्चों की ज़िंदगी बर्वाद,साथ ही केस निपटने की कोई म्याद नहीं.लाचार पिता,बच्चों की भलाई के लिए,गुप्त रूप से,शादी आर्य मंदिर में करवाई गई,दूर खड़े रोमिल के पिता,जिस बेटे को वो अपना बायां हाथ समझते थे वो आज कट गया था,कितने अरमान सजाये थे रोमिल की शादी के,आज सब मिटटी में मिल गए.बस एक संतोष था,बड़ी बला, टल गई.खैर.........वक्त की बलिहारी......विवाहोपरांत तुरंत राशि ने केस वापिस की अर्जी लगा दी,रफा-दफा करने में पूरी जोड़-तोड़ लगा दी.यहां तक कि लिखित में सम्पत्ति में अनाधिकार पर भी हस्ताक्षर कर दिए.सब कुछ ठीक हो जाने,अचानक से राशि ने ,पैर छूकर अपने किये की माफ़ी मांगी,.क्या कहते,पिता ने,खुश रहो,और गाडी में बैठ गए.</p>
<p>रोमिल की माँ को,<span>सब</span>के समझाने पर भी,रोती रहती,घर पहुंचने पर,रोमिल ने पिता को,माँ से बात कराने को कहा तो,गुस्से से लाल,माँ ने गुस्से में कहा,‘आज से तू पराया हो गया हैं,कोई वास्ता नहीं.’</p>
<p>धीरे-धीरे सब का गुस्सा ठंडा पड़ गया,रोमिल और राशि से सब की बात हो जाती पर रोमिल की माँ बात नहीं करती.कहते हैं ना,वक्त सब घाव भर देता हैं,माँ की ममता ने घाव को नासूर नहीं बनने दिया.</p>
<p>और आज यही हुआ,आखिर राशि की तपस्या सफल हुई,उसकी तपस्या केवल अपने प्रेम को पाना ही नहीं था,बल्कि घरवालों का दुलार पाने की तपस्या थी.</p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p>बबीता गुप्ता </p>
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<p></p>प्यार का दंश या फर्जtag:openbooks.ning.com,2019-02-26:5170231:BlogPost:9768172019-02-26T10:54:12.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>प्यार का दंश या फर्ज <br></br> तुलसीताई के स्वर्गवासी होने की खबर लगते ही,अड़ोसी-पड़ोसी,नाते-रिश्तेदारों का जमघट लग गया,सभी के शोकसंतप्त चेहरे म्रत्युशैय्या पर सोलह श्रंगार किए लाल साड़ी मे लिपटी,चेहरे ढका हुआ था,पास जाकर अंतिम विदाई दे रहे थे.तभी अर्थी को कंधा देने तुलसीताई के पति,गोपीचन्दसेठ का बढ़ा हाथ,उनके बेटों द्वारा रोकने पर सभी हतप्रद रह गए.पंडितजी के आग्रह करने पर भी,अपनी माँ की अंतिम इच्छा का मान रखते हुये, ना तो कंधा लगाने दिया,ना ही दाहसंस्कार में लकड़ी.यहाँ तक कि उनके चेहरे के अंतिम…</p>
<p>प्यार का दंश या फर्ज <br/> तुलसीताई के स्वर्गवासी होने की खबर लगते ही,अड़ोसी-पड़ोसी,नाते-रिश्तेदारों का जमघट लग गया,सभी के शोकसंतप्त चेहरे म्रत्युशैय्या पर सोलह श्रंगार किए लाल साड़ी मे लिपटी,चेहरे ढका हुआ था,पास जाकर अंतिम विदाई दे रहे थे.तभी अर्थी को कंधा देने तुलसीताई के पति,गोपीचन्दसेठ का बढ़ा हाथ,उनके बेटों द्वारा रोकने पर सभी हतप्रद रह गए.पंडितजी के आग्रह करने पर भी,अपनी माँ की अंतिम इच्छा का मान रखते हुये, ना तो कंधा लगाने दिया,ना ही दाहसंस्कार में लकड़ी.यहाँ तक कि उनके चेहरे के अंतिम दर्शन भी ना करने दिये.तेहरवी तक अंजान सदस्य बन, मूकदर्शक की तरह शामिल होते.<br/> गोपीचन्दसेठ,प्रतिष्ठित व्यापारी,बेटो-बहुओं,नाती-पोतों वाला परिवार,सुशील,कुशल धर्मपत्नी,तुलसीताई,अपनी व्यवहार कुशलता से,प्यार से,दीवारों की एक-एक ईट को जोड़कर,सबको अपना मुरीद मना लिया.वो भी अपने भाग्य,सराहती,ईश्वरसम पति को पूजती,पर गोपीचन्द द्वारा अकस्मात दूसरे विवाह की खबर से आघात,बुत-सी बन गई.ढलती शाम का ओट में छिपा अलविदा कहता सूरज फिर कल आने का आगाह करता हैं,रोजमर्रा की तरह आने का,पर तुलसीताई के जीवन मे बीते खुशहाल दिन फिर कभी ना आए.बदलते जीवन के समीकरणों ने आनंदमयी अन्तर्मन पर दुखित परतों से उदासीन बना दिया.अनायास गोपीचन्द के सामने पड़ने पर,अपना चेहरा ढक लेती,उसांस भरे अधरों पर बुदबुदाहट दौड़ पड़ती,महिलाओं के प्रति सम्मान जताते थे,लेकिन इस तरह,महिला आश्रम दोस्तों के साथ राहत राशि जमा करने गए थे,और दोस्तों द्वारा चने के झाड़ पर चढ़ा दिया,और कर दिया निराश्रित महिला का उद्धार ,संग व्याह रचाकर.