Dr Lalit Kumar Singh's Posts - Open Books Online2024-03-29T02:29:28ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSinghhttps://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2966941016?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1https://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?user=2qv82y0xkuvd1&xn_auth=noरूह भर कर देtag:openbooks.ning.com,2013-08-27:5170231:BlogPost:4221152013-08-27T12:21:46.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p>मेरा वजूद बस इक बार बेखबर कर दे</p>
<p>पनाह दे तो असातीन मोतबर कर दे</p>
<p> </p>
<p>चमन कहीं भी रहे और गुल कहीं भी हो </p>
<p>मेरे अवाम को बस खुशबुओं से तर कर दे</p>
<p> </p>
<p>कोई निगाह तगाफुल करे न गैर को भी</p>
<p>सदा उठे जो बियाबाँ से चश्मे-तर कर दे</p>
<p> </p>
<p>कहाँ-कहाँ न गया हूँ मैं ख्वाब को ढोकर </p>
<p>मेरा ये बोझ जरा कुछ तो मुक्तसर कर दे</p>
<p> </p>
<p>तमाम रात अंधेरों से भागता ही रहा</p>
<p>तमाम उम्र उजाला तो रूह भर कर दे</p>
<p> </p>
<p>तगाफुल= उपेक्षा; असातीन= खम्भा ;…</p>
<p>मेरा वजूद बस इक बार बेखबर कर दे</p>
<p>पनाह दे तो असातीन मोतबर कर दे</p>
<p> </p>
<p>चमन कहीं भी रहे और गुल कहीं भी हो </p>
<p>मेरे अवाम को बस खुशबुओं से तर कर दे</p>
<p> </p>
<p>कोई निगाह तगाफुल करे न गैर को भी</p>
<p>सदा उठे जो बियाबाँ से चश्मे-तर कर दे</p>
<p> </p>
<p>कहाँ-कहाँ न गया हूँ मैं ख्वाब को ढोकर </p>
<p>मेरा ये बोझ जरा कुछ तो मुक्तसर कर दे</p>
<p> </p>
<p>तमाम रात अंधेरों से भागता ही रहा</p>
<p>तमाम उम्र उजाला तो रूह भर कर दे</p>
<p> </p>
<p>तगाफुल= उपेक्षा; असातीन= खम्भा ; मोतबर= विश्वसनीय</p>
<p> </p>
<p> मौलिक और अप्रकाशित </p>पिघलना चाहता हैtag:openbooks.ning.com,2013-08-25:5170231:BlogPost:4207832013-08-25T16:14:18.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p>बशर जब से यहाँ पत्थर में ढलना चाहता है</p>
<p>ये बुत भी आज पत्थर से निकलना चाहता है</p>
<p> </p>
<p>रिहाई मांगता है आदमी दुनिया से फिर भी</p>
<p>जहाँ भर साथ में लेकर निकलना चाहता है</p>
<p> </p>
<p>तुम्हारी जिद कहाँ तक रोक पाएगी सफ़र को</p>
<p>ये मौसम भी किसी सूरत बदलना चाहता है</p>
<p> </p>
<p>जिसे पत्थर कहा तूने अभी तक मोम है वो </p>
<p>जरा सी आंच तो दे दो पिघलना चाहता है</p>
<p> </p>
<p>भले सूखा लगे दरिया, मगर पानी वहां पर</p>
<p>जरा सा खोद कर देखो, निकलना चाहता है</p>
<p>बशर=…</p>
<p>बशर जब से यहाँ पत्थर में ढलना चाहता है</p>
<p>ये बुत भी आज पत्थर से निकलना चाहता है</p>
<p> </p>
<p>रिहाई मांगता है आदमी दुनिया से फिर भी</p>
<p>जहाँ भर साथ में लेकर निकलना चाहता है</p>
<p> </p>
<p>तुम्हारी जिद कहाँ तक रोक पाएगी सफ़र को</p>
<p>ये मौसम भी किसी सूरत बदलना चाहता है</p>
<p> </p>
<p>जिसे पत्थर कहा तूने अभी तक मोम है वो </p>
<p>जरा सी आंच तो दे दो पिघलना चाहता है</p>
<p> </p>
<p>भले सूखा लगे दरिया, मगर पानी वहां पर</p>
<p>जरा सा खोद कर देखो, निकलना चाहता है</p>
<p>बशर= आदमी</p>
<p> </p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p> </p>सोचने भर से यहाँ कब क्या हुआtag:openbooks.ning.com,2013-08-10:5170231:BlogPost:4112912013-08-10T01:09:43.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p>सोचने भर से यहाँ कब क्या हुआ</p>
<p>चल पड़ो फिर हर तरफ रस्ता हुआ</p>
<p> </p>
<p>जिंदगी तो उम्र भर बिस्मिल रही</p>
<p>मौत आयी तब कही जलसा हुआ</p>
<p> </p>
<p>रोटियां सब सेंकने में थे लगे</p>
<p>घर किसीका देखकर जलता हुआ</p>
<p> </p>
<p>जख्म देकर दूर सब हो जायेंगे</p>
<p>आ मिलेंगे देखकर भरता हुआ</p>
<p> </p>
<p>चाहिए पत्थर लिए हर हाथ को</p>
<p>इक शजर बस फूलता-फलता हुआ </p>
<p> </p>
<p>बिस्मिल = ज़ख्मी </p>
<p> </p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>
<p>सोचने भर से यहाँ कब क्या हुआ</p>
<p>चल पड़ो फिर हर तरफ रस्ता हुआ</p>
<p> </p>
<p>जिंदगी तो उम्र भर बिस्मिल रही</p>
<p>मौत आयी तब कही जलसा हुआ</p>
<p> </p>
<p>रोटियां सब सेंकने में थे लगे</p>
<p>घर किसीका देखकर जलता हुआ</p>
<p> </p>
<p>जख्म देकर दूर सब हो जायेंगे</p>
<p>आ मिलेंगे देखकर भरता हुआ</p>
<p> </p>
<p>चाहिए पत्थर लिए हर हाथ को</p>
<p>इक शजर बस फूलता-फलता हुआ </p>
<p> </p>
<p>बिस्मिल = ज़ख्मी </p>
<p> </p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>भूल जाने का हुनर आता नहींtag:openbooks.ning.com,2013-08-07:5170231:BlogPost:4091812013-08-07T00:24:04.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p>दोस्त बनकर भूल जाने का हुनर आता नहीं</p>
<p>लोग कहते हैं के दस्तूरे सफ़र आता नहीं</p>
<p> </p>
<p>जब रहम की आस में दम तोड़ता है आदमी</p>
<p>क्यों किसी के दिल-जिगर में वो असर आता नहीं</p>
<p> </p>
<p>दरहकीकत छांव दे जो इस जहाँ की धूप से</p>
<p>अब हमारे ख्वाब में भी वो शजर आता नहीं</p>
<p> </p>
<p>रंग-ओ-खुशबू है मगर,यह टीस है कुछ फूल को</p>
<p>वक्त जब माकूल रहता, क्यों समर आता नहीं</p>
<p> </p>
<p>जब मुकाबिल तोप की जद में बरसती आग हो</p>
<p>फिर बशीरत के, सिवा कुछ भी नज़र आता…</p>
<p>दोस्त बनकर भूल जाने का हुनर आता नहीं</p>
<p>लोग कहते हैं के दस्तूरे सफ़र आता नहीं</p>
<p> </p>
<p>जब रहम की आस में दम तोड़ता है आदमी</p>
<p>क्यों किसी के दिल-जिगर में वो असर आता नहीं</p>
<p> </p>
<p>दरहकीकत छांव दे जो इस जहाँ की धूप से</p>
<p>अब हमारे ख्वाब में भी वो शजर आता नहीं</p>
<p> </p>
<p>रंग-ओ-खुशबू है मगर,यह टीस है कुछ फूल को</p>
<p>वक्त जब माकूल रहता, क्यों समर आता नहीं</p>
<p> </p>
<p>जब मुकाबिल तोप की जद में बरसती आग हो</p>
<p>फिर बशीरत के, सिवा कुछ भी नज़र आता नहीं </p>
<p> </p>
<p>शजर= पेड़ ; समर= फल; बशीरत= अंतर्द्रष्टि </p>
<p> </p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>लिख दिया तो लिख दियाtag:openbooks.ning.com,2013-08-06:5170231:BlogPost:4085452013-08-06T01:00:00.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p>हमने तुम्हारी जात पर,जब लिख दिया तो लिख दिया</p>