निर्मोही पति की बेवफाई से घायल पतंगा की तरह भटकता मन सांसारिक दुनियाँ से मुक्त होने को तड़प उठता.वित्रष्ण ह्रदय की धधक में पति की पश्चाताप की बूंदे रूपी स्नेहसिल शब्दों की बौछार छनक जाती.बेटों-बहुओं को भी अपनी देवीय माँ के प्रति घोर अन्याय लगा,तुलसी के साथ,सभी ने गोपीचन्द से नाता तोड़ लिया.घर के कोने में रहते,आते-जाते,पर अंजानों की तरह.<br/> अकस्मात नियति ने दिये दुख की तपन से अन्तर्मन सुलगता,सहने के लिए बस ईश्वर का भावात्मक संबल था,अवसादभरा मन होने पर भी जीवनभर सहरदयता का भाव बनाए रखा. भगवान के समक्ष घंटो बैठी रहती,जब कभी पंडितजी के सदा सुहागिन बने रहने और अपने पति के एकपत्नीत्व का बचन स्मरण हो आता,मन कचोटता,कैसे आशीर्वाद,श्राप बन गया.वेदनामयी जीवन को देख सब तड़प उठते.और एक दिन भावहीन ह्रदय की तड़प ने याचनाभरी नेत्रों से क्रतज्ञभाव से अंतिम इच्छा निर्वाह करने का वचन लिया कि मरणोपरांत भी मेरा चेहरा अपने पिता को ना दिखाना और ना ही अर्थी को लकड़ी. सब सुनकर सन्न रह गए,पर बचन दिया.सुहागिन जैसी रहने पर,कोई पूछता तो कहती,‘बस,साथ में धर्म ही जाता हैं.’दिन-रात की घुटन की पीड़ा ने ऐसे असाधाय रोगग्रस्त ने बिस्तर पकड़ा,फिर वो शमशान घाट पर ही छूटा.<br/> तुलसी के साथ किए अन्याय का क्षोम दिन-रात गोपीचन्द को सताता,ह्रदय की पीड़ा चेहरे पर झलकती,पर सामने दूसरी पत्नी की ज़िम्मेदारी,धर्मरीति निभाने को बेवस कर देती,हालांकि तुलसी से मेल-जोल की कोशिस की,पर उसकी निर्मोहिता,कठोरता परे धकेल देती.खैर..... ऊपर वाले के देर हैं,अंधेर नही…….दो साल भी नही हुये थे,कि ईश्वर ने दूसरी पत्नी को अपने पास बुला लिया....शायद तुलसी के साथ हुये अन्याय का न्याय मिला.लेकिन गोपीचन्द बिना किसी की परवाह किए दूसरी पत्नी को घर,सम्मान,पहचान सब दी,तसल्ली थी,कि किसी के साथ वचनों को निभा सका.<br/> .<br/> मौलिक व अप्रकाशित <br/> बबीता गुप्ता </p>अनूठा इजहार [लघु कथा ]tag:openbooks.ning.com,2019-02-22:5170231:BlogPost:9753972019-02-22T10:03:38.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>अनूठा इजहार</p>
<p>नितिशा के बाबूजी के अंतिम श्रद्धांजलि दे रहे थे,तभी अंदर से शांत मुद्रा में नितिशा की दादी,सरल चिरनिद्रा में लीन बाबूजी के पार्थवशरीर के समक्ष बैठी,हाथ मे पकड़े नए सफेद रूमाल से मुंह पौछा,फिर कान के पास जाकर जो कहा,सभी उन्हें विस्मयद्रष्टि से देखने लगे,वो सिर पर हाथ फेरते हुये कह रही थी- ‘तुम आराम से रहना,मेरी चिंता मत करना. रामायण की चौपाई सुनाई,फिर बाबूजी का मनपसंद गीत गया,और सूखीआँखें चली गई.पूरे तेरह दिन सरला अपने ही कमरे मे ही रही. गरूढ़पुराण में शामिल होने को कहते तो…</p>
<p>अनूठा इजहार</p>
<p>नितिशा के बाबूजी के अंतिम श्रद्धांजलि दे रहे थे,तभी अंदर से शांत मुद्रा में नितिशा की दादी,सरल चिरनिद्रा में लीन बाबूजी के पार्थवशरीर के समक्ष बैठी,हाथ मे पकड़े नए सफेद रूमाल से मुंह पौछा,फिर कान के पास जाकर जो कहा,सभी उन्हें विस्मयद्रष्टि से देखने लगे,वो सिर पर हाथ फेरते हुये कह रही थी- ‘तुम आराम से रहना,मेरी चिंता मत करना. रामायण की चौपाई सुनाई,फिर बाबूजी का मनपसंद गीत गया,और सूखीआँखें चली गई.पूरे तेरह दिन सरला अपने ही कमरे मे ही रही. गरूढ़पुराण में शामिल होने को कहते तो नकारती- ‘अब किसके लिए?’<br/> घर के लोग ,रिश्तेदार सरला का यह अनौखा रूप देख आश्चर्यचकित तो हुये लेकिन भावविहल हुये बिना नही रहे. नितिशा के अन्तर्मन मे यही सब कौंध रहा था,सोच-सोच के परेशान थी,उसने कभी भी दादी–बाबू को कभी हँसते हुये बातें करते नहीं देखा,जब देखा,तो दोनों को लड़ते-झगड़ते.यहाँ तक की बाबूजी अपने पोते-पोती के कमरे में उठते-बैठते-सोते ,और दादी अपने पूजाघर में ही उनकी दिन-रात होती.बस,नियमित शाम को मंदिर के लिए कमरे से बाहर निकलती या फिर थोड़ा बहुत शाम की हवा खाने छत्त पर.