<p>कुछ बेतुके जज्बात पर;जब लिख दिया तो लिख दिया</p>
<p> </p>
<p>कितना सुहाना मुल्क है, तुमने कहा अखबार में</p>
<p>बीमार से हालात पर जब लिख दिया तो लिख दिया </p>
<p> </p>
<p>जब से खुले बाजार की रख्खी गयी है नींव तो </p>
<p>हरदिन लगे आघात पर जब लिख दिया तो लिख दिया</p>
<p> </p>
<p>नक्कारखाना बन गया, सुनता नहीं, कोई कहीं</p>
<p>दिन-रात के उत्पात पर जब लिख दिया तो लिख दिया</p>
<p> </p>
<p>कश्ती भंवर में है परेशां, नाखुदा कोई नहीं</p>
<p>फिर…</p>
<p>हमने तुम्हारी जात पर,जब लिख दिया तो लिख दिया</p>
<p>कुछ बेतुके जज्बात पर;जब लिख दिया तो लिख दिया</p>
<p> </p>
<p>कितना सुहाना मुल्क है, तुमने कहा अखबार में</p>
<p>बीमार से हालात पर जब लिख दिया तो लिख दिया </p>
<p> </p>
<p>जब से खुले बाजार की रख्खी गयी है नींव तो </p>
<p>हरदिन लगे आघात पर जब लिख दिया तो लिख दिया</p>
<p> </p>
<p>नक्कारखाना बन गया, सुनता नहीं, कोई कहीं</p>
<p>दिन-रात के उत्पात पर जब लिख दिया तो लिख दिया</p>
<p> </p>
<p>कश्ती भंवर में है परेशां, नाखुदा कोई नहीं</p>
<p>फिर गर्दिशे हालात पर जब लिख दिया तो लिख दिया</p>
<p> </p>
<p>यह देश सारा जल रहा, बस घर तुम्हारे जश्न है </p>
<p>ऐसे ही तहकीकात पर जब लिख दिया तो लिख दिया</p>
<p> </p>
<p>चुपचाप कितने रोज तक, हम भी दबाते यूँ कहो</p>
<p>हर बात की औकात पर, जब लिख दिया तो लिख दिया</p>सो करते रहे हमtag:openbooks.ning.com,2013-08-05:5170231:BlogPost:4083592013-08-05T16:14:29.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p>इसी रास्ते से गुजरते रहे हम</p>
<p>दुआ जानते थे सो करते रहे हम</p>
<p> </p>
<p>अब आये कभी गम तो फिर देख लेंगे </p>
<p>यही सोच कर बस संवरते रहे हम</p>
<p> </p>
<p>उठाते बिठाते जगाते रहे है</p>
<p>मुकद्दर को झोली में भरते रहे हम</p>
<p> </p>
<p>कोई है जो अन्दर, यही देखता है</p>
<p>कब उसकी निगाहों में गिरते रहे हम</p>
<p> </p>
<p>समझ लें जो खुद को यही बस बहुत है</p>
<p>‘जो मैं हूँ’ , उसीसे तो डरते रहे हम</p>
<p> </p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>
<p>इसी रास्ते से गुजरते रहे हम</p>
<p>दुआ जानते थे सो करते रहे हम</p>
<p> </p>
<p>अब आये कभी गम तो फिर देख लेंगे </p>
<p>यही सोच कर बस संवरते रहे हम</p>
<p> </p>
<p>उठाते बिठाते जगाते रहे है</p>
<p>मुकद्दर को झोली में भरते रहे हम</p>
<p> </p>
<p>कोई है जो अन्दर, यही देखता है</p>
<p>कब उसकी निगाहों में गिरते रहे हम</p>
<p> </p>
<p>समझ लें जो खुद को यही बस बहुत है</p>
<p>‘जो मैं हूँ’ , उसीसे तो डरते रहे हम</p>
<p> </p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>कुछ दरीचा हो यहाँ परtag:openbooks.ning.com,2013-07-17:5170231:BlogPost:3980772013-07-17T01:39:18.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p></p>
<p>भूख थी जेरे बह्स और प्यास भी था मुद्द'आ </p>
<p>फैसला होना नहीं था, मुल्तबी वह फिर हुआ </p>
<p> </p>
<p>रहमतों की बारिशें होंगी, मुनादी हो गयी </p>