बाबूजी से उनका अलग ही तरह का रिश्ता था.बाबूजी जब कभी थोड़ा-बहुत बीमार पड़ते तो कभी उनकी ना तो देख-रेख करती,और ना ही हाल-चाल पुछती.बाबूजी उनके कमरे आकर बैठ भी जाते या कभी कोई अपनी परेशानी सांझा करना चाहते,तो दोनों के बीच मे इतनी गहमा-गहमी शुरू हो जाती कि बेटे-बहु-बच्चे दोनों को अलग-अलग करते.एकाधबार दोनों को छोडकर शादी मे या घूमने गए,आने पर पड़ौसियों से पता चलता कि एक दिन दोनों गार्डन में बैठे चाय पी रहें थे,अचानक से चीखने की आवाजें सुन बाहर देखा तो दोनों लाल-पीले होकर एक दूसरेन की कमियों को उजागर कर अजीबो-गरीब उपाधियों से नबाज़ रहे थे.पूरी कालौनी एकत्र हो गई,काफी देर बाद मामला सुलझा.सुनकर गुस्सा भी आया,हंसी भी आई.दादी–बाबूजी के इस तरह की नौक-झौक भरे बेरूखी जीवन के बारे मे चर्चा होती तो बस बुआ दादी इतना ही कहती- ‘तेरी दादी ने बाबूजी को बहुत सहा,सरला जैसी सुलक्षणी पत्नी के तो इसे चरण धोकर पीना चाहिए,जो उसने नरक जैसे घर को स्वर्ग बना दिया,बच्चों को इज्जतदार जीवन जीने लायक बनाया.पर भाई को इसके त्याग की कद्र ना थी.वक्त रहते ना की,क्या मतलब की.खैर.......’ हम सब शांत रह जाते.<br/> पर आज बड़ी ताई के ज़ोर देने पर जो बताया ,जानकर एहसास हुआ,ऊपर के घाव वक्त रहते भर जाते हैं,पर मन के घाव नासूर बन रिसते रहते हैं,चाहकर भी सहानुभूति का मरहम जलन करता हैं.बात कुछ यूं हुई,लड़ाई-झगड़ा में कही बातों को सरला दादी चिकने घड़े की तरह पी जाती थी ,पर उस दिन जब बाबूजी ने उनके चरित्र पर उंगली उठाई,तो पानी सिर से ऊपर गुजर गया,स्वाभिमान पर हथौड़ा सा पड़ा,उसकी मार से तिलमिला गई,बजूद खत्म करना चाहती थी,पर बच्चों की खातिर अपमान-सा घूंट पीकर रह गई,पर उस दिन पश्चात दोनों का दांपत्यजीवन अंजाना-सा हो गया.रस्मों के बंधन सिर्फ चूड़ी-बिछियों तक रह गए.’<br/> दादी के शांतचेहरे के पीछे की पीड़ा सुन नितिशा तड़प उठी.बाबूजी के जीवित रहते दादी ने प्यार के लावे को पाषाणह्रदय में दफन कर दिया था,पर आज वो उबल के बाहर आ ही गया.</p>
<p></p>
<p>बबिता गुप्ता </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
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<p></p>उम्मीद की रोशनी (अतुकांत कविता)tag:openbooks.ning.com,2018-11-22:5170231:BlogPost:9621062018-11-22T09:49:10.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>चुनावी महाकुंभ के नगाडे की टंकार में<br></br>चौतरफा राजनीति का हुआ महौल गरमागरम<br></br>ईद के चांद हुए नेता जो , <br></br>चिराग लेकर ढूंढने पर थे नदारद<br></br>योजनाओं की बरसात होने लगी<br></br>धूल उडती गड्ढे वाली सडकों पर<br></br>चुनावी सीमेंट चढ गया<br></br>उजाड बंजर खेती पर<br></br>हरियाल करने का मरहम लगाते<br></br>कंबल, साडी, दारू, मुर्गा का<br></br>बंदरबांट का फार्मूला चलाते<br></br>नित नए तरीकों से वोटरों को रिझाते<br></br> चरणवंदन कर, घडियाली ऑंसू बहाते<br></br>खोखले वायदों की दहाड, <br></br>ना खायेंगे, ना खाने देगे<br></br>दिए प्रलोभन, दिखाई…</p>
<p>चुनावी महाकुंभ के नगाडे की टंकार में<br/>चौतरफा राजनीति का हुआ महौल गरमागरम<br/>ईद के चांद हुए नेता जो , <br/>चिराग लेकर ढूंढने पर थे नदारद<br/>योजनाओं की बरसात होने लगी<br/>धूल उडती गड्ढे वाली सडकों पर<br/>चुनावी सीमेंट चढ गया<br/>उजाड बंजर खेती पर<br/>हरियाल करने का मरहम लगाते<br/>कंबल, साडी, दारू, मुर्गा का<br/>बंदरबांट का फार्मूला चलाते<br/>नित नए तरीकों से वोटरों को रिझाते<br/> चरणवंदन कर, घडियाली ऑंसू बहाते<br/>खोखले वायदों की दहाड, <br/>ना खायेंगे, ना खाने देगे<br/>दिए प्रलोभन, दिखाई चतुराई भरी कुटिलता<br/>दूध का दूध, पानी का पानी करने की<br/>क्षमता आम आदमी की विस्मृत हो गई<br/>फिर, हरबार की तरह भरोसा हो गया<br/>बदहाली जीवन में उम्मीद की रोशनी फूट गई<br/>वादा किया , शत प्रतिशत जीत दिलाने का<br/>मतदान बहिष्कार का ऐलान ठंडा पड गया<br/>एक बार फिर मतदाता अपने आप से भटक गया।