<p>और बातें छोडिये, पर रोटियों का क्या हुआ</p>
<p> </p>
<p>लाख बोलो कान पर,जूँ तक नहीं अब रेंगता </p>
<p>क्या असर होगा इन्हें, दो गालियाँ या बददुआ</p>
<p> </p>
<p>हाथ इनके हैं बहुत लम्बे, मगर डरना नहीं </p>
<p>चाहे संसद में गढ़ें वो नामुआफ़िक मजमुआ </p>
<p> </p>
<p>वारदातें भी रहम की मांगती हैं हर नज़र</p>
<p>कुछ दरीचा हो यहाँ पर,…</p>
<p></p>
<p>भूख थी जेरे बह्स और प्यास भी था मुद्द'आ </p>
<p>फैसला होना नहीं था, मुल्तबी वह फिर हुआ </p>
<p> </p>
<p>रहमतों की बारिशें होंगी, मुनादी हो गयी </p>
<p>और बातें छोडिये, पर रोटियों का क्या हुआ</p>
<p> </p>
<p>लाख बोलो कान पर,जूँ तक नहीं अब रेंगता </p>
<p>क्या असर होगा इन्हें, दो गालियाँ या बददुआ</p>
<p> </p>
<p>हाथ इनके हैं बहुत लम्बे, मगर डरना नहीं </p>
<p>चाहे संसद में गढ़ें वो नामुआफ़िक मजमुआ </p>
<p> </p>
<p>वारदातें भी रहम की मांगती हैं हर नज़र</p>
<p>कुछ दरीचा हो यहाँ पर, हर तरफ खुलता हुआ </p>
<p> </p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>लगे जताने बहुत बड़े हैtag:openbooks.ning.com,2013-07-15:5170231:BlogPost:3975392013-07-15T13:00:00.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p>121 22 121 22</p>
<p>.</p>
<p>जहाँ जरूरी हुआ अड़े हैं,</p>
<p>इसीलिए हम यहाँ खड़े हैं</p>
<p> </p>
<p>जिन्हें जरूरत जहान भर की</p>
<p>वहीँ मशाइल बड़े-बड़े हैं</p>
<p> </p>
<p>समय उन्हीं के लिए बना है</p>
<p>जिन्हें कि हर पल लगे बड़े हैं</p>
<p> </p>
<p>मिली जरा सी उन्हें जो शुहरत,</p>
<p>लगे जताने बहुत बड़े है</p>
<p> </p>
<p>जिन्हें नाकारा है तेरी दुनिया </p>
<p>हम उनके हक़ में सदा लड़े हैं</p>
<p> </p>
<p>किसी की कमियों से क्या है लेना</p>
<p>अगर है खूबी, वहीँ अड़े…</p>
<p>121 22 121 22</p>
<p>.</p>
<p>जहाँ जरूरी हुआ अड़े हैं,</p>
<p>इसीलिए हम यहाँ खड़े हैं</p>
<p> </p>
<p>जिन्हें जरूरत जहान भर की</p>
<p>वहीँ मशाइल बड़े-बड़े हैं</p>
<p> </p>
<p>समय उन्हीं के लिए बना है</p>
<p>जिन्हें कि हर पल लगे बड़े हैं</p>
<p> </p>
<p>मिली जरा सी उन्हें जो शुहरत,</p>
<p>लगे जताने बहुत बड़े है</p>
<p> </p>
<p>जिन्हें नाकारा है तेरी दुनिया </p>
<p>हम उनके हक़ में सदा लड़े हैं</p>
<p> </p>
<p>किसी की कमियों से क्या है लेना</p>
<p>अगर है खूबी, वहीँ अड़े हैं</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>ग़ज़ल ५tag:openbooks.ning.com,2013-07-07:5170231:BlogPost:3939422013-07-07T17:10:49.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p></p>
<p> </p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p>बेख़ौफ़ सारी उम्र निकल जाये इस तरह</p>
<p>गिरने की बात हो न, संभल जाए इस तरह</p>
<p> </p>
<p>तूफ़ान भी चले तो चरागा जला करे</p>
<p>दोनों ही अपनी राह बदल जाए इस तरह</p>
<p> </p>
<p>हर सिम्त जिंदगी रहे, पुरजोश बारहां</p>
<p>जो मौत का भी होश,बदल जाए इस तरह</p>
<p> </p>
<p>फैले कहीं जो बाहें तो बच्चों सा दौड़कर</p>