</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>बबीता गुप्ता</p>बदहाल जनता (तुकांत अतुकांत कविता)tag:openbooks.ning.com,2018-11-19:5170231:BlogPost:9617132018-11-19T14:22:21.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>प्रजातांत्रिक देश स्वतंत्र व्यक्ति<br></br>अभिव्यक्ति की आजादी<br></br>विकास यात्रा सत्तर साल की<br></br>सरकारी नक्शे पर दर्ज इलाका<br></br>हालात जस के तस<br></br>टूटे घने जंगलों में बसा वीराना सा गांव<br></br>टूटी फूटी नदी, दम तोडती पुलिया<br></br>जर्जर धूल उडाती सडकें<br></br>विकराल संकटों से जूझ रहा<br></br>जीवन से लडता <br></br>रोजीरोटी की जद्दोजहद<br></br>मैले कुचैले अर्धवदन ढके<br></br>बदहाली मे आपस में दुख बांटते<br></br>अपने गांव की पीडा समझाते<br></br>चेहरे पर पीडा झलक आती<br></br> नेताओं के झूठे वादे घडियाली ऑसू <br></br>बिना लहर के हिलोरें…</p>
<p>प्रजातांत्रिक देश स्वतंत्र व्यक्ति<br/>अभिव्यक्ति की आजादी<br/>विकास यात्रा सत्तर साल की<br/>सरकारी नक्शे पर दर्ज इलाका<br/>हालात जस के तस<br/>टूटे घने जंगलों में बसा वीराना सा गांव<br/>टूटी फूटी नदी, दम तोडती पुलिया<br/>जर्जर धूल उडाती सडकें<br/>विकराल संकटों से जूझ रहा<br/>जीवन से लडता <br/>रोजीरोटी की जद्दोजहद<br/>मैले कुचैले अर्धवदन ढके<br/>बदहाली मे आपस में दुख बांटते<br/>अपने गांव की पीडा समझाते<br/>चेहरे पर पीडा झलक आती<br/> नेताओं के झूठे वादे घडियाली ऑसू <br/>बिना लहर के हिलोरें मारते मुद्दे<br/>बहते नाले के पानी की तरह बह जाते<br/>कागजों पर सिमटता विकास<br/>जनता ठगा सा महसूस करती<br/>फिर भी हर बार की तरह <br/>लोकतंत्र का महोत्सव मनाते<br/>चुनावी प्रचार में बढचढकर हिस्सा ले रहे<br/>दूरस्थ अंचल, कच्ची पगडंडियाँ तय करके<br/>जज्बा ,मतदान करने का उत्साह<br/>कर्तव्य निभाने की जिम्मेदारी<br/>भिक्षुक बने नेताओं की झोली<br/>भरोसा कर, भर देगे<br/>क्योंकि जनता जनार्दन है<br/>आया दर पर, खाली हाथ ना जायेगा।</p>
<p></p>
<p>बबीता गुप्ता</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>दोस्ती [तुकांत - अतुकांत कविता]tag:openbooks.ning.com,2018-08-27:5170231:BlogPost:9462912018-08-27T14:30:00.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p><span style="font-size: 12pt;">बचपन की यादों का अटूट बंधन </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">बिना लेनदेन के चलने वाला </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">खूबसूरत रिश्तों का अद्वितीय बंधन </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">एक ढर्रे पर चलने वाली जिंदगी में </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">नई-नई सोच से रूबरू करवाया </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">अर्थहीन जीवन को अर्थ पूर्ण बनाया </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">जीने का एक…</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">बचपन की यादों का अटूट बंधन </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">बिना लेनदेन के चलने वाला </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">खूबसूरत रिश्तों का अद्वितीय बंधन </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">एक ढर्रे पर चलने वाली जिंदगी में </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">नई-नई सोच से रूबरू करवाया </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">अर्थहीन जीवन को अर्थ पूर्ण बनाया </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">जीने का एक अलग अंदाज सिखाया </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">संसार के