<p>मिलने को हर इक शख्स मचल जाए इस तरह</p>
<p> </p>
<p>आंसू किसी की आँखों का, हर आँख से बहे </p>
<p>इस शहर की फ़ज़ा भी बदल जाये इस तरह…</p>
<p></p>
<p> </p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p>बेख़ौफ़ सारी उम्र निकल जाये इस तरह</p>
<p>गिरने की बात हो न, संभल जाए इस तरह</p>
<p> </p>
<p>तूफ़ान भी चले तो चरागा जला करे</p>
<p>दोनों ही अपनी राह बदल जाए इस तरह</p>
<p> </p>
<p>हर सिम्त जिंदगी रहे, पुरजोश बारहां</p>
<p>जो मौत का भी होश,बदल जाए इस तरह</p>
<p> </p>
<p>फैले कहीं जो बाहें तो बच्चों सा दौड़कर</p>
<p>मिलने को हर इक शख्स मचल जाए इस तरह</p>
<p> </p>
<p>आंसू किसी की आँखों का, हर आँख से बहे </p>
<p>इस शहर की फ़ज़ा भी बदल जाये इस तरह </p>
<p> मौलिक और अप्रकाशित </p>बता दो क्या कर लोगेtag:openbooks.ning.com,2013-07-05:5170231:BlogPost:3922932013-07-05T16:30:00.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p>बता दो क्या कर लोगे</p>
<p>सूरज के ही आगे पीछे रहती है बस धूप,</p>
<p>बता दो क्या कर लोगे </p>
<p>उनका पेट भरेगा, तेरी भांड में जाए भूख ,</p>
<p>बता दो क्या कर लोगे </p>
<p>तेरे ही काँधे पर चढ़कर छोड़ेंगे बन्दूक,</p>
<p>बता दो क्या कर लोगे </p>
<p>बेटा उनका आगे होगा, तुम्ही जाओगे छूट, </p>
<p>बता दो क्या कर लोगे </p>
<p>काला होगा धन उनका जब तेरा पैसा लूट,</p>
<p>बता दो क्या कर लोगे </p>
<p>कुर्सी तेरी वो बैठेंगे, तुम बस देना घूस,</p>
<p>बता दो क्या कर लोगे</p>
<p> </p>
<p>मौलिक और…</p>
<p>बता दो क्या कर लोगे</p>
<p>सूरज के ही आगे पीछे रहती है बस धूप,</p>
<p>बता दो क्या कर लोगे </p>
<p>उनका पेट भरेगा, तेरी भांड में जाए भूख ,</p>
<p>बता दो क्या कर लोगे </p>
<p>तेरे ही काँधे पर चढ़कर छोड़ेंगे बन्दूक,</p>
<p>बता दो क्या कर लोगे </p>
<p>बेटा उनका आगे होगा, तुम्ही जाओगे छूट, </p>
<p>बता दो क्या कर लोगे </p>
<p>काला होगा धन उनका जब तेरा पैसा लूट,</p>
<p>बता दो क्या कर लोगे </p>
<p>कुर्सी तेरी वो बैठेंगे, तुम बस देना घूस,</p>
<p>बता दो क्या कर लोगे</p>
<p> </p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>प्यार की पराकाष्ठाtag:openbooks.ning.com,2013-07-04:5170231:BlogPost:3918562013-07-04T16:30:00.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p>मैंने ख्वाबों में देखा है, कल आयेंगे घर सजना </p>
<p>आज सुबह से थिरक रहे हैं,चंचल चित,व्याकुल नयना</p>
<p> </p>
<p>घनघोर घटा घर आंगन छाना,तुझमें ही छुप जाऊंगी</p>
<p>व्यथित ढूंढ जब होंगे प्रिय, तुरत सामने आ जाऊंगी</p>
<p>लग जाऊंगी जब सीने से, झूम बरसना तुम अंगना</p>
<p> मैंने ख्वाबों में देखा है, कल आयेंगे घर सजना </p>
<p> </p>
<p>पी-कहाँ, पपीहे कहते थे तुम, कल तडके घर आ जाना</p>
<p>मेरे साथ ही तुझको भी है, गीत ख़ुशी के फिर गाना</p>
<p>द्वार मिलन पर पलक बिछाए ठुमक रहे मेरे…</p>
<p>मैंने ख्वाबों में देखा है, कल आयेंगे घर सजना </p>
<p>आज सुबह से थिरक रहे हैं,चंचल चित,व्याकुल नयना</p>
<p> </p>
<p>घनघोर घटा घर आंगन छाना,तुझमें ही छुप जाऊंगी</p>
<p>व्यथित ढूंढ जब होंगे प्रिय, तुरत सामने आ जाऊंगी</p>
<p>लग जाऊंगी जब सीने से, झूम बरसना तुम अंगना</p>
<p> मैंने ख्वाबों में देखा है, कल आयेंगे घर सजना </p>
<p> </p>
<p>पी-कहाँ, पपीहे कहते थे तुम, कल तडके घर आ जाना</p>
<p>मेरे साथ ही तुझको भी है, गीत ख़ुशी के फिर गाना</p>
<p>द्वार मिलन पर पलक बिछाए ठुमक रहे मेरे कंगना </p>
<p> मैंने ख्वाबों में देखा है, कल आयेंगे घर सजना </p>
<p> </p>
<p>कली-कली से कह दो भौंरे,खिलना होगा ठीक समय</p>
<p>चारों और सुगंध रहे जब द्वार खड़े हों सुमन तनय</p>
<p>प्रात समीर है तुझसे अनुनय,धीरे-धीरे तुम चलना </p>
<p> मैंने ख्वाबों में देखा है, कल आयेंगे घर सजना </p>
<p> आज सुबह से थिरके मेरे चंचल चित, व्याकुल नयना</p>
<p> </p>
<p>मौलिक और प्रकाशित </p>छंदमुक्तtag:openbooks.ning.com,2013-07-02:5170231:BlogPost:3890072013-07-02T00:00:00.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p><span>एक क्षण ,</span></p>
<div>मैंने उस फूल की पंखुड़ी को होठों से,</div>
<div>सहला भर दिया था </div>
<div>सिहर गयी थी शाख,</div>
<div>जड़ की गहराईयों तक,</div>
<div>हिल उठी थी धरा,</div>
<div>भौंचक था आसमाँ भी</div>
<div>उस पल </div>
<div>कितना सहम <span style="font-size: 13px;">गया था बागवाँ,</span></div>
<div>तब, ठिठक कर रुक गया था,</div>
<div>जिंदगी का कारवाँ,</div>
<div>लगा-</div>
<div>कहीं कोई भूल <span style="font-size: 13px;">तो नहीं हो गई,</span></div>
<div>उफ़!</div>
<div>मैंने…</div>
<p><span>एक क्षण ,</span></p>
<div>मैंने उस फूल की पंखुड़ी को होठों से,</div>
<div>सहला भर दिया था </div>
<div>सिहर गयी थी शाख,</div>
<div>जड़ की गहराईयों तक,</div>
<div>हिल उठी थी धरा,</div>
<div>भौंचक था आसमाँ भी</div>
<div>उस पल </div>
<div>कितना सहम <span style="font-size: 13px;">गया था बागवाँ,</span></div>
<div>तब, ठिठक कर रुक गया था,</div>
<div>जिंदगी का कारवाँ,</div>
<div>लगा-</div>
<div>कहीं कोई भूल <span style="font-size: 13px;">तो नहीं हो गई,</span></div>
<div>उफ़!</div>
<div>मैंने तो बस सराहा था, </div>
<div>ऐसा तो नहीं चाहा था . </div>
<div> मौलिक और अप्रकाशित </div>ग़ज़ल -४tag:openbooks.ning.com,2013-07-01:5170231:BlogPost:3884652013-07-01T01:30:00.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p>कश्ती को बस इक बार जताना है मुझे भी</p>
<p>जब तैर लिया, पार हो जाना है मुझे भी</p>
<p> </p>
<p>जो अपने सिवा खास किसी को न समझते</p>
<p>कितना हूँ मैं दुश्वार बताना है मुझे भी</p>
<p> </p>
<p>तूफाँ से यही बात कही, मैंने यहाँ पर</p>
<p>हर हाल चरागा ही जलाना है मुझे भी</p>
<p> </p>
<p>अब छूट घटाओं को कभी दे नहीं सकता</p>
<p>पानी तो हर एक हाल पिलाना है मुझे भी</p>
<p> </p>
<p>मत सोच सफ़र, पाँव मेरे बांध के रखना</p>
<p>जब वक्त कहे, लौट के आना है मुझे भी</p>
<p> </p>
<p>जो आग लगाना ही बड़ा काम…</p>
<p>कश्ती को बस इक बार जताना है मुझे भी</p>