मोहजाल से बचाता </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">वक्त की कसौटी पर खरा उतरता </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">निराशा में राहत,कठिनाई में पथ प्रदर्शक बन </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">सफलता का सच्चा रास्ता दिखलाया </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">ऐसे थे और हैं मेरे दोस्त और मेरी दोस्ती </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">याद आते हैं साथ गुजारे वो दिन </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">साथ-साथ पढ़ते,खेलते खाते </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">कभी तकरार होती या करवाई जाती </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">दरार को खाई बनने से पहले ही </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">समझबूझ और विश्वास की </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">मजबूती से पाट दी जाती </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">एक दूसरे की पहुँच से दूर जरूर </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">एफबी,व्हाट्सप मोबाइल </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> यादों को ताजा कर मजबूत बनाते </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">दोस्ती की सूची औरो से कुछ लम्बी </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">बिना मतभेद, जातपात के भेदभाव से ऊँची </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">बेबी,शशि,सुनीता,मीरा,वंदना </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">श्रुति,प्रमिला,वर्षा,नीलम,बीना </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">सादगी,सहानुभूति,आत्मीयता समाई </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">इन अनमोल रत्नों की कोइ तोल नहीं </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">छोटी-छोटी बातों का यादगार लम्बा सफर </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">कभी ना खत्म होने वाली खुशियों की डगर </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">जीवन की ख़ुशी,जमीन का खजाना </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">जिनके बिना जीवन निःसार </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">बस,ऐसी ही बनी रहे </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">मिशाल दोस्ती की.</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">मौलिक व अप्रकाशित </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">बबीता गुप्ता </span></p>
<p></p>रिश्तों की डोर [लघुकथा]tag:openbooks.ning.com,2018-08-26:5170231:BlogPost:9461962018-08-26T16:12:59.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>दरवाजे की घंटी सुन, दरवाजा मेड शीला ने खोला तो अपरिचित समझ मुझे आवाज लगाने पर मैं देखने गई तो सामने सलिल भैया और शालिनी भाभी को देख हतप्रद रह गई.मुझे इस तरह देख,भैया कहने लगे- 'भूल गई क्या ?मैं तुम्हारा भाई .......</p>
<p>मैं अपने को संभालते हुए ,उन्हें इशारे से अंदर आने को कह,कहने लगी- 'अरे नहीं भैया,आपको अचानक इतने सालो बाद देखा ....बस और कुछ नहीं।'</p>
<p>भाभी मेरी मनोस्थिति समझ भैया को डाटने वाले लहजे में कहा - 'अब ,उसे झिलाना छोडो'।और मुझे रसोई में ले जाकर खाना बनाने में हाथ बटाँने…</p>
<p>दरवाजे की घंटी सुन, दरवाजा मेड शीला ने खोला तो अपरिचित समझ मुझे आवाज लगाने पर मैं देखने गई तो सामने सलिल भैया और शालिनी भाभी को देख हतप्रद रह गई.मुझे इस तरह देख,भैया कहने लगे- 'भूल गई क्या ?मैं तुम्हारा भाई .......</p>
<p>मैं अपने को संभालते हुए ,उन्हें इशारे से अंदर आने को कह,कहने लगी- 'अरे नहीं भैया,आपको अचानक इतने सालो बाद देखा ....बस और कुछ नहीं।'</p>