<p>जब तैर लिया, पार हो जाना है मुझे भी</p>
<p> </p>
<p>जो अपने सिवा खास किसी को न समझते</p>
<p>कितना हूँ मैं दुश्वार बताना है मुझे भी</p>
<p> </p>
<p>तूफाँ से यही बात कही, मैंने यहाँ पर</p>
<p>हर हाल चरागा ही जलाना है मुझे भी</p>
<p> </p>
<p>अब छूट घटाओं को कभी दे नहीं सकता</p>
<p>पानी तो हर एक हाल पिलाना है मुझे भी</p>
<p> </p>
<p>मत सोच सफ़र, पाँव मेरे बांध के रखना</p>
<p>जब वक्त कहे, लौट के आना है मुझे भी</p>
<p> </p>
<p>जो आग लगाना ही बड़ा काम समझते</p>
<p>बस कह दो उसे,शहर बसाना है मुझे भी</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>ग़ज़ल- ३tag:openbooks.ning.com,2013-06-28:5170231:BlogPost:3862372013-06-28T03:56:45.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p>हर कदम खुशियाँ मिले, सबकी कवायद जिस लिए है</p>
<p>राम जाने दर्द क्यों, हर दिल में आखिर किसलिए है</p>
<p> </p>
<p>भीड़ को तो आपका ही, इक इशारा चाहिए बस</p>
<p>पीछे-पीछे चल रहा जो, हाथ में माचिस लिए है</p>
<p> </p>
<p>लोग मुझसे कह रहे थे, आदमी, इंसान है यह</p>
<p>गौर से देखा, तो जाना, दिल-जिगर बेहिस लिए है</p>
<p> </p>
<p>मैं लडूंगा जब यहाँ, हर काम उसका भी बनेगा</p>
<p>साथ मेरा दे रहा, यह शख्स अबतक इसलिए है</p>
<p> </p>
<p>पीठ पीछे, जो यहाँ, मेरी शिकायत कर रहा था</p>
<p>सामने आया तो देखा,…</p>
<p>हर कदम खुशियाँ मिले, सबकी कवायद जिस लिए है</p>
<p>राम जाने दर्द क्यों, हर दिल में आखिर किसलिए है</p>
<p> </p>
<p>भीड़ को तो आपका ही, इक इशारा चाहिए बस</p>
<p>पीछे-पीछे चल रहा जो, हाथ में माचिस लिए है</p>
<p> </p>
<p>लोग मुझसे कह रहे थे, आदमी, इंसान है यह</p>
<p>गौर से देखा, तो जाना, दिल-जिगर बेहिस लिए है</p>
<p> </p>
<p>मैं लडूंगा जब यहाँ, हर काम उसका भी बनेगा</p>
<p>साथ मेरा दे रहा, यह शख्स अबतक इसलिए है</p>
<p> </p>
<p>पीठ पीछे, जो यहाँ, मेरी शिकायत कर रहा था</p>
<p>सामने आया तो देखा, हाथ में नर्गिस लिए है </p>
<p> </p>
<p>आज जिससे भी मिलाया,कल उसी से दूर हैं हम </p>
<p>जिंदगी से कुछ शिकायत, लग रहा बस इसलिए है</p>
<p> बेहिस = भावना विहीन </p>
<p>डॉ ललित</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p> </p>ग़ज़ल- 2tag:openbooks.ning.com,2013-06-27:5170231:BlogPost:3858782013-06-27T13:30:00.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p>अपने मित्रों की सलाह पर कुछ परिवर्तन के साथ पुनः प्रेषित कर रहा हूँ -</p>
<p> </p>
<p>जिंदगी इक छलावा के सिवा क्या है</p>
<p>मौत भी बस, मुदावा के सिवा क्या है </p>
<p> </p>
<p>रोशनी की तड़प ही तो, अँधेरा है </p>
<p>हर उजाला,भुलावा के सिवा क्या है </p>
<p> </p>
<p>शानो-शौकत, तमाशा है, यही जाना </p>
<p>बेवजह ही, दिखावा के सिवा क्या है </p>
<p> </p>
<p>होश भी अब, कहीं दिखता नहीं, शायद </p>
<p>बद्सरंजाम लावा के सिवा क्या है </p>
<p> </p>
<p>मोह में और ममता में उलझ जाना</p>
<p>यह किसी…</p>
<p>अपने मित्रों की सलाह पर कुछ परिवर्तन के साथ पुनः प्रेषित कर रहा हूँ -</p>
<p> </p>