<p>भाभी मेरी मनोस्थिति समझ भैया को डाटने वाले लहजे में कहा - 'अब ,उसे झिलाना छोडो'।और मुझे रसोई में ले जाकर खाना बनाने में हाथ बटाँने लगी.मैं भाभी को इस तरह काम करते देख सोचने लगी, आज भी बिलकुल वैसी ही हैं.मेरे जेहन में वो सब याद हो आये ,सबसे अधिक रक्षाबंधन का दिन,कहने को रिश्ते में दूर के भाई थे, पर मुझसे बचपन से ही ,कही भी गए हो, राखी के दिन अवश्य अपनी उपस्थिति देते थे.ये सिलसिला तब तक चला ,जब मैं इस शहर से बहुत दूर यहां आकर बस गई.शुरू-शुरू में फोन से हालचाल मिलते रहे ,फिर यह सब कब बंद हुआ...व्यस्त जीवन शैली में ना मेरा वहां जाना हो पाया और नाही भैया-भाभी का... रिश्तों पर जगह की दूरी की हल्की सी परत जरूर चढ़ गई थी..लेकिन यादों में हमेशा रहे.लेकिन आज इस तरह.....पूरे छब्बीस साल बाद.....अचानक भाभी की आवाज से मेरी तंद्रा टूटी,क्या यादों में ही राखी बाँध दोगी ....</p>
<p>राखी शब्द सुन मैंने कहा- 'पर भाभी राखी तो कल हैं '.</p>
<p>पीछे से भैया आकर बोलने लगे- 'भई,हमारे लिए तो राखी आज ही हैं,मेरी और देख कर कहा,हैं ना..</p>
<p> हां हां ... भाभी.....जल्दी से खाना हम सभी ने खाया और मैं राखी की थाली तैयार करने गई तो इधर-उधर देखने पर राखी का पैकेट नहीं मिला।</p>
<p>भैया की आवाज आ रही थी-'कितनी देर और लगाओगी,ट्रेन का भी समय हो रहा हैं.....'</p>
<p>बस आती हूँ,राखी नहीं मिल रही पता नहीं कहा......रख दी '.</p>
<p>'कोई बात नहीं,कलावा तो हैं ना,लाओ मुझे दो'.</p>
<p>लेकिन भाभी......मेरे हाथ से कलावा ले ,झटपट दो राखी बना थाली में रखकर बोली- 'चलो ,फटाफट राखी बांधों '.</p>
<p>दोनों को राखी बाँधी। विदाई करते समय मेरी आँखों में आंसू आ गए तो भाभी मुझे गले लगा ली.'</p>
<p>अरे,पगली,बचपन से बंधे ये धागे ,धागे नहीं,बल्कि उन यादों के बुने अटूट रिश्तों की डोर ही तो हैं,जो आज मुझे तेरे पास खींच लाई...' कहते-कहते भैया का गला रुंध गया.</p>
<p>मैं भी दोनों की कलाई पर बंधी राखी को देख सोचने लगी - 'इस धागे में उन यादों की खुशबू ही तो बसी हैं,,,,,,,जो आज ......</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p></p>
<p>बबीता गुप्ता </p>उम्मीदों की मशाल [लघु कथा ]tag:openbooks.ning.com,2018-08-01:5170231:BlogPost:9430242018-08-01T13:30:00.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>रामू की माँ तो अपने पति के शव पर पछाड़ खाकर गिरी जा रही थी.रामू कभी अपने छोटे भाई बहिन को संभाल रहा था ,तो कभी अपनी माँ को.अचानक पिता के चले जाने से उसके कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा था.</p>
<p>पढ़ाई छोड़,घर में चूल्हा जलाने के वास्ते रामू काम की तलाश में सड़को की छान मारता।अंततःउसने घर-घर जाकर रद्दी बेचने का काम पकड़ लिया।रद्दी में मिलती किताबों को देख उसके अंदर का किताबी कीड़ा जाग उठा.किताबे बचाकर,बाकी रद्दी बेच देता।और रात में लालटेन में अपने पढ़ने की भूख को तृप्त करता।</p>
<p>समय बीतता…</p>
<p>रामू की माँ तो अपने पति के शव पर पछाड़ खाकर गिरी जा रही थी.रामू कभी अपने छोटे भाई बहिन को संभाल रहा था ,तो कभी अपनी माँ को.अचानक पिता के चले जाने से उसके कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा था.</p>
<p>पढ़ाई छोड़,घर में चूल्हा जलाने के वास्ते रामू काम की तलाश में सड़को की छान मारता।अंततःउसने घर-घर जाकर रद्दी बेचने का काम पकड़ लिया।रद्दी में मिलती किताबों को देख उसके अंदर का किताबी कीड़ा जाग उठा.किताबे बचाकर,बाकी रद्दी बेच देता।और रात में लालटेन में अपने पढ़ने की भूख को तृप्त करता।</p>
<p>समय बीतता गया,माँ सिलाई करती,और भाई-बहिन को अच्छे स्कूल में दाखिला दिला दिया।उसने भी एक छोटी सी किराए पर दुकान ले ली.उसमे रद्दी के साथ पुरानी किताबो की भी विक्री करता.लेकिन एक बात हरदम दिमाग में घुमड़ती रहती,काश,कभी तो मेरी लिखी किताब इसी तरह विकेगी....</p>
<p>लेकिन बुरा वक्त कहकर नहीं आता.अकस्मात माँ के देहावसान ने उसे तोड़ कर रख दिया,लेकिन बचपन से मिले संघर्ष ने उसे सकारात्मक नजरिये से गिरकर,फिर से उठने की हिम्मत दी.लेकिन अकेले में वो अपने आप से पूछता- 'आखिर जिंदगी हैं क्या?सब कुछ जमने को होता हैं,फिर सब तहस-नहस हो जाता हैं.'</p>
<p>लेकिन ऐसे समय,किताबों में पढ़े वाक्यों को वो अपनी जिंदगी में आत्मसात करता,जो उसे हिम्मत देते थे.</p>
<p>एक दिन छोटे भाई बहिन को झगड़े को वो ऐसे समझा रहा था कि,मुन्नी बोल पड़ी- भैया ,आप इतनी अच्छी बाते करते हो,कौन सिखाता हैं, आपको?</p>
<p>रामू उसके सिर पर प्यार हाथ फेरते हुए ,खोया हुआ सा कहता हैं- 'वक्त इन्सान को सब सीखा देता हैं.'</p>
<p>पीछे से चीकू बोलता हैं- 'भैया आप ढेरों किताबे पढ़ते हो,आप अपनी किताब क्यों नहीं लिखते?'</p>
<p>हाँ में हाँ मिलाते हुए मुन्नी भी कहती हैं- आप भी लिखों ना.'</p>
<p>रामू ने चीकू मुन्नी से तो उनकी हाँ में हाँ मिला दी पर ,जैसे उसके अंदर के दबे विचारों को कौंधा दिया हो,सपने को पूरा करने का रास्ता दिखा दिया हो.</p>
<p>दिन तो रोजी रोटी में चला जाता और रात में पन्नों पर अपनी जीवन गाथा में संघर्ष और उसके उत्थान को रचता.लम्बे अंतराल व जद्दोजहद के ततपश्चात किताब प्रकाशित हुई.कहते हैं ना वक्त बड़ा बलवान होता हैं,मेहनत कभी निरर्थक नहीं जाती,और जल्द ही किताब ने सबके दिलों पर राज कर लिया. आज उसकी किताब जीविकोपार्जन का साधन बनी,जिनका वास्ता वक्त की मार ने छुड़वा दिया था.</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p></p>मैं और मेरे गुरु [कविता]tag:openbooks.ning.com,2018-07-27:5170231:BlogPost:9416542018-07-27T07:30:00.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p><span style="font-size: 12pt;">क्षण-प्रतिक्षण,जिंदगी सीखने का नाम </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">सबक जरूरी नहीं,गुरु ही सिखाए</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">जिससे शिक्षा मिले वही गुरु कहलाये </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">जीवंत पर्यन्त गुरुओं से रहता सरोकार </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">हमेशा करना चाहिए जिनका आदर-सत्कार </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">प्रथम पाठशाला की गुरु माँ बनी …</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">क्षण-प्रतिक्षण,जिंदगी सीखने का नाम </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">सबक जरूरी नहीं,गुरु ही सिखाए</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">जिससे शिक्षा मिले वही गुरु कहलाये </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">जीवंत पर्यन्त गुरुओं से रहता सरोकार </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">हमेशा करना चाहिए जिनका आदर-सत्कार </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">प्रथम पाठशाला की गुरु माँ बनी </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">दूजी शाला के शिक्षक गुरु बने </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">सामाजिकता का पाठ माँ ने सिखाया </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">शैक्षणिक स्तर शिक्षक ने उच्च बनाया </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">नैतिक शिक्षा का पाठ धर्म गुरु ने पढ़ाया</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">तो दुनियांदारी का सबक पिता ने समझाया </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">जीवन का एक रंगमंच,गुरु कुम्हार सम </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">लाचारी को ताकत बना जूझना सिखाता </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">निराश