<p>जिंदगी इक छलावा के सिवा क्या है</p>
<p>मौत भी बस, मुदावा के सिवा क्या है </p>
<p> </p>
<p>रोशनी की तड़प ही तो, अँधेरा है </p>
<p>हर उजाला,भुलावा के सिवा क्या है </p>
<p> </p>
<p>शानो-शौकत, तमाशा है, यही जाना </p>
<p>बेवजह ही, दिखावा के सिवा क्या है </p>
<p> </p>
<p>होश भी अब, कहीं दिखता नहीं, शायद </p>
<p>बद्सरंजाम लावा के सिवा क्या है </p>
<p> </p>
<p>मोह में और ममता में उलझ जाना</p>
<p>यह किसी ख़ास दावा के सिवा क्या है </p>
<p> </p>
<p>मुदावा = इलाज़ ;</p>
<p>बद्सरंजाम= जिस काम का अंजाम अच्छा न हो </p>
<p>डॉ ललित </p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>
<p> </p>यूँ ही चलकरtag:openbooks.ning.com,2013-06-26:5170231:BlogPost:3856912013-06-26T23:58:14.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p>साधन में, सुधि में, समाधि ,संवाद में, ढूंढता हूँ संजोये नाम</p>
<p>कागज में, पाती में, दीये की बाती में, खोजा है बेसुध अविराम,</p>
<p>गैर की निगाहों में, पराजायी बाँहों में, या दिन हो या कोई शाम</p>
<p>जख्मों में, टीसों में,आहों में, शीशों में, हो मेरा शायद गुमनाम </p>
<p> </p>
<p>डॉ. ललित</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>
<p>साधन में, सुधि में, समाधि ,संवाद में, ढूंढता हूँ संजोये नाम</p>
<p>कागज में, पाती में, दीये की बाती में, खोजा है बेसुध अविराम,</p>
<p>गैर की निगाहों में, पराजायी बाँहों में, या दिन हो या कोई शाम</p>
<p>जख्मों में, टीसों में,आहों में, शीशों में, हो मेरा शायद गुमनाम </p>
<p> </p>
<p>डॉ. ललित</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>ग़ज़ल-1tag:openbooks.ning.com,2013-06-26:5170231:BlogPost:3854582013-06-26T14:00:00.000ZDr Lalit Kumar Singhhttps://openbooks.ning.com/profile/DrLalitKumarSingh
<p>खुशबू समेटने से किसका हुआ भला है </p>
<p>जब-जब चिता जली है, चन्दन वहाँ जला है </p>
<p> </p>
<p>बैठा रहा तो मुझको खुद से गिला था यारों </p>
<p>जब चल पड़ा तो सबको हर पल बहुत खला है </p>
<p> </p>
<p>अब है किसे पता भी, माहौल कब ये बदले </p>
<p>हर शख्स देखने में लगता मुझे भला है</p>
<p> </p>
<p>सुन वो कहाँ रहे थे, चर्चा चली जो मेरी </p>
<p>बेचैन हो गए, जब, उनका कहा भला है </p>
<p> </p>
<p>जिसको अजीज़ माना, यूँ दूर ही रहे सब </p>
<p>जब काम आ पड़ा तो फिर से खलामला…</p>
<p>खुशबू समेटने से किसका हुआ भला है </p>
<p>जब-जब चिता जली है, चन्दन वहाँ जला है </p>
<p> </p>
<p>बैठा रहा तो मुझको खुद से गिला था यारों </p>
<p>जब चल पड़ा तो सबको हर पल बहुत खला है </p>
<p> </p>
<p>अब है किसे पता भी, माहौल कब ये बदले </p>
<p>हर शख्स देखने में लगता मुझे भला है</p>
<p> </p>
<p>सुन वो कहाँ रहे थे, चर्चा चली जो मेरी </p>
<p>बेचैन हो गए, जब, उनका कहा भला है </p>
<p> </p>
<p>जिसको अजीज़ माना, यूँ दूर ही रहे सब </p>
<p>जब काम आ पड़ा तो फिर से खलामला है</p>
<p> खलामला = मेलजोल</p>
<p>डॉ ललित </p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित </p>