मन में उल्लास भरता </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">लक्ष्य भेदने की रौशनी जलाता </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">बुझे सपनों को साकार करने में </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">पग -पग पर साथ निभाता </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">क्या अक्षम,क्या सक्षम दुनिया में </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">अपनी नजरों से चलना सिखाया </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">असम्भव डगर पर,सम्भव के</span><span style="font-size: 12pt;">निशाँ टंकित करवाए </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">डांटडपट उनका अधिकार था , हैं ,रहेगा </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">क्षणिक मन उदासी से घिरा </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">फिर वही बात मुश्किलों में ढाल बनी </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">चरण धूलि,आशीर्वाद से धन्य हुआ जीवन </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">गुरु महिमा अपरम्पार ,शब्दहीन हूँ,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">कैसे करूँ? उपकारों का बखान </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">गुरु कर्ज ,सब कर्जों में ऐसा कर्ज </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">सात जन्मो तक ,ना हो सकते उऋण </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">धन्य,धान्य हो गया जीवन.........</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">ऐसे गुरुओं को शत-शत नमन ......</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> "मात -पिता-गुरु छोड़ के,पाथर पूजन जात,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> पेट काट-काट जीवन दिया,उन्ही से आँखे मोड जात."</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">मौलिक व अप्रकाशित </span></p>एक ज़िद (कविता)tag:openbooks.ning.com,2018-07-26:5170231:BlogPost:9415242018-07-26T12:30:00.000Zbabitaguptahttps://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>बहुत देख ली आडंबरी दुनिया के झरोखों से </p>
<p>बहुत उकेर लिए मुझे कहानी क़िस्सागो<strong>ई</strong> में </p>
<p>लद गए वो दिन, कैद थी परम्पराओं के पिंजरे में </p>
<p>भटकती थी अपने आपको तलाशने में </p>
<p>उलझती थी, अपने सवालों के जबाव <strong>ढूँढने</strong> में </p>
<p>तमन्ना थी बंद मुट्ठी के सपनों को पूरा करने की </p>
<p>उतावली,आतुर हकीकत की दुनिया जीने की </p>
<p>दासता की जंजीरों को तोड़</p>
<p>,लालायित हूँ मुक्त आकाश में उड़ने को </p>
<p> लेकिन अब उठ गए इन्क्लाबी कदम </p>
<p>बेखौफ हूँ,कोइ…</p>
<p>बहुत देख ली आडंबरी दुनिया के झरोखों से </p>
<p>बहुत उकेर लिए मुझे कहानी क़िस्सागो<strong>ई</strong> में </p>
<p>लद गए वो दिन, कैद थी परम्पराओं के पिंजरे में </p>
<p>भटकती थी अपने आपको तलाशने में </p>
<p>उलझती थी, अपने सवालों के जबाव <strong>ढूँढने</strong> में </p>
<p>तमन्ना थी बंद मुट्ठी के सपनों को पूरा करने की </p>
<p>उतावली,आतुर हकीकत की दुनिया जीने की </p>
<p>दासता की जंजीरों को तोड़</p>
<p>,लालायित हूँ मुक्त आकाश में उड़ने को </p>
<p> लेकिन अब उठ गए इन्क्लाबी कदम </p>
<p>बेखौफ हूँ,कोइ भी बंदिशे रोक ना पाएगी </p>
<p>अड़चनों के आगे हौसले <strong>पस्त</strong> होंगे नहीं </p>
<p>किताब के पन्ने बदल एक नई इबारत लिखूँगी </p>
<p>जीने का मकसद मिला,खुशियां दामन में होगी </p>
<p>बदलेगा आलम,चाहते मुखर हो परवान चढ़ेगी </p>
<p>आस है तो ,आसमान हैं</p>
<p>इरादे नेक हैं तो मंजिले तय हैं. </p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>